पहले दो तीन मासिक पत्रिकाएं आती थी। मनोहर कहानियां,सत्यकथा और भी ऐसे ही। पता नही अब आती है या नही। इनमे सत्य अपराध घटनाओं को मिर्च मसाला लगाकर कहानी के रूप में ऐसे पेश किया जाता था कि इस तरह की कथाएं पसंद करने वाले इन पत्रिकाओं के दीवाने होते थे। पता नही यह पत्रिकाएं आती भी है या नही और अगर आती है तो किस रूप में हैं। लेकिन अगर यह पत्रिकाएं बंद भी हो गई हो तो कम से कम छत्तीसगढ़ के पाठको को अफ़सोस करने की जरुरत नही।हरियाणा और छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले दैनिक हरिभूमि अखबार पर आज नज़र पड़ गई। अक्सर नही पड़ती क्योंकि मेरे आसपास नही आता यह अखबार। आज शनिवार के संस्करण में देखा तो पाया कि एक पेज का शीर्षक दिया गया है "एफ़ आई आर"। इस पूरे पेज पर छत्तीसगढ़ की अपराध कथाओं को मनोहर कहानी या सत्यकथा की शैली में संवाददाताओं से लिखवाकर परोसा गया है। एक पल को तो लगा ही नही कि मै कोई दैनिक समाचार पत्र पढ़ रहा हूं,यही महसूस हुआ कि यह कोई मनोहर कहानी या सत्यकथा स्तर की किसी मैगजीन का पन्ना है। वैसी ही कथाएं और वैसी ही शैली। इस एक पेज मे तीन-चार अपराध कथाओं को कथात्मक शैली में पेश किया गया था और इन तीन चार में से दो तो अवैध संबंध रखने और उसका अंत हत्या/अन्य अपराध से होना बताया गया।हम नाहक ही सिर्फ़ टीवी चैनलों को कोसते हैं अपराध पर आधारित इस तरह के कार्यक्रम दिखाने के लिए। आज का "हरिभूमि" देखकर लगा कि अब तो यह बीमारी समाचारपत्रों में भी आ गई है। यह अगर किसी लोकल साप्ताहिक अखबार में होता तो यह कहा जा सकता था कि चलो इनका तो यही काम है यही शैली है पर एक दैनिक अखबार वह भी ऐसे बड़े ग्रुप का।
वाह भई वाह!!
वाह हरिभूमि, मुकाबला मनोहर कहानी से?
23 February 2008
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22 टिप्पणी:
yah mamu jo bikta hai wahi chapta hai
टी.डी.पी. बढ़ाने के चक्कर मे अखबारों से लेकर टी.वी. वाले तक सभी यही कर रहे है कही दंत कथाये तो कही सत्य कथा तो अपराध बोध जगाने वाले समाचारों को पढ़ा और दिखा रहे है यह बीमारी पहले भी मैगजीन और समाचार पत्र मे देखते थे अब इस बीमारी को टी.वी. चैनल वाले बखूबी बढ़ा रहे है आगे देखिये क्या क्या होता है
संजीत बाबू बिल्कुल मनोहर कहानियां...जैसी मैजगीन अभी भी प्रकाशित होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि उनकी बिक्री जरुर कम हो गई है। इसकी वजह ये है कि इनका मुकाबला न्यूज चैनल पर आने वाले क्राइम प्रोग्राम और अखबार के सप्लीमेंटस (हरिभूमि से पहले अमर उजाला, दैनिक जागरण सरीखे अखबारो में क्राइम का अलग पन्ना है) से हो गया है। अंग्रेजी अखबारो को भी खोलकर देखे तो उनमें अपराध से जुड़ी खबरे ही ज्यादा दिखाई देंगी। दैनिक जागरण ने तो अपनी वेबसाईट पर 'अपराध' नाम से ही एक कॉलम बना दिया है।
इस पर क्या कहें? सिर्फ यही कि, ये तो होना ही था... :)
बीमारियाँ सभी को लग रही हैं. ये रिपोर्ट इस बात को दर्शाती है, संजीत.
सेक्स और राजनीति - ये दुनिया के दो सबसे पुराने व्यवसाय हैं. कभी बंद नही होने वाले. हरिभूमि को देख के टेंशन न ले - टाइम्स ऑफ़ इंडिया की तसवीरें देखिये - यह ख़ुद तो भारत का "न्यू यार्क टाइम्स" कहता है?
सौरभ
अखबारों की दुनिया में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा है, ये उसी का नतीजा है…
एक बात तो स्वीकारनी होगी कि लोकप्रियता और प्रसार संख्या के मामले में ऐसे पत्र-पत्रिकाओं के सामने कोई नहीं ठहरता. भले ही लोग दबे-छुपे पढ़ते हों.
यह बाजार है। हर कोई खड़ा बाजार में। बाजार की मांग की पूर्ति करता हुआ।
सब डिमांड/सप्लाई का खेला है. यह उसी का नतीजा है.
मनोहर कथा का ब्लॉग भी आयेगा। जरा पैर जमने दें हिन्दी ब्लॉगिंग के!
मनोहर कहानियाँ जैसी किताबों को तो लोग खरीद कर छुप कर पढ़ते रहे होंगे पर अखबार मे ही जब ये सब छप रहा हो तब तो भगवान ही मालिक है।क्यूंकि अखबार तो हर कोई पढता है।
खबिरा खड़ा बाजार में मांगे अपनी खैर
चाकू से फुल दोस्ती, ना डाकू से बैर
यह अखबार लीडिंग समाचार पत्रों में सबसे कम दर का अच्छे सरकुलेशन वाला अखबार है । इसके बहुसंख्यक पाठक गांव के हैं जिन्हें ऐसी कहानी अच्छी लगती है इसलिये यह पेज लगाया जाता है, मैं लगभग सभी समाचार पत्रों पर नजर डालने का प्रयास करता हूं । इस समाचार पत्र का सप्लीमेंट वेबभूमि, रविवारीय, बालभूमि, सियासतनामा, व छत्तीसगढी चौपाल अपनी सामाग्री एवं स्तर में संग्रहणीय व पठनीय है ।
सारा देश ही डंके की चोट पे पतन की अओर अग्रसर है तो इस अखबार की क्या कहें।
' said... बॉस से टी.डी.पी क्या है।
संजीत भाई अखबार बेचने के लिए बहुत कुछ करना पडता है, देखते रहिए जिन अखबारों में अभी तक नहीं आ रहा वहां भी आएगा अभी तो।
ये सब समय और जनता की मांग है.
और प्रगितिशिलता या पतनशीलता के अघोषित नतीजें है. ये और बढेगी अभी.
अफसोस होता है इस तरह की दूषित मानसिकता से।
मेरी राय सबसे अलग है मनोहर कहानियाँ के प्रति, यह मासिक पत्रिका एक समय भारत की सबसे ज्यादा बिकने वाली पत्रिका हुआ करती थी। यह पत्रिका उतनी भी बुरी नहीं थी। मैं इस पत्रिका को बहुत चाव से पढ़ा करता था और आज भी मिल जाये तो पढ़ता हूँ।
इस पत्रिका को छुप कर या छुपा कर पढ़नॆ झाईशा इसमें कुछ नहीं आता, हाँ इसकी तर्ज पर दर्जनों पत्रिकायॆं वाहियात सामग्री परोसा करती थी जिसमें से कई बंद हो गई।
मनोहर कहानियां में कई एतिहासिक कहानियां आती थी जो बहुत ही शानदार हुआ करती है।
पढ़कर अच्छा लगा। बताना चाहूंगा मनोहर कहानियाँ/सत्यकथा अभी भी पूरी तरह बाजार में है। कहानी के क्षेत्र में नंबर वन है। एक जनाब ने उसे छिपकर पढ़ने की बात कही है, मेरे ख्याल से बिना देखे समझे कुछ भी बोल देना गलत हैं। उन्होंने दोयम दर्जे की पत्रिकाएं पढ़ी होंगी जिनमें अश्लीलता की भरमार होती है। मनोहर कहानियां का एक स्तर है। यहां केवल हाईप्रोफाइल केस ही हेाते हैं। आला अधिकारियों से लेकर कई परिवार लाखों पाठक आज भी मौजूद हैं। बतना चाहूंगा कि मनोहर कहानियां के साथ ग्रुप की कुल 31 पत्रिकाएं 9 भाषाओं में पूरे देश में पढ़ी जाती हैं।
मनोहर कहानियां और सत्यकथा नामक पत्रिका जब तक माया पब्लिकेशन छापता था, तभी तक बढिया थी। मनोहर कहानियां तो अपने समय की बेहतरीन पत्रिका होती थी। उसमें लिखने वाले पुष्कर पुष्प और इंस्पेक्टर नवाज खां जैसे लेखकों की कमी आजतक कोई पूरी नहीं कर पाया है।
अब इन दोनों को डायमंड पॉकेट बुक्स ने खरीद लिया है और मधुर कथायें जैसी सी-ग्रेड पत्रिका बना दिया है।
प्रणाम
सोहिल आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि मनोहर कहानियां ओर सत्यकथा के नाम के आगे-पीछे कुछ लगाकर सी ग्रेड पत्रिका भी बाजार में मौजूद हैं सम्भवतः आपने वही देखी होगी। केवल मनोहर कहानियां देखते तो शायद खुशी होती। वह अपना वजूद आज भी कायम किये हुए है। आज भी वह बेजोड़ है। बाजार मंे कई बहुचर्चित मामलों के साथ ताजा अंक मौजूद है।
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