छत्तीसगढ़ में तकरीबन हर स्कूल-कॉलेज साल में एक न एक बार अपने छात्र-छात्राओं को पिकनिक पर सिरपुर ले जाता ही है। बाल्यावस्था में भले ही सिरपुर की महत्ता समझ न आए और वह महज एक पिकनिक स्पॉट ही लगे लेकिन जैसे-जैसे इतिहास और संस्कृति में रूचि बढ़ती है वैसे-वैसे सिरपुर की महत्ता समझ में आने लगती है। आईए पढ़ें कि छत्तीसगढ़ राज्य का पर्यटन और संस्कृति विभाग क्या कहता है सिरपुर के बारे मे।
श्रीपुर या सिरपुर
पुण्य सलिला महानदी के तट पर सिरपुर का अतीत सांस्कृतिक, समृद्धि व वास्तुकला के लालित्य से ओतप्रोत रहा है। सिरपुर प्राचीन काल में श्रीपुर के नाम से विख्यात रहा है तथा पाण्डुवंशीय शासकों के काल में इसे दक्षिण कोसल की राजधानी होने का गौरव प्राप्त रहा है। सिरपुर की प्राचीनता का सर्वप्रथम परिचय शरभपुरीय शासक प्रवरराज तथा महासुदेवराज के ताम्रपत्रों से उपलब्ध होता है जिनमें "श्रीपुर" से भूमिदान दिया गया था। पाण्डुवंशीय शासकों के काल में सिरपुर महत्वपूर्ण राजनैतिक व सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। महाशिवगुप्त बालार्जुन के 57 वर्षीय सुदीर्घ शासनकाल में यहां अनेक मंदिर,बौद्ध विहार,सरोवर तथा उद्यानों का निर्माण करवाया गया। सातवीं सदी ईस्वी में चीन के महान पर्यटक व विद्वान ह्वेनसांग ने सिरपुर की यात्रा की थी। उस समय यहां लगभग 100 संघाराम थे तथा महायान संप्रदाय के 10,000 भिक्षु निवास करते थे। महाशिवगुप्त बालार्जुन ने स्वयं शैव मतावलंबी होते हुए भी बौद्ध विहारों को उदारतापूर्वक प्रचुर दान देकर संरक्षण प्रदान किया था।
दर्शनीय स्थल
लक्ष्मण मंदिर- यह मंदिर ईंटों से निर्मित भारत के सर्वोत्तम मंदिरों मे से एक है। अलंकरण सौंदर्य मौलिक अभिप्राय तथा निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। लगभग 7 फ़ुट ऊंचे पाषण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर अत्यंत भव्य है। पंचरथ प्रकार का यह मंदिर गर्भगृह,अंतराल तथा मंडप से युक्त है। लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता वासटा ने अपने दिवंगत पति की स्मृति में करवाया था। वासटा मगध के राजा सूर्यवर्मन की पुत्री थी। अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर इस मंदिर का निर्माण काल ईस्वी 650 के लगभग मान्य है।गंधेश्वर महादेव- महानदी के तट पर स्थित इस मंदिर का प्राचीन नाम गंधर्वेश्वर था। यह सतत पूजित शिव मंदिर है। इसका निर्माण प्राचीन मंदिरों व विहारों से प्राप्त स्थापत्य खण्डों से किया गया है। स्थापत्यकला की दृष्टि से इस मंदिर का विशेष महत्व नही है। मंदिर परिसर में विभिन्न भग्नावशेषों से संग्रहित अनेक कलात्मक प्रतिमाएं संरक्षित कर रखी गई हैं।
बौद्ध विहार- बौद्धधर्म से संबंधित अवशेषों की दृष्टि से सिरपुर विशेष महत्वपूर्ण है। उत्खनन कार्य से यहां दो बौद्ध विहार के अवशेष प्रकाश में आए हैं। यहां के प्रमुख विहार से मिले अभिलेख से ज्ञात होता है कि महाशिवगुप्त बालार्जुन के राजत्वकाल में आनंदप्रभु नामक भिक्षु नें इसका निर्माण करवाया था। इस मठ में निवास के लिए 14 कमरे थे और यह विहार दोमंजिला था। अभिलेख के आधार पर इसका नामकरण आनंदप्रभु कुटी विहार किया गया है। इसी के सन्निकट एक अन्य ध्वस्त विहार भी उत्खनन से प्रकाश में आया है। तल योजना के आधार पर इसे स्वस्तिक विहार के नाम से जाना जाया है। यहां भी भूमिस्पर्श मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा प्रस्थापित है। सिरपुर से बौद्धधर्म से संबंधित पाषाण प्रतिमाओं के अतिरिक्त धातु प्रतिमाएं तथा मृण्मय पुरावशेष भी उपलब्ध हुए हैं।
राम मंदिर- लक्षमण मंदिर से कुछ दूरी पर पूर्व की ओर ईंटों से निर्मित एक भग्न तथा जीर्ण-शीर्ण मंदिर अवशिष्ट हैं। यह राममंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के ऊर्ध्व विन्यास में कोण तथा भुजाओं के संयोजन से निर्मित प्रतिरथ ताराकृति की रचना करते हैं। इस कलात्मक मंदिर का संपूर्ण शिखर नष्ट हो चुका है तथा भग्नप्राय: भित्तियां बच रहे हैं। लक्ष्मण मंदिर तथा राम मंदिर के निर्माण में कुछ दशकों का अंतराल है।
संग्रहालय- लक्ष्मण मंदिर परिसर में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग द्वारा स्थापित संग्रहालय में सिरपुर से प्राप्त अनेक दुर्लभ प्रतिमाएं तथा स्थाप्त्य खण्ड संरक्षित कर रखी गई हैं। ये कलाकृतियां शैव, वैष्णव,बौद्ध तथा जैन धर्म से संबंधित है।
धातु प्रतिमाएं- सातवीं-आठवीं सदी ईस्वी में सिरपुर धातु प्रतिमाओं के निर्माण के केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुका था, इस काल में सिरपुर महायान धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था। सिरपुर में सर्वप्रथम 1939 में धातु प्रतिमाओं का भंडार प्राप्त हुआ था, यहां से प्राप्त धातु प्रतिमाएं रायपुर,नागपुर,नई दिल्ली स्थित संग्रहालयों तथा मुंबई के भारतीय विद्या भवन में संरक्शित हैं सिरपुर से प्राप्त धातु प्रतिमाओं का प्रदर्शन इंग्लैंड,जर्मनी और अमेरिका में किया जा चुका है। सिरपुर की धातु प्रतिमाओं में "श्री" व 'शील" का अद्भुत संतुलन है।
उत्खनन-- सिरपुर के तिमिराच्छादित अतीत के परतों को अनावृत करने के उद्देश्य से वर्ष 1953 से 1956 तक सागर विश्विद्यालय व मध्यप्रदेश साशन के पुरातत्व विभाग द्वारा संयुक्त रुप से श्री एम जी दीक्षित के निर्देशन में उत्खनन कार्य संपादित किया गया। वर्ष 2001 से 2004 के मध्य सिरपुर में डॉ अरूण कुमार शर्मा रिटायर्ड सुप्रिन्टेंडिंग आर्क. सी. भार. पुरा. सर्वेक्षण के द्वारा नागार्जुन बोधिसत्व संस्थान मनसर के तत्वाधान में उत्खनन कार्य संपादित किया गया। इस अवधि में निम्न स्मारक अवशेष अनावृत किए गए।
1- बौद्ध विहार (तीवरदेव महाविहार)- दक्षिण कोसल(छत्तीसगढ़) में अब तक के सबसे बड़े विहार के रूप में परिगणित तीवरदेव बौद्ध विहार कसडोल जाने वाले मार्ग पर दाहिनी ओर लक्ष्मण मंदिर से एक किमी पूर्व स्थित है। वस्तुत: यह पूरा क्षेत्र एक बौद्ध सांस्कृतिक संकुल ही है क्योंकि इसी परिसर में अन्य विहार भी स्थित है।
2- शिव मंदिर समूह- सन 1953-54 व सन 1999-2000 में हुए उत्खनन में तीन शिव मंदिर मिले हैं। साथ ही सन 2003-2004 के उत्खनन में महत्वपूर्ण पंचायतन बालेश्वर महादेव मंदिर भी मिला है यह लक्ष्मण मंदिर से एक किमी पहले बाएं स्थित है।
कैसे पहुंचे सिरपुर--
वायु मार्ग-- रायपुर निकटस्थ हवाई अड्डा है जो मुंबई,दिल्ली,कोलकाता,चेन्नई,नागपुर,भुवनेश्वर,विशाखापट्नम और रांची से वायुयान सेवा से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग-- हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर समीपस्थ रेलवे जंक्शन है। रायपुर-वाल्टेयर रेल मार्ग पर स्थित महासमुंद निकटस्थ रेल्वे स्टेशन है।
सड़क मार्ग-- रायपुर से सिरपुर तक की कुल दूरी 83 किमी है। रायपुर से संबलपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर लगभग 66वें किमी पर स्थित कुहरी ग्राम के मोड़ के उत्तर की ओर यह लगभग 17 किमी पर स्थित है। रायपुर तथा महासमुंद से सिरपुर के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल पर्यटन भवन,जी ई रोड रायपुर-492006 फोन- 0771-4066415
(उपरोक्त आलेख ASI Raipur,संस्कृति विभाग द्वारा जारी ब्रोशर पर आधारित है। जानकारी इतनी विस्तृत है कि उसे अकेले इस ब्लॉग पोस्ट में समेट पाना संभव नही है अत: संक्षिप्त कर यहां डाली गई है।)
वर्तमान में भी उत्खनन जारी है। अखबारों में छपी खबर पर नज़र डालें तो दिनांक 28 जनवरी 2008 को दैनिक भास्कर रायपुर में छपी खबर बताती है कि सिरपुर में यमराज की प्रतिमा व भगवान पार्श्वनाथ की दो प्रतिमाएं भी मिली है जो कि करीब पांचवी शताब्दी के आसपास की है।
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20 टिप्पणी:
पता नही आजकल गाइड है कि नही। पहले यह कमी खलती थी। गाइड के होने से बहुत कुछ जानने मिलता है। रोचक प्रस्तुति के लिये धन्यवाद।
अभी पापा जी कही घुमने का मूड बनायेंगे तो आपको पकड़ना हितकर रहेगा, जानाकारियो का भण्डर जो है आपके पास :)
बहुत बढ़िया जानकारी है संजीत. उत्खनन रोकने के लिए जब केवल अखबार लगें तो फिर उत्खनन कैसे रुकेगा. भइया, अगली बार जब भी घूमने की इच्छा हुई तो छत्तीसगढ़ ही जाऊँगा...
श्रीपुर क्षेत्र की तस्वीरों पर आपने अपना डाक पता कैसे छापा है?
रोचक जानकारी ......... पर ये हमारा दुर्भाग्य है कि पुरा सम्पदा की अनदेखी करके आने वाली पीढियों को स्वर्णिम अतीत के भग्नावशेष से भी वंचित कर रहें हैं।
स्वागत है आप सभी का छत्तीसगढ़ घूमने के लिए!
@आलोक जी समझ नही पाया मैं,
यदि आप आपत्ति के स्वर में यह सवाल पूछ रहे हैं तो यह कहना चाहूंगा कि यह तस्वीरें अनुमति लेने के बाद खींची गई है इसलिए इन्हे नेट पर डालने के लिए इन पर मैने अपनी ई मेल आई डी छापी है।
यदि आप इन तस्वीरों पर ई मेल आई डी डालने की प्रक्रिया के बारे में उत्सुकता जाहिर कर रहे हैं तो मैने यह http://picmarkr.com/ माध्यम से किया है।
छ्त्तीसगढ़ का ट्रेवल टूरिस्म डिपार्ट्मेंट जोइन कर उन्हें कर्तार्ध करें। बहुत ही बड़िया वर्णन है, हम आती छुट्टियों में सीधा छ्त्तीसगढ़ पंहुच रहे हैं।
काहिरा जाने के पैसे इकट्ठे कर रहा हूं इतिहास टूरिज्म में मेरी खास रुचि है, पर अब लगताहै कि काहिरा नहीं छत्तीसगढ़ ही आना पड़ेगा। अच्छा ये बताओ प्यारे ये इत्ती वैराइटी कहां से लाते हो। आवारा शेर, फिर स्वतंत्रता सेनानी के किस्से,फिर उन बकवादी कचहरी वाले साहब के किस्से, फिर ये श्रीपुर। करते क्या हो, आवारागर्दी में पोस्ट ग्रेजुएशन तो अपन का भी है, पर तुम तो गुरुवर डी लिट अभी ही हो लिये हो।
जमाये रहो।
संजीत जी,ऐसी जानकारी साथ में संबंधित फोटोज़ के साथ पढ़ कर मज़ा आ गया। मैं अकसर कहता हूं कि लोग दूसरे देशों की सैर करने को बहुत उतावले होते हैं....हमारे खुद के देश में ही इतनी जगहें हैं जिन के बारे में हमें अभी तक पता ही नहीं है। सारी ज़िंदगी तो हमारी इन को देखने के लिए भी कम है। अब, मैं इस जगह से टोटली बेखबर था।
भैया, पोस्ट भी सुन्दर है और टिप्पणियां भी। श्रीपुर देखना पड़ेगा और आपकी अवारागर्दी की पीएचडी की डिग्री भी!
हम ने एक सिरपुर के बारे में और सुना है जिस के नाम से कागज बनता है। बचपन में हम कैपीटल की नोटबुक जिसे कॉपी कहा करते थे प्रयोग में लाते थे वे भी सिरपुर से सम्बन्ध रखती थी, उन पर उगते सूरज का वाटर मार्क बना होता था। क्या यही वह सिरपुर है?
शेष जानकारी के लिए आभार अभी दो-एक बरस कहीं घूमने जाने का कार्यक्रम अपना नहीं है। हाँ, कोई काम ही निकल आए तो बात अलग है, आप को वक्त जरूरत बता ही देंगे।
sanjeet,musibat mol le rahey ho..sab ke sab pahunch jaayengey chatiisgarh..post badhiyaa lagi
उत्तम जानकारी!! आभार!
धन्यवाद, पौराणिक व एतिहासिक वैभव नगरी के उल्लेख के लिए ।
Hello ,
SIRPUR ke bare main aapne jo info
collect ki hai that is nice,photographs bhi achhe hai.
Jab hum raipur aayenge to wahan visit karne ki planning karenge.
छत्तीसगढ़ तो आना ही है। पुरातत्व का खजाना तो है ही सांस्कृतिक दृष्टि से भी संमृद्ध है। बस्तर घूमने की इच्छा कई सालों से है।
श्रीपुर से ही बना है सिरपुर । अलबत्ता सिर वाले शीर्ष से इसका लेना देना नहीं है। ये तो सिर्फ भाषा की घिसावट का नतीजा है।
बहुत रोचक जानकारी ,,और उतने ही सुंदर चित्र हैं ..लगता है अगला घूमने का अवसर वही देना होगा :)
संजीत जी फोटो और विवरण दोनो ही बहुत अच्छे लगे। अब छत्तीसगढ़ घूम पाए या नही गम नही क्यूंकि आपकी बदौलत तो हम घूम ही रहे है।
hi
it is fantastic sanjeet ji.........
it is fentasti sanjeet ji.....
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