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13 February 2008

बाहर न निकले बेटियां लेकिन बेटे?



कल 14 फरवरी है अर्थात वेलेन्टाईन डे। हमारे शहर की एक महिला संस्था की सदस्यों नें चार दिन पहले ही एक मीटिंग कर शपथ ली है कि वह अपने-अपने घर की बेटियों को 14 फरवरी को घर से बाहर नही निकलने देंगी।

दूसरी बात यह कि बेटियों पर तो पाबंदी लगाने को तैयार हैं यह माताएं लेकिन बेटों को वेलेन्टाईन डे के दिन घूमनें देंगी या नही इस बारे में खामोश है।

अगर वह बेटों को वेलेन्टाईन डे के दिन बाहर घूमने पर पाबंदी नही लगाती इसका मतलब यह हुआ कि महिला संस्था की यह सदस्याएं अपने बेटे-बेटी में भेदभाव खुद ही बरत रही हैं, फ़िर किस मुंह से यें सब आए दिन विभिन्न आयोजनों में बेटे-बेटी को बराबर कहती रहती हैं।


पता नही उनके इस निर्णय पर क्या प्रतिक्रिया की जाए लेकिन अपन को तो यही लगता है कि बंदिशें ही विद्रोह को जन्म देती हैं।

17 टिप्पणी:

Ashish Maharishi said...

भगवान इन्‍हें सदबुद्वि दे

दिनेशराय द्विवेदी said...

यह आप के ही शहर में हो रहा है ऐसा नहीं है। सारे देश में यही हो रहा है। हमारे देश में अभी मूल्य सामंती ही चल रहे हैं। उसी का अनुकरण हो रहा है। अभी स्त्री-पुरुष बराबरी दूर का सपना है।

Gyan Dutt Pandey said...

निकलने से मना दोनो को किया जाये; अगर मां-बाप की चलती हो तो।

Udan Tashtari said...

सब नौटंकी है-क्या फर्क पड़ता है???

Kirtish Bhatt said...

सचमुच इस तरह की बातें कभी कभी चिंता में डाल देती हैं कि आखिर सोच बदलने में कितना समय लगेगा और इसकी शुरुआत कहाँ से होगी?????? .....जब घर में ही ये हालत है.

Tarun said...

संजीत बहुत सही विषय उठाया है लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि माँओं के इस कदम का बापों ने कोई विरोध नही किया कम से कम पढ़ने में नही आया। इसका सीधा सा मतलब है कि उनकी भी इसमे सहमती होगी क्योंकि इंडिया में कम से कम अभी भी ज्यादातर घरों में पुरुषों की ही तूती बोलती है। यानि ना बाप चाहते हैं कि बेटिया बाहर जायें ना माँ।

Anonymous said...

जय हो वेलेन्टाईन देव की. कल उन्हीं की धूम रहनेवाली है.

Rachna Singh said...

मनाई , बंदिश और नियम

जहाँ भी मनाई हों
लड़कियों के जाने की
लड़को के जाने पर
बंदिश लगा दो वहाँ
फिर ना होगा कोई
रेड लाइट एरिया
ना होगी कोई
कॉल गर्ल
ना होगा रेप
ना होगी कोई
नाजायज़ औलाद
होगा एक
साफ सुथरा समाज
जहाँ बराबर होगे
हमारे नियम
हमारे पुत्र , पुत्री
के लिये

Anita kumar said...

बेटे बेटियों में भेदभाव करने वाली ये महिलायें( और सिर्फ़ महिलाएं ही क्युं, पुरुष भी) किस मुंह से नारी के साथ होते अन्याय और नारी अधिकारों की बात करती है

Urban Jungli said...

आधो का वेलेन्टाईन डे 13th को मन चुका होगा और आधो का 15th को मनेगा । तो 14th को किसका मनेगा । बेटिया घर पर और .... ;);)..

mamta said...

अगर रोकना है तो बेटे और बेटी दोनों को ही रोकना चाहिए।

Lokesh Kumar Sharma said...

पुत्र एवम पुत्री दोनो को हि बाहर निकलने से नही रोका जाना चाहिये. पुत्र एवम पुत्री किसी को भी रोकने का मुख्य कारण भारतिय समाज मे व्याप्त असुरछा का भाव है. आज ६० साल के आजादी के पश्चात भी शासन भारतिय समाज को सुरछा प्रदान करने मे असफ़ल है.

anuradha srivastav said...

अजीब दोहरी मानसिकता है।

Samrendra Sharma said...

रचना जी ने अच्छा लिखा है पुत्रो को सोचना होगा

सुनीता शानू said...

हर बात पर बेटियाँ ही क्यों जिम्मेदार है बेटे क्यों नही..सच है नारी ही नारी की दुश्मन है...और जबरदस्ती क्या किया जा सकता है बस बच्चो को मन से स्वयं के खिलाफ़ खड़ा किया जा सकता है ये बन्दिशे जानवार को ही पसन्द नही वो भी स्वतंत्र आकाश में उड़ना चाहता है तो यह तो इंसान है...उन्हे उनके भले बुरे की शिक्षा माएं अवश्य दे मगर इतनी कड़ी बन्दिश नही...

Anonymous said...

kisi ne sach kaha hai ki "nari hi nari ki dushman hai".

CHINMAY said...

kisi ne sach hi kaha hai ki "nari hai nari ki dushman hai".

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