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04 January 2008

कहां से कहां

कहां से कहां


अपन को कुंडली आदि ज्योतिष मे हल्की रुचि है [रुचि बस है जानकारी नही ;)] तो अपन पिछले साल से पराशर लाईट 6 .1 नामक विस्तृत कुंडली बनाने का सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल करते रहे हैं। इंटरनेट पर सर्फ़िंग करने पर ही पूर्णत: अंग्रेजी के इस सॉफ़्टवेयर का पायरेटेड वर्जन मिल गया था। था तो अंग्रेजी में लेकिन बहुत ही बढ़िया। पराशर होरा शास्त्र की पद्धति से बने इस सॉफ़्टवेयर के व्यवसायिक संस्करण जिसका पायरेटेड वर्जन हमें मिला था की कीमत करीब 18000 रुपए थी। बखूबी इसका उपयोग किया हमने। फ़िर 2007 दिसंबर में हमें मालूम चला कि पराशर लाईट 7 भी बाज़ार में आ चुका है जो कि हिंदी में भी है। अपन की तो निकल पड़ी। सो इंटरनेट पर खंगाल डाला पर पायरेटेड वर्जन नही मिला। पता चला कि इस सॉफ़्टवेयर को बनाने वाली कंपनी ने इस बार ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया है कि सॉफ़्टवेयर को क्रैक/पैच कर पाना मुश्किल हो रहा है। खैर! इसी बीच सॉफ़्टवेयर/हार्डवेयर क्षेत्र से जुड़ा अपना एक बंदा दिल्ली गया तो उसने वहीं से हमें फोन किया कि संजीत भाई पायरेटेड तो यहां भी नही मिल रहा, पराशर 7 का प्रोफ़ेशनल एडिशन 18000 रुपए का है जबकि पर्सनल एडिशन 3500 रुपए का। अपन से उस से कह दिया ले ही आ भाई पर्सनल एडिशन तो जो होगा देखा जाएगा।

वो ले आया। हमने ने इस्तेमाल करना शुरु किया, दिल खुश हो गया ( अब अपन इतने गूढ़ जानकारी वाले तो हैं नई कि सॉफ़्टवेयर में खामी निकाल सकते)। सो कुछेक लोगों की विस्तृत गणना वाली कुंडली इस बार हिंदी में निकाल कर दी। ऐसे ही एक मित्रवत भाई साहब को भी दिया। वो भाई साहब ने कुंडली देखी और कहा संजीत भाई पूरे रायपुर में पराशर पद्धति से कुंडली बनाने वाला सॉफ़्टवेयर किसी के पास मे नही था अब आप ले आए हो अब आप देखो कमाल। हमने कहा क्यों भाई तो उन्होने कहा दरअसल मेरे गुरुजी पराशर पद्धति से कुंडली देखने वाले छत्तीसगढ़ में इकलौते हैं तो मै यह कुंडली ले जा कर उन्हे दिखाऊंगा ही वे खुश हो जाएंगे। हमने कहा ठीक है।

यह बात हुई थी रात के साढ़े आठ बजे। दूसरे दिन सुबह अपन लात तान के सोए हुए थे, मोबाईल बजा, दूसरी तरफ़ से कहा गया कि वह फलां फलां अखबार के मालिक बोल रहे हैं अपनी बेटी की कुंडली बनानी है विस्तृत गणना वाली। अपन नींद से उठे थे, चकरा गए कि इन्हे कैसे मालूम अपन कुंडली बनाते है। पूछा तो जवाब मिला कि फ़लाने गुरुजी ने हमारा मोबाईल नंबर देकर ही संपर्क करने को कहा। दिमाग मे बात आई कि रात वाले भाई साहब ने रात मे ही अपने गुरुजी से मिलकर अपनी कुंडली दिखाई और उनके गुरुजी संतुष्ट हुए।

तो इन गुरुजी जिनसे हम मिले ही नही उन्होने इन अखबार के मालिक को हमारा मोबाईल नंबर दे दिया कि यहां से बनवा लाओ कुंडली। फोन आया हमने बना दी कुंडली। इसके आठ दिन बाद फ़िर एक सुबह अर्थात आज अपन सोए पड़े थे कि मोबाईल बजा। दूसरी तरफ कोई ठक्कर साहब थे अपने बेटे की कुंडली बनवानी थी उन्हे भी हमारा मोबाईल नंबर उन गुरुजी के किसी शिष्य से ही मिला। अपन ने कहा ठीक है बन जाएगी कुंडली। ठक्कर साहब ने कहा उनकी एंजियोप्लास्टी हुई है तो उन्हे दिक्कत आएगी हम तक पहुंचने और कुंडली लेने मे सो अगर होम डिलिवरी हो जाए तो। अपन ने असमर्थता जाहिर कर दी। खैर! कुंडली बनी उनके बेटे की और वह अपने बेटे के साथ ही कुंडली लेने आए।

करांची पाकिस्तान में 1944 में जन्में ठक्कर साहब सिंधी हैं। जैसे ही आए कुंडली रख दी अपन ने उनके सामने पर बुजुर्ग आदमी बिना बातों के कहां मानते हैं। ठक्कर साहब ने बताया कि वह अपने 18 साल के इकलौते पुत्र की वजह से थोड़ी परेशानी में है पढ़ता लिखता नही उधम इतना मचाता है कि स्कूल ने टी सी देने की तैयारी कर ली थी। ठक्कर साहब ने हमें कहा कि आप मुझे देखिए और मेरे बेटे को देखिए जनरेशन गैप की वजह से दिक्कत और आती है विचारों में। सो आप मेरे बेटे को समझाईए शायद उसकी समझ में आए। हमने उन्हें जवाब दिया कि हम उनकी समस्या समझ सकते हैं क्योंकि हम खुद अपने पिता की सबसे छोटी संतान थे और ठीक यही जनरेशन गैप हमारे साथ भी थी। फिर अपन ने ठक्कर साहब से कहा कि बस आप अपने को बालक पर लादने की कोशिश न करें इससे वह और विद्रोही होता जाएगा। (वैसे अपन खुद असमंजस वाली स्थिति मे थे क्योंकि अपन खुद तो अपने घर मे एक नमूने ही हैं और यहां हमसे ही सलाह मांगी जा रही थी) हमने ठक्कर साहब से कहा कि ज़रुर आपके और आपके बेटे के बीच दो तीन दिन मे एक बार बहस की नौबत आती होगी। जवाब मिला रोजाना ही आती है नौबत। मै बेटे को कुछ कहता हूं तो यह कहने लगता है कि देखो आशाराम वाला प्रवचन चालू हो गया। हमने ठक्कर साहब से कहा हां ऐसा होता है, यह उम्र ही ऐसी होती है कि कोई उपदेश सुनना नही चाहती और पिता अपने पितृ धर्म के चलते बिना उपदेश दिए मानता नही। सो बस आप कोशिश कीजिए कि कम से कम उपदेश दें, दोस्ताना व्यवहार अगर बना सकें तो बेहतर।

ठक्कर साहब ने शिकायत की कि उनका बालक जब देखो तब टी वी मे घुसा रहता है। हमने उन्हे अपने भतीजों का उदाहरण दिया और कहा कि वे भी ऐसे हैं लेकिन पढ़ाई अपनी जगह है। ठक्कर साहब को अपन ने सलाह दी कि उसे हर बात पर टोकते न फिरें, बस पढ़ाई के लिए कहें। करने दें उसे मन की बस शर्त रखिए कि पढ़ाई पहले,मार्क्स अच्छे लाए। ठक्कर साहब का दिल रखने के लिए अपन ने उनके बालक को भी प्यार से सलाह दी कि भाई पढ़ाई ही सब कुछ है हमारे जैसी गलती मत करना। नार्मल ग्रेजुएशन से आज के जमाने मे कुछ हासिल नही होने वाला। सो पढ़ो बस और लक्ष्य निर्धारित करो। (यह सब कहते हुए हम सोच रहे थे कि सलाह देते समय वही क्यों कहा जाता है जो खुद नही कर पाए/पाते)

तो ठक्कर साहब ने अपनी ज़िंदगी की तुलना सांप सीढ़ी से करते हुए हमें जे बी मंघाराम एंड संस की पूरी गाथा सुनाई कि जे बी मंघाराम में जे कौन सा भाई था, बी कौन सा भाई था और मंघाराम कौन सा। दो सौ बीस रुपए किलो बिस्किट के बहाने अपनी लाईफ़ सुनाई और कहा कि कभी आप आईए फुरसत में हमारे घर तरफ तो आपको बहुत कुछ बताएंगे जो जीवन में भोगा है। हमने सहमति दे दी कि हां ज़रुर आएंगे।

वैसे यह जनरेशन गैप वाली समस्या बहुत सी बार हमने देखी और महसूस की है। पिता की उम्र पचास के आसपास और पुत्र की 20 से नीचे। यहां पिता पुत्र को अपने हिसाब से नाथना चाहता है जबकि पुत्र अपने हिसाब से चलना चाहता है नतीजा बहस या विवाद और फ़िर तनाव।

देखिए बात कहां से शुरु हुई थी और कहां पहुंच गई।

15 टिप्पणी:

Akhil said...

वाह संजीत जी. वैसे तो हम पहले से ही आपकी इस रूचि को बखूबी जानते पर अब आपने तो चिटठा जगह पे खुद ही स्वीकारोक्ति कर ली की अब कुंडली पे भी चर्चाएं हुआ करेंगी चिटठा जगत में.
फिर हम सबकी कुंडली कब बनवा रहे हैं?

anuradha srivastav said...

" जनरेशन गैप" शायद मूल समस्या होती है, हर बहस का मूल भी। कोई भी पक्ष दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं होता। इस उम्र में खुद की सारी बात सही लगती है। फिर चाहे उम्र भर गलतियां महसूस करके पछताते रहो।बिल्कुल तुम्हारी तरहः) सही कहा ना...........

Anonymous said...

आपकी एक और खासियत पता चली आज. कुंडली बनाने के साथ जल्दी ही देखना भी शुरु कर दीजिए.
सही कहा आपने कि बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता ही होना चाहिए. समय के साथ चलना ही सही रहता है. बच्चों से आदर लेने के लिए आदर देना ज़रूरी है.

Shiv Kumar Mishra said...

भाई, जेनेरेशन गैप की बात तो हर जेनेरेशन में थी....आगे भी रहेगी. ठक्कर साहब बेटे को आशाराम जी के प्रवचन सुनाना चाहेंगे तो कैसे चलेगा.

वैसे क्या लगता है, कुंडली से ठक्कर साहब की समस्या कुछ कम होगी क्या?..........:-)

Unknown said...

गुरुजी हम भी शराणागत हैं। कृपया हमारे बारे में भी कुछ बताओ। बुढ़पा कैसा कटेगा। कहीं जैनेरेशन गैप के गैप में ही तो गोते नहीं लगाते रहेंगे।

Gyan Dutt Pandey said...

यह समझ में आ गया कि अगर आप कुण्डली/हस्त रेखा पढ़ना/भविष्य़ बताना प्रारम्भ कर दें तो लोग आपसे मनोवैज्ञानिक सलाह भी मांगने लगते हैं। एक मनोवैज्ञानिक और एक कुण्डली बनाने वाले ज्वाइण्ट वेंचर चलायें तो मस्त चलेगा!

नीरज गोस्वामी said...

गैप जनरेशन का नहीं सोच का होता है. जब हम अपनी सोच नहीं बदलते तो गैप अधिक होता चला जाता है. आप ने सुना ही होगा की पच्चीस साल के बुढे और साठ साल के जवान भी होते हैं. पहले अपनी सोच बदलिए फ़िर दूसरे की सोच को सम्मान दीजिये फ़िर देखिये कोई गैप नहीं रहता.
नीरज

रंजू भाटिया said...

अरे वाह .हमारी भी कुंडली बनवा दो जी ...अच्छी जानकरी है :)

Yunus Khan said...

जे अच्‍छा धंधा है । सोच रहे हैं हम भी अपनी कुंडली बनाने की जिम्‍मेदारी सौंप दें ।

36solutions said...

सोंचों, सोंचों - ज्‍वाईन्‍ट वेंचर के संबंध में सोंचों । कंसलटेंसी हम देंगें बिना फीस के लिमिटेड बनाना है या प्राईवेट लिमिटेड, शेयर केपिटल कितना होगा ? सब डिटेल मेल करो, हम हैं ना धंधे की कुंडली पढने और बनाने वाले ।

पिछले दो पोस्‍ट और आज का पोस्‍ट पढा था पर कमेंट नहीं किया था, बस्‍तर के मोह नें पिछले कुछ दिनों से मानसिक हलचल मचा दी थी । अब चंगा हूं ओके टिपियाने के लिए तैयार ।

संजीव

Anita kumar said...

भ्राजी तुस्सी ते छा गये, की क्माल कित्ता है जी?…॥:)
अब जिस उम्र के प्ड़ाव पर मैं हूं वहां अकस्र सहेलियों के साथ रिटार्यमेंट की बातें होती हैं। पिछ्ले साल हमने उनसे मजाक में कहा था कि रिटार्य होके मैं तो कोई आश्र्म खोल लूगीं। करना धरना कुछ नहीं चढ़ावा भरपूर्। मेरी सहेली ने कहा भई प्रवचन तो करना पड़ेगा(हालांकि उस के लिए परेशान होने की ज्ररुरत नहीं पूरी उम्र लेक्चर दिये हैं), दिक्कत सिर्फ़ ये है कि हमने पूरी जिन्दगी कभी कोई धर्म की किताब नहीं पढ़ी। उसका तोड़ हमने ये निकाला कि हम मौनी बाबा हो जायेगें…ही ही ही। अब अगर ज्ञान जी सुझा रहे है तो चलिए हम दोनों मिल कर बिसनेस करेंगें जी, आप कुण्डली बनाना और मैं कांउसलिंग कर दिया करुंगी।

Pankaj Oudhia said...

आपकी और संजीव जी की जुगलबन्दी का इंतजार है। पर ज्यादा इंतजार न करवाये।

अजित वडनेरकर said...

संजीत की एक और नई प्रतिभा। मगर इसके लिए फीस लेना भाई, यहां काफी मुफ्त वाले नज़र आ रहे है। ब्लागिंग धरी रह जाएगी और फिर पछताओगे।
हमारी इस विधा में दिलचस्पी नहीं है और न ही समझ।
मगर ज्योतिष के जरिय़े जेनरेशन गैप वाली बात अच्छी पिरोई।

ghughutibasuti said...

सच में अनीता जी के साथ मिलकर यह धंधा जबर्दस्त चल सकता है । अपने बलॉग में आपका विग्यापन भी देने को तैयार हूँ ।
घुघूती बासूती

mamta said...

तो अब आप बन गए मुन्ना भाई कुंडली वाले :)

समझो हो ही गया !!

और हाँ ढेर सारी शुभकामनाएं नए बिजनेस के लिए।

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