छत्तीसगढ़ में चुनावी वर्ष की दस्तक सुनाई देने लगी है। 2008 के आखिर में यहां चुनाव होने है और सरकार अपनी कमर कसती दिखाई दे रही है। नए साल में राज्य सरकार ने तीन संकल्प लिए हैं।
एक जनवरी से जर्दायुक्त गुटखा पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है साथ ही बीस माइक्रॉन से कम मोटाई वाली प्लास्टिक बैग्स पर भी प्रतिबंध लगाया है। और इन सबके साथ सबसे बड़ी बात यह कि राज्य भर में बाईक चलाते वक्त हेलमेट पहनना अनिवार्य घोषित कर दिया गया है।
उपरोक्त तीनो कदम अच्छे हैं भले ही इन्हे चुनावी नज़रिए से देखा जा रहा हो। गुटखे की बात की जाए तो उस पर प्रतिबंध से राज्य सरकार को अच्छा खासे टैक्स से हाथ धोना पड़ेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ में गुटखे का कारोबार करीब दस करोड़ रुपए का है। इसके बावजूद राज्य सरकार प्रतिबंध लगा रही है इसका स्वागत करना ही चाहिए। गुटखे पर प्रतिबंध को वोट की राजनीति से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। एक घर में अगर एक व्यक्ति गुटखा खाने वाला है तो उसके घर मे उसके गुटखा खाने के दो-तीन विरोधी तो होंगे ही खासतौर से महिला वर्ग, तो दो-तीन लोगों की तारीफ़ तो मिलेगी गुटखा प्रतिबंधित करने पर और इसी तारीफ को फिर वोट में बदलने का खेल होना है।
राजनीति का एक रुप हेलमेट मामले में भी देखने को मिला। पूर्ववर्ती जोगी सरकार ने जब हेलमेट अनिवार्य किया था तब राज्य की विपक्षी दल के रुप में भाजपा ने इसका विरोध किया था और आखिरकार जोगी सरकार ने अनिवार्यता हटा दी थी उसके बाद भाजपा खुद सत्ता में आई और हेलमेट अनिवार्य घोषित कर दिया तब कांग्रेस ने विरोध किया और आदेश वापस लेना पड़ा लेकिन फिर एक बार अब भाजपा सरकार ने हेलेमेट को अनिवार्य किया है। राजनैतिक इच्छा शक्ति कितनी दृढ़ है यह अब फिर से देखने मिलेगा। बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के चलते हालांकि हेलमेट की अनिवार्यता महसूस होती ही है। दिक्कत यह है कि सरकार ने आदेश जारी कर हेलमेट अनिवार्य तो कर दिया यह नही सोचा कि अचानक इतने हेलमेट की आपूर्ति कहां से होगी या सड़क किनारे जो हेलमेट बिक रहे हैं वह निर्धारित मानकों पर खरे हैं भी या नही इसका मतलब तो यह हुआ कि आप हेलमेट के आकार की पतली टोपी पहन के निकल लो चल जाएगा। दिख तो यही रहा है अपने यहां। सड़क-सड़क पर हेलमेट बिक रहे हैं मानकों पर कितने खरे हैं आई एस आई मार्का हैं भी या नही कोई देखने वाला नही। आस पड़ोस के राज्यों से लोग हेलमेट बेचने चले आए हैं।
इसके अलावा बीस माइक्रॉन से कम मोटाई वाले पॉलीथीन बैग्स पर प्रतिबंध लगाना भी एक उचित कदम है। पिछले कुछ सालों से इनका उपयोग इतना बढ़ गया है कि सब्जी बाज़ार मे धनिया मिर्च खरीदने जाओ तो वह भी पॉलीथीन के बैग्स में हाजिर है। जबकि इनको नष्ट कैसे करें? गाएं प्लास्टिक बैग्स खा खा कर मर रही हैं तब हमारे गौरक्षक भाईयों को नज़र नही आता। तब इसके खिलाफ वे नज़र नही आते। सड़कें पटी दिखती है पॉलीथीन के बैग्स से। इसलिए कम से कम कुछ तो रोक लगेगी।
खैर!
बात करें अब दूसरी तरफ़, हर गली मुहल्ले चौराहे और हर सड़क पर दस कदम की दूरी पर एक दो पान ठेला है। जिसमें गुटखा बिकता ही है इसके अलावा किराना दुकानों पर भी बिकता है। क्या प्रशासन के पास इतना स्टॉफ है कि वह एक एक पान ठेले और किराना दुकान पर पर नज़र रख सके। हालांकि राज्य भर के ड्रिस्टीब्यूटर और स्टॉकिस्ट की लिस्ट मंगवा कर प्रशासन इस पर नज़र रखने की तैयारी में है। लेकिन गुटखा ब्लैक में बिकना पहले दिन से जारी है और कब तक जारी रहेगा कोई नही कह सकता। अपन खुद गुटखा खाने वाले हैं और अपन जानते हैं कि पानठेले वाला अजनबी को नही देगा लेकिन परिचित को जरुर देगा। अपने घर के पास एक किराना दुकान वाले सिन्धी बंधु से हमने पूछा, क्यों काका किधर किए स्टॉक। जवाब मिला अंदर रखा है करीब 200 पाऊच,बिक जाएगा उसके बाद नही लाऊंगा,कौन मुसीबत मोल ले। यह तो एक किराना दुकान वाले का जवाब था जिसका मूल धंधा यह सब है ही नही। लेकिन जिनका घर यही सब बेचकर चलता होगा वे क्या करेंगे। हजारों पान ठेले सिर्फ़ यही बेचकर चल रहे हैं। और मजे की बात तो यह कि राज्य के अधिकतर बड़े गुटखा व्यवसायी भाजपायी ही हैं।
हेलमेट तो हमारे राज्य के राजनीतिज्ञों के लिए सुरक्षा से ज्यादा राजनीति का मुद्दा बनकर रह गया है।
देखते हैं राज्य सरकार के यह तीन संकल्प कितने दिन कायम रहते हैं
दुआ करें कि कायम ही रहें बावजूद इसके कि हम खुद गुटखे के आदी रहे हैं।
03 January 2008
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10 टिप्पणी:
इन तीनो निर्णय से छत्तीसगढ़ जैसे खूबसूरत राज्य के विकास में योगदान मिलें, बस हमारी यह दुआ है संजीत भाई
छतीसगढ सरकार बधाई की पात्र है। एक कदम उठाया तो ..........रही बात इन फैसलों के सफल होने की तो आम आदमी की भागीदारी और जागरुकता से सफलता भी मिल ही जायेगी।
भाई, निर्णय तो अच्छे हैं. चुनाव के बहाने ही सही, ऐसे कठिन निर्णय लेना अनिवार्य हो जाता है. वैसे हेलमेट की जरूरत सरकार को भी पड़ेगी क्या?.....:-)
चलो, कुछ तो अच्छा हो रहा है कहीं।
मुझे नही लगता कुछ होगा...एसे ही बनते है नियम कुछ समय के लिये मगर लोग वही पुराना ढर्रा ही अपनाते है...चुनाव के बाद सब कुछ वैसा का वैसा...
इन तीन मुद्दों के ले कर सरकार अगर चुनाव जीत सकती है तो हद्द है या तो जनता बहुत भोली है या सरकार
यह निश्चित ही स्वागत योग्य कदम है पर मुझे लगता है कि कुछ अधूरा सा है। शराब, बीडी और सिगरेट भी उतना ही नुकसान पहुँचाते है। फिर उनको क्यो छोड दिया? और ये 20 माइक्रान वाले पाँलीथीन का क्या चक्कर है? क्या इसे गाय नही खाती? क्या ये नालियो को चोक नही करेंगे? क्यो पालीथीन पर पूरी तरह से बैन नही लगता? आपने तीनो कदम की तारीफ की है। अत: इस विषय मे भी अपने विचार रखे। वैसे भी आपके ब्लाग की बाते जल्दी से ऊँचे लोगो तक पहुँचती है। :)
सकारात्मक ऊर्जा से अच्छा परिवर्तन आ सकता है, इसकी कामना करते रहना चाहिए.
हैल्मेट की जगह यदि कोई २ माइक्रोन की हैल्मेट के आकार की टोपी पहनता है तो उसे जीने की चाह नहीं है । गुटखा भी चाहे बुरा है , बैन लगे या ना, बस पाउच, वह भी १ रू के पाउच में नहीं मिलना चाहिये, क्योंकि ये गंदगी व प्रदूषण दोनों फैलाते हैं ।
पंकज जी, शायद २० माइक्रोन से ऊपर वाले पॉलीथिन रीचाइकल हो जाते हैं व इनका दाम अधिक होने से ये धनिया हरी मिर्च के साथ मुफ्त नहीं मिलेंगे ।
घुघूती बासूती
संकल्प तो तीनों ही अच्छे है और जरुरी भी।
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