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16 January 2008

घूमें बस्तर……

बस्तर,छत्तीसगढ़ से बाहर देश ही नही विदेशों में भी इस जगह का नाम बहुत से लोग जानते हैं। कुछ इसलिए जानते हैं क्योंकि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य अतुलनीय है तो कुछ लोग इसलिए जानते हैं कि यह जगह वर्तमान नक्सलवाद की प्रयोगशाला बन चुकी है। चंद लोग इसलिए भी जानते हैं क्योंकि यहां आदिवासी संस्कृति अब भी कायम है। वहीं शिल्पप्रेमी इसलिए जानते हैं क्योंकि बस्तरिहा शिल्प अपने आप में बेजोड़ है तो कुछ लोगों के लिए अपने ड्राईंगरूम में सजाए जाने वाली कृतियों का ही नाम बस्तर है। तो आइए जानें बस्तर को, राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित ब्रोशर के मुताबिक।

बस्तर
छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर की सीमाएं उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की सीमाओं को छूती है। यहां का लगभग 60 फीसदी हिस्सा हरे-भरे जंगलों, पश्चिमोत्तर भाग ऐतिहासिक अबूझमाड़ी, आदिवासी पहाड़ियों व दक्षिणी हिस्सा बैलाडीला की खनिज खदानों से घिरा हुआ है। कांगेर वैली राष्ट्रीय उद्यान का फैला हुआ घना एवं भयानक जंगल, विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, प्राचीन एवं रहस्यमयी गुफाएं, सुंदर जलप्रपात और नदियां, जैववैज्ञानिकों, रोमांचकारी खेलों के शौकीन व कलाकारों के लिए स्वर्ग समान है। मां दंतेश्वरी,बस्तर राजघराने की देवी हैं। कहा जाता है कि देवी इन घने पहाड़ी जंगलों मे राजा की रक्षा करते हुए उसका मार्गदर्शन करती है। दशहरा बस्तर का सबसे बड़ा, भव्य व प्रमुख त्यौहार है। मगर इसका श्रीराम अथवा उनके अयोध्या लौटने से कोई संबंध नही है। यह पर्व दंतेश्वरी देवी को समर्पित होता है। प्रकृति यहां आपको अपने संपूर्ण रूप में स्वागत करती हुई सी प्रतीत होगी।

बस्तर की जनसंख्या में करीब तीन चौथाई लोग जनजातियों के हैं जिसमें से हर एक की अपनी मौलिक संस्कृति मान्यताएं, बोलियां रीति-रिवाज और खान-पान की आदतें हैं। बस्तर की जनजातियों में गोंड जैसे- मरिया, मुरिया, अबूझमाड़ी,धुरवा(परजा) और डोरिया शामिल है। साथ ही अन्य समूह जो कि गोंड नही है जैसे भतरा और हल्बा शामिल हैं। आप बस्तर में कहीं भी घूम रहें हों, हाट( स्थानीय बाजार) की ओर जाते हुए जनजातीय लोगों को उनकी वेशभूषा में पूर्ण सजे-धजे देख सकते हैं। गोंड जाति की सबसे महत्वपूर्ण उपजनजाति अबूझमाड़ी शर्मीले व संकोची होते हैं। नृत्य महोत्सव के दौरान सींगों से सजे मुकुट पहनने के लिए जाने जानी वाली जनजाति मड़िया सामाजिक होती है। उत्तरी बस्तर की खेती किसानी करने वाली मुरिया जनजाति सबसे अधिक व्यवस्थित होती है व घोटुल के कारण जानी जाती है। यह युवा एवं कुंवारे लड़के-लड़कियों के लिए एक विशेष स्थान होता है जहां वे बड़ों से दूर आपस में मिल सकते हैं। यहां उनकी सामाजिक शिक्षा की खास व्यवस्था होती है जिसमें नृत्य, गीत-संगीत आदि भी शामिल होते हैं। यह प्रथा मुरिया समाज का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।

बस्तर की सदियों पुरानी परंपराएं साधारण व जटिल कलाकृतियों को चिन्हित करती है। इन कलाकृतियों को आकार देने वाले कारीगर प्राकृतिक संसार से प्रेरित होते हैं। बस्तर की सुंदरता, कला की प्राचीनता व आधुनिकता के सम्मिश्रण में निहित हैं। कला पारखियों में बस्तर कला की लोकप्रियता बढ़ने का कारण इसमें हड़प्पा और सिंधु सभ्यता का प्रभाव है। कोंडागांव,नारायणपुर व जगदलपुर टेराकोटा कला के लिए प्रसिद्ध है। जगदलपुर कोसा सिल्क बुनाई के लिए प्रसिद्ध है। बेल मेटल व रॉट आयरन की कारीगरी कोंडागांव और जगदलपुर की विशेषता है। लकड़ी और बांस का सर्वश्रेष्ठ कार्य नारायणपुर व जगदलपुर में देखा जा सकता है। बस्तर की सबसे पुरानी हस्तकलाओं में स्मृतिचिन्ह के रूप में प्रयोग किए जाने वाले नक्काशीदार पत्थर भी शामिल है। नारायणपुर के हस्तकला केन्द्र अथवा शिल्पग्राम में आप कुछ अनुपम कलाकृतियां चुन सकते हैं। बस्तर के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए हाट (स्थानीय बाजार) जो कि पूरे बस्तर में करीब 300 हैं, का भ्रमण करना चाहिए। यहां पर आदिवासी जंगल से एकत्रित की गई वस्तुओं के स्थान पर नमक, तंबाखू, कपड़े व अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुएं खरीदते हैं।

धान के विस्तृत खेत, पगडंडीहीन वनों के मनोरम दृश्य, पशु-पक्षियों की अद्भुत प्रजातियां, नदियां, झरने एवं प्राचीन गुफाएं-बस्तर को प्रकृति प्रेमियों का स्वर्ग बनाती है। यह दुर्गम-दुर्लभ भूमि एक सुखद आश्चर्य है। उच्च प्रजाति के वृक्षों से सजी यह वन्य भूमि अनेक भागों में विभक्त होती है। यह वन संरक्षित जंगली भैंसे,शेर, तेन्दुआ, उल्लू,और भांति-भांति के पशु-पक्षियों के लिए जैसे लुप्तप्राय: बस्तरिहा पहाड़ी मैना के लिए घर है। किसी भी जैव विज्ञानी के लिए कांगेर वैली नेशनल पार्क एक शोध का विषय है। इन दुर्गम वनों के अनोखे पर्यावरण के संरक्षण के लिए बायोस्फियर संरक्षित स्थान का प्रस्ताव है। यह घाटी सुंदर और महमोहक दृश्यों, आकर्षक जलप्रपातों, नदियों आदि एवं प्राचीन गुफाओं के लिए जानी जाती है। उनके लिए जो भय प्रकृति का आनंद लेते हैं और प्राकृतिक गतिविधियों से आल्हादित होते हैं,पदयात्रा,पर्वतारोहण,अदम्य गुफाओं की खोज जैसे अनेक आकर्षण आकर्षित करते हैं। कुटुम्बसर, कैलाश एवं दंडक गुफाओं में स्टैल्गमाईट और स्टैलेसाइट (चूने के स्तंभ) आकर्षण का केन्द्र है। सौ फीट की ऊंचाई से गिरते तीरथगढ़ जलप्रपात का पारदर्शी बहाव हम सबका ध्यान आकर्षित करता है। इंद्रावती नदी से निर्मित चित्रकोट जलप्रपात नियाग्रा की यादद दिलाता है। इन स्थानों की यात्रा के साथ ही बस्तर की आदिवासी संस्कृति को समझने के के लिए मानव संग्रहालय भी देखा जा सकता है।

देवी-देवताओं पर आस्था रखने वालों को जहां दंतेवाड़ा स्थित माई दंतेश्वरी का देवालय सुकून और शांति प्रदान करता है वहीं प्राचीन और पुरातत्व प्रेमियों के लिए बारसूर का गणेश मंदिर, मामा-भांजा मंदिर, नारायणपुर का विष्णु मंदिर, भद्रकाली का मंदिर तथा पुजारी कांकेर के धर्मराज का मंदिर भी आकर्षण का केन्द्र है। पुरातत्व के शोधकर्ताओं के लिए कई गांवो में अटूट पुरातात्विक संपदा बिना उत्खनन के पड़ी है। अनेक अज्ञात टीले आज भी रहस्य बने हुए हैं।

बस्तर के अंतर्गत दर्शनीय जगहें--
कांकेर,केशकाल,गढ़धनौरा, नारायणपाल,भोंगापाल, समलूर, चिंगीतराई, बड़े डोंगर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बैलाडीला लौह अयस्क परियोजना,बारसूर,हांदावाड़ा जलप्रपात,बीजापुर,भैरमगढ़,कोण्डागांव,जगदलपुर, चित्रकोट,कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान।

कैसे पहुंचे बस्तर-
वायु मार्ग:- रायपुर (295किलोमीटर) निकटतम हवाई अड्डा है जो कि मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची,विशाखापट्नम और चेन्नई से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग-
रायपुर ही निकटतम रेल्वे जंक्शन है।
सड़क मार्ग-
रायपुर से निजी वाहन एवं यात्री वाहन पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं।

और अधिक जानकारी के लिए संपर्क-
छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल
पर्यटन भवन, जी ई रोड
रायपुर, छत्तीसगढ़
492006
फोन- +91-771-4066415



मूल आलेख:संजय सिंह। तस्वीर सौजन्य रुपेश यादव फोटोग्राफर। सभी तस्वीरों पर कॉपीराईट रुपेश यादव का है जो कि वर्तमान में रायपुर के अंग्रेजी दैनिक हितवाद से जुड़े हुए हैं।


14 टिप्पणी:

anuradha srivastav said...

संजीत ,वाह........ आपने तो पूरा बस्तर घूमा दिया साथ ही मनभावन छायाचित्रों ने तो अब हमारे निश्चय को और पक्का कर दिया कि मौका मिलते ही सबसे पहले छतीसगढ घूमना है।

Pankaj Oudhia said...

रोचक जानकारी पर मुझे लगता है कि बस्तर के नये चित्रो को भी हमारे पर्य़टन वालो को सामने लाना चाहिये। स्कूल के जमाने से वही चित्र देख रहे है। या कहे कि एंगल बदलने की जरूरत है। दूसरे माने हर्बल एंगल से ली गयी 400 से अधिक चित्र आप इस कडी पर देख सकते है।

http://ecoport.org/ep?Locality=372409&entityType=LO****&entityDisplayCategory=Photographs

Sanjay Tiwari said...

उम्दा रिपोर्ट है यह.

काकेश said...

संजीत जी सबसे पहले जनमदिन की शुभकामनाऎं देरी से ही सही.बस्तर बहुत अच्छा लगा . बस्तर कैसे पहुचा जाय इस पर भी लिखते तो अच्छा रहता.

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया काकेश जी, आपके कहे मुताबिक उपरोक्त जानकारी डाल दी गई है!
शुक्रिया सुझाव के लिए!

पारुल "पुखराज" said...

bahut badhiyaa jaankaari....ghuumney aaney ka mun ban padaa ab to...shukriya SANJEET

मीनाक्षी said...

आज की रोचक पोस्ट पढ़कर तो पक्का निश्चय कर लिया है कि छत्तीसगढ़ तो आना ही है...बहुत रोचक सचित्र विवरण पढ़ कर अच्छा लगा.

Shiv Kumar Mishra said...

बहुत बढ़िया पोस्ट है भाई....पढ़कर और तस्वीरें देखकर तो बस्तर देखने की इच्छा जाग गई है. अच्छी जानकारी देते हुए जबरदस्त पोस्ट लिखी, संजीत.

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब ..बस्तर घूमने आना पड़ेगा ...बहुत सुंदर जगह है ..चित्र भी बहुत सुंदर और लिखा आपने ऐसा है की बस अभी वहन पहुँच जाओ :) !!सारो जानकारी देने के लिए भी शुक्रिया !!

Anita kumar said...

वाह संजीत जी, अब तो अगली छुट्टियों में ही बस्तर का प्लान बनाते हैं कैसे आना है वहां कहां लिखा है? वो वाटर फ़ॉल तो देखने ही पढ़ेंगे। भारत के इस अनदेखे भाग को दिखाने का धन्यवाद

Anita kumar said...
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प्रशांत तिवारी said...

BAHUT ACHHA BHAI JO AAP NE YAH JANKARI DI AB BASTAR GHUMNE KA MAJA AAYEGA.

36solutions said...

सराहनीय प्रयास । बस्‍तर घूमने के लिए पर्यटन मण्‍डल के द्वारा पैकेज टूर भी आर्गनाईज किये जाते है, अत: आप जब भी छत्‍तीसगढ घूमने का कार्यक्रम बनायें पर्यटन मण्‍डल में फोन कर लेवें जहां से आपको वाजिब दरों में लग्‍जरी होटल रूम व टैक्‍सी की व्‍यवस्‍था पैकेज के रूप में प्राप्‍त हो जायेगी । राजधानी रायपुर में भी पर्यटन मण्‍डल का होटल है एवं बस्‍तर साईट पर भी लग्‍जरी मोटल-रेस्‍ट‍हाउस हैं जिसकी बुकिंग की जा सकती है । एयरपोर्ट से लेकर साईट टूर तक की व्‍यवस्‍था पर्यटन मण्‍डल द्वारा किया जाता है । आप सभी से अनुरोध है कि बस्‍तर भ्रमण के लिए निजी टूर आपरेटरों का सहयोग लेने के बजाए छ.ग.पर्यटन मण्‍डल का ही सहयोग लेवें तो ज्‍यादा उचित होगा ।

अजित वडनेरकर said...

बस्तर की ये ब्लाग घुमक्कड़ी खूब रही। 1996 से 2000 के बीच टीवी पत्रकारिता के दौर में समूचे मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ तब राज्य नहीं बना था)मे खूब यायावरी की। छत्तीसगढ़ भी दो-तीन बार आना हुआ। रायपुर भिलाई बिलासपुर । जंगलों में भी गए। शालवनों के कीड़ों (साल बोरर) पर भी रिपोर्ट बनाई और राईस बैंक जैसी खबरें भी की। मगर बस्तर जाने की साध पूरी नहीं हो पाई। बस्तर में बने ब्रिटिश कालीन लकड़ी के कुछ विशाल पुल आज भी अस्तित्व में है जो देश भर में इस किस्म के स्ट्रक्चर हैं। उसकी रिपोर्ट करनी थी, पर जाना टलता रहा। आज तक ।

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