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17 January 2008

हाय री किस्मत!

हाय री किस्मत!


पिछले साल हमरे साथ एक मजेदार किस्सा हुआ था! दर-असल छत्तीसगढ़ का संस्कृति विभाग अपने संचालनालय कैंपस में ही हर साल गर्मी के दिनों में "आकार" नाम से एक प्रशिक्षण शिविर आयोजित करता है। इस शिविर में राज्य के और दूसरे राज्यों के विभिन्न हस्तशिल्प गुरुओं को सशुल्क बुलाया जाता है और इस शिविर में हिस्सा लेने वाले इच्छुक बच्चे-जवान,पुरुष-महिलाओं को हस्तशिल्प का प्रशिक्षण दिलवाया जाता है। तो पिछले पांच साल से मतलब कि जब से यह पंद्रह दिन का यह शिविर लगता आ रहा है,अपन हर दूसरे-चौथे शाम वहीं पहुंच जाया करते रहे हैं। एक तो हरियाली ऊपर से मस्त धीमे बजता संगीत और उधम मचाते-सीखते बच्चे और कितनी ही तरह के हस्तशिल्प। ऊपर से आईटॉनिक फ्री। माहौल अलग ही लगता है। हम या तो अकेले ही पहुंचते या किसी दोस्त के साथ।

पिछले साल अर्थात 2007 की गर्मियों में लगा शिविर आकार पंद्रह दिन का न होकर एक महीने का था। सुबह दो-ढाई घंटे और शाम मे भी दो-ढाई घंटे। तो हम पहुंचे शाम में करीब पंद्रहवें दिन पहली बार,अपने एक मित्र के साथ। छोटे छोटे झोपड़ीनुमा स्टॉल में बैठे कहीं मृदाशिल्प के गुरु और प्रशिक्षणार्थी तो कहीं काष्ठशिल्प के और कहीं ढोकरा शिल्प तो कहीं बस्तर की काष्ठकला। ऐसे ही बहुत से। टहलते-टहलते हम पहुंचे उड़ीसा के किसी शिल्प गुरु के स्टॉल पर और हमें सुनाई दी एक खिलखिलाती हँसी,दो-तीन बार सुनाई दी तो हम इस खिलखिलाती हँसी को देखने के लिए उत्सुक हो उठे।

देखा तो देखते ही रह गए,सफेद सलवार कमीज में खुली जुल्फें और यह खिलखिलाहट बस हेल्थ के मामले में थोड़ा सा लोचा था। हाईट कम,उमर होगी यही कोई चौबीस के आसपास,बहुत ज्यादा ही मोटी नही थी पर अपन उसके सामने थोड़े कुपोषण के शिकार लग रहे थे।

खैर! हम और हमारे मित्र उसी स्टॉल के सामने एक पेड़ के नीचे बैठ गए और उस खूबसूरत हँसी का पान करने लगे कान और आंख दोनो से,आपस की बातों के साथ। हमारे मित्र ने उसे देखा, हमें देखा और कहा- यार संजू, मैं तो अंकल लगने लगा हूं सो अपनी उम्मीदवारी जताऊंगा ही नई तुम ही लगे रहो।"
अपन ने मित्र से कहा- देखो बावा,इसीलिए कहता हूं कि वजन घटाओ पेट कम करो,भले ही साला हम जैसे दुबले पतले बने रहो कोई वान्दा नई,कम से कम अंकल तो नईं लगते अपन।

सात बजे और अपन लोग कल्टी हो गए वहां से। दूसरी-चौथी शाम वहां पहुंचने की आदत तो पुरानी ही थी,अकेले या किसी न किसी मित्र के साथ। देखते कि वह खूबसूरत हँसी कभी सलवार कमीज में होती तो कभी टी-शर्ट जीन्स में पर हँसी वही खिलखिलाती और जुल्फें खुली। उसने भी ताड़ लिया था शायद कि ये आवारा मिज़ाज़ का बंदा उसे देखने पहुंचता है। इस बीच अपन अपने आप को हिम्मत बंधाए जा रहे थे कि इस कन्या से बात करनी है करनी है पर हिम्मत थी कि बंधती थी और फिर मुट्ठी से रेत की तरह गायब होते जाती थी। एक शाम तो हिम्मत करके उसकी कायनेटिक होंडा तक पहुंचे और हिम्मत जवाब दे गई सो अपने को कोसते हुए लौट आए हम।

दूसरे या तीसरे दिन अपन को सुबह साढ़े सात बजे फील्ड में निकलना था सो निकल लिए,साढ़े नौ बजे अपनी बाईक "आकार शिविर" में पहुंच कर खड़ी हो गई। खूबसूरत हँसी वाले झोपड़ीनुमा स्टॉल में जाकर देखा तो वह थी नही,सारे स्टॉल्स पर जहां अलग-अलग कलाकार अलग-अलग कला सीखा रहे थे नज़र दौड़ाई तो वह एक अलग स्टॉल पर दूसरी कला सीखते हुए दिखी। दस बजे शिविर का समय समाप्त हुआ और वह उठकर चली अपनी कायनेटिक की तरफ। अपन पीछे लपके। वह गाड़ी पर बैठी स्टार्ट करने ही वाली थी कि अपन पहुंचे और कहा…
एक्स्क्यूज़ मी, क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं
उसने गर्दन घुमाई और कहा- क्यों?
अपन ने इस सवाल को गोल करते हुए कहा- आपकी हँसी खूबसूरत है इसे यूं ही बनाए रखिएगा।
खूबसूरत हँसी एक बार फिर खनकी और उसने नाम बताया।
उसे हँसता देख अपन ने फौरन कहा- क्या मैं आपका दोस्त बन सकता हूं?
सोचने वाले अंदाज में उधर से जवाब कम सवाल आया- क्यों?
मैं- आप मुझे अच्छी लगीं इसलिए।
उसने कहा- आप तो शाम में आते ही है न तो शाम को ही बताऊंगी मैं अपना जवाब।
अपन खुश कि बावा इनकी नज़र तो है अपने पर कि शाम को आते ही हैं अपन। फिर भी अपन ने उससे पूछा कि तो आप जानती हैं कि मै शाम में आता हूं।
फिर जवाब आया- नैचुरली,आप रेगुलर हमारे स्टॉल पर आएंगे तो मालूम तो रहेगा ही न । तो फिलहाल बाय,शाम को मिलते हैं।

तो इस तरह सुबह टाटा बाय-बाय नमस्ते हुआ। उसके जाने के बाद अपन ने अपनी हालत पर गौर किया। पसीने से भीगी शर्ट,पसीजती हथेलियां,हार्ट बीट बढ़ी हुई। कारण यह कि इस तरह किसी लड़की से ऐसे बात करने का यह अपना पहला मौका था। स्कूलिंग हुई लड़कों के स्कूल में,कॉलेज-यूनिवर्सिटी में हमारे गंभीर थोबड़े और रिजर्व नेचर के कारण तो क्लासमेट लड़कियां ही हमें संजीत सर संबोधित करती और डरती थी। प्रेस ज्वाईन करने के बाद ही सहकर्मी लड़कियों से दोस्ती और बातें हुई, हां इंटरनेट और फोन पर लड़कियों से बात करने में एक नंबर रहे अपन लेकिन इस तरह का तो पहला ही मौका था यह।

खैर! शाम में अपन ने ध्यान रखा कि आज अकेले ही जाना है किसी को साथ नईं ले जाने का "आकार" में। सो टपक गए अपन करीब पौने सात बजे क्योंकि सात बजे बंद होने का समय था। देखा कि वह अपने स्टॉल में है,अपन टहलने लगे, फिर कनखियों से देखा कि वह जाने के लिए उठ रही है तो अपन ने अपने कदम बाहर की ओर बढ़ा दिए पर धीमे-धीमे। वह पीछे से आई और मेरे साथ ही बाजू में चलने लगी। सो फिर अपन ने बात शुरु की
- कहिए कैसी चल रही है आपकी ट्रेनिंग?
जवाब आया- बढ़िया चल रही है ।
सवाल- आप करतीं क्या है?
जवाब- मैं हाऊस वाईफ़ हूं,इंटीरियर डिजाईनिंग का कोर्स कर रही हूं।
अपन ने कहा- क्यों मजाक कर रही हैं आप,कौन गधा कहेगा आपको देख कर कि आप किसी की वाईफ़ हो।
खूबसूरत हँसी फिर खनकी उस सुहानी शाम में। ऐसे ही पैदल बाहर निकलते-निकलते बतियाते रहे।
बाहर निकलकर अपन ने उससे कहा- क्या बात है आज आपकी रामप्यारी मेरा मतलब है कि कायनेटिक होंडा नही दिख रही है।
उसने कहा, हां आज पापा की गाड़ी खाली थी तो उसी में आई हूं।
इतने में अपनी नज़र उसकी कार पे पड़ी,उपर पीली बत्ती लगी हुई,सरकारी नंबर प्लेट,नंबर से मालूम चल रहा था कि पुलिस विभाग की गाड़ी है। पीली बत्ती, सरकारी गाड़ी, पुलिस विभाग का नंबर देखकर तो अपने अंदर की बत्ती जल गई सो फटाक से पूछा उससे-आपके पापा क्या करते हैं यह गाड़ी तो पुलिस विभाग की है उपर से पीली बत्ती।
उसने जवाब दिया- हां डिपार्टमेंट में ही है पापा फलाने पद पर।
अपन ने चौंक कर उसके पापा का नाम पूछा,उसने नाम बताया
अपन ने कहा- आपके पापा तो भई बड़े कड़क अफसर माने जाते हैं।
उसने पूछा आप जानते हैं?
अपन ने कहा- नईं मिला तो नई हूं,भगवान न मिलाए पुलिस के अफसरों से। पर जानकारी रखने की आदत है सो है।
खैर!
ड्राईवर कार में ही था और हम कार के पास ही खड़े हो कर बतिया रहे थे। हम जानबूझकर ऐसी बातें कर रहे थे कि खूबसूरत हँसी बार-बार खनकती रहे और हम सुनते रहें। बातें हुई,परिचय हुआ,हम क्या करते हैं यह पूछे जाने पर हमने कहा अजी हम बस शब्दों के जाल में थे हैं और रहेंगे। मतलब कि पत्रकार थे, फिलहाल मार्केटिंग में है लेकिन हैं जहाज के पंछी तो लौटना जहाज पर ही है। गलती से लिख लेते है कविता जैसा ही कुछ। पसंद है किताबें पढ़ना
फिर बात चली इंटरनेट की तो अपन ने कहा कि भई हम ब्लॉग लिखते हैं कभी विज़िट कीजिए हमरे ब्लॉगवा पर। अब इस ब्लॉग के मामले में ये खूबसूरत हँसी ढक्कन साबित हुई। ब्लॉग कहने से शायद उसे समझ में नही आया और उसने कहा हां मैं ऑर्कुट पर हूं ढूंढना मेरा प्रोफाईल देखते हैं ढूंढ पाते हो या नई।
अपन ने जवाब दिया,मईडम अपन को चैलेंज न करो,अपन ठान ले तो ढूंढई लेंगे हां।
शर्त लग गई इसी बात पे।
अपन ने कहा, बस कल सुबह तक अपन ढूंढ लेंगे आपकी प्रोफाईल ऑर्कुट पे।
मोबाईल नंबर लेन-देन की बात आई तो हमरा नंबर उसने रख लिया पन अपना नई दिया खैर बढ़िया ही था क्योंकि अपन आऊटगोईंग के लिए कंजूस,इनकमिंग के लिए दरियादिल।
तो यह बातचीत करीब आधे घंटे चली और गुडनाईट हो गया।

सुबह अपन ने ऑर्कुट पे प्रोफाईल ढूंढा,मेहनत नही करनी पड़ी। अपन ने सर्च करने के लिए की वर्ड जितना उससे परिचय मिला था उस आधार पर डाले तो दस मिनट में ही उसका प्रोफाईल मिल गया। अब उसके प्रोफाईल पर देखा तो वह हमारे एक मित्र की भी मित्र थी। फटाक से अपन ने उस मित्र को फुनवा लगाया! जैसे ही बात शुरु की मित्र ने कहा कि वह अभी उससे ही फोन पर बात कर रहा था, उस लड़की ने मित्र को बताया कि कल संजीत नाम का बंदा मिला था दोस्त बनने के लिए।

इससे पहले कि अपने दिमाग की घंटी बजती फोन वाले मित्र ने बताया कि यह लड़की उसकी बेस्ट वाली फ़्रेंड है एंड ब्ला ब्ला ब्ला……तो इसके बाद अपन ने सोचा कि भई ये खूबसूरत हँसी एक तो किसी की वाईफ़ है उपर से हमारे मित्र की बेस्ट वाली फ़्रेंड तो अपन इस सीन से गायब ही हो लें तो अच्छा। लेकिन इससे पहले पता नईं शायद हमारे इन मित्र ने अपनी इन बेस्ट फ़्रेंड से हमारे बारे में क्या-क्या कहा कि हमरी ऑर्कुट प्रोफाईल को उन्होने इग्नोर लिस्ट पे डाल दिया। अपन ने सोचा चलो येसे नई वो वेसे ही सई जी,मामला खत्म ही हुआ,अच्छा ही हुआ।
आकार शिविर की समाप्ति के दिन हम अपने एक मित्र के साथ पहुंचे , देखा तो खूबसूरत हँसी साड़ी मे हैं और हमारे बेस्ट फ़्रेंड वाले मित्र भी मौजूद है वहां। फिर ये मित्र हमें देखकर आए हमारे पास, बातें की।

कुछ दिन बाद हमारे इन मित्र का फोन आया कि उनकी इस बेस्ट फ़्रेंड ने अपना ऑर्कुट प्रोफाईल डिलिट कर दिया है। अपन ने सहानुभूति के चंद शब्द कहे और कहा कि लोचा क्या है तुम्हारी तो फोन पर बात होती ही है न भई।

तो ये था लोचा किस्मत का हमरे संग।

20 टिप्पणी:

anuradha srivastav said...

जब किस्मत का लोचा है,मान ही लिया तो फिर क्या? लगे रहो उम्मीद पर दुनियां कायम है कोई तो मिलेगी। एक बात है खुद की फोटो चुन कर लगाई है-हाथ अगरबत्ती..........:)

कंचन सिंह चौहान said...

dukhant kahani padh kar man bojhil ho gaya..):...bhagvan aapko ye kasht sahane ki shakti pradan kare.n):

रंजू भाटिया said...

इस को कहते हैं कि ""लौट के बुद्धू घर को आए"" ..हम बिना पलक झपकाए इस पोस्ट को इस इंतज़ार में पढ़ गए कि आप अब पिटे कि जब पिटे :)
हा हा .खैर उम्मीद पर दुनिया कायम है ..आपको पिटाने की बात नही कर रहे हम ..:) ..आप बिंदास .लगे रहे अगले प्रोजेक्ट पर :):) हम आपकी अगली आप बीती का इंतज़ार रहे हैं :)

Anonymous said...

Arey Kya locha .. Us ladki ke frnd ki mil ke dhulai kar dete hain ...us se number mil jayega... fir ladki ko phone karke address puchh lenge ...fir usko utha layenge...

agar ladki ready hui to...

nahi to kisi dusri daant ki dukan ..ko pasand kar lo ...

गरिमा said...

मुझे बहुत हँसी आयी :D, आगे कुछ नही बोलूँगी, क्यूँकि मै जो बोलूँगी, उससे मुझे जुते पड़ने वाले हैं :P

mamta said...

बहुत दुःख हुआ आपकी ये दास्ताँ पढ़कर। :)

भगवान से दुआ है कि अगली बार आपकी किस्मत आपको धोखा ना दे।
और अगली दफा आप हाय री किस्मत की जगह वाह री किस्मत लिखें। :)

Shiv Kumar Mishra said...

भइया ऐसा है कि ये आरकुट-फारकुट पर ज्यादा विश्वास न किया करो. सीधे-सीधे बात करने में जो आत्मीयता है वो लिखकर नहीं मिलेगी. इसलिए टेलीफोन नम्बर.....सीधा टेलीफोन नम्बर...

और हाँ, बहुत जबरदस्त लिखा है. बहुत सारे शब्द अद्भुत लगे...सलवार-कमीज में हंसी...जींस और टी शर्ट में हंसी...
धीरज न हारिये, बिसारिये न............:-)

Pankaj Oudhia said...

सुखद अंत की आस मे मै पूरी पोस्ट पढ गया पर ये क्या पूरे ब्लाग परिवार के होते ये कैसे हो गया तुम्हारे साथ। चलो आगे बढो हम तुम्हारे साथ है।

Anonymous said...

जिसे ढूँढता है तू हर कहीं,
जो कभी मिली तुझे है नहीं
जो तुम्हारे ख्वाबों में है बसी
वो हसीं मूर्ति प्यार की
मिलेगी कभी ना कभी
ज़रा देखो यहाँ वहाँ .....ध्यान से ,,लगन से :)

Anita kumar said...

कौशिश करने वालों की हार नही होती,
लहरो से डर कर नौका पार नहीं होती,
जब नन्ही चींटी दाना ले कर चढ़ती है,
सौ बार गिरती है सौ बार संभलती है,

लगे रहिए, हमारी शुभ कामनाएं आप के साथ है। कुछ सलाह चाहिए तो फ़ोन किजिये, धुरंधर इधर बैठे हैं।………:)

अजित वडनेरकर said...

अजीब दास्तां है ये.....

श्रद्धा जैन said...

hahaha baap re kahani hai ki bus

ummed par duniya kayam hai

tumse bach ke koi kaha jaayega

waise sabse badhi baat hoti hai khu par hans paana aur dusron ko hansa paana bahut achha laga ye lekh

ALOK PURANIK said...

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
प्यारे लगो रहो।

36solutions said...

लगे रहो मुन्‍ना भाई, हंसी तो फंसी वाली कहावत तो काम नहीं आई पर आपके छूटते पसीने को ठंडी हवा की राहत तो मिली, गुडनाईट भी हुआ । जिन्‍दगी के लम्‍बे रास्‍ते में ऐसे क्षणों से थोडी सुकून मिलती है और जिन्‍दगी की राहें आसान हो जाती हैं । लक्ष्‍य तो वही है जहां से जिन्‍दगी शुरू होती है - मूड में मउर अउ बाकी सब अंग म तारा ।

ghughutibasuti said...

हमारी पूरी सहानुभूति आपके साथ है ।
घुघूती बासूती

Unknown said...

बस इतना ही कह सकता हूं कि मुझे आपसे हमदर्दी है। बस यही दुआ कर सकता हूं कि भविष्‍य में आपको सफलता प्राप्‍त हो।

Anonymous said...

Mazak he wazak me naya idea dekar to ap kamal kar diy hain sirji!!
Apka blog bookmark karna safal man lenge
yadi kismat apse acchi nikal gayi apkiwali samasya k hum v sikar jo hain :-(
warna to zindgi k dusre rango se he kam chalana parega..
:-P

Tarun said...

अरे बाप रे ये तो बहुत बड़ा लोचा हुआ, अरे तुम्हारे साथ नही तुम्हारे मित्र के साथ। और तुम्हारे साथ, यही गीत गाओ, "ये ना थी हमारी किस्मत.... "

PD said...

ही ही ही..
हम अकेले ही नहीं है.. दुनिया भड़ी पड़ी है हम दिवानों से..
आपका ये पोस्ट तो उसी दिन पढ लिया था पर समय कम होने के कारण टिप्पणी नहीं दे पाया था.. चलिये कोई नहीं.. आज इसे ढूंढकर फिर से पढने का मजा ले लिया..

shikha varshney said...

हा हा हा ...मजा आ गया पढकर

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।