चौंक कर
उठ बैठता हूं अक्सर सोते हुए से
यह न पूछिएगा कि क्यों
दर-असल
दिन के देखे और महसूस किए दृश्य
जिन्हे देखकर दिल मसोस कर रह जाता हूं
बिना कोई प्रतिक्रिया दिए चला आता हूं
और जहां कुछ तो कर सकता हूं वहां भी कुछ नही करता।
मन में उठते हैं हजार अनुत्तरित रहने वाले प्रश्न
हां वैसे ही प्रश्न
जिनके जवाब हम सबको मालूम होते है
फ़िर भी जिनके जवाब नही होते।
बस इन्ही सब का खामियाज़ा भुगतता हूं
अपने मनुष्य होने का दर्द सहता हूं
और
टूटती नींद में सोने की कोशिश करता हूं।
सुबह
मिचमिचाती आंखो से
फ़िर इस दुनिया को देखने की
या कहूं कि समझने की कोशिश करता हूं
पर इस दुनिया को आंखो से क्या समझूंगा
बहुतेरे तो दिल और दिमाग से भी न समझ पाए इसे
दिल और दिमाग तो अपना रहता नही ठिकाने पर
दिमाग रहता है जुगाड़ में रोजी-रोटी के
दिल रहता है जुगाड़ में सकून के
और मैं
मैं कहां रहता हूं मुझे खुद नही पता।
कहते तो हैं
कि मै घर-दफ़्तर-सड़क पर ही होता हूं अक्सर
पर
मुझे खुद नही पता कि मै होता कहा हूं आखिरकार
आईना भी ढूंढता है मुझे अक्सर
और
मैं ढूंढता हूं अपने आप को।
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24 टिप्पणी:
जबरदस्त खोज है. हम भी इसी खोज मे लगे हैं. जिसकी पहले पूरी हो जाए वोही ख़बर करेगा.
मुझे खुद नही पता कि मै होता कहा हूं आखिरकार
आईना भी ढूंढता है मुझे अक्सर
और
मैं ढूंढता हूं अपने आप को।
सुंदर एक तलाश जो जारी रहती है सारी ज़िंदगी ख़ुद को ही तलाश करते करते
बहुत सुंदर भाव हैं संजीत जी !!
संजीत जी आप के दिल का दर्द, सारी परेशानी इस कविता में सिमट आयी है और हम तक पहुंच रही है, काश हम कुछ कर पाते आप की परेशानी कम करने के लिए तो हमें खुशी होती।
संजीत बहुत ही संजीदा सा लिखा है-
जिनके जवाब हम सबको मालूम होते है
फ़िर भी जिनके जवाब नही होते।
बस इन्ही सब का खामियाज़ा भुगतता हूं
अपने मनुष्य होने का दर्द सहता हूं
आईना भी ढूंढता है मुझे अक्सर
और
मैं ढूंढता हूं अपने आप को।
एक अनवरत तलाश ,अनकही बैचेनी प्रतीत होती है तुम्हारे शब्दों में ,विचारों में । जो शायद तुम अकेले की नहीं हर उस शख्स की है जो खुद से बेहिसाब सवाल किया करता है। क्यों वो तो शायद खुद भी नहीं जानता।
भावपूर्ण संधान.....सुंदर भाषा....बधाई हो...खोज पूरी हो....
काविता बहुत पसन्द आई । ऐसे ही लिखते रहा करिये ।
घुघूती बासूती
भौत सही रास्ते पे जा रे ले हो भईया।
सभी को इस रास्ते पे चलना है एक दिन।
आज एक नये संजीत से मिलना हुआ…।बहुत खूब …
बहुत सुंदर भाव
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विवेक सत्य मित्रम्
मित्र, प्रश्न के बुलबुले हमेशा फूटने चाहियें। उत्तर की फिक्र बहुत नहीं होनी चाहिये।
आईना भी ढूंढता है मुझे अक्सर
और
मैं ढूंढता हूं अपने आप को।
accha hai sanjit bhai par kavvy me thoda shilp aur hota to achha tha
Maan gaye sanjeet. gazab ka likha hae. "Aina bhi dhoondhta hae mujhey aksar..."
Hamey lagta tha saat samandar paar jaakar hamari talaash khatam ho jaayegi par wahan pata laga ki arey ye tou phir ek nayi udaan ki talaash ka safar shuru ho gaya.
Maan gay sanjitji apko v kya satik bat kahi apne !
Aur sahi bat hai kamobes hum sabki to yehi dasa hai
ek darsnik ki bat yad ati hai
ki apni talas ki disha per dhyan rakho wo sahi hai ki nahi baki apki mulaqat apse kab hogi ye to uperwala jane
uske pas to hisab kitab k bare pothi patre hain lekin koi bhulchuk nahi hoti
aur humlogo k pas bare bare paitre hote hain
mann kiya to thik mann kiya to bethik
per disha he mukhy bat hai...
Kuch jyada lage to
bhul he jaiyega ye sab achanak ye bate yad ho ayi maine v ek bar kuch aisi line likhi thi -
'ap sab jara thahariy
mai abhi dhundhta hu khudko
yahi per to dekha tha maine use jane kidhar gaya!
Jara thahariye
abhi dhundhta hu khudko...'
गुरु, सभी लोग तारीफ कर चुके कहने को कुछ बचा नहीं। बेहतर।
वईसे मैं इस पोस्ट का कला पक्ष देख रहा था। कविता ने बीच में गगरी का स्वरूप ले लिया है। इसे विकसित करें तो नई विधा होगी। बिल्कुल रामचरित मानस की तरह। ११ और १३ मात्राओं में
शुक्रिया आप सभी का!
@सजीव सारथी जी शुक्रिया, मै शिल्पादि के बारे मे जानता नही कुछ, बस जो मन मे आता है लिख डालता हूं और उसे वैसे का वैसा ही रखता हूं, लिखने के बाद उस पर फ़िनिशिंग का मुलम्मा नही चढ़ाता। इसीलिए मै अपने लिखे को कविता न कहकर कविता जैसा कुछ कहता हूं।
@सत्येंद्र जी शुक्रिया, मात्रादि के बारे मे तो जानकारी नही पर अगर आपका मार्गदर्शन रहा तो ज़रुर विकसित हो जाएगी नई विधा।
बहुत गहरा दर्शन ! सच है ...
पाना है हमें आपनी ही पहचान को
जारी रखना है हमें इसी तलाश को !!
आपकी कविता जैसा कुछ कविता का ही सुन्दर रूप लेता जा रहा है ...
शाश्वत दर्शन । बाकी तो उपर की टिप्पणिया स्पष्ट बयान करती हैं गंभीर लेखन में तो आपका कोई शानी नहीं ।
धन्यवाद ।
Very good and touching one... Represents a lot in our lives...
Bahut hi badhiya bhaiya..
ई-मेल पर अजित वडनेरकर ने कहा :-
कुछ भी तो ठिकाने पर नहीं है आपका....
sundar rachna
sundar rchana
मुझे खुद नही पता कि मै होता कहा हूं आखिरकार
आईना भी ढूंढता है मुझे अक्सर
और
मैं ढूंढता हूं अपने आप को।
" ढूँढ़ा खुदको को दिन रातो में
ख्वाबों ख्यालों जज्बातों में
उलझे से कुछ सवालातों में
खुदको पाया खुदको पाया
तेरी साँसों की लय में बातों में '
Regards
bahut sundar rachna!
Seema ji ka follow up bhi acchha laga.
www.bhaiyyu.com
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