"……और अब भाजपा की बारी है"
शनिवार दोपहर साढ़े तीन बजे हम अपने एक मित्र के साथ टेलीफोन ऑफिस मे एक अफसर से उलझते बैठे थे कि हमारा मोबाईल बजा। उधर से आवाज आई "त्रिपाठी एडव्होकेट बोल रहे हैं"। हमने जवाब दिया "आई एम त्रिपाठी बट नॉट एडव्होकेट"। इस पर उधर से कहा गया कि भाई साहब मै त्रिपाठी वकील बोल रहा हूं। हमने कहा ऐसे कहिए ना,बताईए। तो अगले सज्जन ने कहा कि आज़ाद हिंद फौज के पूर्व सिपाही व सेनानी सरदार दिलीप सिंह जी आपसे मुलाकात करना चाहते हैं। तो हमने जवाब दिया कि ठीक है कल इतवार है,हम सुबह ग्यारह बजे उनके घर हाजिर हो जाएंगे। इस पर वकील साहब ने कहा,नही वे आज ही मिलना चाहते हैं शाम छह बजे से पहले। हमने कहा ऐसा क्या हो गया। मालुम हुआ कि सरदार जी किसी कार्यवश जिला अदालत आए हुए हैं तो वहीं हमें बुलाया है। अपन ने कहा ठीक है जी अपन पास में ही हैं सो पहुंचते हैं आधे घंटे मे काम निपटा कर।
आधे घंटे बाद कचहरी के नज़दीक बताए गए चाय दुकान पर अपन पहुंच गए। देखा कि सरदार जी और उनके साथ अधिवक्ता अवधनारायण त्रिपाठी जी बैठे हुए हैं। तब अपन ने दिमाग लगाया कि अवधनारायण जी के बेटे ने ही फोन किया होगा हमें। खैर……राम-राम करते-करते अपन उनके सामने गए। राम-राम इसलिए कि अवधनारायण त्रिपाठी जी से पिछली मुलाकात हम भूले नही थे। पहली मुलाकात में अवधनारायण जी से मिलने के बाद ही समझ में आया था हमे अधिवक्ता का सही मतलब,अधिक+वक्ता। आज़ादी एक्स्प्रेस के रायपुर आगमन के दिन हम सरदार जी को लेने उनके निवास गए थे तो वहीं अवधनारायण जी से पहली बार परिचय हुआ था। अपने आप को डबल मीसा का बंदी बताते हुए अवधनारायण जी उस दिन तकरीबन
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तो अवधनारायण जी ने टहोका लगाया हमें और हमने फ़िर एक बार उनकी दिखाई जा रही अखबारी कटिंग पर नज़र डालते हुए सहमति दर्शाई और फ़िर सोचने लगे कि रायपुर ने क्या बिगाड़ा था जो ये अवधनारायण जी उत्तर प्रदेश से यहां आ गए। दर-असल पहली मुलाकात में अवधानारायण जी नें हमें बताया था कि इमरजेंसी के दौरान वे उत्तरप्रदेश के अपने किसी शहर में थे (शहर का नाम याद नही आ रहा) वारंट निकला तो वहां से फ़रार हो कर रायपुर अपनी ससुराल आ गए। पहली मुलाकात में इन्होनें हमें अपने ससुराली मोहल्ले का गली और मकान नंबर भी बताया था। और यह भी बताया था कि यहीं रायपुर में वे इमरजेंसी के दौरान गिरफ़्तार हुए तब से यहीं के हो कर रह गए हैं। हम सोचने लगे कि इनके अपने शहर वाले कितने खुश होंगे न अब।
इस बीच सरदार जी ने हमसे शैलेष फाए जी का और आज़ादी एक्स्प्रेस का हाल पूछा। और फ़िर हमारे स्वर्गीय
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उनके इस कथन को सुनकर हम मुस्कुराए बिना न रह सके क्योंकि वाकई रायपुर राजधानी बनने के पहले से और बनने के बाद भी धूल और मच्छरों से ऐसी त्रस्त है कि पूछिए मत। रायपुर की धूल पर तो बहुत पहले ही एक टी वी एड भी बन चुका है जो सभी नेशनल चैनलों पर आता भी रहा है,और अभी हाल ही में खबर आई है कि सर्वाधिक प्रदूषित शहरों मे से एक है अपना रायपुर।
जैसे ही अपन ने साथ आए मित्र का हवाला देते हुए जाने की इजाजत चाही सरदार जी ने तो दे दी पर अवधनारायण जी का आदेश हुआ कि जरा कचहरी में हमारी टेबल तक चलो फ़िर चले जाना। मजबूरी में गए उनकी टेबल तक। मच्छर और नक्सलियों पर उनकी बनाई हुई एक प्रेस विज्ञप्ति को एडिट करते हुए कुछेक असंसदीय शब्दों पर स्याही फेरी और फिर नमस्ते बोलकर सरदार जी से जाने की इज़ाज़त ले ली।
काश अवधनारायण जी की डायरी से हमारा मोबाईल नंबर डिलिट हो जाता।
प्रभो ऐसे कितने पीस बनाए हैं तुमने, और किसी को मुझसे मत मिलाना। [-o<
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10 टिप्पणी:
सही सोहबतों में हो प्यारे।
कुछ लोगों को मुंह का डायरिया होता है। इनका इलाज है, इन्हे भुट्टा भेंट किया जाये और आग्रह किया जाये कि खा ही लीजिये।
मैं सिवाय सहानुभूति के और कर भी क्या सकता हूं? अभी-अभी अवधनारायण त्रिपाठी जी जैसे चाटक मुझे बक्श कर गये हैं। बक्श इस लिये दिया कि लंच टाइम हो गया था और उनको अपने घर जाना था।
अनवरत अधिक+वक्ता ब्राण्ड चाटकों से निपटने के लिये एक "जुगत सन्हिता" बननी चाहिये।
वैसे तो इस चिट्ठे को अपने ब्राउजर पर अक्षरों का आकार बड़ा कर पढ़ा जा सकता है, परंतु यदि इसका डिफ़ॉल्ट फ़ॉन्ट थोड़ा सा बड़ा कर देंगे तो हमारे जैसे चश्माधारी पाठकों पर कृपा होगी :)
अब हम भी जान गये भाई कि हमें आप झेलते हो पर क्या करें पेशे को तो नहीं छोड सकते भले ब्लागरी छोड दें ।
बेहतर शव्द संयोजन के लिए बधाई ।
बहुत खूब. जिनके साथ बैठे उनका रोग भी ले आए भइया. और आपने भी बहुत लंबी ठेल दी इस बार. दुनिया में ऐसे चाटू लोगों की कमी नहीं है, बस नाम और चेहरे बदलते रहते हैं. अपने धंधे में तो ऐसों को रोज झेलना पड़ता है. आलोक जी ने सही इलाज बताया. पर खाने की बात समझ में नहीं आई.
मेरे एक वकील भाई को झेलने के लिए आपका आभार। तकलीफ के लिए मैं माफी मांग लेता हूँ। बेचारे समझते हैं कि ज्यादा बोलने वाले को लोग बेहतर वकील समझते होंगे। मुवक्किलों के लिए जरूर तरसते होंगे। वे दया के पात्र हैं। रवि भाई की बात जरूर मान लें।
विधाता की ऐसी अनुपम कृति से परिचित कराने का शुक्रिया। सफर की सोहबत में अब तो आप भी व्युत्पत्तियां तलाशने लगे हैं...अधिवक्ता यानी अधिक + वक्ता ... बहुत खूब । मज़ा लिया हमने पोस्ट का । सफर के अगले किसी पड़ाव में अधिवक्ता को भी घसीट लाएंगे।
दोनोए बुजुर्गो को नतमस्तक प्रणाम जिन्होंने आपको एक अच्छा श्रोता बना दिया...
हम तो उस मुलाकात के समय की कल्पना कर मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं :)
ऐसे कई अधिक वक्ताओं से हमारा भी पाला पड़ता ही रहता है।
प्रिय संजीत आप मेरे ब्लोग के प्रथम टिप्पणीकार रहे हैं. नव वर्ष की शुभकामनाये. अनिता जी के ब्लोग पैर आजादी एक्सप्रेस के बे में जानकारी मिली. ये भी कि आप एक स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र हैं. आप बहुत अच्छा लिखते हैं इतना अच्छा कि आपको पढ़ने के बाद सारा समय आपके अन्य ब्लोग पढ़ने मैं निकल जाता है सो अपनी टिप्पणी नहीं दे पाता. जेनरेशन गैप बाला ब्लोग बहुत अच्छा था. बधाई.
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