आइए आवारगी के साथ बंजारापन सर्च करें

02 December 2007

आज़ादी एक्स्प्रेस रायपुर में-3 (विवरण)

आज़ादी एक्स्प्रेस रायपुर में-3 (अतीत से वर्तमान की यात्रा)


आज़ादी एक्स्प्रेस रायपुर रेल्वे स्टेशन में 29 व 30 नवंबर को दो दिन खड़ी रही, इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने इसे देखा। भीड़ का तो यह आलम था की तीस नवंबर की शाम भीड़ नियंत्रित करने के लिए रेलवे पुलिस को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी!! अफ़सोस इस बात का है कि केंद्रीय मंत्रालयों ने रायपुर स्टेशन के लिए इस ट्रेन को सिर्फ़ दो दिन दिए जबकि अन्य जगहों पर पांच दिन दिए गए हैं। पूछने पर पता चला कि छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित होने के कारण इसे सिर्फ़ दो दिन दिए गए हैं। देखने के लिए उमड़ी भीड़ को आप चित्रों में देख सकते हैं।

फ़िलहाल हम आपको बताने की कोशिश करते हैं की 12 बोगियों के इस सफ़र में अतीत से वर्तमान की यात्रा को समेटने की कैसे कोशिश की गई है। इस सफ़र को हम सभी जानते हैं। बचपन से कोर्स की किताबों में, यत्र-तत्र-अन्यत्र पढ़ते आएं हैं, इसी पढ़े हुए को , उनकी प्रतियों, प्रतिलिपियों व चित्रों को इस प्रदर्शनी के माध्यम से देखना एक अलग एहसास दे जाता है।

प्रवेश

बोगी नंबर एक------> कम्पनी राज
इस खंड में यह जानकारी दी गई है कि कि प्रकार सत्रहवीं शताब्दी में यूरोपीय व्यापारी भारत की ओर आकर्षित हुए और किस प्रकार से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने हमारे देश पर अपने पैर जमाए। ( आवारा बंजारा ने लार्ड मैकाले के कथन वाला चित्र इसी बोगी से लिया था।)

बोगी नंबर दो-------> चिंगारी
मार्च 1857 में निषिद्ध चर्बी वाले कारतूसों के रुप में अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ एक चिंगारी प्रकट हुई, और यह आग की तरह एक रेजीमेंट से दूसरे, एक गांव-शहर से दूसरे तक फ़ैलती गई। हजारों की संख्या में सैनिक और आमजन दिल्ली पहुंचे और अंग्रेजी निशानियों को मिटाते हुए बहादुरशाह ज़फ़र को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया। ( रानी झांसी की मुहर वाला चित्र आवारा बंजारा ने इसी बोगी से लिया था)

बोगी नंबर तीन-------> आग फैली
दिल्ली पर कब्जे के एक महीने के अंदर विद्रोह की यह चिंगारी उत्तर तथा पूर्वी भारत में फ़ैल गई।



बोगी नंबर चार-------> अंग्रेजों का दमन चक्र
अब तक करीब करीब सारे देश में फ़ैल चुकी विद्रोह की इस चिंगारी के बाद भी क्रांतिकारी ताकतों और नागरिकों की हार क्यों हुई? विद्रोह को दबाने के बाद, अंग्रेजों ने बदले का अपना दमन चक्र चलाया।

बोगी नंबर पांच--------> राष्ट्रीय जागरण
गुलाम भारत में आज़ादी की चाह पैदा हो चुकी थी और ब्रिटिश महारानी ने भारत के शासन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ। बंग भंग पर प्रस्ताव वापस। होम रूल लीग, भारती के राजनीतिक मंच पर गांधी जी। रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग।

बोगी नंबर छह----------> गांधी जी का नेतृत्व
1920 में असहयोग आंदोलन, 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन, ऐतिहासिक दांडी यात्रा, लोगों को बांटने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट में एक बिल पास हुआ लेकिन भारतीय जनता की एकता बनी रही।

बोगी नंबर सात----------> भारत छोड़ो
अंग्रेजो को अब तक समझ आ चुका था कि उनका भारतीय साम्राज्य अब अधिक दिनों तक कायम नही रह पाएगा लेकिन 1940 में लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग की घोषणा, पाकिस्तान निर्माण ही लक्ष्य। 1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेज सरकार और बर्बर हो उठी। इसी बीच विदेश में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय सेना को नवजीवन दिया और आई एन ए का भारत प्रवेश, 1946 में भारतीय नौसेना में पूर्ण विद्रोह साथ ही थल सेना में असंतोष, आखिरकार 14-15 अगस्त को एक नए युग का सूत्रपात, ब्रिटिश शासन का अंत। भारत अब एक स्वतंत्र राष्ट्र्।

बोगी नंबर आठ--------> आज़ादी
संविधान रचा गया जिसे 26 जनवरी 1950 अंगीकार किया गया। नेहरू युग और कृषि, रक्षा, परमाणु, ऊर्जा, औषधि आदि क्षेत्रों में कई अनुसंधान संस्थानों की शुरुआत।

बोगी नंबर नौ--------> नया सवेरा
हरित क्रांति, श्वेत क्रांति। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, 1974 में पोखरण परमाणु परीक्षण, लाईसेंस राज समाप्ति का प्रयास, रेलों का आधुनिकीकरण, शिक्षा प्रणाली में सुधार, दूर-संचार उद्योग का आधुनिकीकरण। विदेश संबंधों मे सुधार व उनसे आर्थिक-वैज्ञानिक सहयोग।

बोगी नंबर दस------->सार
1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण का दौर, मुक्त बाज़ार की दिशा में सुधार्। इसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे अधिक तेज़ी से विकसित होने वाली विश्व की अर्थव्यस्था बनी, उद्योग, कृषि, व्यापार, वाणिज्य, विज्ञान, और स्वास्थ्य-रक्षा, शिक्षा और बुनियादी ढांचा जैसे सभी क्षेत्रों में जोरदार प्रगति।

बोगी नंबर ग्यारह------> सार
आज, भारत लोकतंत्र, धर्म-निरपेक्षता और द्रुत विकास का पर्याय बन गया है। भारत के लोकतंत्र के कामकाज़ पर एक नज़र।

बोगी नंबर बारह-------> बिक्री काऊंटर

निकास







तस्वीरें, मोबाईल से ली हुई अत: गुणवत्ता में कमोबेशी संभव है। इसके अलावा आवारा बंजारा आभारी है फ्रीलांस फोटोग्राफर व वेबडिजाईनर श्री रवींद्र आहार का जिन्होनें और भी तस्वीरें हमें उपलब्ध करवाईं।



Tags: , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ,

11 टिप्पणी:

Gyan Dutt Pandey said...

विवरण तो बहुत अच्छा और विधिवत है; पर अन्तिम फोटो में एक काले चश्मे वाला है जिससे लगता है कि देश में अकाल पड़ा है! :-)
उसे कुछ घी-दूध-बदाम खिलाओ भाई!

Pramendra Pratap Singh said...

रेल अच्‍छी लगी, पता चल गया कि का्ग्रेस के राज की सारी गतिविधियॉं घूसेड़ी गई है।

Sanjay Tiwari said...

क्रमशः बोगियों के विवरण के बाद आखिरी बोगी के साथ बिक्री काउंटर जोड़कर आजादी एक्सप्रेस ने एक सहज व्यंग को जन्म दे दिया है.
अकाल जैसी कोई बात फिलहाल तो नजर नहीं आती हो तो पाण्डेय जी के पास गाड़ी-घोड़ा है. हमारी गुजारिश है कि राहत सामग्री की पहली खेप वही क्यों नहीं भेजते?

मीनाक्षी said...

संजीत जी , बहुत अच्छे तरीके से विवरण दिया... अभी कुछ लिखते कि ज्ञान जी की टिप्पणी पर नज़र पड़ते ही सब भूल कर बस हँसी फूट पड़ी.....छत्तीसगढ़ के छत्तीस व्यंजन खाइए और दिखा दीजिए कि आप खाते पीते प्रदेश के निवासी हैं. :)

समय चक्र said...

ख़ुशी क़ी बात है कि लालू क़ी रेल आज़ादी का जज़्बा तो लोगो को दिखा रही है

36solutions said...

बढिया जानकारी दिया संजीत भाई, हमने आपके ब्‍लाग से ही इस आजादी एक्‍सप्रेस का दर्शन कर लिया । धन्‍यवाद ।

ज्ञान भईया की बात मानें, नवम्‍बर गुजर गया है अब अलगे नवम्‍बर के आने में बारह माह शेष हैं नहीं तो मेरे जैसे जीवन भर घी-दूध-बादाम खाने के बावजूद ससुरी फोटू तो ऐसे ही आयेगी ।

संजय बेंगाणी said...

अच्छा विवरण रहा. ज्ञानजी की टिप्पणी ने हंसा दिया.

Shastri JC Philip said...

तीन बातें:

1. चिट्ठे का नया आवरण बहुत सुन्दर है. बधाईयां.

2. आप चिट्ठा-सफलता के मर्म को पकडते जा रहे हैं.

3. आजादी एक्प्रेस का वर्णन अच्छा लगा. देखने की इच्छा जागृत हो गई है -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

Shastri JC Philip said...

अरे हां, कौन है वह बेचारा काले चश्मे वाला. उम्मीद है कि अगली बार कुछ और पास का चित्र छापेंगे!!

anuradha srivastav said...

रेल यात्रा तो अच्छी करा दी।
अहो$$$$$$$ भईया तनिक खाया-पिया करो का अकाल पीडित बने खडे हो । बाबा कहीं से कोई राहत सामग्री भी आने वाली है का.........

रंजू भाटिया said...

बहुत बहुत अच्छी जानकारी इसको यूं तो देख लिया ..पर साक्षात् देखने की इच्छा जागृत हो उठी है
शुक्रिया आपका इस जानकारी को हम तक पहुचाने के लिए संजीत जी !!

Post a Comment

आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।