समय ठीक नई चल रहा, संवेदनशील आदमी अब अपनी कविता का पाठ भी नही कर सकता क्योंकि कहीं मुंह काला ना कर दे कोई धर्म का ठेकेदार आकर।
हमारे शहर के बेचारे एक कवि हृदय डॉकटर के साथ ऐसा ही हुआ। मामला यह है कि पंद्रह अगस्त को रायपुर के पंडित जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर डा. वी के जैन ने स्वतंत्रता दिवस समारोह में अपनी स्वरचित कविता पढ़ी। तत्काल तो कुछ नही हुआ पर बाद में आंबेडकर अस्पताल(मेडिकल कॉलेज का ही अस्पताल जो कि छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा अस्पताल माना जाता है) के उप अधीक्षक डा. एम पी पुजारी ने थाने में डा. जैन के खिलाफ धार्मिक भावनाएं भड़काने का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट लिखा दी। बताया जाता है कि कविता में देवी लक्ष्मी से जुड़े चार वाक्य थे। खैर, जब मामला यहां तक आया तो डॉ जैन ने सार्वजनिक रुप से यह कहते हुए माफ़ी मांग ली कि कि मेरी कविता का आशय कुछ और था, लेकिन मुझे आभास नहीं था कि इससे किसी की भावना को ठेस पहुंचेगी। 17 अगस्त को सुबह शिवसेना के कार्यकर्ता मेडिकल कॉलेज पहुंचे डीन से चर्चा करने के लिए, तब डीन मौजूद नही थे, अत: शिवसेना कार्यकर्ता चुपचाप चले गए, यह ध्यान देने वाली बात है कि " शिवसेना कार्यकर्ता चुपचाप चले गए" । लेकिन थोड़ी देर बाद ही दोपहर में भारतीय जनशक्ति पार्टी के 40-50 कार्यकर्ता पहुंच गए और नारे लगाते हुए कॉलेज और अस्पताल में हुल्लड़ करने लगे। ये कार्यकर्ता डा. जैन के विभाग पहुंचें, उन्हें कमरे से बाहर बुलवाया और जैसे ही वो बाहर आए सीधे उनके मुंह पर काली स्याही पोत दी। धमकी देकर माफ़ी मंगवाई गई। इसके बाद तोड़ फ़ोड़ का आलम चला जिससे कि अस्पताल को भी नही बख्शा गया। इन कार्यकर्ताओं ने मेडिकल कालेज के डीन डा. सुबीर मुखर्जी से डा. जैन को निलंबित करने की मांग भी है।
जब यह सब बखेड़ा चल रहा था तो मीडिया भी मौजूद था, रिकार्डिंग हुई जिसे कि रात समाचार चैनलों पर भी दिखाया गया। डॉक्टर जैन ने मीडिया के सामने माफ़ी भी मांगी ।
इधर दिन में यह सब हुआ और उसके बाद जैसे ही घटना की खबर फ़ैली, जुनियर डॉक्टरों, मेडिकल के छात्र-छात्राओं ने शाम में उमा भारती का पुतला कॉलेज के सामने जलाया और पैदल मार्च कर दिया शहर के मुख्य चौराहे जयस्तंभ चौक की ओर, चक्का जाम करने के लिए पुलिस को खबर लगी तैयारी हो गई लेकिन फ़िर भी इन छात्र-छात्राओं ने मानव श्रृंखला बना कर चक्का जाम करने में सफ़लता पा ही ली । एक डेढ़ घंटे पुलिस के अफ़सरों ने इन्हे समझाने मे लगाए कि आरोपी गिरफ़्तार कर लिए जाएंगे, तब जाकर जाम खुला!! अखबार की भाषा में आगे कहा जाए तो समाचार लिखे जाने तक आरोपियों की तलाश जारी थी।
अब यह समझ में नही आता कि हम, किसी राजनैतिक पार्टी या धार्मिक दल के कुछ कार्यकर्ता अपने आप को क्यों कानून से बड़ा मानकर किसी को सजा देने निकल पड़े वो भी तब जब कि मामले की रपट पुलिस थाने में दर्ज करवाई जा चुकी हो। इस घटना में पात्र और जगहों के नाम बस बदल दें तो ऐसी घटनाएं अब अक्सर हमारे देश मे होते ही रहती है। और इन पर बड़े बड़े लोग बहुत कुछ लिख भी चुके है पर नतीजा सिफ़र, हर महीने कही ना कही किसी ना किसी रुप में यह घटना हमारे सामने होती ही है। ये जो धर्म के स्वयंभू ठेकेदार हैं क्या इन्हें खुद पता होता है कि इनके घर की नई पीढ़ी क्या क्या गुल खिला रही है, घर का ठिकाना नही और चले हैं ये दूसरों को सुधारने और इनके साथ यह चंगू-मंगू के रुप में तथाकथित छात्र नेता, जो ऐसी घटनाओं के दौरान आपस में एक दूसरे से कहते पाए जाते हैं कि " अबे यार ये सब जल्दी निपट जाए तो यहां से जल्दी जाउं, वो वाली सेटिंग वेट कर रही होगी ना, आज उसके साथ थोड़ा लम्बा जाने का प्रोग्राम था यार कि भैया ने यहां बुला लिया"।
हम शहरवासी अब बैठकर फ़िर पुलिस को कोसते रहेंगे कि शहर में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज रह ही नही गई है, हफ़्ता भी नही बीता कि पहले एक विवाहिता से सड़क पर गैंग रेप, फ़िर चौदह अगस्त को राज्य के पूर्व गृहमंत्री और वर्तमान राजस्व मंत्री के घर से कुछ सौ मीटर की दूरी पर रात को दस बजे सरे-आम दो हत्या और अब ऐसा, छोटी मोटी बातों को तो हम शहरवासी अब गिनते भी नही। कितनी घटनाओं को रोया जाए अब, रोजाना ही कुछ ना कुछ!! तो भैय्या पुलिस की सुनें तो फ़ोर्स की कमी वाली पुलिस करे भी तो का करे, अब पुलिस को सपना तो नही आता कि फ़लां जगह कौनो घटना घटने वाली है सो पहुंच लो वहीं। और फ़िर इस मेडिकल कॉलेज वाले केस में जे लोचा है कि भारतीय जनशक्ति पार्टी के लगभग सभी कार्यकर्ता पुराने भाजपाई ही है, और राज्य में अभी भाजपा की सरकार हैं। अमन चैन (है) कायम रहे!! फ़िर पुलिस ने यह भी कहा है कि अगर डाक्टर जैन ने वाकई धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले शब्द कहें हैं तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
कल ही सुबह अर्थात 17 की सुबह रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष से उस गैंग रेप वाले मामले को लेकर मोबाईल पर चर्चा हो रही थी तो उन्होनें कहा था कि "यार संजीत, रायपुर अब मुर्दों का शहर होता जा रहा है"।
तब हमें तो मालूम ही नही था और ना ही शायद उन्हें मालूम था कि मुर्दों के बनते इस शहर में ऐसा कुछ भी हो सकता है।
लौ भैय्या मन, काली हमर शहर मा वो का कहिथे, सिटी माल 36 खुलिस हे अउ मल्टीप्लेक्स घलोक खुलिस हे तो हम तो खुशिया गे रहेन कि चलो बड़े होगे हमरो शहर हा अब। फ़ेर ये नेता मन के भगवान चार-चार झन ऐसनेच लईका देवय ये मन तो अउ ऐसन काम करिन हे जौन काम हा खाली बड़े-बड़े शहर मा होथे रे भैया। अब हमरो शहर हा बड़े शहर हो गे ना, दिल्ली अउ मुंबई असन, काबर कि हमर शहर मा धरम के ठेकेदार मन तो पहिली ले रहिन पर ऐसन दूसर के मुंह ला करिया कर के अपन गोरिया चेहरा ला टी वी मा देखाय बर और मीडिया मा छपाय बर आज तक कभु ऐसन तो नई करे रहिस हे गा!!
18 August 2007
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17 टिप्पणी:
ऐसे लोगों के घर में अभी भी बुजुर्ग ही सब्जी लाने बजार जाते होंगे..य़े ‘नौजवान’ अपने घर का काम शायद ही कभी करते हों...लेकिन भरतीय संस्कृति को ‘जिन्दा’ रखने के लिए ये ऐसी हरकतें करने से बाज नहीं आते...
अब ये शोध का विषय नहीं रहा कि कौन ज्यादा बुरा है, नेता या जनता..
अशोभनीय और घोर निन्दनीय! समाज बजारू होता जा रहा है.
पिछले कुछ समय से संस्कृति के झंडा बरदारों की बाढ आ गयी है। ये संस्कृति गुण्डे जिस तरह से खुलेआम दादागीरी करते हैं, इसकी जितनी निन्दा की जाए, वह कम है। दरअसल इस सबके लिए जिम्मेदार भी वे ही लोग हैं, जो कहते तो है कि यह गलत है, पर विरोध में कोई आवाज उठाने से भी डरते हैं।
शुक्रिया भाई, आपने तीनो मुख्य समाचारों पर चिंतन व्यक्त किया, कल की घटना पर मैं आपसे ही कुछ अभिव्यक्ति चाहता था । धन्यवाद बेहतर आलेख के लिए ।
हां भई अब हमु मन ला कोनो गवंईहा नई कहि सकय जी, हमू मन माल वाले होगेन संगें संग माल वाले मन कस बुध घलोक आ गे देखेस नहीं कविता अउ गेंग रेप कांड ल ईही हा झिन आतिस विकास आवै विकसित मानसिकता घलौ आवै । भगवान मोर छत्तीसगढ ला अशीश दै ।
ये सब मीडिया का असर है। पहले भी ये सब होता था पर अब तो लोग टी.वी.पर दिखने के लिए क्या कुछ नही कर गुजरते।
जैन साहब की वो लाइन ज़रूर लिखी जानी चाहिए जिन्हें लेकर बवाल हुआ। हालांकि कृति कितनी भी आपत्तिजनक क्यूं ना हो किसी को भी गैरलोकतांत्रिक तरीक़े से विरोध करने नहीं दिया जा सकता। भाजशपा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी होनी ही चाहिए।
ममता जी ने सही कहा, आजकल गुण्डे टीवी कैमरामैन साथ लेकर चलते हैं, मारपीट करना हो, कार में बलात्कार करना हो, यहाँ तक कि थोथी राष्ट्रभक्ति दिखाने के लिये भी कैमरा लिये कोई "फ़ुन्तरू" घटनास्थल पर पहुँच जाता है, और ऐसे शूटिंग करता है जैसे उसकी खुद की शादी हो रही हो...इसी का विस्तृत रूप हमारी लोकसभा है..
ऐसी बातें सुनते पढ़ते समाज, संस्कृति, धर्म इन शब्दों से भय सा लगने लगा है । और भय लगने लगा है आदमखोर भीड़ से । न जाने कब किसकी बारी आ जाए ।
घुघूती बासूती
Yeh toh aajkal roz ki baat ho gayi hai bhaiya.. News mein roz koi na koi aisi cheez hoti hai..
Yeh log khud ko kanoon se upar maante hai.. aur afsos iss baat ka hai ki Police bhi inhe nahi pakadti..
Jis tareeke ko inhone apnaya hai woh sahi nahi hai..
An eye for an eye will make the world blind - Mahatma Gandhi..
Gunhegaar ko sazaa dena kanoon ka kaam hai..
बहुत ही निन्दनीय काम है ये कवि जो की हर बात को कहने के लिये सिर्फ़ कविता का ही सहारा लेता है और हमेशा लेता आया है,क्योंकि कलम ही उसका हथियार होती है,ये घोर निन्दा की बात है...भ्रष्ट विचारधारा ही कहा जा सकता है...
बहुत खुशी हुई कि आपके छ्त्तीस गड़ में भी अब मॉल खुल गया है चलिये अच्छा है अब आप लोग भी बासी खाने का स्वाद चख सकोगे...और एक के साथ एक की स्कीम में घटिया माल मिलावटी माल अपने घर ला सकोगे...थौड़ी बचत तो हो ही जायेगी...:)
सुनीता(शानू)
इस कृत्य की जितनी भ्रत्सना की जाये उतनी कम. बहुत निन्दनीय एवं शर्मनाक.
ऐसी घटनाओं में शामिल आधे से ज्यादा लोगों को तो मालूम भी नहीं होता कि मुख्य मुद्दा क्या है वो तो भीड़ का साथ देते हैं.
मुझे यह समझ नहीं आती कि जब मिडिया वाले पहुँचते हैं तो वो पुलिस को सूचित कर क्यूँ नहीं बुलाते ताकि इस तरह की घटना अंजाम ही न ले मगर उन्हें तो मैटर मिल रहा है भले ही कोई पिटे या पीटा जाये या कालिख पुते. हद है.
बहुत ही शर्मनाक बात है यह ..लगता है आज कल बस अवसर चाहिए की कोई बात का बवाल
मचाया जाए !!
निंदनीय घटना, ऐसे लोगों से सभ्य समाज त्रस्त है।
वैसे जैसे नीरज जी ने कहा कि पता चलना चाहिए कि डॉ. साहब ने ऐसा क्या कहा था।
पर एक बात तो पक्की है कि अगर कुछ आपतिजनक था तो उसकी सजा तय करने का हक अदालत को है, ऐसे लोगों को नहीं।
आप सभी के प्रति आभार कि आप लोगों ने ऐसे मामले में अपनी राय यहां पर दी!!
यह सही है कि कोई चीज गलत भी हो तो इसे तय करने का अधिकार या सजा देने का अधिकार कानून और अदालते के हाथ में लेकिन इस तरह किसी संगठन या राजनैतिक दल के कार्यकर्ताओं की हरकतों को कतई सहा नही जा सकता!!
नीरज जी और श्रीश भाई, सहमत हूं काफ़ी कोशिशों के बाद भी कविता उपलब्ध नही हो पाई है!
प्रयास जारी है, मिलते ही यहां उपलब्ध करवा दी जाएगी!!
जो किया गया वह गलत था, निन्दनीय है।
पर एक बात तो स्पष्ट है कि तसलीमा के मुद्दे पर इस पर टिप्पणी कुछ ज्यादा ही मिली है।
बहुत शानदार और धारदार लिखा भैया.. आपकी आवाज़ में हमारी आवाज़ भी शामिल पाइये.. ऐसे ही लिखते रहिये..
sanjeet bhai,
meri bhee icchha thee ki jaana jaye ki kavi ne kya line likhi thi, jaankar bahut dukh hua ki wo lines aapke paas nahi hai.
Lagta hai ki is khabar ko report karne wale patrakaar aur virodh karne wale mavaliyon ko bhi wo lines nahi pata hain.
sach batau, wo lines agar aapki mil gai to usme shayad hi kuch aapattijanak ho!
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