ई-मेल पर रोजाना बहुत से ऐसे फ़ारवर्डेड ईमेल्स आती है जिनमें से कई तो पढ़ी ही नही जाती और कुछ को पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। ऐसा ही एक ई-मेल यहां पर, यह रचना रोमन में लिखी हुई मेरे ई-मेल तक पहुंची थी , इसका उद्गम नही मालूम अत: यह भी नही मालूम कि यह किसने लिखा होगा, बस इसे हिन्दी में टाइप करने का ज़िम्मा ले सकता हूं मैं, तो आइए एक नज़र आप भी डाले कि कौन है एम बी ए।
एम बी ए वो है जो अक्सर फ़ंसता है
इंटरव्यूज़ के सवाल मे,
बड़ी कंपनियों की चाल में,
बॉस और क्लाइंट के बवाल में।
एम बी ए वो है जो पक गया है
मीटिंग्स की झेलाई में,
सबमिशन्स की गहराई में,
टीमवर्क की चटाई में।
एम बी ए वो है जो लगा रहता है
शेड्यूल को फ़ैलाने में,
टारगेट्स को खिसकाने में,
रोज़ नए-नए बहाने में।
एम बी ए वो है जो
लंच टाइम में ब्रेकफ़ास्ट करता है,
डिनर टाइम में लंच करता है,
कम्यूटेशन के वक्त सोया करता है। एम बी ए वो है जो पागल है
चाय और समोसे के प्यार में,
सिगरेट के खुमार में,
बर्डवाचिंग के विचार में।
एम बी ए वो है जो खोया है
रिमाईंडर्स के जवाब में,
ना मिलने वाले हिसाब में,
बेहतर भविष्य के ख्वाब में।
एम बी ए वो है जिसे इंतजार है
वीकेंड नाईट मनाने का,
बॉस के छुट्टी पर जाने का,
इन्क्रीमेंट की खबर आने का।
एम बी ए वो है जो सोचता है काश
पढ़ाई पे ध्यान दिया होता,
काश टीचर से पंगा ना लिया होता,
काश इश्क़ ना किया होता।
और सबसे बेहतर तो यह होता,
कम्बख्त एम बी ए ना किया होता…
इंटरव्यूज़ के सवाल मे,
बड़ी कंपनियों की चाल में,
बॉस और क्लाइंट के बवाल में।
एम बी ए वो है जो पक गया है
मीटिंग्स की झेलाई में,
सबमिशन्स की गहराई में,
टीमवर्क की चटाई में।
एम बी ए वो है जो लगा रहता है
शेड्यूल को फ़ैलाने में,
टारगेट्स को खिसकाने में,
रोज़ नए-नए बहाने में।
एम बी ए वो है जो
लंच टाइम में ब्रेकफ़ास्ट करता है,
डिनर टाइम में लंच करता है,
कम्यूटेशन के वक्त सोया करता है। एम बी ए वो है जो पागल है
चाय और समोसे के प्यार में,
सिगरेट के खुमार में,
बर्डवाचिंग के विचार में।
एम बी ए वो है जो खोया है
रिमाईंडर्स के जवाब में,
ना मिलने वाले हिसाब में,
बेहतर भविष्य के ख्वाब में।
एम बी ए वो है जिसे इंतजार है
वीकेंड नाईट मनाने का,
बॉस के छुट्टी पर जाने का,
इन्क्रीमेंट की खबर आने का।
एम बी ए वो है जो सोचता है काश
पढ़ाई पे ध्यान दिया होता,
काश टीचर से पंगा ना लिया होता,
काश इश्क़ ना किया होता।
और सबसे बेहतर तो यह होता,
कम्बख्त एम बी ए ना किया होता…
Tags:
21 टिप्पणी:
अच्छा हुआ हम नहीं हैं एम बी ए । आप हैं क्या
हा हा .. ऐसीच्च कविता मैने भी पढ़ी थी इंजीनियरों पर।
इन दिनों कारपोरेटिया समाज में इस तरह का मेल-मेल सब कोई खेलते हैं। मर्म भी समझते हैं। पर कहते है ना अभिव्यक्ति के साथ ही क्रांति के भाव स्खलित हो जाते हैं तो सूत्रपात कौन करे।
लिहाज़ा अपन भी हंसकर ही रो लिए।
हा हा हा....बहुत बढ़िया...सच, म बी ए ऐसा लडडू है जो खाए वो भी पछताए जो ना खाए वो भी...एकदम सटीक लिखा है...बधाई...आपकी अगली पोस्ट का बेसब्ररी से इन्तजार है
बहुत बढ़िया :)
अब समझ गये होगे हमने एम बी ए की जगह सी ए क्यूँ किया. :) बेहतरीन!!!
बहुत बहुत मज़ेदार रचना है ...
एम बी ए वो है जिसे इंतजार है
वीकेंड नाईट मनाने का,
बॉस के छुट्टी पर जाने का,
इन्क्रीमेंट की खबर आने का।
बहुत बढ़िया:):):)
किसी महा-बदमाश-आवारा (एमबीए) ने तरंग में ई मेल ठेल दी और आप अनुवाद में लग लिये. :)
बन्दे ने आपसे बेगार करा ली. अब वह यही लेकर हिन्दी में ठेलेगा! :)
बहुत बढिया लिख भाई, अच्छा हुआ हम एम तक नहीं पहुचे डी से ही संतुष्ट हो लिये । नहीं तो आज आपको टिपियाते नहीं रहते बल्कि आपने जो लिखा है वही सब करते रहते और रात को टूर के टाईम में बीयर और लेपटाप में पेट और भेजा खराब करते रहते ।
:( ही कह सकती हैं एम बी ए की माँ !
घुघूती बासूती
आनन्द आया भाई। आप को हरदम पढ़ता हूँ पर टिप्पणी नहीं कर पाता हूँ। लगे रहें।
थैंक यू :)
प्रिय संजीतजी
धन्यवाद! मै ना तो लेखक हुं ना पत्रकार दिल मे जो आया लिख दिया ।
आपकी चिठ्ठेकारी का मै कायल हुं । पुनः धन्यवाद आपका ब्लाग को हमेशा देखने के लिये तत्पर रहूंगा ।
आखिरी विचार श्रेष्ठ है.
धांसू च फांसू
बहुत बढि़यॉं,
हम लिखेगें एक कविता :)
Bahut badhiya ustaad.. Yeh toh accha hai ki humne MBA nahi kiya.. Waise humse hota bhi nahi :)).. Aur agar ho bhi jaata toh Aman bhi yehi sochta.. Kaash yeh MBA na kiya hota.. ;)..
Aman..
BAHUT BADHIYA.
CHAI AUR SAMOSE KA PYAR,KI JAGAH,PIZZA YA PASTA YA BURGER YA VODKA,WINE KA PYAR ZYADA FIT BAITHTA HAI.
arey wah sanju..bahot khub likha hai, har state mein MBA ka alag alag vyang wala meaning nikalte hai..like in gujarat it says "Mane Badhu Avade" matalb "Muje Sab Ata hai"
bahut badhiyaa sir ji..... mai bhi MBA ka student hu....aur MBA ke dard ko samagh sakta hu....kab soya hai kab so kar utha hu pata hi nahi hota...phir bhi project last minute par hi hota hai....aur aaj ke MBAins to bas bolta hai...
MBA bole to MUGHE BECHNA AATA hai..har roj bechta hu khud ko... aur ab to khud ki hasti ko bhul raha hu....bas employer jo bol de wohi sach hai.....
bahut badhiyaa sir ji..... mai bhi MBA ka student hu....aur MBA ke dard ko samagh sakta hu....kab soya hai kab so kar utha hu pata hi nahi hota...phir bhi project last minute par hi hota hai....aur aaj ke MBAins to bas bolta hai...
MBA bole to MUGHE BECHNA AATA hai..har roj bechta hu khud ko... aur ab to khud ki hasti ko bhul raha hu....bas employer jo bol de wohi sach hai.....
sahi bola bhidu...apun dil se dukhi ho gaya hai MBA kar ke,, comppany waale sochtey hai ki MBA kar ke loogo ke paas zaadu ki chhadi aa jaati hai...aur apun loogo ki watt lagi padi rahti hai...
Post a Comment