हर साल अगस्त महीने के पहला रविवार आने के कुछ दिन पूर्व ही 'फ़्रेंडशिप डे' का हल्ला सुनाई देने लगता है। फ़्रेंडशिप बोले तो दोस्ती जबकि आजकल आलम यह है कि "दोस्ती" शब्द गायब होता जा रहा है और सात आठ साल का बच्चा भी दोस्ती बोले ना बोले फ़्रेंडशिप ज़रुर बोलता है।
इसी तरह आयातित फ़्रेंडशिप डे मनाने से पहले हम यह भूल जाते हैं कि हमारी परंपरा में भी ऐसा कुछ बहुत पहले से ही मौजूद है तो आइए हम आज 'फ़्रेंडशिप डे' के ही दिन आपका परिचय करवाते हैं छत्तीसगढ़ की एक परंपरा "मितान/मितानिन बदने" से।
जैसा कि हमने उपर कहा फ़्रेंडशिप अर्थात दोस्ती अर्थात मित्रता; वैसे ही दोस्त या मित्र के लिए छत्तीसगढ़ी में "मितान" शब्द प्रयोग होता रहा है। मितान पुल्लिंग है जबकि मितानिन स्त्रीलिंग मतलब यह कि अगर पुरुष किसी दूसरे पुरुष को मित्र बनाना चाहे तो वह मितान कहलाएगा जबकि स्त्री किसी दूसरी स्त्री को मित्र/सखी/सहेली बनाना चाहे तो वह मितानिन कहलाएगी। मितान या मितानिन बनाने की यह प्रक्रिया ' मितान/मितानिन बदना' कहलाती है। 'बदना' से यहां पर आशय "तय करने" से है। तो कोई भी एक दिन तय कर के उस दिन 'मितान बद' लिया जाता है।
कहते हैं कि दोस्ती ना तो उम्र की सीमा देखती है ना ही जाति का बंधन , दोस्ती तो बस दिल से होती है। ठीक ऐसे ही "मितान बदने" की इस परंपरा में भी है। बस एक बात यहां पर हटकर है कि कोई पुरुष किसी स्त्री को या कोई महिला किसी पुरुष से मितान नही बद सकता, इसके पीछे तब यहां के सामाजिक हालात रहे होंगे।
तो फ़िर आइए जानें इस मितान बदनें में 'मितान' की किस्मों को और 'बदने' की प्रक्रिया को; वैसे किस्म कहना सही नही होगा क्योंकि भावना सभी में दोस्ती की ही है बस नाम अलग-अलग है, और यह नाम 'मितान बदने' के समय एक-दूसरे को भेंट की जाने वाली वस्तु के आधार पर रखे गए हैं।
2-गंगाजली मितान
3-दौना-पान मितान
4-महाप्रसाद
5-तुलसी मितान
6-जंवारा
7- गोदना
आइए अब इन्हें थोड़ा विस्तार से समझें:-
1- भोजली मितान- छत्तीसगढ़ में सावन महीने की सप्तमी को धान बोकर उसे पूजा जाता है इसे ही भोजली कहते हैं। इसे रक्षाबंधन के दूसरे दिन विसर्जित कर दिया जाता है इसी भोजली को दो व्यक्ति/महिला गौरी गणेश व कलश की पूजा के बाद एक दूसरे के कान में लगाकर भोजली मितान बनते हैं। इसी तरह कभी-कभी महिलाएं एक दूसरे के कान में मोंगरा फूल लगाती हैं और फ़िर कभी एक दूसरे का नाम नही लेती बस फूल-मोंगरा का ही संबोधन देती हैं।
2-गंगाजली मितान- भारतीय परंपराओं में गंगाजल का क्या महत्व है यह तो हम सभी जानते ही है। 'मितान बदने' के दौरान दो लोग आपस में गंगाजल का आदान प्रदान करें या चखें तो वह गंगाजली मितान कहलाता है।
3-दौना-पान- इसमें एक दूसरे को पत्तों का दोना व फूल पान देकर 'मितान बदते' हैं।
4-महाप्रसाद- सबसे ज्यादा अगर किसी 'मितान बदने' के बारे में हमें बचपन से सुनने का मौका मिला है तो वह है महाप्रसाद। बचपन से ही यह शब्द हम सुनते आ रहे हैं। जो पाठक नही जानते उन्हें हम बता दें कि पुरी के मंदिर में जो प्रसाद मिलता है उसे ही महाप्रसाद कहते हैं। तो 'मितान' के इस किस्म में इसी महाप्रसाद को ही एक दूसरे को देकर/खिलाकर मितान मितानिन बनाया जाता है। वैसे ज़रुरी नही कि पुरी के ही प्रसाद का आदान-प्रदान हो कोई भी प्रसाद का आदान-प्रदान हो सकता है पर यह नाम महाप्रसाद ही रहता है।
5-तुलसी मितान- इसमें नियत दिन पूजा पाठ कर तुलसी के पौधे के पत्तियों या तुलसी दल को एक दूसरे को देकर मितान बना जाता है
6-जंवारा मितान- साल में दो बार आने वाली नवरात्रि के मौके पर मंदिरों में या कई घरों मे भी नौ दिन के लिए धान बो कर उसकी पूजा करने की परंपरा है जिसे जंवारा कहते हैं। नवें/दसवें दिन जंवारा को विसर्जित कर दिया जाता है। तो नवरात्रि के दौरान एक दूसरे को यह जंवारा देकर या एक दूसरे के कानों मे लगाकर 'मितान बदा' जाता है।
7-गोदना- यह तो सभी जानते हैं कि टैटू की तरह हमारे यहां गोदना गुदवाने की परंपरा रही है पर इस गोदना गुदवाने का भी इस मितान बदने में प्रयोग है। होता यह है कि एक दूसरे का नाम अपनी अपनी कलाई में गुदवा कर मितान बद लिया जाता है जिसे गोदना मितान कहते हैं।
कुछ खास बातें:-
मितान बदने के बाद दोनो व्यक्ति को एक दूसरे के घर में एक दूसरे के जैसा ही सम्मान मिलता है और वैसे ही रिश्ते निभाए जाते हैं। मतलब यह कि एक मितान दूसरे के घर में घर का सदस्य ही समझा जाता है और उस से वही व्यवहार होता जो कि मितान का अपने घर मे होता है, चाहे मौका शादी का हो या फ़िर किसी के जन्म-मरण का या फ़िर चाहे रोजाना के व्यवहार की ही बात क्यों न हो।
एक और खास बात यह कि दो मितान/मितानिन मितान बदने के बाद कभी एक दूसरे का नाम नही लेते एक दूसरे को या तो मितान।मितानिन कहेंगे या फ़िर जिस परंपरा या नाम के तहत मितान बने हैं उस नाम से ही एक दूसरे को संबोधित करेंगे जैसे कि " वो हा मोर महापरसाद हरै" अर्थात "वह मेरा महाप्रसाद है"। या फ़िर "मेहां मोर महापरसाद इहां गे रहेंव" मतलब कि "मैं अपने महाप्रसाद के यहां गया था"।
बताया यह भी जाता है कि एक बार मितान बदने के बाद वह रिश्ता तीन पीढ़ियों तक निभाया और व्यवहार किया जाता है। जबकि मितानी टूटने या खत्म होने की बात तो कहीं सुनाई नही देती क्योंकि इसे महापाप की श्रेणी में माना जाता है।
कई बार बचपन में ही आपस में खूब लड़ने झगड़ने वालों बच्चों को आपस मे एक दूसरे से मितान बदवा दिया जाता है नतीजा यह आता है कि फ़िर ताउम्र लड़ाई झगड़े की गुंजाईश नही रहती क्योंकि मितान को देवता स्वरुप माना जाता है।
संभव है आपके प्रांत में भी दोस्ती की भावना पर आधारित ऐसी ही कोई परंपरा हो।
तो मित्रों, बात हमने शुरु की थी 'फ्रेंडशिप डे' से और पहुंच गए 'मितान' और 'मितान बदने' पर; शायद इसे ही कहते हैं उल्टी चाल क्योंकि अन्य परंपराओं की तरह 'मितान बदने' की परंपरा भी धीरे धीरे कम होती जा रही है, हम 'एजुकेटेड' होते जा रहे हैं और 'फ्रेंडशिप डे' के मौके पर 'मितान बदने' को याद कर रहे हैं।
30 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया जानकारी. ५ वीं कक्षा में हम भिलाई ३ के स्कूल में पढ़ते थे, बहुत मितान/मितानिन बदा करते थे. :)
बहुत पुरानी याददाश्त में लौटा ले गये, दोस्त.
यह सुन्दर जानकारी सबेरे सबेरे पा कर बहुत अच्छा लगा मितान त्रिपाठी. अब कमसे कम आज तो आपका नाम मितान रहेगा!
ऐसी जानकारी से ही ब्लॉग पठन सार्थक होता है.
मितान/मितानिन की जानकारी बांटने का शुक्रिया।
"अगर पुरुष किसी दूसरे पुरुष को मित्र बनाना चाहे तो वह मितान कहलाएगा जबकि स्त्री किसी दूसरी स्त्री को मित्र/सखी/सहेली बनाना चाहे तो वह मितानिन कहलाएगी।"
अगर पुरुष किसी स्त्री को मित्र बनाना चाहे तो उसे क्या कहेंगे? :)
लेख जानकारीपूर्ण है। हमारे समाज में कई ऎसी परंपराएँ पहले से हैं लेकिन उन्हें कोई जानता-मनाता नहीं जबकि अंग्रेजी डे-वे बच्चों तक को याद हैं।
बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने संजीत ज़ी .
बहुत ही रोचक तरीक़े से आपने इस को लिखा है
पढ़ना बहुत अच्छा लगा !!
बहुत सुंदर तरीके से लिखा है.... मेरे मितान.
is jankari ke liye shukriya sanjeet ji.....per jaisa ki aapne ullekh kiya hai ki mitan ya mitanin purush purush ya stri stri se hi bad sakte the........sitri aur purush me aapas me ye parampara nahin hai .............per main kuchh alag kerne ki chah me aaj se aapko mitan kah ker hi sambodhit karungi....aasha hai aap ya kisi aur pathak gan ki bhavnao ko thes nahin pahuchegi......
क्या खूब लिखा है आपने. यह हुई उम्दा ब्लागरी. संगी,साथी,दोस्त,मित्र,यार,सखा,मितान,मितवा न जाने कितने नामों को फ्रेडशिप डे में नहीं समेटा जा सकता.
ओ ओ... यह परम्परा तो मेरे इलाके मे भी है.. इसमे सखि और सखा बनाते हैं.. विस्तृत जानकारी तो नही है पर क्लास 7 मे दो सहेलिया एक दुसरे कि सखि बनी थी.. और वो भी एक दुसरे का नाम नही लेती थी.. मेरी माँ भी बताती हैं, अपनी सखियो के बारे मे... वैसे सुनके अच्छा लगता है...:)
मित्रता दिवस की शुभकामना के साथ :)
trivialसुन्दर लेख है । आपने अपने क्षेत्र की एक सुन्दर परंपरा के विषय में बताया , धन्यवाद । कोई फ्रेन्शिप डे इसकी बराबरी नहीं कर सकता ।
घुघूती बासूती
nayi jaankari key liye shukriya...sanjeet....accha laga padhkar..khaaskar...mitaan...shabd bahut bhaya muun ko..munn hi muun dohraa rahi huun bar bar
मितान बदने के लिये शुक्रिया... बचपन में अंबिकापुर में रहते थे, तब की भूली-बिसरी यादें ताजा कर दीं आपने... बहुत खूब ब्लॉग..
Nice info friend... I think every reagion has simliar customs.. for sure, in my pkace Orissa..simliar customs been commonly observed these days too..
Nice information friend... I think these type of customs are there in every part of india.. bit specific being affected by the local flavour.. For sure, in my place, Orissa, this custom is very much active these days too.... like Sangaata(Friend), Makara(Friendship on the day of MAKARA SANKRANTI), Baula(Aam ke Bohr) etc
बढिया लिखे मितान । मोर छत्तीसगढ ला आपके लिखे ले सम्मान मिलिस ।
अउ मितानिन मन के संदेशा धलोक पढे ल मिलिस ।
उम्दा जानकारी दी संजीत भाई, यही सार्थक सोंच है इस फ्रैंडशिप डे का, अभी हम भिलाई के सोवियत भारत मैत्री के प्रतीक गार्डन से अपने परिवार के साथ घूम के आ रहे हैं वहां हमने कई मितान मितानिनों को अंग्रेजी स्टाईल में इस दिन को मनाते देखा तब आपका यह पोस्ट और गांव में मितान बनने बनाने के अवसर पर बजते गुडदुम बाजे की गूंज हमारे ह्दय में छाई रही ।
पुनश्य :
बढिया बताये मितान ।
“आरंभ” संजीव का हिन्दी चिट्ठा
एकदम नई रही मेरे लिए ये जानकारी । बहुत सही ।
बहुत अच्छी जानकारी। ऐसी ही जानकारी राज्य की वेबसाइट पर होनी चाहिये ताकि असली छ्त्तीसगढ को दुनिया जान सके। ऐसे ही लिखते रहे।
बहुत अच्छे...संजीत, मित्रता के इन रिवाजों के बारे में जानकर सुखद अनुभूति हुई।
संजीत जी,
आप कि टिपण्णी के लिये शुक्रिया। आप से उसी दिन दोस्ती हो गई थी जिस दिन ब्लोग पर आप कि पहले टिपण्णी आयी थी। आप के पोस्ट पर रोजाना जाना होता है। छत्तीसगढ़ के बहुत से मित्र ब्लोग के माध्यम से बने है। इनमे सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के ही है। दोस्ती पर छत्तीसगढ़ कि परम्परा जानकार बहुत अच्छा लगा।
शुक्रिया,
कामरान परवेज़
संजीत जी,
आप कि टिपण्णी के लिये शुक्रिया। आप से उसी दिन दोस्ती हो गई थी जिस दिन ब्लोग पर आप कि पहले टिपण्णी आयी थी। आप के पोस्ट पर रोजाना जाना होता है। छत्तीसगढ़ के बहुत से मित्र ब्लोग के माध्यम से बने है। इनमे सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के ही है। दोस्ती पर छत्तीसगढ़ कि परम्परा जानकार बहुत अच्छा लगा।
शुक्रिया,
कामरान परवेज़
संजीत जी,
आप कि टिपण्णी के लिये शुक्रिया। आप से उसी दिन दोस्ती हो गई थी जिस दिन ब्लोग पर आप कि पहले टिपण्णी आयी थी। आप के पोस्ट पर रोजाना जाना होता है। छत्तीसगढ़ के बहुत से मित्र ब्लोग के माध्यम से बने है। इनमे सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के ही है। दोस्ती पर छत्तीसगढ़ कि परम्परा जानकार बहुत अच्छा लगा।
शुक्रिया,
कामरान परवेज़
Nice article on frndship. aaisi toh kitni jankari gayab hoti rehti hogi hamare yahan..
बहुत खूब ,कल कितनी मितानिन बनायी ?
kya baat hai aapne to bhaut kuch bata diya maine ye sab kam hi suna tha ki mitan jaisa bhi koi word hota hai magar aapke dawara ye jaanna bhaut achha laga
aapko bhi mitrta diwas ki badhayi
संजीत भाई हम सब भी तो ब्लाँग चौपाल पर मिलने वाले मितान/मितातिन हुए न. हमारे जनपदीय संस्कारों में जीवन से जुड़े सारे मरहले,मौसम और मस्तियाँ थीं ..न जाने क्यों हम उन्हे विदेशों से आयात करने पर तुले हुए हैं..अब देखिये न वैलेंटाइन डे के लिये भी तो हमारे यहाँ मदन उत्सव या बसंत है.भाई हमें लगता है कि हम पित्ज़ा/बर्गरों से पेट बिगाड़ कर ही दलिया/दाल की तरफ़ आएंगे. अपने अंचल की बातों को ब्लाँग पर लाने से निश्चित ही हमारी तहज़ीब को व्यापकता मिलेगी.नये रस्मों-रिवाजों के ख़िलाफ़ नहीं मै लेकिन उनकी अपेक्षा हमारे लोक-संस्कारों में मानवीय पहलुओं की बेशी होती है सो कहीं भीतर छूती हैं ये बातें.साधुवाद ये ब्लाँग पढ़वाने के लिये.
छत्तीसगढ़ में दोस्ती - वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण होती है. कई बार खून के रिश्तों से भी ज्यादा पुख्ता और पवित्र!
sanjeet ji,namaskar..mere blog mein sabse pehle aapke comments padhne ko mile...thanks a lot .aap isi tarh mera hausla badhate rahiyega...friendship day ke avsar per aapne sach hi bahut achche jaankaari di..pedh ker achcha laga ...aap isi tarh samay samay per aur bhi nayi nayi jaankaari dete rahein...............thanks
बहुत नई जानकारी लेकिंन रोचक. सुन्दर सहज रूप मेँ बहुत कुछ बता दिया. बहुत अच्छा लगा. अब वहाँ के पर्यटन के बारे में लिखिए कि कैसे छत्तीस गढ़ की सुन्दरता को नज़दीक से देखा जाए.
बहूत सही...सुंदर नवीन और रोचक जानकारी.
अद्भुत पोस्ट..सुन्दर जानकारी.
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