जबलपुर से हमारे मित्र है अमन विलियम्स, वैसे तो पुणे से एल एल एम कर रहे हैं पर फ़ितरत से हमारी तरह ही आवारगी इन्हें भाती है अब ये अलग बात है कि हमारी आवारगी शहरों मे होती तो इनकी आवारगी जंगलो मे ज्यादा होती है। वन्यजीवन संरक्षण और वन्यजीवन फोटोग्राफ़ी मे रुचि रखने वाले अमन वकालत के साथ ही अप्नी इन रुचियों को विस्तार देते हुए वन्यजीवों के संरक्षण पर भी कार्य करना चाहते है और अभी भी कर ही रहे हैं। शौकीन मिज़ाज़ के अमन अपना एक ब्लॉग तो Tiger पर केंद्रित किए हुए हैं जो कि अंग्रेजी मे है और एक दूसरे ब्लॉग पर यह अंग्रेजी और हिंदी दोनो मे ही लिखते हैं। तो अपने शौकीन मिज़ाज़ के चलते इन्होनें उस शौक पर एक छोटा सा शोध जैसा कुछ कर डाला और जो सामने आया वह आपके सामने है।
थोड़ी-थोड़ी पिया करो
बॉलीवुड मे शुरुआती दिनों से ही काफ़ी प्रेरणात्मक फ़िल्मे बनती रही है, जैसे कि आज़ाद, मदर इंडिया, गाइड, देखते बनता है। हर फ़िल्म एक सन्देश देती है, हमें कुछ सीखने के लिए प्रेरित करतीं हैं, लेकिन रोटी, कपड़ा और मकान, बार्डर, भगत सिंह और रंग दे बसंती। फ़िल्मो का असर भारतीय दर्शकों पर देखते बनता है। हर फ़िल्म एक सन्देश देती है, हमें कुछ सीखने के लिए प्रेरित करतीं हैं, लेकिन अगर हम दर्शकों के दूसरे वर्ग की बात करें तो कुछ फ़िल्मे इन्हे खुद से मिलने का एक मौका देती है ऐसे लोगो को शराबी या देवदॉस कहकर बुलाया जाता है, जिसका मतलब हर इन्सान अपने हिसाब से समझता है।
हर किसी के पीने का एक ना एक कारण होता है। जी हाँ, कारण तो होता ही है। कोई सिर्फ़ इसलिये नही पीता कि पीना उसका शौक है या आदत। यहीं से एक मशहूर कहावत का जन्म होता हैं। पीने वालो को पीने का बहाना चाहिए ।
शराबी फ़िल्म का एक डायलॉग याद आता है, जिसमे अमिताभ बच्चन कहते है, “जिसने नही पी व्हिस्की किस्मत फूटी उसकी” और शाहरुख खान की देवदॉस फ़िल्म के डायलॉग “कौन कमबख्त बर्दाश्त करने को पीता है” और “पारो ने कहा शराब छोड दो”। ये सारी लाईने इस पीने-पिलाने के कारोबार मे लगे लोगो द्वारा उपयोग की जाती हैं।पीने-पिलाने से सम्बन्धित लोग गज़ल सुनने के खासतौर पर शौकीन होते है। इनकी महफ़िलो मे ज़्यादातर जगजीत सिंह और पंकज उदास की गजल सुनने को मिलती है। जिन्हें बडे से बडा नुकसान हिला नही सकता उन्हे यह गज़ले हिला कर रख देती है। इन गज़लो मे शब्द ही कुछ ऐसे होते है, “ठुकराओ न मुझे प्यार करो, मै नशे में हूँ” और “मेरे हाथ मे शराब है सच बोलता हूँ मै”। कुछ लाईन तो और पीने को प्रेरित करती है, जैसे कि “ गिनकर पियूं मै जाम तो होता नही नशा मेरा अलग हिसाब है सच बोलता हूँ मैं ” और “यारो ने मै पिला दी बहुत तेरे नाम से”। दुनिया से बेखबर आप इन्हे आंसुओ से भरा देख सकते है। सच कहते है, “ये शराब चीज़ ही ऐसी है”।
हम मे से बहुत से लोग शराब पीते है, लेकिन क्या कभी किसी ने यह जानने की कोशिश की है कि –
- शराब की बोतल पर हम एक्सपाइरी डेट क्यूँ नही खोजते, क्योंकि शायद हम मानते है की शराब जितनी पुरानी उतनी अच्छी।
- क्या यह जानने की कोशिश की कभी, कि इसको बनाया किसने ? हम तो सिर्फ़ ब्रान्ड पहचानता है।
- बोतल पर लिखी चेतावनी ने क्या कभी किसी भी एक व्यक्ति को पीने से रोका है ?
हमने तो पीने वाले लोगो को कुत्ता तक बनते देखा है। पीने से पहले यह को अच्छी तरह से सूँघ कर ये निश्चित कर लेते है कि शराब ठीक है या नही। हमने भी अपने कुछ अनुभवों से कुछ ऐसी चीज़े सीखी भी है और कुछ नोटिस भी की है। पीने के बाद इन्सान नही बोलता, शराब बोलती है। इसलिये लोग बदल सकते है, परिस्थितियां बदल सकती हैं लेकिन ज़्यादातर कही जाने वाली लाइने वही रहती है।
- तू तो मेरा भाई है
- तू बुरा मत मानना भाई
- मै तेरी दिल से इज़्ज़त करता हूँ
- गाडी मै चलाऊँगा
- आज साली चढ नही रही है यार
- तू क्या समझ रहा है मुझे चढ गयी है
- ये मत समझना पिये मे बोल रहा हूँ
- अबे यार कही कम तो नही पडेगी इतनी
- छोटे, एक एक और हो जाये
- बाप को मत सिखा
- यार मगर तू ने मेरा दिल तोड दिया
- कुछ भी है पर साला भाई है अपना
- तू बोलना भाई क्या चाहिये जान माँगेगा जान हाज़िर
- अरे पगले तू बोल तो सही यार
इसके अलावा मूड बनाने के दौरान अपने साथी के मुंह से "यार आज उसकी बहुत याद आ रही है" सुनने के बाद अगर आप वहाँ से फ़ुररररररररर ना हुए तो उसमे आप खुद ज़िम्मेदार होंगें। क्योंकि उसके बाद आपको वही घिसी पिटी कहानी फिर से सुननी पडेगी जो आप पहले भी छत्तीस बार सुन चुके होंगें। और आखिर मे आप जवाब मे सिर्फ़ यही कह सकेंगे “तू सही है भाई, लेकिन अब क्या कर सकते है"।
मेरे आर्कुट प्रोफ़ाईल का डिसप्ले इमेज “I get totally drunk, whats your hobby” और स्क्रीन नेम “Frunk as Duck” ( taken from my T-shirt) रखने पर मुझे बहुत लोगो के स्क्रैप आये, अलग अलग तरह के। लेकिन यह भी मुझे रोक न सके, क्योंकि गज़ल का मै शौकीन हूं, मैं भी ऊपर लिखी गयी लाईनें कभी-कभी बोलता हूं क्योंकि मैं भी इस छोटे से वर्ग में ही शामिल हूं।
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14 टिप्पणी:
इस संदर्भ में गज़लें सुनना वाकई लुभाता है पर किसी को उस स्थिति में झेलना वाकई बेढब काम है। खैर ये तो हकीकत है कि पीने का शौकीन एक सौ एक कारण गिना देगा और पीने को भी वाज़िब बना लेगा। कई बार नशे की ऒट भी ली जाती है बाद में कहा जाता है -कहा-सुना माफ। कुछ याद नहीं है भाई थोडी ज्यादा हो गयी थी। भईये ,पर अभी भी मौका है -आदत बदल डालिये।
वाकई रोचक सग्रह है। बहुत खूब लिखा है, क्योंकि यदि "नशा शराब में होता तो नाचती बोतल ………………।
उछल कर वो नहीं चलते जो हैं माहिर किसी फन में
सुराही सरनगूं होकर भरा करती है पैमाने ।
किसी शायर के बोल याद आ गए संजीत जी, टायगर भाई को भी धन्यवाद ।
हम भी यदि सियार लिखना चाहें तो ऐसे लिखते -
सुनहरी यादों को दिल में ही बसा कर अच्छा लगता है, अब पीने के लिए जिन्दगी कम है ।
मुझे दुनिया वालों शराबी न समझो,
मैं पीता नहीं हूँ पिलाई गयी है,
जहाँ बेखुदी में कदम लड़खड़ाये
वही राह मुझ्को दिखाई गई है…॥
ये चीज तो कुछ लोगों पर चढ़ कर बोलती है पर हमारे ऊपर या बगल से निकल जाती है।
और अब क्या खाक सीखेंगे यह विधा!
रोचक है. ट्राई करता हूँ थोड़ी थोड़ी-मगर थोड़ी में मजा कहाँ आ पाता है. :)
सचमुच कितनी बार सुनी होंगी ये लाइनें पियक्कड़ दोस्तों से।
वैसे जंगल में आवारगी करने वाले आपके दोस्त को ये आवारा भी दिलचस्प लगेगा।
सही सोहबतें है प्यारे। सही जा रे हो।
वाह बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट और अच्छा लगा इसको पढ़ के नशे में झूमना :)
मेरे तो किसी काम की नहीं है.....यह चीज.....पर आपका कथन सार्थक है...
जानकारी तो आपने रोचक दी है लेकिन ....
"लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला !"
मदिरा के दौरान / पश्चात सुनने वाले वाक्यों का अधिक अनुभव तो नहीँ है परंतु आपका यह संकलन है बहुत ही अच्छा, वैसे ही जैसे अक्सर ट्रक के पीछे पाये जाने वाले उद्धरणों का संकलन! साथ ही राय भी बहुत माकूल है जैसे "... याद आ रही है ... " वाले वाक्य में।
अमन के बारे में लिखने के लिये आभार. वे काफी महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं.
आजकल मै़ अपने दफ्तर से बाहर हूँ अत: जाल की सुविधा न के बराबर है. अत: टिप्पणिया़ कम हो पा रही हैं. लेख पहले से लिख लिये थे अत: सारथी पर नियमित छप रहे है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
अच्छा है...मगर यह चीज अच्छी नही चाहे थौडी हो...जहर तो थौड़ा-थौड़ा भी असर करता ही है...वैसे संग्रह अच्छा बन गया है...
सुनीता(शानू)
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