मुद्दतों बाद मिला आज मै अपने आप से,
कहूं क्या समझ नही पाया मै अपने आप से!!
सो गया दिमाग, धड़कने लगा दिल पहलू की बजाय कान में,
कांपती रही उंगलियां, लरज़ते रहे होंठ, मिला जब मै अपने आप से!!
थमा नही समय, पल भर की थी मुलाकात,
चंद लम्हों के लिए हुआ था मै आइने के रुबरु!!
सोचा था मिलूंगा रुह से अपनी, करूंगा शिकवा शिकायतें,
सामने जब वो आई, याद ही नही आई दूसरी बातें!!
हाल-चाल भी ठीक से न पूछा, बातें चंद हुई जरुर,
ठीक से देखा भी नही अपने आपको पर उस से मिला जरुर,!!
माना कि आखों की चुभन हुई है कम,
पर दिल की खलिश का क्या करूं, कम्बख्त अब भी बाकी है!!
09 October 2007
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18 टिप्पणी:
ऐसा ही होता है भाई जब ठीक से मुलाकात हो जाए तो.....और मुद्दतों इसका असर रहता है।
संजीत जी यकीन मानिये ।ये वाकयी मे अच्छी कविता ह……सुंदर
बहुत ही संवेदनशील और गूढ़ रचना है, सजीत जी, बधाई।
माना कि आखों की चुभन हुई है कम,
पर दिल की खलिश का क्या करूं, कम्बख्त अब भी बाकी है!
क्या बात है
तबीयत तो ठीक है बेटे।
अच्छा प्रयास हैं लिखते रहें..
अपने आप से मिलने पर कुछ ऐसा ही अनुभव होता है. आत्मा या रूह से मिलने का अर्थ हुआ आत्म निरीक्षण , अपने आप को पहचानने की कोशिश. दिल हल्का हो जाता है पर खलिश फिर भी रहती है. शिकवा रहता है कि क्यों रूह समय आने पर सही राह नही दिखाती ! ( हर पाठ्क गद्य या पद्य को अपनी दृष्टि से देखता समझता है)
कवि संजीत वाह-वाह, क्या बात है। मुझे नही मालूम था कि आप कवि भी है।
माना कि आखों की चुभन हुई है कम,
पर दिल की खलिश का क्या करूं, कम्बख्त अब भी बाकी है!
--ये क्या हुआ, बालक. कुछ तो हमें भी लिखने दो. ऐसा बेहतरीन काव्य रचोगे तो हमें कौन पढ़ेगा भाई.
-बेहतरीन!!! बधाई!!!
''पुराना याराना लगता है.... गब्बर के ताप से तुम्हें अब एकीच्च आदमी बचा सकता है.. जल्दी से शादी कर लो उसी से जिससे मुलाक़ात के बाद ये नया पंगा हुआ है''
''कविता बढ़िया है. मगर अपने यार की शादी मे आएँगे छत्तीसगढ़ जल्द ही''
नीरज दीवान "की बोर्ड के सिपाही"
बधाई संजीत जी, बहुत बहुत बधाई । (यदि मीनाक्षी जी को माने तो आपके आत्म साक्षातकार के लिए और कविता में लगे फोटो को माने तो आत्मा के साक्षातकार के लिए । यह किसी के लिए संदेश भी हो सकता है, हा हा हा )
वाकई स्तरीय रचना, अंत तो जानदार है ।
संजीत अच्छी रही आपकी मुलाकात काव्य में थोड़े प्रवाह की कमी लगी पर भाव बहुत अच्छे हैं
ख़ुद से ख़ुद हुए रूबरू :) वाह बहुत ही सुंदर कविता है
ठीक से देखा भी नही अपने आपको पर उस से मिला जरुर,!!
"'माना कि आखों की चुभन हुई है कम,
पर दिल की खलिश का क्या करूं, कम्बख्त अब भी बाकी""
लगता है आप भी चिंतन मनन मैं डूब गए हैं आज कल :)
वैसे नीरज दीवान जी की बात पर गौर जरुर फरमायें :)
हा हा हा हा हा आज पकडे गये ना। दिल के पुराने रोगी हो इतना तो पता था। पर इस हद तक...... भावों की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है।तुमने तो हमें भी अपने बीते दिन याद दिला दियें। अब बेझिझक उन्हें भी पढा दीजिये।
अरे मित्र न जाने कितने दशकों पीछे ले गये यादों मे मुझे!
hi sanjeet
its too Good ....
mujhe nahi pata tha ki aap itni achhi kavita ligte hai....
aapki kavita me jo feeling hai use padh ke laga ki mujhpe hi likhi gayi hai.......
all the best
hi Sanjeet .....
its too Good ....mujhe nahi pata tha ki aap itni achhi kavitaye bhi likhte hai....
kavita padh ke laga ki kitni feeling ke sath likhi gayi hai...
All the Best
वस्ल में रंग उड गया मेरा वाला हान हुआ लगता है ।
अच्छी कविता और एकदम अलग सोच ।
"kitne haseen mulakat thee, jo apne mehbub ke sath thee, ek tref vo thye, ek taraf ye dharkne nadan thee"
Regards
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