एक आम भारतीय, जिसकी योग्यता भी सिर्फ़ यही है कि वह एक आम भारतीय है जिसे यह नहीं मालूम कि आम से ख़ास बनने के लिए क्या किया जाए फ़िर भी वह आम से ख़ास बनने की कोशिश करता ही रहता है…।
सागर का जलतूफ़ान से पहले ही शांत रहता है कहीं मन मे छाई इस शांति के बाद तूफ़ां तो नही उठेगा भावनाओं की लहरों परडूबता उतरता मन सोचों के जंगल मे भटकता मन स्थिर नही होता मन लोगों की बातों को सोचता मन बहुत कुछ पाकर भीअसंतुष्ट रहता मन
ह्म्म्म्म्म:) गड़बड़ है संजीत जी ...:) चलो कुछ तो सीरियस हुए आप अपने लिए एक के बाद एक धमाकेदार कविता :) बहुत सुंदर लिखा है आपने सच में मन क्या चाहता है यह समझ आ जाता तो जीना आसान हो जाता :) पर यह तो उड़ता फिरता है :) बधाई सुंदर रचना के लिए
भटकाव और उलझन में अपने ढंग की सर्जना होती है, जिसकी परिणति आपकी कविता है..लेकिन ख्याल रहे कविता की सृजनात्मकता के साथ-साथ जीवन भी सुंदर बनता रहे, यानि हमेशा खुश रहने की जी-तोड़ कोशिश
कहीं ये वाकई तूफान से पहले की शान्ति तो नहीं- बहुत कुछ पाकर भी असंतुष्ट रहता मन आखिर चाहता क्या है मन संजीत जी दिल में झांक कर पूछो- क्या उत्तर मिला ,अरे नहीं समझे क्या ? बाबा एक अदद बीबी। मन का भटकाव खत्म हो जायेगा जनाब।
अहा, स्वागत है आपकी कविताओं का, पर मैं बधाई नहीं दूंगा आपके खजाने में और भी अच्छी, अच्छी कवितायें हैं । कुकरी के प्रति के अंश याद आ रहे हैं - किया न तूने बतलाने का अब तक कभी प्रयास किस सीमा के पार रूचिर है तेरा चिर आवास सुना, स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश ... मन मे तेरे मंडराते हैं, रह रह कौन विचार
mun to chanchal hotta hai bhatkta rehta hai kabee aakash mey kabhee sagar mey kabhee dil kee attha gehraee mey "mun ke chahat assemet hotee hai jo kabhee pure nahee hotee chah kr bhee nahee"
18 टिप्पणी:
मन आखिर चाहता क्या है
मन स्वयं ही नही जानता !
उसकी अनगिनत चाहें
हर दिशा से आती राहें.
रुकने को,ठहरने को कहो पर
मन किसी की नही मानता !
सच्ची में सीरियस हो रहे हैं। खुशी की बात है।
ह्म्म्म्म्म:) गड़बड़ है संजीत जी ...:) चलो कुछ तो सीरियस हुए आप अपने लिए
एक के बाद एक धमाकेदार कविता :) बहुत सुंदर लिखा है आपने
सच में मन क्या चाहता है यह समझ आ जाता तो जीना आसान हो जाता :)
पर यह तो उड़ता फिरता है :) बधाई सुंदर रचना के लिए
भटकाव और उलझन में अपने ढंग की सर्जना होती है, जिसकी परिणति आपकी कविता है..लेकिन ख्याल रहे कविता की सृजनात्मकता के साथ-साथ जीवन भी सुंदर बनता रहे, यानि हमेशा खुश रहने की जी-तोड़ कोशिश
कहीं ये वाकई तूफान से पहले की शान्ति तो नहीं-
बहुत कुछ पाकर भी
असंतुष्ट रहता मन
आखिर चाहता क्या है मन
संजीत जी दिल में झांक कर पूछो-
क्या उत्तर मिला ,अरे नहीं समझे क्या ?
बाबा एक अदद बीबी।
मन का भटकाव खत्म हो जायेगा जनाब।
सीमाएँ जिसकी अनंत हो उसकी क्रिया भी
अनूठी ही होगी…
अच्छे भाव…।
यही तो दुविधा है न जी कि इस मन को कोई समझ ही नही पाता चाहे कोई कित्ता भी विद्वान हो ले। अकारण हसता है ये मन और कभी रोता है ये मन
सच में-बहुत घबड़ाहट हो रही है. किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ कोई इन्हें. ये क्या हो गया-कौन सा रोग पाल बैठे. संगत तो तुम्हारी हम जैसी अच्छी थी-फिर कैसे???
बेहतरीन झील की गहराई में उतर रहे हो, बधाई एवं शाबास!!!
आप सीरियस अच्छे नहीं लगते जी.
अरे कोई तो पता करे। यह ब्लाग हैक तो नही हो गया है। कही हमारे संजीत को तो किसी ने हैक नही कर लिया--?--?--?
पर लिख बढिया रहे हो।
बहुत सुन्दर ! बहुत समय बाद आपकी कविता पढ़ी ।
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया, संजीत.
मन की भावनाएं.....लेकिन इतना सोचने के बाद भी मन क्या चाहता है, कुछ पता नहीं..
अहा, स्वागत है आपकी कविताओं का, पर मैं बधाई नहीं दूंगा आपके खजाने में और भी अच्छी, अच्छी कवितायें हैं । कुकरी के प्रति के अंश याद आ रहे हैं -
किया न तूने बतलाने का अब तक कभी प्रयास
किस सीमा के पार रूचिर है तेरा चिर आवास
सुना, स्वर्णमय भूमि वहां की मणिमय है आकाश
... मन मे तेरे मंडराते हैं, रह रह कौन विचार
मन क्या चहता है यह कौन जान पाया है मन के नैन हजार.....अच्छा कहन है....भाई
बढ़िया है ...कविताओं ने आपका दामन थाम लिया है ...अच्छा लगा
मन से अच्छा द्वंद चल रहा है
मन मगर कब ठहरा है
मन की सुनेगा भी कौन?
मगर आज आपका चिन्तन सचमुच गहरा है
एक श्रेष्ठ रचना के लिये बधाई
सुनीता(शानू)
मन की चाहों का कोई और छोर नही
खींचना चाहो भी तो बंधी कोई डोर नही
ये उन्मुक्त करे विचरण
इसके कहीं रुकते नही चरण
सुंदर रचना, एक ही व्यक्ती के कितने पहलू होते हैं।
mun to chanchal hotta hai bhatkta rehta hai kabee aakash mey kabhee sagar mey
kabhee dil kee attha gehraee mey
"mun ke chahat assemet hotee hai jo kabhee pure nahee hotee chah kr bhee nahee"
beautiful, liked reading it ya.
Regards
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