27 तारीख के स्थानीय हिंदी दैनिक "नवभारत" के संपादकीय पर एक नज़र डालें।
( तस्वीर पर क्लिक कर आप उसे और बड़ा कर देख सकते हैं इस से पढ़ने मे आसानी होगी)
क्या इस तरह किसी "वाद" को जनमानस में बढ़ावा मिल सकता है? अंधाधुंध खून-ख्रराबा और फ़िर अब ऐसा काम, क्या हो गया है इन "दादा" लोगों को!!!
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10 टिप्पणी:
ये 'नव-नक्सलपंथ' है या 'धार्मिक नक्सलपंथ'?....वाह भैया, जिसकी बुराई पर पूरा सिद्धांत टिका है, उसी का सहारा.वो भी जबरदस्ती....बोलो नक्सलवाद की......
क्यों खामोश रहे मेरी सोच
क्यों न मिले उसे कोई बोल !!!
समय समय आप जन हित से जुड़े विषयों पर प्रकाश डालते रहते हैं. अच्छा लगता है पढ़ कर !
विचारणी समाचार लाये हैं. मुझे तो यह चिंता का विषय लगता है.
उलझन में डालनेवाली खबर....
समय समय पर आप जो समाज में लगे इस दीमक की तरफ़ हमारा ध्यान खीचते हैं, प्रशसन्नीय है। इससे ये जाहिर होता है कि आप व्यक्तिगत स्तर पर इस समाजिक कैंसर से लड़ रहे हैं। भगवान करे आप इसे खत्म करने में महत्तवपूर्ण योगदान दे सकें।
सरकार के लिए यह एक बहुत ही गंभीर व विचारणीय घटना है, इसे साधारण घटना मान लेना भारी पड सकता है ।
चिन्ता की बात है और कोई रास्ता इससे निबटने का नजर नहीं आता है ।
घुघूती बासूती
हम तो तंग हो गये। आज फिर नक्सली बन्द है झारखण्ड में और ट्रेने छितरायी हुई हैं।
नक्सलवाद धर्म में घुस रहा है, बेहद खतरनाक है।
स्थिति चिन्ताजनक है । लगता तो नहीं परन्तु कामना करती हूँ कि शान्ति स्थापित हो ।
घुघूती बासूती
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