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10 May 2010

बापीयॉटिक तो नहीं पर बापी के बहाने-1

सतीश पंचम जी के बापी और फिर ज्ञानदत्त जी के बापीयॉटिक पोस्ट की दरकार , दोनो को ही पढ़ने के दौरान मुझे अपना बापी याद आया।

नाम तुषार लेकिन घर में पुकारने का नाम बापी। उम्र में मुझसे करीब दो साल बड़ा।
बापी के संपर्क में मैं जब आया तो मै नवीं या दसवीं कक्षा में था। मोहल्ला हम दोनों का एक ही था। रायपुर का ब्राह्मणपारा। बस खड़े होने के चौक अलग थे। तब बापी के दोस्तों का मजमा लगता था जीई रोड पर ठीक उसके घर से लगे आजाद चौक पर। मेरा ठिया होता था मोहल्ले के अंदर का चौक, जब बापी के संपर्क में आया तो फिर मैं भी उनके आजाद चौक पर की ही महफिल में शामिल हो गया। इस महफिल में कोई तीन साल बढ़ा था तो कोई तीन साल छोटा, कक्षाएं भी अलग-अलग तो कुछ की एक ही। जल्द ही हम लोगों में बढ़िया जमने लगी। बापी का घर मेरे लिए ऐसा ही था जैसे घर से बाहर भी एक घर हो।

बापी स्वभाव से अलमस्त, बेपरवाह लेकिन अंदर से इमोशनल हालांकि अपने मनोभावों को दबाने में हमेशा सफल कि कोई न समझे कि वह इमोशनल है। बापी को समझ पाना वाकई मुश्किल भी रहा। किसी बात का कोई समय नहीं कभी रात को तीन बजे नहाकर बोरे-बासी  खाना और फिर सो जाना तो कभी सरे शाम से ही सो जाना और फिर रात भर या तो उपन्यास पढ़ना या फिर घर से निकल कर आजाद चौक में जमी मोहल्ले के युवाओं की महफिल में दो बजे रात तक समय गुजारना।


बारहवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षाओं के दौरान मोहल्ले के सब दोस्त ग्रुप स्टडी करते थे। तब मै ब्राह्मणपारा छोड़कर कालोनी में आ चुका था। मोहल्ले में रहने वाले तीन दोस्तों के घर
ग्रुप स्टडी के लिए सब दोस्त इकट्ठा होते थे। मैं संजीत उर्फ बोन्स (आशीष दीवान का दिया हुआ नाम) उर्फ एसटी (बापी का दिया नाम) और आशीष दीवान उर्फ बठवा जुटते थे अखिलेश जोगी उर्फ गुड्डा के घर। बापी, मौसम पांडे व अन्य दोस्त जुटते थे अनुराग तिवारी उर्फ विक्की के घर तो कुछ दोस्त अभिषेक उर्फ सोना के घर। सब आसपास ही थे। रात दो बजे ब्रेक लेकर सब आजाद चौक पर मिलते थे और चाय की दुकान खुलवाकर चाय पीते थे। फिर सुबह 6 बजे मिलते थे, चाय पीते थे और अपने-अपने घर जाकर सो जाते थे। इसी दौरान शायद अमिताभ की फिल्म आई थी "अकेला", सबने तय किया कि फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने चलेंगे। बस फिर क्या था। सुबह 4 बजे चौक में इकट्ठा हुए आधे लोग मतलब कि करीब 6 लोग। पैदल निकल लिए मालवीय रोड स्थित बाबूलाल टाकीज ( अब यह टाकीज नहीं है)। वहां पहुंचे, हाउसफुल का बोर्ड लग चुका था, टिकट ब्लैक में भी नहीं मिल रही थी। अब क्या करें। पड़ोस में ही एक और टाकीज थी आनंद टाकीज (यह टाकीज भी बंद हो चुकी है), वहां भी एक फिल्म पहले शो में लग रही थी। नाम था "इम्तेहान" सनी देओल और सैफ अली खान की।  सो वहां पहुंच कर वह फिल्म देख ली।

खैर, लौटते हैं बापी पर लेकिन अगली किश्त में।

14 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वो जमाना कुछ ऐसी ही था।

Himanshu Mohan said...

मज़ा आया, अगली किश्त का इंतज़ार रहेगा।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! बापी इस तरह से भी सामने आयेगा, अन्दाज न था। प्रतीक्षा रहेगी अगली कड़ी की!

प्रवीण पाण्डेय said...

रोचक विवरण है । जारी रखा जाये ।

नरेश सोनी said...

यार संजीत जी, यह गलत बात है। इतने दिनों बाद ब्लागिंग में लौटे और बात अधूरी छोड़ दी।
वैसे, पढ़ने में मजा आ रहा था।
चलो ठीक है, कल तक का इंतजार कर लेंगे भाई।

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर यादे याद आ गई आप के लेख को पढ कर अगली कडी का इंतजार

Udan Tashtari said...

सही गोता लगवाये रहे हैं यादों के दरिया में.

36solutions said...

अगोरा हे आघू के गोठ-बात के.


जउन बापी ला सुरता करके आप लिखे हौ तउन म तो जम्‍मे झन मन जी भरके होले पढे के अपन कुलपाए सौंख ला उजागर करे हें.


इंहा सिरतोन म संगी जहुरिहा के बात होवत हे ये बने लागिस.

बाल भवन जबलपुर said...

हम इंतज़ार करेंगे जी

डा० अमर कुमार said...


!!!
:)

anuradha srivastav said...

तुम्हारे संस्मरण ने तो वाकई लडकी होने की वजह से ऐसे मज़े ना उठा पाने की कसक बढा दी है। भाई की चांडाल-चौकडी कि यादें भी जीवन्त हो गयी। 'बोन्स' नाम पसन्द आया। अगली कडी का बेताबी से इन्तज़ार है।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बने कहत हस गा
ओ टैम अइसने रहिथे,
पहला शो देखे के मारा मारी।

काली पढ नई पाए रहेवं त दुनो ल पढत हंव्।

Sanjeet Tripathi said...

mere mitr surykant soni jo is post me likhe hue ka ek ek shabd jante hi nai balki sath me jeeya hai unka comment email par mila...


hi sanju,
bhut khubh mere yaar ,
chalo der se hi sahi aapke kalam se aatit ke khubsurat yaaden ubhr kar aa hi gayi.
tum is atit ke panne par kisi bhi prakar ki koi syahi girne mat dena, mujhe tumhare is lekh ki agli kadi ka intjaar rahega, shayd main tumhen nahi samjhasakta ki mere liye doston ke saath bitaye ek ek pal ki kya importent hai.main hamesh tum logo ke saath har pal ko jiya hun.our mujhe ye bhi yakin hai ki tum kya har koi is pal ko hamesha miss karoge.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

रोचक.

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।