गतांक बापीयॉटिक तो नहीं पर बापी के बहाने-1 से आगे
बापी में एक जो सबसे अलहदा गुण दिखा वह यह कि पशु पक्षियों के प्रति प्रेम। इतना कि किसी भी गली का कुत्ता या बिल्ली हो, बस बापी को पांच मिनट दीजिए वे उससे ऐसे घुलमिल जाएंगे मानो बापी ने ही बरसों से उसे पालापोसा हो। इसी बात पे कई बार मजेदार वाकये भी हुए। एक ठंड की दोपहरी हम सब मित्र बापी के बाड़े के जीई रोड वाले हिस्से में सड़क पर बैठे थे। एक संपेरा आया। बापी ने उसे रुकवाया उससे बातें की। संपेरे ने सांप वाली टोकरी खोली। बापी ने सांप को लिया और गले में डाल लिया और लगा लड़ियाने। हम सब जो भी बापी के बाजू में बैठे थे उससे छिटककर दूर हो गए यह कहते हुए कि भो*** के ये क्या कर रहा है। लेकिन बापी भैया लगे रहे।
इसी तरह एक अन्य मौके पर, रायपुर शहर से लगी हुई खारून नदी के तट पर हर साल लगने वाले में मेले में सब दोस्त सायकिल पर या पैदल जाया करते थे। एक बार सब मेले में पहुंचे। वहां भी एक सांप वाला खेल दिखा रहा था, उसके पास एक छोटा अजगर भी था। बापी भैया लग लिए उसके साथ भी लड़ियाने के लिए, इतने में उस अजगर ने मल-मूत्र विसर्जन कर दिया। बापी चूंकि जमीन पर पालथी मार कर बैठ कर उसे लिए हुए था इसलिए उसकी शर्ट पैंट दोनो खराब। और इधर हम सब दोस्तों का हंसते हुए हालत खराब।
गालियों की डिक्शनरी मैने बापी से ही समझी और पसंद की कन्या को लाइन मारने के लिए पांच किलोमीटर सायकल चलाकर उसके घर महज इसलिए जाना कि वो दिख जाए, ये बात मैने सबसे पहले बापी में ही देखी। अपनी सायकल किसी और को दी हुई हो तो किसी और दोस्त से सायकल उधार ले कर जाना है लेकिन उस लड़की के घर तक जाना है।
ये अलग बात है कि बापी ने उस लड़की से जितनी बातें न की हो, उतनी मैने उस लड़की से बाद में तब कर ली जब वह मेरे अखबार के मार्केटिंग विभाग में थी और उस लड़की को बापी के नाम से छेड़ा भी था। बापी को यह बात तब मैने चिढ़ाते हुए बताई तो उसके मुंह से फौरन मेरे लिए निकला था " कमीने"।
बापी के मुंह से दोस्तों के बीच रहने पर जो शब्द सबसे ज्यादा निकलता था वह था "घं**"। जहां उसका मूड उखड़ा नहीं कि बस "घं**"। जब कोई रास्ता न सूझता था तो फिर वह यही बड़बड़ाता था कि क्या "ल***" जिंदगी है। बस "झां*" हो के रह गई है।
अथ बापी और बापी के बहाने यादों की कथा जारी…बाकी अगले किश्त में
11 May 2010
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8 टिप्पणी:
रोचक संस्मरण .....अगली किस्त की प्रतीक्षा है।
Sanjeetji, kabhi apna bhi aisa parichay de diya kare yahaan...I m sure, padhnewalo ko zarur mazaa aayegaa
@ वैशाली, इस मुद्दे पर खुद को खुद की नजर से नहीं देखा जा सकता। हां बापी या फिर मेरा और कोई दोस्त जरुर इस नजर से मुझे देख कर बता सकता है।
अच्छा चित्रण है एक मित्र का। आप को ऐसे चरित्र सब स्थानों पर मिल जाएंगे। लेकिन यदि इसी तरह के बहुत से किरदारों को मिला कर आप एक नया किरदार बनाएँगे तो वह साहित्य की शानदार मिसाल होगी, यदि उस रेखाचित्र के जरिए कोई बात आप कहना चाहते हों।
ऐसा लगता है कि बापी पर जब भी पोस्ट होगी, पोस्ट में एक से अधिक सितारे *** ज़रूर देखने को मिलेंगे। शायद इसीलिए ज्ञान जी ने कहा कि "बापीयॉटिक पोस्टों की ज़रूरत" बहुत है हिन्दी ब्लॉग जगत को।
मगर यह साफ़ होता है कि -
1) बापी नाम के लोगों की सितारों भरी बातचीत करने की आदत होती है। यानी मुँह से फूल नहीं, मगर सितारे ज़रूर झड़ते हैं।
2) बापी के दोस्त बड़े हो कर ब्लॉगिये बनते हैं और फिर बापी पर पोस्ट लिखते हैं।
3) "बापी होना" अपने आप में एक मुहावरा बन सकता है - जिसका अर्थ होगा एक ऐसा व्यक्ति होना जिसकी हर बात का फ़ायदा दूसरे उठाते हों, यहाँ तक कि ज़िक्र तक का (माफ़ कीजिएगा यहाँ कोई तंज़ आप पर नहीं है, बस ख़्याली घोड़े -टगबग-टगबग कर रहे हैं।); मगर जो बिन्दास और अपनी शर्तों पे जीता हो।
इसे यों भी कहा जा सकता है कि "आज क्या बापिया गए हो?"
4) अब तक हो सकता है बापी भी ब्लॉगर बन गया हो, और समीरलाल जी, या अनूप सुकुल जी में से किसी की चेलाही लेकर ज्ञानदत्त जी के ब्लॉग (या उन्हीं को खोज रहा हो!)
:)
भाई, पोस्ट पसन्द आई, इसीलिए बहक गया और गैर-ज़िम्मेदाराना बातें कर गया। और इतने पे मानने वाला भी नहीं, अभी नीचे क्लिक करके इसे पोस्ट भी करूँगा।
शुभेच्छु
बापी में जिगरा है । कम मिलते हैं ऐसे जिगरे ।
@ पसंद की कन्या को लाइन मारने के लिए पांच किलोमीटर सायकल चलाकर उसके घर महज इसलिए जाना कि वो दिख जाए, ये बात मैने सबसे पहले बापी में ही देखी।
संजीत जी,
मेरे ओडीसा वाले बापी का हाल भी इससे जुदा नहीं है...मैं बापी की पूरी कारस्तानी नेट पर नहीं लिख सकता लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि ओडीसा का यह बापी भी आपके बापी सरीखा ही है....कम्बख्त रहता मुंबई में था और लडकी से मिलता पुणे जाकर :)
ये सारे बापी इसी तरह के क्यों होते हैं ?
अरे वाह, पिलानी में हमारे युगेश दादा थे। अपनी क्लासें बंक कर उस सांवली लड़की की कक्षा खत्म होने का इन्तजार करते थे।
पूरे पांच साल में शायद ही बात कर पाये हों उस लड़की से!
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