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12 May 2010

बापीयॉटिक तो नहीं पर बापी के बहाने-3

बापीयॉटिक तो नहीं पर बापी के बहाने-2 से आगे

 बापी आजकल एक अरसे से एक फाइनांस कंपनी में रिकवरी में हैं। नेशनल हाईवे  पर आजाद चौक में स्थित बड़ा सा मकान जिसे स्थानीय भाषा में बाड़ा कहते हैं, का बड़ा हिस्सा सड़क चौड़ीकरण की भेंट चढ़ गया। हालांकि उनका घर बचा हुआ है लेकिन इससे पहले ही बापी का परिवार रायपुर से 40 किमी दूर अभनपुर के पास अपने एक गांव में शिफ्ट हो चुका था।

तो बापी साहब आजकल गांव से ही शहर अपनी नौकरी बजाने आते हैं हफ्ते में तीन-चार दिन।  बाकी दिन दौरे पर अपने गांव से आगे की ओर कंपनी की वसूली के लिए।  जब रायपुर आता है तो न आने का कोई समय निश्चित न ही वापसी का। कभी शाम को 4 बजे रायपुर आएगा और रात को 11 बजे गाड़ी उठा कर निकल लेगा वापस गांव की ओर। पिछले साल दिसंबर में जब रायपुर में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। एक रात मैं प्रेस से लौट कर खाना खा रहा था। रात के बारह बज रहे थे। अचानक मोबाइल की घंटी बजी। उधर बापी पूछ रहा था कहां है तू। मैने कहा घर में हूं। उसने कहा "मै एक ढाबे में खाना खा रहा हूं, सोच रहा हूं गांव जाउं या नहीं"। मैने कहा न जा, यहां आजा घर। फिर बापी आया करीब पौन घंटे बाद। दोनो बतियाने के बाद सोए करीब तीन बजे। सुबह मेरे सोकर उठने से पहले बापी साहब फरार हो चुके थे।  अपना एक मोबाइल और बेल्ट यहीं भूलकर। हफ्ते भर बाद आकर ले गया उसे।


शनिवार को मेरा जाना हुआ राजिम-नवापारा  के आगे एक गांव अपनी चचेरी बहन के ससुराल, तो मैने सोचा पहले बापी के घर जाऊं वहां से उसे साथ लेकर आगे बढ़ूं तो बाईक पर निकल गया बापी के गांव।  41 डिसे गर्मी की तेज धूप में चेहरे पर बिना कोई कपड़ा लपेटे या टोपी पहने 40 किमी बाइक चलाकर पहुंचा। वहां पहुंचने से पहले ही मुझे गर्दन पर व कान की लौ  पर खुजलाहट होने लगी थी। मुझे समझ में आ गया कि हो गया मुझे धूल और धूप का रिएक्शन, जिसके लिए कई बार मुझे घरवाले सुकुमार कहते हैं।

जब बापी के घर पहुंचा तो मेरी गर्दन से लेकर चेहरा ऐसा लाल था कि चबूतरे पर बैठे गांव वालों ने बापी से पूछा, "ये महाराज के चेहरा ला का होगे हे, एकदम लाल मुंह के बेंदरा (बंदर) जइसे दिखत हे? अइसन लगत हे जइसे कोनो हा गुलाल पोत दे हावय"। बापी खुद मेरा चेहरा देख कर टेंशन में। उसके घरवाले भी। बापी की भाभी ने फटाक से दही-पराठें खिला दिए। साथ में एक खुशखबरी भी कि बापी की शादी तय हो गई है।  इसके बाद मैं बापी को साथ लेकर आगे गांव की ओर चल दिया बाइक पर ही। हां!  इस बार मैने कपड़ा लपेट लिया था सिर और चेहरे पर। इससे थोड़ी देर बाद चेहरे व गर्दन की वह लालिमा जाती रही।


जारी रहेगी यह कथा, क्योंकि यह बापी के बहाने है और इस बहाने काफी कुछ है जो यादों से लेकर वर्तमान में तैर रहा है। इसलिए क्रमश:...

9 टिप्पणी:

ghughutibasuti said...

बढ़िया
घुघूती बासूती

Himanshu Mohan said...

सबसे सुखद यही है कि चर्चा आगे जारी रहेगी। बापी की फ़ोटो भी लाएँ कभी, अगर उचित हो तो।

दिनेशराय द्विवेदी said...

शादी के मामले में बापी का अनुसरण कब कर रहे हैं?

नरेश सोनी said...

बढ़िया है भाई।
फिर कल का इंतजार...।

सतीश पंचम said...

जारी रखें...बापी कथावली।

मस्त लग रहा है। रायपुर मेरी ननिहाल है। वहां की बात पढ़ते हुए कुछ कुछ अलग सी फिलिंग होती है :)

Udan Tashtari said...

बढिया लगा...द्विवेदी जी का जबाब तो दो. :)


एक अपील:

विवादकर्ता की कुछ मजबूरियाँ रही होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

-समीर लाल ’समीर’

Sanjeet Tripathi said...

द्विवेदी जी, आप कुछ कह रहे हैं क्या, मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया……हैलो…हैलो…हैलो…आपकी आवाज नहीं आ रही

;)

समीर जी, द्विवेदी जी की बात का जवाब दे दिया मैने।
:)

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

चलो बापी के बहाने ही सही तुम भी हाईपर लिन्क्स खोलते जा रहे हो.. बढिया है :)

Randhir Singh Suman said...

nice

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।