पहल चाहे देर हो या सबेर हो, पहल ही होती है। एक लंबे अरसे से कम से कम छत्तीसगढ़ में तो इस बहस के शुरु होने की प्रतीक्षा की जा रही थी कि मानवाधिकार कार्यकर्ता व संगठन नक्सली हिंसा होने पर तो खामोशी ओढ़े रहते हैं लेकिन जहां सरकार के या उसके पुर्जों के हाथों कोई प्रताड़ित हुआ नहीं कि राशन-पानी लेकर चढ़ दौड़ते हैं। ऐसा क्यों?
खुशी हुई यह देखकर कि राज्य के प्रतिष्ठित सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने इस मुद्दे पर पहल करते हुए गुरुवार के अपने अंक से ठीक इसी मुद्दे पर एक बहस की शुरुआत की है।
आशा है मानवाधिकार कार्यकर्ता व संगठन इस बहस के माध्यम से आमजन के दिलो-दिमाग में चलने वाले इस झंझावात को दूर कर सकेंगे।
शुक्रिया सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़
गौरतलब है आवारा बंजारा एक लंबे समय से यही सवाल अपने विभिन्न लेखों के माध्यम से उठाता रहा है।
वे लेख नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक कर पढ़े जा सकते हैं।
7 टिप्पणी:
आप की बात बहुत महत्वपूर्ण है। कोई भी आंदोलन संपूर्णता में ही सफल हो सकता है। मानवाधिकार बहुत महत्वपूर्ण हैं, पर उस की बात को संपूर्णता में ही उठाना उचित है। खास तौर से स्थानीय लोगों और उन की समस्याओं से जुड़ाव के बिना मानवाधिकार की बात करना फैशन ही कहा जा सकता है।
ह्यूमन राइट्स वालों का दोगलत्व तो अब प्रमाण नहीं मांगता!
सार्थक शुरूआत है. पहली दोनों टिप्पणियों से सहमत हूँ.
हाथ कंगन को आरसी क्या? गुजरात की प्रयोगशाला में निक्षेपण हो रहा है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता अब नंगे होने लगे हैं। लेकिन यह भी तय है कि उसी के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है जो इस अवधारणा के बारे में कुछ जानते भी नहीं यानि ऐसा कोई अधिकार भी उन्हें प्राप्त है वे नहीं जानते।
हमें भी इस बहस के आगे बड़ने का इंतजार रहेगा
इन संगठनों के लिए और भी जरूरी है कि संपूर्ण पारदर्शिता हो इनके काम में अन्यथा एक और बोझ ही होंगे ये समाज पर , एक और दूकानदारी ?
संजीत भाई !!
प्रथमतः मै यह कहना चाहुंगा कि हम क्यो सारी जिम्मेदारी इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओ को दे रहे है या हम मुर्दे है इसलिये हमे अपने अधिकारो के लिये लडने के लिये कोई और लडने वाला खोजना पडता है ।
अपने आसपास जो भी गलत दिखता है उसके लिये लडीये फ़िर इन सब तामझाम के जरुरत ही ना पडे और एक अर्थो मे आप यही कर रहे है ॥गौर से सोचीये ये नेता और मानव अधिकार कार्यकर्ता इसलिये नही है कि ये है बल्की इसलिये है कि हम बिना नेता या बिना इन एक्टीविस्ट के नही रह सकते और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाडते हुये ये किसी और को पकडा देते है !!
फ़िर यह भी सोचना है कि हम प्रतिक्रियावादी ना हो हम सिर्फ़ इसलिये विरोध ना करे कि हमे विरोध करना है बल्की इसके पीछे तर्क और उद्देश्य भी हो !! हो सकता है इनमे से कुछ सचमुच एक अच्छे उद्देश्य के लिये लड रहे हो और हम अपनी भावुकता के चलते उनके रास्ते की बाधा बन रहे हो ॥
यह काफ़ी जटील चीजे है इसलिये पुरा दिल और दिमाग सिर्फ़ सच को आत्म्सात करना चाहिये !!
एक बात और निसंदेह सांध्य दैनिक छ्त्तीसगढ एक अच्छा अखबार है जहा आम नागरिक की बातो को महत्व और स्थान मिलता है बिना पुर्वाग्रह के !!
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