आईटी इंजीनियरों ने समाज सेवा के लिए बनाया 'स्वर्ग'
रूसेन कुमार
बात 2007 की है। पार्थिबन, देवनाथन और देशभर से साफ्टवेयर इंजीनियर, सूचनाप्रौद्योगिकी क्षेत्र की अग्रणी कंपनी इंफोसीस टेक्नॉलॉजीस के बैंगलोर स्थित 'इंफोसीस ट्रेनिंग सेंटर' में ट्रेनिंग ले रहे थे। सप्हांत में इनमें से कुछ प्रशिक्षु मनोरंजन के लिए बैंगलोर थिएटर में फिल्म देखने गए। वहां एक तमिल फिल्म प्रदर्शित हो रही थी। इस फिल्म में यह दिखाया गया था कि चेन्नई में सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के आशातीत विकास की वजह से किस तरह आम जनता को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस फिल्म में दिखाया गया कि शहर में कुछ हजार सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के निवासरत होने और उनकी आवाजाही की वजह से शहर में मकान का किराया अनावश्यक रूप से बढ़ गया, जिसकी वजह से आर्थिक रूप से विपन्न लाखों आम जनता के समक्ष एक नई समस्या खड़ी हो गई। इस फिल्म में यह भी दिखाया गया कि एक व्यक्ति मकान किराया बहुत बढ़ जाने के कारण
मजबूरीवश किस तरह चेन्नई से 100 किलोमीटर दूर रहने चला गया।
जब फिल्म देखकर लौटे तो इन प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने फिल्म के विषय वस्तु और उसकी थीम पर एक दूसरे से परिचर्चा करना शुरू की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे की उन्हें समाज के लिए कुछ करना चाहिए। अगले कुछ दिनों में उन्होंने अपने विचारों को प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे 350 साफ्टवेयर इंजीनियरों के सामने रखे। सभी एकमत से राजी थे कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना चाहिए।
पार्थिबन, देवनाथन और उनके कुछ साथीगण साफ्टवेयर इंजीनियर समीप ही स्थित एक अनाथालय नीली भ्रमण करने गए और उन्होंने यह निर्णय लिया कि वे इन बच्चों के साथ अपनी दीपाली मनाएंगे। अगले दिन सामाजिक कार्यों में सहयोग करने के लिए इन 350 प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने आपस में 50,000 रूपए संग्रहित कर लिए। इसी बीच दुर्भाग्य से एक महिला प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियर का भाई, जो कि एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था, बहुत ही गंभीर स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हो गया और उसे तत्काल 35,000 रूपए की जरूरत थी। इन युवाओं ने उसे 34,000 रूपए दे दिए और शेष बचे 16,000 रूपए से अनाथालय में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए चावल और अन्य जरूरत के सामान खरीदर उन्हें दे दिए। और इस तरह इन युवाओं ने गरीब बच्चों के साथ मिलकर अपनी दीवाली मनाई और खुशियों भरे पल उनके साथ बांटे।
इन युवाओं को सेवा का यह कार्य कर बहुत ही आत्मीय अनुभूति और खुशी महसूस हुई और अंतत: इन युवाओं ने जरूरतमंद गरीबों की सेवा करने के लिए एक समूह बनाने का निर्णय लिया। इन युवा प्रशिक्षु सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने प्रारंभिक रूप से 'स्वर्ग' नामक एक संस्था बनाई। उनकी ट्रेनिंग अगले कुछ ही दिनों में पूरी हो गई और यह सभी प्रशिक्षु कंपनी के अलग-अलग स्थानों पर नए दायित्वों के साथ भेज दिए गए।
एक दिन अचानक इन युवाओं को अहसास हुआ कि वे सब अब अलग-अलग हो गए हैं। बिछड़ने के दु:ख का अहसास स्वाभाविक था, क्योंकि उन सबने समाज में सेवा करने की बात मन में ठान रखी थी। उन्हें यह चिंता होने लगी कि जब लोग अलग-अलग स्थानों पर हैं तो वे अपने 'स्वर्ग' के सामाजिक कार्यकलापों का संचालन कैसे कर पाएंगे?। वे सब इन परिस्थितियों से हर हाल में उबरना चाहते थे। तभी उन जोशिले और तेजतर्रार युवाओं के दिमाग में एक नया विचार आया। उनका यह विचार था, क्यों न इस समस्या को अवसर में बदल दिया जाए।
अंतत: इस निष्कर्ष पर पहुंचे और निर्धारित यह हुआ कि जहां-जहां भी 'स्वर्ग' से जुड़े साथीगण हैं वहां-वहां 'स्वर्ग' की शाखाएं खोली जाए। इस तरह चार राज्यों में उन सक्रिय प्रतिभागियों के साथ 'स्वर्ग' की स्थापना हो गई।
आज 'स्वर्ग' देश के 4 राज्यों के 5 शहरों में संचालित है। उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में मदद करने के लिए 'स्वर्ग' छात्रवृत्ति योजना आरंभ की है। वे शिक्षा पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। एक वर्ष और कुछ महीनों के अपने अनुभव के उपरान्त इन युवाओं ने 'स्वर्ग' को एक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत कराने और इसकी एक वेबसाइट बनाने का निर्णय लिया है। ट्रस्ट और वेबसाइट को 9 मई 2009 को जारी किया जा रहा है। 'स्वर्ग' में वर्तमान में 500 सक्रिय सदस्य हैं, जिनमें से अधिकांश इंफोसिस से जुड़े हैं और कुछ अन्य कंपनियों से। 'स्वर्ग' की परियोजनाओं के लिए वे सब व्यक्तिगत रूप से योगदान देते हैं। एक वर्ष और कुछ महीनों के इस छोटे सी अवधि में उन्होंने अगल-अलग परियोजनाओं में लगभग 100 जरूरत मंद लोगों की मदद की है और इसमें 3 लाख रूपए खर्च हुए हैं।
पार्थिबन, देवनाथन और उनके कुछ साथियों की योजना गरीब विद्यार्थियों के लिए एक पुस्तकालय खोलने की है और बच्चों को प्राथमिक शिक्षा स्तर पर ही सहयोग करना चाहते हैं।
(लेखक [India_Vision_2020] के एक सदस्य, पीआर प्रोफेशनल है)
10 टिप्पणी:
यह तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं मित्र गण। और यह स्वर्ग की परियोजना आगे बढ़नी चाहिये।
पार्थिबन, देवनाथन और उनके साथियों को ढेरों शुभकामनाए। उन गरीबों की ओर से हार्दिक धन्यवाद जिन्हें उनकी मदद मिली।
जो सक्षम हैं उन्हेम मदद के लिए जरूर आगे आना चाहिए। तभी दुनिया स्वर्ग बन पाएगी।
जानकारी बाँटने का शुक्रिया।
दुनिया का भविष्य हैं सोफ्टवेयर इंजिनियर। समाज के बदलाव की बयार यहीं से बहेगी।
अनुकरणीय पहल। इन युवाओं को इसी धरती पर स्वर्ग रचने के लिए जितना भी आशीर्वाद दिया जाए, कम है। ज़रूरत मंद को एक निवाला और छत ही स्वर्ग है। ये प्रतीकार्थ बहुत महत्वपूर्ण है।
अच्छी पोस्ट के लिए आभार ...
अच्छा प्रयास है इसका अनुकरण भी होना चाहिये।
अच्छा प्रयास है इसका अनुकरण भी होना चाहिये।
बहुत ही सुन्दर प्रयास है.हमारी शुभकामनायें.
achchi pehel..........jeyada se jeyada logon ko isse judna chahiye.
achchi pehel..........jeyada se jeyada logon ko isse judna chahiye.
मुबारक हो आप सभी को। आपकी कोशिश रंग लायेगी।
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