मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व एक्टिविस्ट के नाम एक छत्तीसगढ़िया का पत्र
समस्त बड़े-बड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता व एक्टिविस्ट जो हाल ही में छत्तीसगढ़ पधारे थे
सम्माननीयजनों,
पिछले दिनों जब छत्तीसगढ़ सरकार ने राजधानी रायपुर में एक "मानवाधिकार कार्यकर्ता" को नक्सलियों को मदद पहुंचाने व उनसे संपर्क रखने का आरोप लगाते हुए गिरफ़्तार किया तो आप सबने रायपुर आकर यहां की भूमि को धन्य किया इसके लिए आप सबका आभार।
आप लोगों ने यहां विरोध स्वरुप रैली निकाली,धरना दिया,प्रेसवार्ताएं ली और बड़े-बड़े लोगों को ज्ञापन सौंपे।सच मानिए मेरा दिल भर आया कि अपने साथी की ऐसी चिंता करने वाले लोग आज के जमाने में भी मौजूद है।लेकिन कई बार एक सवाल मन में उठता है। लगता है आज आप लोगों से पूछ ही लूं,वो यह कि पिछले कई सालों से जब नक्सली आम लोगों की हत्याएं कर रहे हैं,बारूदी सुरंगे लगाकर विस्फोट कर पुलिस जवान समेत आम लोगों की हत्याएं कर रहे। सरकारी संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं,ना जाने कितने मासूमों को अनाथ बनाए जा रहे हैं,बस्तर में रहने वाले व्यापारियों को जबरिया उनकी ज़मीन-ज़ायदाद से बेदखल कर बाहर भगा रहे हैं।
तब,तब आप सबकी नज़र इन सब पर क्यों नहीं गई?
क्या मारे गए लोग मानव नहीं थे,क्या जीना उनका मौलिक अधिकार नहीं था?
तब आप लोगों ने छत्तीसगढ़ या राजधानी में पधारकर इसे धन्य क्यों नहीं किया था?
क्या नक्सली जो कर रहे थे/हैं, सही कर रहे थे/हैं?
और इधर आप सबके रायपुर छोड़ने के बाद जब पिछले कई दिनों से नक्सली और उग्र होकर इस जानलेवा गर्मी में समूचे बस्तर में जगह-जगह बिज़ली टावर गिराए जा रहें हैं,बिज़ली सप्लाई लाईन काटे जा रहे हैं,यातायात बाधित किए जा रहे हैं जिसके कारण वहां लोगो को खाद्यान्न व सब्जियां ढंग़ से नहीं मिल रही ना ही बिज़ली। नक्सली बस्तर में "ब्लैक-आउट" के हालात पैदा कर रहे हैं।
तब,तब आप सब इसका विरोध क्यों नहीं कर रहे,क्यों नहीं अब आप आ रहें हैं रायपुर विरोध प्रदर्शन करने,प्रेसवार्ताएं लेने व ज्ञापन देने।
क्या नक्सली अब भी जो कर रहें हैं सही ही कर रहे हैं?
हे प्रबुद्धजनों,
दरअसल मैं ज्यादा समझदार नहीं हूं,दिमाग से पैदल हूं अत: ज्यादा सोच समझ नहीं पाता। बस जो देखा उसी के आधार पर यह पत्र दूसरे से लिखवा रहा हूं क्योंकि मुझे तो लिखना पढ़ना भी नहीं आता। क्या आप सब इस छत्तीसगढ़िया का आमंत्रण स्वीकार करेंगे कि आइए फ़िर से एक बार रायपुर,छत्तीसगढ़। आइए इस बार नक्सलियों के तांडव का विरोध करें,धरना दें और ज्ञापन दें नक्सलियों के खिलाफ़ क्योंकि जो मारे जा रहे हैं,तकलीफ़ पा रहे हैं वह भी मानव ही हैं और न केवल जीना बल्कि चैन से जीना भी उनका मौलिक अधिकार है।
निवेदन इतना ही है कि मै एक गरीब छत्तीसगढ़िया हूं। आप सबके आने-जाने का "एयर फ़ेयर" नहीं दे सकता न ही किसी अच्छे होटल में आपके रुकने का प्रबंध करवा सकता। बस! इतना ही कह सकता हूं कि अगर आप ऐसे नेक काम के लिए आएंगे तो इस गरीब की कुटिया हमेशा अपने लिए खुला पाएंगे और घरवालो के साथ बैठकर चटनी के साथ दाल-भात खाने की व्यवस्था तो रहेगी ही।
आपके उत्तर की नहीं बल्कि आपके आने के इंतजार में
आपका
भोला छत्तीसगढ़िया
19 टिप्पणी:
बहुत मार्मिक पोस्ट है. मैं जरुर आऊँगा संजीत, यह वादा रहा-मेरा योगदान शुन्य ही सही-मगर साथ खड़ा जरुर पाओगे मेरे अगले प्रवास में और दाल भात तो तुम्हें मुझे अधिकार पूर्वक खाने ही देना होगा. इंतजार है मुझे अपने प्रवास का, अक्टूबर नवम्बर में.
मानवाधिकार वाले ईमानदार नहीं हैं.
Yeh Sab apni masti mein mast rehte hai. unko manav adhikar se koi lena dena nahin hai, unko toh sirf unhe kitne adhikar aur kitna footage milta hai us par lena dena hai.
yaar publicity ki koi shop ho toh inko address de do toh yeh hamare desh to baksh de ,warna yeh log aaise hi sab bhatakte rahenge aur hamare paise par hi aish karenge..kyonki in paltu kutto ko khilane wale abhi bhi desh mein bahot hai.
इन कम्बख्तो को चार चूते लगाओ.
इनके लिए व्यक्ति की जान व सुविधाएं महत्त्वपूर्ण नहीं है, इनके लिए तो मानव अधिकार मात्र हत्यारों व विकृत मानसिकता वाले चित्रकारों के लिए आरक्षित है.
Jahan tak mai yaad kar sakta hoon.. Padha tha maine..
Human Rights are the Rights relating to life,liberty,equality and dignity of an indiviual gauranteed by the Constitution..
Inmein se ek bhi cheez kahan milti hai aasani se humare desh mein..
Human Right Activist toh harr shaher mein hai bhaiya.. lekin jaisa Maulik bhaiya ne kaha hai ki yeh sirf footage ke publicity ke bhooke hai..
Badi badi party mein jaane se ya sirf neta logo ke contact mein rehne se inke kaam bann jaate hai toh phir yeh aam janta ke baarien mein kyu kuch sochenge..
जारी रहे यह वैचारिक अभियान । आज संजय द्विवेदी जी ने भी अपने दैनिक हरिभूमि में विशेष संपादकीय लिखा है । उसे भी पढा क्या ?
लेख अच्छा है । सरस है ।
बाहर वालों ने छत्तीसगढ़ को चारागाह समझ रखा है । पर जब तक आप जैसे लोग सक्रिय रहेंगे । विश्वास है हमारी हरियाली छीन नहीं सकते ये लोग । लगे रहिए इसी तरह । खुशी होती है ।
जारी रहे यह वैचारिक अभियान । आज संजय द्विवेदी जी ने भी अपने दैनिक हरिभूमि में विशेष संपादकीय लिखा है । उसे भी पढा क्या ?
लेख अच्छा है । सरस है ।
बाहर वालों ने छत्तीसगढ़ को चारागाह समझ रखा है । पर जब तक आप जैसे लोग सक्रिय रहेंगे । विश्वास है हमारी हरियाली छीन नहीं सकते ये लोग । लगे रहिए इसी तरह । खुशी होती है ।
संजीत जी भोला छत्तीसगढिया नें जो लिखा है वो आज के परिवेश में हर छत्तीसगढिया का दर्द है कोई व्यक्त कर पा रहा है कोई व्यक्त नही कर पा रहा है जनता की मौलिक अभिव्यक्ति खो सी गयी है चंद लोग जिनके नाम की दुहाई अवाम लेती है उनको तो अपने हर कदम को सोंच समझ कर उठाना चाहिए पर यह सारा खेल चोर चोर मौसेरे भाई वाला खेल है कल आप मेरा साथ दिये थे तो आज मै आपको साथ दे रहा हूं क्योंकि प्राय: हर एक्टिविस्ट गैर सरकारी संगठनो के माध्यम से अपने शरीर में धन रूपी उर्जा (या गरीबों के हिस्से की रोटी) पा रहा हैं और इसी उर्जा को बरकरार रखने एवं भविष्य में इसे निरंतर बनाये रखने के लिए प्रोपेगंडा की आवश्यकता की पूर्ति, दुख की ठेकेदारी (एन जी ओ व्यवसाय) में वर्चस्व दिखाने के अवसर को भुनाने का तरीका यही होता है जो हमने रायपुर में देखा ।
वर्तमान परिवेश में कुछ भी न कहते हुए मैं यह बताना चाहूंगा कि हमने इस गढ में एक से एक गैर छत्तिसगढिया एक्टिविस्ट देखे हैं, ऐसे लोगों को देखा है जो गरीबों के मसीहा कहलाते हैं पर ब्लैकमेलिंग उनका असली धंधा है नेपाल और चीन से निरंतर संपर्क में रहते हैं बाबू लोग अपना प्रभाव इस गढ में बनाये रखने के लिए ना जाने क्या क्या खेल खेलते रहते हैं । यह सब जग जाहिर होनी चाहिए । बस्तर में बिजली गुल होने के बाद समाचार पत्रों नें कुछ सहीं राग गाना शुरू किया है यही विरोध जन जन में छाये हमारी यही तमन्ना है ।
संजीत भाई आपने सहीं प्रयास किया हैं हम सभी छत्तीसगढियों को जब भी अवसर मिले इन विद्रूपों के विरूद्ध लिखना चाहिए
Comment chattishgarh tak simit nahin hai, mein gujarat se hun aur yeh sab jagah faile hue hai. hum bhu bhugat rahe hai.
बहुत सही कह रहे हैं आप । मानवाधिकार तो बहुत महत्वपूर्ण हैं किन्तु इनकी आवश्यकता उनको नहीं है जो दूसरों के मानवाधिकारों का हनन करते हैं । किन्तु हल्ला केवल ऐसे लोगों के अधिकारों को लेकर होता है न कि आम जनता के, जो इन सबकी मार झेल रहे हैं । समय आ गया है कि आम जनता के मानवाधिकार की बात की जाए ।
घुघूती बासूती
बिलकुल सही लिखा है आपने, इन्हें हमेशा अपराधियों और आतंकवादियों के मानव अधिकार ही नज़र आते हैं।
@आभार गुरुवर! शब्द नहीं है मेरे पास आपके लिए।
@पता नहीं ज्ञान दद्दा वे ईमानदार हैं या नहीं पर इस पत्र में वही बात लिखी गई है जो यहां आमजनों के दिल मे उठ रही है!
@मौलिक भाई और संजय भाई, क्या बात है दोनो अमदावादी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं व एक्टिविस्ट्स के प्रति काफ़ी आक्रोशित दिख रहे हैं, खैर! मैं समझ सकता हूं कि एक अमदावादी होने के नाते आप लोगों ने क्या क्या भोगा होगा!
@संजय भाई टिप्पणी प्रकाशित करने से पहले एक नज़र देख लिया करें ध्यान से, कुछ गलतियां सच में बहुत बुरी लगती हैं, आशा है अन्यथा नही लेंगे।
@अमन भाई, बहुत सी बातें आजकाल सिर्फ़ किताबों मे पढ़ने के लिए बस हैं व्यवहार में नहीं और हां आपकी बातों से मैं सहमत हूं।
@शुक्रिया जयप्रकाश जी। मार्गदर्शन जारी रखें। संजय द्विवेदी जी के तेवर शुरु से ही काबिले तारीफ़ हैं।
@संजीव भैय्या शुक्रिया। छत्तीसगढ़ के बारे में हम सब छत्तीसगढ़िया आवाज़ न उठाएंगे तो कौन उठाएगा।
@घुघूती बासूती व अतुल भाई आप दोनो का आभार। घुघूती बासूति जी देश के हालात देख कर लगता तो है कि शायद अब समय आ गया है कि अब जनता को उठ खड़ा होना चाहिए पर अफ़सोस यह है कि जनता आक्रामक ही नहीं बल्कि हिंसक तरीके से जाग रही है अपने अधिकारों के प्रति।
*...मित्रों आज की तारीख में हालत यह है कि बस्तर इलाके में चार जिले आते है और चारों जिलों मे ब्लैक आउट के हालात हो गए हैं।*
सलवा जुड़ूम के आतंक के बारे मे सुना है ? उसे तो सरकार ही प्रायोजित कर रही है . हाँ मैं माँ सकता हूँ की हैं कुछ नक्सली संगठन ऐसे जिनकी कार्यवहियों मे कभी कभी मासूम भी मारे जाते हैं . लेकिन ये बात ख़ास संजय बेँगानी जैसों के लिए की जब गुजरात मे मानवाधिकार वाले मारे जा रहे थे , मुसलमान मारे जा रहे थे , तब वो लोग कौन सी गुफ़ा मे जाकर बैठ गये थे ? तब तो इन जैसे लोगों ने साँस तक नही ली की मोदी को सौ जूते लगाने चाहिए . लेकिन जहाँ विचारधारा की बात आती है , अगर कोई भगवा ब्रिगेड के खिलाफ़ कुछ बोल भी दे तो इनके जूते तुरंत हाथ मे आते हैं . सवाल है की आप ख़ुद कुछ करेंगे या किसी के करने की आशा मे ख़ुद के जूते उतार कर रखे रहेंगे की आए तो कोई , अभी लगाता हूँ जूते.
Excellent letter. I agree with you. The Human rights activists are all businessmen these days. They would make the "right" noises; speak against the "right" people. The ordinary citizens like won't be able to understand why they raise some particular issues while they don't raise some others. This is high time they should do something, as their public relations is suffering because of such incidents like what happened in Raipur.
I would suggest you to forward that letter to all news papers. If you could write it in English also, I have some addresses of English dailies: Time of India: mytimesmyvoice@timesgroup.com , HT: letters@hindustantimes.com , The Hindu: letters@thehindu.co.in
बहुत सही लिखा है संजीत भाई, आम आदिवासी दो पाटन के बीच पिस रहा है, और छत्तीसगढ जो कि वन सम्पदा और खनिजों से लबालब है आज चन्द लुटेरों के कब्जे में आ गया है, राजनैतिक पार्टियों से अब कोई उम्मीद नहीं बची इसलिये जनता को ही जागना होगा, चूँकि मेरा बचपन भी छत्तीसगढ में ही बीता है इसलिये दुख और अधिक होता है...लेकिन आप जैसे लोगों के रहते कुछ उम्मीद भी जागी रहती है...
आप सचमुच बेहद संजीदा लेखक हैं। यह हमारा सांझा दर्द है। आभार आवाज बुलंद करने के लिये। मैं आपके साथ हूँ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
air fare aur achhe hotel mein vyawastha karne wali baat bahut khoob kahi aapne.aajkal social workers bahut high profile ho gaye hain.
sanjeet ji ...eक्ष्cellent post...bahut hi basic question uthaayein hai aapne aur yeh swaal sirf chattishgarh per hi nahi her terrorist torn illake per laagoo hote hain jaise kashmeer per bhi , assam per bhi ..manvadhikaar ka hanan in sab jagahon per hai aur gareeb ke , aam aadmi ko pehle yeh log manav ki ginti mein toh lein manvadhikaaron ki baat toh baad mein aayegi...eक्ष्cellent work
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