छत्तीसगढ़ में कबीरपंथ - 1
हिंदी के विद्वानों में इस बात को लेकर मतभिन्नता रही कि कबीर ने अपने नाम से किसी पंथ का प्रचलन किया या नहीं। डॉ के एन द्विवेदी ने अपना मत देते हुए लिखा है,"कबीरपंथ की कतिपय रचनाओं में इस बात का उल्लेख हुआ है कि कबीर ने अपने प्रधान शिष्य धनी धर्मदास को पंथ स्थापना का आदेश देकर उनके वंश को गद्दी का उत्तराधिकारी होने का आशीर्वाद दिया था"।वहीं आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है,"कबीर ने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपंक्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खड़ा किया"।
लेकिन उपरोक्त कथनों के समक्ष यदि हम कबीर के अनासक्त व्यक्तित्व और जीवन चरित को देखें तो यह कहना सही नही लगता कि वे अपने नाम से स्वयं पंथ शुरु कर चलाएं हों। जो सभी पंथ एवं संप्रदाय को समाप्त कर शुद्ध मानवता का प्रकाश चाहता रहा हो वह खुद एक नया पंथ क्यों खड़ा करेगा। अत: हम यह कह सकते हैं कि कबीर के विचारों के अनुयायियों के लिए एक स्वतंत्र संप्रदाय एवं पंथ की रचना की आवश्यक्ता हुई होगी और यही कबीरपंथ के नाम से फलित हुआ।
'बीजक' कबीरपंथ का प्रामाणिक धर्मग्रंथ माना जाता है। इसमे कुछ ऐसे संकेत प्राप्त होते हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि कबीर पंथ स्थापना के कट्टर विरोधी थे, वे आचार्य या मठाधीश नही बनना चाहते थे। जैसा कि सर्वविदित है कबीर के शिष्यों की संख्या काफी थी। बताया जाता है कि इनमें से चार शिष्यों जागू साहेब,भगवान साहेब,श्रुतिगोपाल साहेब और धनी धर्मदास साहेब महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इनके साथ ही दो और शिष्यों तत्वा और जीवा का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। संभवत: इन्ही शिष्यों ने मिलकर कबीर के नाम पर कबीर पंथ की स्थापना की होगी। प्रारंभ में यह संक्षिप्त स्वरूप में रहा होगा और आगे चलकर समय बीतने के साथ-साथ इस पंथ का स्वरूप अधिक बड़ा और व्यवस्था संपन्न होता चला गया।
...................जारी……
रचना स्त्रोत
1-छत्तीसगढ़ में कबीरपंथ का ऐतिहासिक अनुशीलन-डॉ चंद्रकिशोर तिवारी
2-कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा वंशगद्दी का इतिहास-डॉ कमलनयन पटेल
Technorati Tags:
19 टिप्पणी:
नयी जानकारी। धन्यवाद।
aapke sabhi aalekh bahut acche hain aur ye pura chittha hi apne apme ek kamaal hai, badhai
और जानकारी भी देते रहिये ।
घुघूती बासूती
कबीर पर काम करके आप एक स्तुत्य काम कर रहे हैं, और भी जानकारी का इंतजार रहेगा…
संजीत जी आपने ये श्रंखला शुरू करके अच्छा काम किया है।
सही है, मुझे भी लगता था कि व्यवस्था के खिलाफ झण्डा बुलन्द करने वाला खुद कोई पंथ क्योँ खड़ा करने की बात करेगा।
कोई भी ऑर्गेनाइज्ड ऑर्डरली धर्म अंतत: भ्रष्ट होने लगता है।
good info
बहुत सही जानकारी दी है आपने संजीत जी ..अच्छा लगा इसको पढ़ना
हमारे लिए भी एकदम नयी जानकारी, और बताइए
संजीत जी, कबीर जी महान विचारक एव्म संत थे. लेकिन कभी मुझे लगता है कि ये संत लोग या फ़िर उनके अनुयायी समाज को एक सुत्र मे करने के बजाय विभिन्न संप्रादयो मे बाटे है जिससे भारत वर्ष के एकता खण्डित हुआ है और भारतीय समाज कमजोर हुआ हैं.
अगली कडी का इन्तजार है।
सही जानकारी दी है संजीत जी धन्यवाद
अत्ति उत्तम संजीत भैय्या ,आपने दमखेडा की याद दिला दी ,कबीर जी के प्रसंग मे आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है ,
अनगढ़ खड़ी अटपटी भाषा ,भावो भरा अबोला ''
शाखी सबद रमैनी देकर ,बीजक जिसने खोला ""
वर्ण संप्रदाय की कटुता ,कौन काब्य मे धोता "
युग दृष्टा कवि दुत क्रांति का अगर कबीर न होता "
kya gurudev, hum bhi kabeer per hi likh rahe thai, aadha hi likha hai abhi aur tumhara aalekh aa gaya, koi baat nahi hum phir bhi apna aalek to chep hi denge.
Waise bhi tumhare aalkeh me main jor kabeer panth me hai aur jo hum likh rahe hain usme kabeer me. Lekin us vishay me parkar achha laga jis per hum khud ek post teyaar kar rahe thai. aage ka intezar rahega.
संजीत जी आप का कथन सही है। कबीर ने एक सामाजिक आंदोलन खड़ा किया। बाद में उसे ही लोगों ने पंथ बना डाला। आप का काम महत्वपूर्ण है।
अच्छी दृष्टि है । जारी रहे यह अभियान । ये दो चीजे भी देख लें । लेख को और सारगर्भी बनाने में शायद मदद मिले - ये रहा पहला -
http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/kabir012.htm
और दूसरा -
http://tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/chgr0047.htm
शुक्रिया आप सभी का!1
शुक्रिया मानस जी!!
सार्थक प्रयास । जारी रहे यह अभियान । कबीर के संबंध में एक महाग्रंथ डॉ.महावीर अग्रवाल नें लिखी है जो लगभग 1800 पृष्टों की है पर आपके इस प्रथम कडी के विचारों को देखकर लगता है कि आप इसमें एक नया अध्याय जोडेंगें । स्वागत ।
अदभुत प्रयास । जारी रखिए
Post a Comment