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05 June 2007

मुन्नाभाई मीट्स हिंदी ब्लागर्स - 2

----------------------------------------गतांक से आगे------------------------------------------

....इस पर दो-तीन वरिष्ठ चिट्ठाकारों ने यह कहते हुए मुन्ना को समझाने की कोशिश की-"मुन्ना,यह राष्ट्रभाषा प्रेमियों के द्वारा इंटरनेट पर हिंदी के प्रचार-प्रसार का मामला है अत: वैसी ही हिंदी चाहिए।"
मुन्ना फ़िर भड़का-" साला मामू लोग, तुम लोग क्या सोचता है अक्खा इंडिया मे कित्ता लोग किताबें पढ़ता है जो तुम्हारे बिलाग की किताबी हिंदी समझेंगा। अबे अपुन के माफ़िक लिखो फ़िर देखो कैसा
अक्खा दुनिया का लोग हिंदी समझेंगा फ़टाक से।"

इसी दौरान सरकिट ने कुछ ब्लागर्स के बारे में जानकारी ली कि कौन,कौन है और मुन्ना को खींच कर उनके पास ले गया।

सरकिट- "भाई ये "उड़नतश्तरी" हैं।"
मुन्ना- "हां रे सरकिट देख के तो लगिच रहें हैं। तो तू ही उड़नतश्तरी है मामू। सुना है कि पब्लिक को पोयम सुना-सुना के……शूं…शटाक…… करते हुए फटाक से निकल लेते हो। दूसरों की सुनतेच नई।
उड़नतश्तरी- "अरे नही मुन्ना भाई। यह तो गलत सुना है आपने। बल्कि हम ही तो पहले इंसान होते है जो किसी चिट्ठे पर पहुंचते हैं, दुसरों की सुनते,पढ़ते और टिपियाते हैं।"
मुन्ना- " ए चल ना,मेरे कू मामू मत बना। वो सब तो रेडीमेड कमेंट होता ना,बस बिलाग पे गया दो लाईन कापी किया और अपने रेडीमेड कमेंट के साथ चिपका दिया। और सुन मामू ये मत सोचना
कि मुन्ना के एरिया में आएला है इसलिए मुन्ना ने चमका दिया। अपुन को वो क्या है कि अमेरिका के प्रेसीडेंट ने बुलाएला है मीटिंग करने के वास्ते। तभीच अपुन तुमसे तुम्हारे एरिया में मिलेंगा और
नारद पे रजिस्ट्री नई मिला ना तो वहींच निपटाएंगा तुमको। बच के रहना रे बाबा-बच के रहना रे।"

सरकिट- " भाई,ये "मेरा पन्ना" वाले ताऊ हैं। आजकल यही संभाल रहे हैं नारायण-नारायण करने का ज़िम्मा।"
मुन्ना- "ऐसा क्या! क्यों मूंछ वाले मामू बोले तो ताऊ। क्या बोलता ये अपना सरकिट,नारद को तूहीच संभालता ना,नारायण-नारायण करता डोलता फ़िरता फ़िर भी मेरे कू उधर रजिस्ट्री नहीं देता,ऐसा काय कू करता रे ताऊ।"
(ताऊ ने जवाब देने के लिए मुंह खोला ही था कि…)
मून्ना- "ओये बस! मेरे कू नारद पे रजिस्ट्री मांगता याने मांगता बस! वैसे अपुन सुना है कि तू अभी इंडिया फ़िर से आने का प्लान बना रेला है पन मामू यहां से अभी जाने देंगा तभीच फ़िर से इंडिया आएंगा ना। जाएंगाइच नई तो आएंगा कैसे रे मामू,बोल टपका दूं क्या अभी के अभीच। सुन एक मांडवली करेगा क्या, कुवैत के तेल का दो नंबरी धंधा मेरे साथ करेंगा तो बोल……"

सरकिट- "भाई, ये "ई-पंडित"………"
मुन्ना- " ओ हो! तो ये है ई-पंडित,सुन ओय मामू इधर आना तो। ये बता ये ई-पंडित होता क्या है। अपुन खाली वो पंडित जानता जो स्वाहा करवाता,जो मंदिर में घंटी बजाता पन ये ई-पंडित अपुन ने पहली बार सुना रे। अपुन को नारद पे एंट्री दिला फ़िर देख अपन दोनों तेरी पाठशाला में बैठ के कैसे एक साथ काड़ी करते हैं मामू। याद रखने का ना, अगर अपुन को नारद पे रजिस्ट्री नई
मिली ना तो ना रहेगा ई और ना रहेगा पंडित। बाकी रहेगा सिरफ़…घं……।"
(इससे पहले कि ई-पंडित कुछ बोलें सरकिट ने मुन्ना को आगे बढ़ा दिया)

सरकिट-" भाई! ये "अज़दक" वाले प्रमोद साहब हैं। फ़िलम में लिखते हैं।"
मुन्ना-" वाह-वाह! क्या मामू कैसा है। यार एक बात बता,तेरे की नींद ना आने की बीमारी है क्या। तेरा बिलाग देख के तो अपुन साला सोचने लगता है कि तू सोता भी है या नई। इतना लिखता
है,लिखने के लिए सोचना भी होएंगा ना कि बिना सोचे लिख देता है पन पढ़ के तो ऐसा नई लगता कि बिना सोचे लिखता होएंगा। और फ़िर जब इतना सोचता होएंगा तो सोता कब होएंगा। सोते में भी
बिलाग के लिए वो क्या कहते है, टापिक सोचता क्या। ए मामू कुछ कर यार सब फ़िलम की स्टोरी पे भी और नारद पे अपुन की रजिस्ट्री के वास्ते भी नई तो…………………
और मुन्ना आगे बढ़ जाता है।

सरकिट- "भाई इधर मिलो ये है
मुन्ना-" क्या चिकणे,साला सफ़ेद कुर्ता और काला चश्मा वाला फोटू अपने बिलाग पे सजा के क्या सोचता रे तू। अपने को डान के माफ़िक सोचता क्या! चल एक बात बता,तू लिखता क्या है तेरे को खुद मालूम क्या और उसको पढ़ता कौन ढक्कन है। चल एक काम करना,अपुन बोलता जाएंगा तू उसको मेरे बिलाग में लिखता जाएकर,खूब रोकड़ा बनाएंगा मेरे साथ रहेंगा तो। तेरे कू मालूम ना कि अपुन इधर क्यों आएला है,रजिस्ट्री के वास्ते।"
( मुन्ना के मुंह से यह सब सुनकर ही आवारा-बंजारा की हवा हो गई और वह कल्टी हो गया भीड़ में)

सरकिट- "भाई! ये हैं "मोहल्ला"………"
मुन्ना- "क्या रे मामू! कोई केमिकल लोचा है क्या भेजे में। साला अपुन देखता इधर तेरे बिलाग पे आए दिन कोई ना कोई लोचा हुआ पड़ा रहता। क्या पिछले जनम का कोई रिश्ता है क्या लफ़ड़ों से। वैसे सुन एक काम की बात,वो क्या है ये जो "इंडिया" है ना यहां के लोग एकदमीच मामू हैं,समझदारी की बात करेंगा तो सुनने कोई नई आएंगा बस लफ़ड़ाच ज्यादा होएंगा। इसी वास्ते समझदारी का बात ज्यास्ती नई करने का। आजकल समझदारी कोई बांटने का चीज नई,संभाल के बैंक लाकर में रखने की चीज है रे मामू। चल बता नारद
पे मेरी रजिस्ट्री कब तलक करवा रेला है सुना है तेरी पहुंच उपर तक है। सुन ले रजिस्ट्री नई मिला ना मेरे कू तो तेरे मोहल्ले में बिना "पुलिस" के ही कर्फ़्यू लगा जाएंगा।"

इसी बीच मुन्ना की नज़र महिला ब्लागर्स पर गई और उसने सरकिट से पूछा-"ए सरकिट, ये बाई लोग कौन रे।"
सरकिट ने तब तक इनकी भी जानकारी बटोर ली थी सो फ़टाक से बोला-" भाई ये सब घर कीच है। ये बाई लोगों को इज्ज़त देने का,ये सब लेडीज़ बिलागर हैं।"
इतना सुनते ही मुन्ना ने हाथ जोड़े और कहा-"आप लेडीज लोग तो जानतीच है ना कि अपुन कैसा सीधा,साफ़ दिल का आदमी है। पिछली बार "बापू" ने अपुन को बोला कि विनम्रता के साथ बोलने से
सब काम होइच जाता है। इसी वास्ते अपुन हाथ जोड़कर विनम्रता के साथ आप सब से रिक्वेस्ट करेला है कि अपुन के बिलाग को नारद पे रजिस्ट्री दिलाने का नई तो साला अपुन ये सब मामू लोग को यहींच टपका देंगा और वो क्या कहते है इंटरनेट पर आग लगा देंगा।"

मुन्ना के इतना कहते ही महिला ब्लागर्स के दल में कानाफ़ूसी और खिलखिलाहट शुरू हो गई।तभी सरकिट फ़िर कहीं से एक चक्कर मार कर आया और महिला ब्लागर्स से मुन्ना का परिचय कराने लगा-

सरकिट-"भाई ये "घुघूती बासूती" और
"बेजी" हैं।"
मुन्ना(हाथ जोड़कर)- " वो क्या है कि अपुन को कविता-वविता तो समझ में नई आती। आप बस इस "कविता" का एड्रेस दे देना अपुन उसके एड्रेस पे जाकर समझ लेंगा उसको फ़ुर्सत में। पन वो क्या है ना कि आप बाई लोग बढ़िया लिखेली हैं, जब अपुन का "हायर" वाला श्याणा बंदा अपुन को आप लोगों के लिखे का मतलब समझाता है तो साला नई मालूम अपन की आंख में कई बार अपने-आप पानी क्यों आ जाता है। आप बाई लोगन तो इन सब मामू लोगन से ज्यादा "समझदार" हो, बोलो इन सबको कि अपुन को नारद पे एंट्री देने का।"

इस से पहले कि महिलाएं कुछ बोल सकें मुन्ना आगे बढ़ चुका है( शायद जानता है कि अगर महिलाओं को बोलने का मौका दे दिया तो फ़िर वह खुद नहीं बोल पाएगा सिर्फ़ सुनता रह जाएगा)

सरकिट- "भाई ! ये >"लिंकित-मन" वाली मेडम हैं।"
मुन्ना- " नमस्ते! ये लिंकित मन क्या है अपने सर के उपर से निकल गया। पन मेडम अपुन का फ़ैमिली नई है अभी, आप बाई लोगन इधर एंट्री दिलाएगा अपुन को फ़िर अपुन इधरीच किसी से
सेटिंग करके शादी बनाएगा तब जाके अपुन का अक्खा फ़ैमिली इधर बिलाग पे होएंगा,पिलीज़ समझने का ना मेडम इसलिए अभी अपुन सिर्फ़ इतनाइच बोलेंगा कि………रजिस्ट्री………।"

सरकिट- "भाई! ये "मान्या",
मुन्ना- "अरे सरकिट! बोले तो ये वई लोग हैं ना जिनकी लिखी पोयम का प्रिंट आउट अपना "श्याणा बंदा" निकाल के अपन को हफ़्ते के हफ़्ते देता है, अपनी फ़िरेंड छोकरी लोग को दे के इंप्रेस करने के
वास्ते। थैक्यू बोलता है अपुन आप लोग को। साला पता नई अपुन के माफ़िक कितना छोकरा लोग आप लोगन की पोयम टाप-टाप के अपनी छोकरी फ़िरेंड को इमप्रेस करने के वास्ते देता होएंगा। अपुन आप लोग की पोयम का इत्ता पब्लिकसिटी करता है और आप लोग है कि अपुन को नारद पर एंट्रीच नई देता। देने का ना।

सरकिट-" भाई ये "गरिमा" जी हैं जो अक्सर कहती रहती है कि मैं और कुछ नई"
मुन्ना--" अरे आप वईच हैं ना जो वो, वो क्या कहते है हां एनरजी हीलर। क्या
"जीवन उरजा-मानसिक तरंगे"
बड़बड़ाते रहती हैं। मेडम ये सब लोचे अपुन के भेजे में नई आते, ये अपना "श्याणा बंदा" अपुन को समझाते रहता फ़िर भी नई आता। साला अपुन का मगज है ही ऐसा ढक्कन के माफ़िक, एक काम करने का ना मेडम,कबी "फ़ुरसतिया" वाली फ़ुरसत में अपुन को ये सब ऐसे समझाने का कि डायरेक्ट अपुन के भेजे मे फ़िट हो जाए। फ़िर देखो साला अपुन का धमाल"

इधर यह सब चल ही रहा था और उधर महिला व पुरुष दोनों ही ब्लागर दलों में सबके चेहरे पर इस बात की चिंता घिरने लगी थी कि अंधेरा हो रहा है। अपने-अपने ठीये तक पहुंचते-पहुंचते रात हो जाएगी लेकिन वह भी तब जब यह मुन्ना सब को बख्श दे और जाने दे। अधिकतर इसी बात को सोचते हुए टेंशनियाए थे कि मुन्ना के चलते कहीं खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी ना पड़ जाए। बस यही सब सोचकर सबने निर्णय लिया कि नारद पर फ़िलहाल मुन्ना को एंट्री दे ही दी जाए। फ़िर क्या था पूरा जुहू बीच गूंज उठा हिंदी ब्लागर्स की
"सामूहिक आवाज" से -" मुन्ना! स्पेशल केस मानते हुए कल सुबह तक "नारद" पर तुम्हारा"रजिस्ट्रेशन" पक्का हो ही जाएगा।

इतना सुनते ही मुन्ना ने फ़ौरन कहा-" वाह मामू ये हुई ना हैप्पी एंडिंग वाली बात। चल सरकिट इसी खुसी में सबको मिठाई खिला। अब अपुन बाकी मामू लोग की खबर बाद में लेगा।"
फ़िलहाल समाप्त!!!
सूचना-- कृपया इस सीरीज़ की पोस्ट को सिर्फ़ बतौर मनोरंजन ही लें!! यदि इसे उल्लेखित व्यक्ति आक्षेप के रुप में लेते हैं तो क्षमा!!!

19 टिप्पणी:

Manish Kumar said...

बढ़िया लपेटा है गुरु ! हा हा...
बाकी मुन्नाभाई का ब्लागिया चरित्र भी मजेदार रहा। आपकी इस काल्पनिक क्रियाशीलता के लिए बधाई ।

Arun Arora said...

खूब मामू बनाये हो,सबको
:)

Gyan Dutt Pandey said...

संजीत यह तो बहुत सशक्त लेखन है. पूरे हिन्दी ब्लॉगमण्डल का आवरण उतार कर दिखा दिया है. भाई, बहुत मेहनत की होगी. इतने सारे ब्लॉगों को पढ़ना और उसमें महीन बखिया ढ़ूंढ़ना, और फिर उसे उधेड़ना - यह काला चश्मा लगा कर तो सम्भव नहीं है. कितनी फोकल लेंथ का उन्नतोदर लेन्स खरीदा था इतना महीन काम करने के लिये!!!

Rajesh Roshan said...

ज्ञानदत्त जी ने सही कहा । काफी मेहनत कि होगी आपने । एक एक ब्लोग को पढना और उसके बाद लिखना । सराहनीय लेख।

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर संजीत भाई, आपने व्‍यंग की विधा को पकड लिया है अब उडनतस्‍तरी भाई व ज्ञानदत्‍त पंडित जी को पकडे रहो, होनहार विद्वान के होत चीकने पात ।

ghughutibasuti said...

बहुत खूब ! लगे रहो मुन्ना भाई ! फिर आँख वाँख साफ करवानी हो तो हमारी कविताएँ तो हैं
ही । मुन्ना भाई की आँख में पानी लाने की खुशी में मेरी आँख में भी ...........
घुघूती बासूती

Sanjeet Tripathi said...

@शुक्रिया मनीष व अरुण भाई।

@आपका आभार ज्ञान दद्दा। जी कुछ खास मेहनत नहीं की क्योंकि ये वह चिट्ठें हैं जिनकी तकरीबन मैं हर पोस्ट पढ़ता ही रहता हूं। अभी और भी चिट्ठे हैं जिन्हें मुन्ना भाई बाद में लेकर आएगा किसी और मौके पर!
रहा सवाल काले चश्में का तो मुझे वैसे भी नज़र का चश्मा लगा हुआ है, हे हे हे।

@धन्यवाद राजेश रोशन जी।

@शुक्रिया संजीव भैय्या। बस आशीर्वाद देकर उत्साह बढ़ाते रहिए।

@घुघूती बासूती आपका शुक्रिया। वो सब तो ठीक है पर आंख से ज्यादा पानी निकलना भी ठीक नहीं ना!! वैसे इंतजार रहेगा आपकी नई कविताओं का।

Unknown said...

"सूचना-- कृपया इस सीरीज़ की पोस्ट को सिर्फ़ बतौर मनोरंजन ही लें!! यदि इसे उल्लेखित व्यक्ति आक्षेप के रुप में लेते हैं तो क्षमा!!!"

पिछली पोस्ट पढ़ कर तो मैंने हर शब्द आक्षेप में लिया था.....कहीं उल्लेख ही नहीं.....पर आज ठीक है.... :)

सुनीता शानू said...

बहुत अच्छा मज़ाक कर लेते है मुन्ना भाई...बहुत अच्छा लगा पढ़कर आशा करते है अगली मींटिंग में आप भी शामिल होंगे....:)


सुनीता(शानू)

Anonymous said...

मस्त लिखा है मामू!!!

गरिमा said...

ओह! मुझे थोडी देर हो गयी, क्या है की डंडा ढूँढ रही थी :P।

बहुत मजा आया :)

azdak said...

लगे रहो, सिपाही..

Sanjeet Tripathi said...

@बेजी,आपको ठीक लगा मतलब कि सब ठीक ही है। शुक्रिया

@लो कल्लो बात सुनीता जी,आपको मजाक ही लग रहा है ये। आपको पढ़कर अच्छा लगा यह पढ़कर हमें अच्छा लगा। अगली मीटिंग में आप भी शामिल रहेंगी न फ़िर तो अपन आएंगे ही।

@अतुल जी शुक्रिया, स्नेह बनाएं रखें।

@गरिमा जी वो क्या है ना कि मुन्नाभाई नें आपके आफ़िस का डंडा कहीं छुपा दिया था। आभार आपका।

@प्रमोद जी चिट्ठे पर पधारने का शुक्रिया। मार्गदर्शन जारी रखें।

Anonymous said...

This is an excellent writing. Worth getting published in any good magazine or newspaper.

ePandit said...

"याद रखने का ना, अगर अपुन को नारद पे रजिस्ट्री नई मिली ना तो ना रहेगा ई और ना रहेगा पंडित। बाकी रहेगा सिरफ़…घं……।"

अरे दिलवाता है भाई रजिस्ट्री, अपुन को इदर रहना मांगता है ना, आप से पंगा लेके किदर जाएगा। बाकी हिन्दी लिखने-पढ़ने को अपुन की पाठशाला है ना। :)

Anita kumar said...

hahahahaha bahut khoob sanjeet bhai yeh aapka munna bhai toh kaafi jaankaar insaan lagta hai aur achcha kiya usko membership de hi di ...bahut badhiya likha hai

अविनाश वाचस्पति said...

मस्ती की इस पाठशाला में खूब मजा आया
रोज एक लाईन लिखी होगी मामू है बनाया
मुन्नाभाई का ब्लॉग क्यों न है जी बनवाया
सरकिट से ब्राडबैंड इंटरनेट बेतार खिंचवाया

shikha varshney said...

Bple to jhakkas post hai ekdam

अनूप शुक्ल said...

मजेदार है। कई सितारे फ़िर से च्मकते दिखे। जय हो!

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।