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28 October 2010

छत्तीसगढ़ का सफर:तारीख बन गई अटलजी की ‘वो’ हुंकार

सनत चतुर्वेदी
 छत्तीसगढ़ राज्य एक नवम्बर को अपनी दसवीं सालगिरह मनाने जा रहा है, इस मौके पर अग्रणी समाचार पत्र दैनिक भास्कर के वरिष्ठ पत्रकार श्री सनत चतुर्वेदी ने इतिहास में झांकते हुए छत्तीसगढ़ राज्य  की संघर्ष यात्रा के सौ साल के उन क्षणों को अपने शब्दों में सहेजा है जिन क्षणों से गुजरकर इस राज्य की कल्पना की गई और आख़िरकार यह कल्पना फलीभूत हुई.  साभार दैनिक भास्कर  वह सफर यहाँ प्रस्तुत है.

पहली किश्त यहां पढ़ी जा सकती है।  अब आगे…

 

पृथक राज्य की मांग को केंद्र में रखकर आचार्य नरेंद्र दुबे ने 1965 में ‘छत्तीसगढ़ समाज’ की स्थापना की। इसके करीब दो साल बाद यानी 1967 में डॉ. खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ी महासभा को विसर्जित कर ‘छत्तीसगढ़ी भ्रातृ संघ’ बनाया और राज्य की मांग को पुनर्जीवित किया लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नद्रष्टा के रूप में प्रतिष्ठित डॉ. बघेल का 1969 में निधन हो गया।


इसके बाद संत कवि पवन दीवान छत्तीसगढ़ में एक नए नक्षत्र के रूप में उभरे।जुलाई 1969 में पवन दीवान की अध्यक्षता में ‘छत्तीसगढ़ राज्य समिति’ का गठन हुआ। राज्य निर्माण के लिए कोई बड़ा आंदोलन तो उस दौरान नहीं हुआ पर गतिविधियां बनी रही। आदिवासी नेता लालश्याम शाह, मदन तिवारी, डॉ. पाटणकर, वासुदेव देशमुख आदि कई नेता सक्रिय रहे।

आपातकाल के बाद 1977 में फिर एक उबाल आया लेकिन तमाम छत्तीसगढ़ हितैषी और कांग्रेस विरोधी नेता जपा लहर में ‘राजनेता’ बन गए। पुरुषोत्तम कौशिक, बृजलाल वर्मा केंद्र में मंत्री बने तो पवन दीवान राज्य में। छत्तीसगढ़ राज्य की मांग हाशिए में चली गई। छिटपुट आवाजें उठती रही, नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह।


मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व काल में छपसा ने जरूर उन्हें ज्ञापन सौंपा और राज्य की मांग को जीवित रखा था। केंद्र और प्रदेश की राजनीति में ‘शुक्ल परिवार’ का शुरू से दबदबा रहा लेकिन पृथक छत्तीसगढ़ में इस परिवार की दिलचस्पी नहीं थी।


राज्य निर्माण के अंतिम दिनों में करीब साल सवा साल पहले विद्याचरण शुक्ल जरूर इस आंदोलन में शामिल हुए तब लगभग निर्णायक स्थिति बन चुकी थी। यह निर्णायक स्थिति (1990-2000) दशक के दौरान ही बनी। इसकी शुरुआत भाजपा नेता डॉ. केशव सिंह ठाकुर ने की। उन्होंने राज्य निर्माण को पार्टी में मुद्दा बनाया।


भाजपा के वरिष्ठ नेता उनसे नाराज हो गए। उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंच’ का गठन किया। उसी दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी को पृथक राज्य के लिए ज्ञापन सौंपा गया। यह ज्ञापन गिरफ्तारी से बचने के लिए उड़ीसा सीमा में दिया गया।


इसमें हरि ठाकुर ने अहम भूमिका निभाई। इसके बाद उन्हीं की अगुवाई में सर्वदलीय मंच बना और सभी दलों से अपील की गई अगले चुनाव (1993) में छत्तीसगढ़ राज्य के मुद्दे को घोषणा पत्र में शामिल किया जाए। इसका जबरदस्त असर हुआ। मजबूरी में ही सही कांग्रेस-भाजपा ने भी इस मांग को घोषणा पत्र में जगह दी लेकिन पार्टी नेता ढुलमुल रवैया अपनाए रहे।

सर्वदलीय मंच के बैनर तले वरिष्ठ कांग्रेस नेता चंदूलाल चंद्राकर अपने जीवन के अंतिम दिनों में बेहद सक्रिय रहे। 5 अक्टूबर 1993 को छत्तीसगढ़ महाबंद का ऐलान किया गया था, जिसे अभूतपूर्व और ऐतिहासिक सफलता मिली।


राज्य की मांग जन आंदोलन का रूप ले चुकी थी। राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इस आंदोलन में छत्तीसगढ़ समाज पार्टी और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 2 जनवरी 1995 को रायपुर में सर्वदलीय मंच की जबरदस्त रैली निकली जिसमें छत्तीसगढ़ के 7 सांसद, 23 विधायक और दो मंत्री शामिल हुए।

चंदूलाल चंद्राकर के निधन के पश्चात मंच बिखर सा गया लेकिन तब तक राज्य की मांग राजनीतिक दलों के लिए अनिवार्यता बन चुकी थी। हालांकि आंदोलन में शिथिलता आ रही थी। तभी राजनीतिक पराभव के दिनों में सभी संभावनाओं को समेटकर विद्याचरण शुक्ल इस आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने राज्य संघर्ष मोर्चा का गठन किया।


उनके आंदोलन का असर दिल्ली तक होने लगा। इन्हीं कारणों से चुनाव (98-99) के दौरान भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने रायपुर की सभा (सप्रेशाला मैदान) में बुलंद आवाज में जनता से वादा किया था ‘आप मुझे 11 सांसद दो मैं छत्तीसगढ़ दूंगा’। और कुछ समय बाद .. वह घड़ी आ गई.. जब सपना साकार हुआ।

अटल की वो हुंकार यादगार तारीख बन गई। केंद्र में अटल सरकार बनी। लगभग एक साल बाद यानी 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी। 4 सितंबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और पुरखों का सपना साकार हुआ।


साभार दैनिक भास्क

7 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय said...

पठनीय इतिहास।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

संजीत भाई, अच्‍छा लगा छत्‍तीसगढ का यह सफरनामा पढकर।

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सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्‍कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।

ASHOK BAJAJ said...

'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्‍य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।

दीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर

Unknown said...

दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!

amar jeet said...

बदलते परिवेश मैं,
निरंतर ख़त्म होते नैतिक मूल्यों के बीच,
कोई तो है जो हमें जीवित रखे है,
जूझने के लिए है,
उसी प्रकाश पुंज की जीवन ज्योति,
हमारे ह्रदय मे सदैव दैदीप्यमान होती रहे,
यही शुभकामनाये!!
दीप उत्सव की बधाई...................

Girish Kumar Billore said...

उत्तम आलेख
पिछली यादें तरोताज़ा करने के लिये आभार
महाजन की भारत-यात्रा

Rahul Singh said...

जितने अभिलेख और संदर्भ संभव हो, एकत्र कर सार्वजनिक करना जरूरी है, इसी दृष्टि से मैंने अपने ब्‍लॉग पर पोस्‍ट 'छत्‍तीसगढ़ राज्‍य' में अग्रदूत की प्रति लगाई हे, जिसमें ठाकुर रामकृष्‍ण सिंह जी का सदन में दिया गया भाषण शब्‍दशः छपा था.

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