सबसे पहले तो आभार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय का जिसने समय को जानते-बूझते हुए हिंदी ब्लॉगिंग के संदर्भ में कार्यशाला व गोष्ठी का आयोजन करना शुरु किया और आवारा बंजारा को भी उसमें शिरकत करने का मौका दिया। बात अब आगे करें…
एक समय में देश के वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन की प्रमुख कविताएं बनीं जनता का आदमी और गोली दागो पोस्टर जैसी कविताएं लिखने वाला शख्स आलोक धन्वा जब यह कहे कि कि " पहली बार जब उन्हें किसी ने इंटरनेट पर हिंदी ब्लॉग्स के बारे में बताया और उन्होंने पटना में पहली बार ब्लॉग देखना शुरु किया तो बड़े ही कौतुक से देखा"। तो यह ब्लॉग और खासतौर से हिंदी ब्लॉग्स जब देश के मूर्धन्य साहित्यकारों के द्वारा भले ही कौतुक की नजर से देखे जाते हों लेकिन वह अब अपनी धमक इतनी बढ़ा चुके हैं कि कंप्यूटर के क ख ग से अपरिचित रहने वाले साहित्यकार भी अब ब्लॉग्स की ओर रुख कर रहे हैं।
वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में 9-10 अक्टूबर को 'हिंदी ब्लॉग की आचार संहिता' विषय पर आयोजित दो दिनी कार्यशाला व गोष्ठी में शारीरिक लिहाज से बुजुर्ग लेकिन विचारों से खांटी नौजवान इस कवि आलोक धन्वा ने अपने पूरी उर्जा के साथ देश भर से आए ब्लॉगर्स के बीच रहकर ब्लॉग्स को जाना समझा और कार्यशाला के उद्घाटन के दौरान अपनी राय इसके बारे में व्यक्त करते हुए कहा कि "यह अंतत: एक व्यक्ति पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करता है, उसकी ज्ञान और नैतिकता पर निर्भर करता है"। आगे वे कहते हैं कि "आचार संहिता यदि भारी भरकम शब्द है तो नैतिकता की नजर से देखिए, एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक के नजरिए से। जब आप ब्लॉग पर कवियों के बारे में लिखते हैं तो सवाल उठता है कि आप हिंदी या अन्य भाषाओं के कितने कवियों को कितना जानते हैं"।
धन्वा का इशारा इस ओर था कि ब्लॉग पर लिखने वाला अपने को सर्वज्ञानी समझते हुए ही न लिखे जैसा कि हिंदी ब्लॉग्स में अक्सर देखा जाता है। उन्होंने ब्लॉग बिरादरी से इस बात की अपेक्षा की कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ने में आजादी को आगे बढ़ाने में सहयोग करें। वाकई उनकी यह अपेक्षा आज के इस समय में सटीक है क्योंकि वर्तमान दौर में देश एक तरह से वैचारिक गुलामी की ओर बढ़ता जा रहा है और यह वैचारिक गुलामी एमएनसी कंपनियों व उनके उत्पादों के माध्यम से आ रही है।
पिछले दिनों अपने बयान से काफी ज्यादा चर्चा में आए और आलोचित हुए विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने यह स्पष्ट किया कि "विवि के बारे में यह धारणा रही है कि यह महज हिंदी साहित्य का विवि है लेकिन हकीकतन यह हिंदी भाषा की सभी विधाओं का विवि है। इंटरनेट पर अभिव्यक्ति के सबसे नवीनतम तरीके ब्लॉग को यह विवि नजरअंदाज नहीं कर सकता। इसके लिए यह आयोजन दूसरी कड़ी है, पहली कड़ी के रुप में पिछले साल इलाहाबाद में हुई वर्कशॉप है"। उन्होंने ब्लॉगरों से यह कहा कि "हम ऐसा कुछ न करें कि राज्य प्रतिष्ठान्न दखल दे, सेंसर न बिठा दे"।
प्रथम सत्र में सबसे आश्चर्यजनक जो बात लगी वह यह कि विषय प्रवर्तन की जिम्मेदारी निभा रहीं
राजस्थान की ब्लॉगर व राजस्थान साहित्य अकादमी की पूर्व अध्यक्ष डॉ अजीत कुमार ने अपने वक्तव्य में ब्लॉग्स की आचार संहिता के रुप में एक पंचायत बनाने की जरुरत बताई । इसके बाद हिंदी ब्लॉग्स के शुरुआती ब्लॉगरों में शामिल कानपुर निवासी अनूप शुक्ल ने कहा कि "ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात करना खामख्याली है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का माध्यम है। समय और समाज की जो आचार संहिताएं जो होंगी वे ही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगी। इसके अलावा ब्लॉगिंग के लिये अलग से आचार संहिता बनाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए"।
पहले दिन के दूसरे सत्र में हिंदी ब्लॉगिंग पर कार्यशाला रखी गई जिसमें यह जानकर खुशी हुई कि करीब पचास से ज्यादा प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया था। विवि के छात्रों से लेकर उड़ीसा के संबलपुर के बैंक कर्मचारी भी इसमे शामिल थे।
दूसरे दिन के पहले सत्र में ब्लॉगरों के समूह् ने अपनी चर्चा के बाद बनाए गए समूह के प्रतिनिधि रुप में उस समूह के एक ब्लॉगर ने अपने समूह की राय वक्तव्य के रुप में सामने रखीं। दूसरे दिन सबसे खास बात थी, देश के प्रख्यात साइबर लॉ एक्सपर्ट व सुप्रीम कोर्ट के वकील पवन दुग्गल का व्याख्यान।
पवन दुग्गल ने अपने वक्तव्य में कई उदाहरण दिए जिसमें किसी कंपनी के खिलाफ कोई अज्ञात बेनामी ब्लॉगर उसके उत्पाद के बारे में अंट-शंट लिखे जा रहा था। कोर्ट में मामला ले जाया गया। उस ब्लॉगर के खिलाफ फैसला आया लेकिन दिक्कत यह थी कि वह ब्लॉग नार्वे से संचालित था। फिर इसके लिए भारतीय कमीशन के माध्यम से नार्वे के कमीशन से संपर्क किया गया तब जाकर उस व्यक्ति तक पहुंचा जा सका।
उन्होंने मार्के की बात यह कही कि ब्लॉग धीरे-धीरे लेकिन जल्दी असर दिखाता है, लोग उसे पढ़कर एक धारणा कायम करते हैं। उन्होंने कारगिल हमले के दौरान बरखा दत्त पर ब्लॉग में लिखे जाने का भी हवाला दिया। जो सबसे बड़ी जानकारी उन्होंने दी वह यह कि " देश के इंफर्मेशन एक्ट 2000 में 2008 में संशोधन पारित किया गया जो कि 27 अक्तूबर 2009 से लागू हो चुका है। इस एक्ट के तहत अब ब्लॉग, ब्लैकबेरी यहां तक कि सेटेलाइट फोन भी आ चुके हैं ( सेटेलाइट फोन के संदर्भ में सवाल उज्जैन के एंग्री यंगमैन ब्लॉगर सुरेश चिपलूनकर ने पूछा)"। साइबर लॉ एक्स्पर्ट ने कहा कि " ब्लॉगिंग ने आपको पूरी स्वतंत्रता नहीं दी है कि किसी के बारे में कुछ भी जो मन में आया लिख दें, बिना किसी सबूत के। ब्लॉग कानून के दायरे में आ चुका है। कानूनन ब्लॉगिंग इंटरनिजरी है। धारा 79 कहता है कि जिम्मेदारी ब्लॉग, ब्लॉगर व ब्लॉगिंग प्लेटफार्म पर है। किसी जुर्म या कमीशन में भागीदार हैं तो पूरे तौर पर जिम्मेदार। तीन साल की सजा व पांच लाख का जुर्माना। पांच करोड़ तक का हर्जाना (6 माह के भीतर) भी हो सकता है"।
इसी दिन अंतिम सत्र में भोपाल में बैठकर फोन के माध्यम से सेमीनार के दौरान कंप्यूटर पर पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन देते हुए ब्लॉग जगत के एक अन्य पुरोधा रवि रतलामी ने यह स्पष्ट कर दिया कि "ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है। उन्होंने बतौर उदाहरण देते हुए बताया कि विकिलिक्स एक उदाहरण है कि कैसे इसके माध्यम से घोटालों को भी उजागर किया जा सकता है"।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि "जिसे कानून का उल्लंघन करना ही होगा उसके लिए इंटरनेट पर कई साफ्टवेयर मौजूद हैं जैसे कि टॉर जिनका उपयोग करते हुए वह बेनामी ब्लॉगिंग कर सकता है"।
बहरहाल! इस दो दिवसीय कार्यशाला व सेमीनार से यह बात तो उभर कर सामने आई कि हिंदी ब्लॉगिंग के लिए किसी आचार संहिता या रेगुलेटरी बोर्ड या फिर पंचायत जैसी किसी संस्था के लिए कोई गुंजाईश ही नहीं है। दरअसल यह संभव ही नहीं है। दूसरी बात यह कि अगर कानून है तो हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भले ही अपराधी हमेशा पुलिस से दो कदम आगे ही होता है लेकिन कानून के हाथ लंबे होते हैं। इसलिए स्व-नैतिकता ही ब्लॉगिंग में सबसे अनिवार्य तत्व है, यही एक ब्लॉगर की ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता है। लेकिन आधुनिक युग में अभिव्यक्ति के एक इतने अच्छे माध्यम का दुरुपयोग करने वाले और बिना सबूतों के कुछ भी लिख देने वालों के लिए कानून मौजूद ही है। भले ही आप ब्लॉग में पहले कुछ लिख दें और उसे लिखकर मिटा/ डिलिट कर दें लेकिन अगर सामने वाला उसका प्रिंट आउट/स्क्रीन शॉट लेकर रख लेता है तो उसके माध्यम से ही कानून अपना काम कर लेगा, जैसा कि साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कहा।
हैप्पी ब्लॉगिंग
39 टिप्पणी:
हां आपकी पोस्ट से ठीक ठीक पता लगा कि आखिर विधि विशेषज्ञ ने क्या कहा और जो कहा वो अक्षरश: सत्य है ..बस उसमें ये जोडना चाहता हूं कि ऐसा सिर्फ़ ब्लॉगिंग के लिए नहीं है ऐसा अभिव्यक्ति के हर माध्यम के लिए है ।हां चूंकि यहां बात ब्लॉगिंग की हो रही है इसलिए समीचीन है ही । अभी हाल ही में शायद अमिताभ बच्चन या किसी और फ़िल्मी हस्ती को उनके ब्लॉग पर कोई टिप्प्णी करके बिना वजह परेशान कर रहा था शिकायत की गई तो अक्ल ठिकाने आ गई । सिर्फ़ इतना समझिए न कि कल को यदि यहां हिंदी ब्लॉगिंग में राजनेता ,अभिनेता , वकील , उद्दोगपति भी आ जाते हैं तो उन्हें बेनामी सुनामी टिप्पणी तक करने वाला भी धरा जा सकता है । रिपोर्ट के लिए शुक्रिया
बहुत अच्छी रिपोर्ट और पत्रकारीय नज़रिये से डिंस्टिंक्शन मार्क्स पाने वाली।
अजय की बात से भी सरहमत हूं।
हम भोपाली नहीं जा पाए, इसका अफ़सोस है।
"इसलिए स्व-नैतिकता ही ब्लॉगिंग में सबसे अनिवार्य तत्व है, यही एक ब्लॉगर की ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता है।"
यही बाटम लाईन है ...सारे विमर्श की
आपकी रिपोर्ट ज्यादा तथ्यपरक और जानकारी भरी रही -आभार !
यह गोष्ठी अनेक उपलब्धियों वाली साबित हुई। आपने इस रिपोर्ट से हम सबके सम्मिलित प्रयास को और ऊँचाई दी है। हार्दिक धन्यवाद।
आचार संहिता का पालन किसी को बांध कर नही करवाया जा सकता है किन्तु यह नैतिक रूप से सभी अपने को इसके लिये प्रेरित करे तो निश्चित रूप से यह सम्भव है।
स्व-नैतिकता ही ब्लॉगिंग में सबसे अनिवार्य तत्व है, यही एक ब्लॉगर की ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता है। बिलकुल सही बात निकली है गोष्ठी से । संजीत तुम्हें बधाई ,तुम्हें इस महत्वपूर्ण विचार मंथन में आमंत्रित किया गया , हमें तुम पर गर्व है । बहुत महत्व की बातें तुम्हारी रपट से पढ़ने को मिलीं ,तुम्हें धन्यवाद। -आशुतोष मिश्र
आपके माध्यम से वर्धा सम्मलेन जानकार अच्छा लगा !
nice
... ब्लागिंग का मतलब नंगा नाच करने की आजादी नहीं है, ब्लागिंग हो या सामान्य जीवन जो भी कानून के दायरे से बाहर जायेगा उस पर निश्चित तौर पर कानूनी कार्यवाही होगी !!
..... वर्तमान समय में आचार संहिता की जरुरत ब्लागरों के लिये आवश्यक नहीं है वरन एग्रीगेटर्स, चर्चाकारों, मंचकारों व वार्ताकारों के लिये आवश्यक है जो ...... !!!
:) :) excellent reporting
suitable to a Journalist... :) :)
सम्मेलन का सारगर्भित विवरण आपने दे दिया।
हम सब ने लाख स्वीकार किया कि ब्लागिंग में किसी आचार-संहिता की आवश्यकता नहीं है और ना ही यह संभव है लेकिन पवन दुग्गल जी ने जिन कानूनों का जिक्र किया उससे तो यह स्पष्ट है कि हम कितना ही अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों को नकार दें लेकिन कानून तो बन चुके हैं और अब सभी को सावधान भी होना ही चाहिए। इसलिए जितना जल्दी हो उतना ही हमें सावधान और जानकार होना होगा नहीं तो कुछ लोंगों की असावधानी दुर्घटना का कारण भी बन सकती है। आपसे वर्धा में मिलना अच्छा लगा, स्नेह बनाए रखिए।
Well written. Ab yeh batayein ki cyber laws ki jaankaari kahan se milegi aur usse use karne ka tarika kya hai.
Hamare khyaal se kisi ne apne blog par yeh jaankaari deni chahiye--types of cyber crime, aur usse jude law/rule, aur kaise use kiya jaaye.
Filhaal yeh blogging se jude hi hon tab bhi thik hai.
बहुत ही सारगर्भित रिपोर्ट ...गोष्ठी में भाग लेने वालों के विचारों से अवगत कराने का शुक्रिया
अच्छी रिपोर्ट.ज्ञानवर्धक.अफसोस है कि चाह कर भी मैँ एक अच्छे कार्यक्रम मेँ जा नही सका.आप लोग गये,आपको बधाई.
शुक्रिया, आपने संगोष्ठी और कार्यशाला को ठीक ढंग से लोंगों तक पहुँचाया, अन्यथा हम तो अभिशप्त थे तोड़ - मरोड़ कर प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट को पदने के लिए. पुनश्च, धन्यवाद.
पवन दुग्गल जी के ब्लॉग का पता http://www.pavanduggal.com/
आभार सम्मेलन के बारे में इस जानकारी का.
नहीं जाने का अफसोस है, मगर वह भी विवशता ही थी।
रपट संक्षिप्त और बहुत अच्छी है। निश्चित रुप से कोई आचार संहिता नहीं बनाई जा सकती है। लेकिन जो कानून दूसरे संचार माध्यमों पर लागू होते हैं वे सभी ब्लागीरी और अंतर्जाल पर भी।
आपकी रिपोर्ट ज्यादा तथ्यपरक और जानकारी भरी रही -आभार !
वहां नहीं पहुंच पाने का अफसोस ही रहेगा .. रिपोर्ट के लिए शुक्रिया !!
इन्सान ब्लॉग लिखता है ..ब्लॉग इन्सान को नहीं लिखता ...इसलिए मानवीय गुण-अवगुण की अभिव्यक्ति तो ब्लॉग पर दिखेगी ही ..लेकिन हमसब अगर मानवीय मूल्यों को आगे बढ़ाने और परोपकार के साथ जन कल्याणकारी बातों के प्रचार-प्रसार के लिए ब्लॉग को माध्यम बनायें तो ब्लॉग देश और समाज को सही दिशा देने में जनसंचार के सभी माध्यमों को पीछे छोड़ सकता है ...
बहुत सुंदर जानकारी, बाकी मै भी अजय झा जी से सहमत हुं, धन्यवाद
अब अजित वेडनेकर जी ने फ़ुल मार्क्स दे दिये हैं रिपोर्ट को पत्रकार की नजर से…।इस से ज्यादा तारीफ़ क्या हो सकती है? पार्टी दो
रपट प्रतीक्षित था. खोज-खबर देने के लिए आभार.
सेमिनार का संयत सफर।
हर विचार पर पूरी नजर।
अच्छी गली है अच्छी डगर।
बढ़िया लिखा है .....
यहाँ भी आये , आपकी चर्चा है यहाँ
http://malaysiaandindia.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.html
वर्धा आयोजन को लेकर जितनी पोस्टें पढ पाया, उनमें यह सर्वाधिक वस्तुपरक लगी। इसमें आप कहीं नहीं हैं, केवल आयोजन है।
आचार संहिता इस समय तो सम्भव नहीं लगती। आत्मानुशासन ही श्रेष्ठ उपाय है। हम सब एक दूसरे की चिन्ता भले ही न करें, 'ब्लॉग' की चिन्ता अवश्य करें क्यों कि हम सब ब्लॉगर हैं और तभी तक हैं जब तक कि ब्लॉग है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे अप्रितिष्ठित और अस्वीकार्य न बनने दें।
मेरे लिए, 'ब्लॉग' सामाजिक परिवर्तनों के लिए उपयोगी होने की सर्वाधिक सम्भावनाओंवाला औजार है। मैं इसे, इसी तरह प्रयुक्त करना चाहूँगा।
सन्तुलित और वस्तुपरक रिपोर्ट के लिए आपको एक बार फिर साधुवाद।
बहुत ही अच्छी रिपोर्टिंग। लगा वर्धा सम्मलेन का मजा घर मे ही आ रहा है......आभार
www.srijanshikhar.blogspot.com पर ' क्यों तुम जिन्दा हो रावण '
धाँसू रिपोर्ट है ।
इस सम्मेलन पर यह रपट कुछ ठोस जानकारी से युक्त लगी ।
भविष्य में यह जानकारियाँ काम आयेंगी ।
अभी साहित्य सम्मेलनों में धीरे धीरे एक लेखक के रूप में जाना जा रहा हूँ , एक ब्लॉगर के रूप में पहचान बनने मे अभी समय लगेगा , तब शायद ऐसे सम्मेलनों में जाने का अवसर मिले ।
अच्छी रिपोर्ट पढ़ने को मिलीं.धन्यवाद।
ब्लॉग की शक्ति बढ़ रही है , यह तो स्पष्ट ही है ! बस इसे स्तरीय बनाने की चेष्टा होनी चाहिए ! यही ज्ञान होना जरूरी है कि ब्लॉग लेखक की मूल-चेतना यह रहे कि वह स्वयंभू परमज्ञानधर नहीं है ! पर यह सब किसी आचार-संहिता को बनाकर कितना किया जा सकता है ? कौन मानेगा ? कितना मानेगा ? अंततः मामला वैयक्तिक सोच-समझ पर जाता है | मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता आया हूँ कि एक पाठक के तौर पर ब्लोगेर ज्यादा जागरूक हो ! काफी आचार-विचार तो इसी से निर्धारित हो जायेंगे !
धन्वा जी ने इसे न्यूनतम पाखण्ड की विधा कहा है | एक दृष्टि से यह सही भी है | मीडिया को देखता हूँ तो मुझे हिन्दी ब्लागिंग ज्यादा सुकून देती है ( कम से कम हिन्दी भाषा के सौन्दर्य के लिहाज से तो कह ही सकता हूँ ) ! पर पाखण्ड तो व्याप ही रहा है | जरूरी है कि इन पाखंडी तत्वों ( व्यक्ति / प्रवृत्ति ) को लक्षित किया जाता रहे | बस यह बता दिया जाय कि यह ऐसा है और इसके यह कुप्रभाव हैं ! इसके लिए तजुर्बेदार ब्लॉगर ज्यादा सही होंगे |
पवन दुग्गल जी द्वारा दी गयी जानकारियाँ मेरे लिए सर्वथा नयी हैं ! खुशी भी हुई जानकार ! इस जानकारी को और फैलाने की जरूरत है !
आयोजन करने वाले समूह को आभार ! सिद्धार्थ जी से बात हुई थी पर विगत माह से ही कई पेचीदगियों की वजह से चांस न बन सका ! नहीं तो वहाँ आप जन के दर्शन और बातचीत का लाभ दोनों मिलता ! सुन्दर रिपोर्टिंग ! आभार !
ब्लॉग की शक्ति बढ़ रही है , यह तो स्पष्ट ही है ! बस इसे स्तरीय बनाने की चेष्टा होनी चाहिए ! यही ज्ञान होना जरूरी है कि ब्लॉग लेखक की मूल-चेतना यह रहे कि वह स्वयंभू परमज्ञानधर नहीं है ! पर यह सब किसी आचार-संहिता को बनाकर कितना किया जा सकता है ? कौन मानेगा ? कितना मानेगा ? अंततः मामला वैयक्तिक सोच-समझ पर जाता है | मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता आया हूँ कि एक पाठक के तौर पर ब्लोगेर ज्यादा जागरूक हो ! काफी आचार-विचार तो इसी से निर्धारित हो जायेंगे !
धन्वा जी ने इसे न्यूनतम पाखण्ड की विधा कहा है | एक दृष्टि से यह सही भी है | मीडिया को देखता हूँ तो मुझे हिन्दी ब्लागिंग ज्यादा सुकून देती है ( कम से कम हिन्दी भाषा के सौन्दर्य के लिहाज से तो कह ही सकता हूँ ) ! पर पाखण्ड तो व्याप ही रहा है | जरूरी है कि इन पाखंडी तत्वों ( व्यक्ति / प्रवृत्ति ) को लक्षित किया जाता रहे | बस यह बता दिया जाय कि यह ऐसा है और इसके यह कुप्रभाव हैं ! इसके लिए तजुर्बेदार ब्लॉगर ज्यादा सही होंगे |
पवन दुग्गल जी द्वारा दी गयी जानकारियाँ मेरे लिए सर्वथा नयी हैं ! खुशी भी हुई जानकार ! इस जानकारी को और फैलाने की जरूरत है !
आयोजन करने वाले समूह को आभार ! सिद्धार्थ जी से बात हुई थी पर विगत माह से ही कई पेचीदगियों की वजह से चांस न बन सका ! नहीं तो वहाँ आप जन के दर्शन और बातचीत का लाभ दोनों मिलता ! सुन्दर रिपोर्टिंग ! आभार !
बढ़िया लिखा है। तभी तो पत्रकारिता सीखनी पड़ती है। अपने बारे में कुछ नहीं आयोजन के बारे में ही लिखा है।
घुघूती बासूती
patrkarita ke andaaz mein pesh ki gayee yah reportaaz dhaansoo hai. aapa sabase mil paaye ye badhiyaa rahaa
बढ़िया जानकारी के लिए आभार ! आपने सारांश तो दे दिया पर मैं अभी भी विस्तृत रिपोर्ट के इन्तजार में हूँ !!
आयोजन करने वाले समूह को आभार आपकी रिपोर्ट तथ्यपरक और जानकारी भरी रही -आभार
HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI
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