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02 December 2010

प्राण गंवा दिए पर नहीं ली एलोपैथी दवा

केवल स्वेदशी की बातें नहीं की, उस पर आचरण भी किया। बाबा रामदेव के निवेदन पर तैयार हुए एंजियोग्राफी के लिए।
गोविंद पटेल
स्वेदशी जागरण के प्रणेता राजीव दीक्षित ने अंतिम सांसों तक विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का विरोध किया। मृत्यु के छह घंटे पहले तक डाक्टरों ने उन्हें एलोपैथी दवाएं लेने की सलाह दी, लेकिन उन्होंने अपने जान की परवाह किए बगैर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की दवाई खाने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपने होम्योपैथी दवाईयों को खान पसंद किया। 

राजीव दीक्षित
श्री दीक्षित को मंगलवार को शाम 4.30 बजे सीने में दर्द हुआ। वे बेमेतरा से दुर्ग आ रहे थे। उन्होंने इस दर्द को गैस की वजह समझा। दुर्ग पहुंचे पर दर्द बढ़ने पर उनके सहयोगी कार्यकर्ताओं ने जिद करके उन्हें शाम 6.30 बजे बीएसपी के सेक्टर नौ हास्पिटल में दाखिल कराया। वहां डाक्टरों ने इसे हार्ट अटैक का केस बताया। तब भी श्री दीक्षित ने होम्योपैथी दवा को प्राथमिकता दी। उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया कि उन्होंने एक बार एरोप्लेन में हार्टअटैक के मरीज को यह दवा दी थी। इस दवा से राहत मिल जाएगी। लगभग 10 बजे बाबा रामदेव ने श्री दीक्षित से बात की। उन्होंने नई दिल्ली के मेदांता मेडिसिटी के चीफ कार्डियोलाजिस्ट डा. प्रवीण चंद्र बीएसपी हास्पिटल के डाक्टरों से बात कराई। इसके बाद श्री दीक्षित को एक इंजेक्शन लगाया गया। इससे उन्हें थोड़ी राहत मिली। दिल्ली के डा. प्रवीण चंद्र ने एंजियोग्राफी की सलाह भी दी। बाबा रामदेव ने फिर फोन पर उन्हें एंजियोग्राफी कराने का आग्रह किया, लेकिन बीएसपी हास्पिटल में यह सुविधा नहीं थी, इसलिए उन्हें रात 11 बजे अपोलो बीएसआर हास्पिटल लाया गया। वहां दो घंटे इलाज के बाद उन्होंने अंतिम सांसें ली।

इंजीनियर थे राजीव
श्री दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1966 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के एटा गांव में हुआ। उनके पिता राधेश्याम दीक्षित ब्लाक डेवलपमेंट आफिसर थे। श्री दीक्षित के छोटे भाई प्रदीप और बहन लता हैं। प्रदीप भी स्वदेशी आंदोलन से जुड़े हैं, वे वर्धा में रहते हैं। श्री दीक्षित ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी-टेक की डिग्री ली। इलेक्ट्रानिक्स एंड टेलीकम्यूनिकेशन में उन्हें गोल्ड मैडल मिला था।
भोपाल गैस कांड से शुरूआत
1984 में भोपाल गैस कांड के दो साल बाद इलाहाबाद में एक संगोष्ठी हुई, जिसमें आजादी बचाओ आंदोलन की नींव रखी गई। श्री दीक्षित उसमें एक सदस्य थे। 1988 से 1991 तक श्री दीक्षित ने मल्टीनेशनल कंपनियों के बारे में गहन अध्ययन किया। इसके बाद वर्धा में आजादी बचाओ आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा किया गया। वर्धा में इसके लिए सात सदस्यीय संयोजन समिति बनी। श्री दीक्षित ने मल्टीनेशनल कंपनियों की जीरो टेक्नालाजी का मुखर विरोध किया। उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मकड़जाल नामक पुस्तक लिखी। उन्होंने देश के उन बातों का भी विरोध किया, जो आम लोगों के हित में नहीं थे। उन्होंने वैट, डब्ल्यूटीओ पर हस्ताक्षर और खड़ा नमक पर प्रतिबंध लगाने का विरोध किया। 2005 से वे बाबा रामदेव से संपर्क में आए। 2008 में स्वामी रामदेव की पतंजलि योगपीठ ने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना की, जिसमें श्री दीक्षित सचिव बने।

राष्ट्रीय चेतना जगाई : डा. सिंह
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने स्वदेशी जागरण अभियान और आजादी बचाओ आंदोलन के प्रमुख राजीव दीक्षित के आकस्मिक निधन पर गहरा दु:ख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि श्री दीक्षित ने स्वदेशी जागरण अभियान और आजादी बचाओ आंदोलन के जरिए देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना के विकास और विस्तार के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे जनजागरण के लिए छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में गए। वे लोगों के बीच लोकप्रिय थे। रायपाल शेखर दत्त ने भी श्री दीक्षित के निधन पर शोक व्यक्त किया। रायपाल ने कहा कि उन्होंने लोगों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने का प्रयास किया। देश को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने लोगों में स्वाभिमान जगाया।

( गोविंद पटेल छत्तीसगढ़ शासन द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में दिए जाने वाले  "चंदूलाल चंद्राकर स्मृति फैलोशिप" से सम्मानित पत्रकार हैं और इन दिनों दैनिक भास्कर के रायपुर संस्करण में कार्यरत हैं।
आवारा बंजारा पर उनकी पुरानी प्रविष्टियां  भोला छत्तीसगढ़िया,चतुर बी एस पी और भोला छत्तीसगढ़िया,चतुर बी एस पी और गोविंद पटेल पढ़ी जा सकती हैं।)

14 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय said...

दिवंगत आत्मा को नमन, आस्था चैनल पर इनके बौद्धिक संभाषणों ने कई गलत विचार धाराओं का ध्वंस किया है।

Roshani said...

यह क्षति अपूर्णीय है...स्वर्गीय राजीव जी को शत शत नमन.

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई संजीत, बहुत दुखद समाचार है लेकिन यह तो बहुत ही दुखद है कि उन्‍होंने लापरवाही की। उनकी देश को बहुत जरूरत थी और वे चले गए। उनके भाषण सुनकर एक विश्‍वास जगा था कि इस मार्ग पर चलकर देश को नवीन उर्जा मिलेगी लेकिन हत भाग्‍य।

Gyan Dutt Pandey said...

अपनी धुन के आदमी लगते थे दीक्षित जी। विनम्र श्रद्धांजलि।

patathikana said...

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Sanjeet Tripathi said...

(गोविंद पटेल जी ने अपनी बात कमेंट के रुप में रखी लेकिन चाणक्या-भास्कर फोंट में। जो कि कई पाठकों को गार्बेज(कूड़े) के रुप में दिखेगा। इसलिए उसे मंगल फोंट में कन्वर्ट कर नीचे दिया जा रहा है। )


संजीत जी, धन्यवाद

श्री दीक्षित जी के जाने से मुझे ठीक नहीं लग रहा था, इसलिए यह स्टोरी लिखी। वैसे मेरा मानना है कि बाबा रामदेव मल्टीनेशनल कंपनियों के बारे में जितना बोलते हैं, वह श्री दीक्षित जी की ही बातें हैं। श्री दीक्षित जी को वैसी ख्याति नहीं मिली, जैसा उनकी आवाज को मिलना था। बीते 10 सालों में मुझे कई बार उन्हें सुनने का अवसर मिला। उनका इंटरव्यू भी लिया। बाबा रामदेव के साथ योग शिविर के मंच में उन्हें अच्छा प्लेटफार्म मिला, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनके भाषण की जितनी भी सीडी या कैसेट बने हैं, उनको किताब में लिखना चाहिए। यदि कोई ब्लागर अपने ब्लाग में उनके भाषण को स्थान दे तो यह उन्हें सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

धन्यवाद
गोविंद पटेल
098931 72336

36solutions said...

राजीव जी को शत शत नमन, श्रद्धांजली.

गोविंद पटेल जी के भावनात्‍मक उद्गार के लिए आाभार, गोविन्‍द जी कल से ही बहुत सारे हिन्‍दी ब्‍लॉगों और पोर्टलों में राजीव जी के भाषणों की टेक्‍स्‍ट कापी और आडिया-वीडियो फारमेट पब्लिश हो रहे हैं, आदरणीय युगप्रवर्तक राजीव जी के साईट पर भी उनके आलेख संग्रहित हैं, इसके अलावा भी उनके पूरे देश भर के कार्यक्रमों में दिए गए भाषणों व विचारों को संग्रहित किए जाना चाहिए।

उम्मतें said...

संजीत जी ,
जीवन रहे तो आंदोलन को भी सांस ही मिलती !

उन्होंने प्राण दिए पर एलोपैथी नहीं ली ,पर बड़े धर्मसंकट में हूं क्या कहूं ?

जीवन अनमोल हो तो उसे बचाना ही चाहिए किसी भी कीमत पर ?

या फिर कथनी और करनी का भेद मिटाने के जतन किये जाएँ ?

किसी आख़िरी नतीजे पर पहुँच नहीं सका !

Rahul Singh said...
This comment has been removed by the author.
Rahul Singh said...

श्रद्धांजलि, मुझे बिलासपुर में अवसर मिला था, उन्‍हें सुनने का, गजब की वक्‍तृत्‍व प्रतिभा के धनी थे वे. लेकिन इस पोस्‍ट का शीर्षक गंभीर रूप से अखरने वाला है, ऐसा लगता है कि एलोपैथी दवा ली होती तो प्राण बच जाते या यों कहें कि एलोपैथी के अलावा अन्‍य पैथी में प्राण बचाने का तरीका नहीं है और अगर दरअसल ऐसा है तो इस तरह जान गंवाने से एलोपैथी का सत्‍प्रचार ही हो रहा है और स्‍वदेशी की सीमा उजागर हो रही है. यह इस पोस्‍ट का आशय तो नहीं ही है.

केवल राम said...

अब तो यही कह जा सकता है ..ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे...पर यह बात भी सोच लेनी चाहिए दीक्षित जी एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी हमें देकर गए हैं ..हम उसे मुखर करना होगा

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ओह ! मुझे तो राजीव दीक्षित जी के न रहने का समाचार ही आपके ब्लाग से मिला. इस पकार के अपनी धुन के पक्के व अपनी विचारधारा पर अडिग लोग विरले ही होते हैं. मुझे उनके यूं चले जाने पर बहुत दु:ख हुआ. सादर श्रृद्धांजलि.

रमेश शर्मा said...

बहुत दुखद .केवल स्वेदशी की बातें नहीं की, उस पर आचरण भी किया। वे विरले लोगों में से थे जो अंत तक मनसा वाचा कर्मणा डटे रहे. विनम्र श्रद्धांजलि.

उम्मतें said...

संजीत जी / गोविन्द पटेल जी ,
मेरा ख्याल है कि राहुल सिंह जी की टिप्पणी पर आपकी प्रतिक्रिया ज़रूर आना चाहिए !

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।