पिछले दिनों वर्धा में हिंदी ब्लॉगिंग की आचार संहिता पर हुए वर्कशॉप व कार्यशाला में शामिल होने के लिए जाना ही एकमात्र उद्देश्य नहीं था। इसके पीछे एक और उद्देश्य था ,और वह था सेवाग्राम स्थित गांधी आश्रम जाने की ललक। इसके पीछे कारण यह था कि स्वतत्रता संग्राम सेनानी पिता स्वर्गीय श्री मोतीलाल त्रिपाठी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कुछ समय गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम में व्यतीत किया था। आज 19 अक्टूबर को बाबूजी की छठवीं पुण्यतिथि है।
ऐसा माना जाता है कि गांधी किसी एक शख्सियत का ही नही बल्कि एक पूरी विचारधारा का नाम है। इसी विचारधारा के एक अनुयायी स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय पंडित मोतीलाल त्रिपाठी की आज 19 अक्टूबर को छठवीं पुण्यतिथि है। स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी, कुष्ठ रोगियों की सेवा, पत्रकारिता, खादी प्रचार प्रसार मे सक्रिय और छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन मे अग्रणी भूमिका निभाने वाले स्वर्गीय स्वर्गीय श्री त्रिपाठी समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहने के साथ ही ताउम्र खादी और गांधी विचारधारा के प्रति समर्पित रहे।
कहा जाए कि इन सब के पीछे उन्हें प्रेरणा पैतृक गुणों के रुप में मिली तो अतिशयोक्ति नही होगी क्योंकि उनके पिता स्व पंडित प्यारेलाल त्रिपाठी ने जो कि समाजसुधारक पंडित सुंदरलाल शर्मा के सहयोगी थे और स्वयं 1930 के जंगल सत्याग्रह से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी के कारण कारावास भोगा था। ऐसे पिता के मंझले पुत्र के रुप में मोतीलाल का जन्म 24 जुलाई 1923 को छत्तीसगढ़ के राजिम के पास ग्राम धमनी में हुआ था। बाद में उनके दादा जी श्री भुवनेश्वर प्रसाद तिवारी ' बिरतिया' बलौदाबाज़ार के पास ग्राम पलारी में बस गए।
पिता से मिला देशभक्ति का जज़्बा बालक मोतीलाल के मन मे तो बसा ही था, यह जज़्बा उस समय और पल्लवित हुआ जब सिर्फ़ दस साल की उम्र में उन्होनें पलारी से गुजर रही यात्रा के दौरान अपनी माता जामाबाई के हाथों से कते सूत की गुंडी पहनाकर महात्मा गांधी का स्वागत किया। बच्चों की शिक्षागत कारणों के चलते पंडित प्यारेलाल त्रिपाठी रायपुर आ गए, शिक्षा के दौरान ही बालक मोतीलाल की मित्रता कॉमरेड सुधीर मुखर्जी से हुई। बाद में त्रिपाठी जी जैतूसाव मठ में रहकर पढ़े, तब जैतूसाव मठ राष्ट्रीय आंदोलनों का गढ़ हुआ करता था। 1939 में राष्ट्रीय विद्यालय रायपुर में एक सप्ताह का कांग्रेस सेवादल प्रशिक्षण शिविर लगा था, इसके चौहत्तर प्रशिक्षणार्थियों में से एक सोलह साल के किशोर मोतीलाल त्रिपाठी भी थे। इसके बाद ही व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरु हुआ और पढ़ाई लिखाई का त्याग कर त्रिपाठी जी इसके लिए चुन लिए गए। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान ही इनकी गिरफ़्तारी हुई और एक वर्ष की सजा सुना कर नागपुर जेल भेज दिया गया। दिसंबर 1941 में रिहा होने के पश्चात महंत लक्ष्मीनारायण दास व पंडित रविशंकर शुक्ल के सुझाव पर खादी भंडार रायपुर में अपनी सेवाएं दी। प्रशिक्षण के बाद त्रिपाठी जी नरसिंहपुर खादी भंडार भेजे गए जहां उन्हें लालमणि तिवारी व बिलखनारायण अग्रवाल का साथ मिला। इसी बीच नौ अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन शुरु हो गया, तब वहां खादी भंडार ही क्रांति का प्रमुख केंद्र था। पुलिस को अपनी सक्रियता की जानकारी मिलने पर त्रिपाठी जी भूमिगत होकर रायपुर आ गए और यहां भूमिगत आंदोलन से जुड़ गए, तब रातोंरात साइक्लोस्टाइल किए गए पर्चे बांटे जाते थे। 26 जनवरी 1943 को त्रिपाठी जी फ़िर गिरफ़्तार कर लिए गए। छह महीने की सजा हुई, 14 जुलाई को रिहाई ज़रुर हुई लेकिन दो अक्टूबर को एक बार फ़िर गिरफ़्तार कर लिए गए जो कि 31 दिसंबर 1943 को रिहा हुए और तब उन्हें गांधी जी के साथ उनके वर्धा स्थित आश्रम में रहने और सीखने का मौका मिला। (त्रिपाठी जी अक्सर अपने बच्चों को लिखावट सुधारने के लिए कहते हुए बताया करते थे कि तब वर्धा आश्रम की पत्रिका को अपने सुलेख से सजाने के कारण खुद गांधी जी ने उनकी लिखावट की तारीफ़ की थी।) इसके बाद त्रिपाठी जी एक बार फ़िर 26 जनवरी 1945 को गिरफ़्तार हुए और वह भी गांधी जी के सामने ही।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान त्रिपाठी जी ने न केवल आज़ादी के गीत लिखे बल्कि उनका सस्वर पाठ भी किया करते थे, उनकी रचनाएं अंचल भर मे जानी जाती थी जैसे कि " रह चुके जालिम बहुत दिन/ अब हुकुमत छोड़ दो" और " सुलग चुकी है आग जिगर में उसे बुझाना मुश्किल है"। वहीं दूसरी तरफ़ "वंदेमातरम" और " रणभेरी बज चुकी,उठो वीरवर पहनो केसरिया बाना" यह अपने पसंदीदा दो गीत वह मृत्युपर्यंत अपनी ओजस्वी आवाज़ मे गुनगुनाते रहे।
बाबूजी की पुण्यतिथि पर आज शहर के बाल आश्रम में रहने वाले अनाथ बच्चों को परिवार की ओर से भोजन कराया गया। |
1967 से रायपुर को ही फ़िर अपनी कर्मस्थली बनाते हुए यहीं समाजसेवा शुरु की, कई संस्थाओं।-संगठनों से जुड़े रहने के साथ-साथ उन्होने जो मुख्य कार्य शुरु किया वह था स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों की परेशानियों के लिए शासन-प्रशासन से लड़ाई और ख़तो-क़िताबत का, इसी एक काम ने उन्हें छत्तीसगढ़ ही नही मध्यप्रदेश मे भी सभी सेनानियों और उनके परिवारवालों के बीच लोकप्रिय भी बना दिया और मप्र शासन से लेकर छत्तीसगढ़ शासन ने विभिन्न कमेटियों में उन्हें नामांकित किया।
जीवन मे एक ही दफ़े अपने गृह ग्राम पलारी से रायपुर तक करीब 70 किमी सायकल चलाने वाले त्रिपाठी जी ने फ़िर कभी न तो सायकल चलाई और न ही कोई गाड़ी, बस ताउम्र पैदल चलकर ही वह कार वालों को भी मात देते रहे। अगस्त क्रांति की वर्षगांठ के मौके पर राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति कलाम साहब के हाथों 2004 में दूसरी दफ़े सम्मान लिए आमंत्रित त्रिपाठी जी का स्वास्थ्य नई दिल्ली मे ही खराब हो गया और उन्हें वहीं अस्पताल में भरती कराया गया, दो दिन के उपचार के बाद रायपुर लाया गया जहां किडनी में संक्रमण के कारण दो महीने तक जूझने के बाद आखिरकार 19 अक्टूबर 2004 को आज़ादी के इस अदने से सिपाही ने हमेशा के लिए आंखें मूंद ली।
ज़िंदगी भर अन्याय के खिलाफ़ प्रतिकार की उनकी भावना व उनकी सक्रियता आज की हमारी वर्तमान पीढ़ी के लिए एक चुनौती की तरह है। ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व को उनकी पुण्यतिथि पर आज शत-शत नमन।
रायपुर आकाशवाणी पर पहले प्रसारित स्वर्गीय श्री त्रिपाठी जी से बातचीत यहां सुनी जा सकती है।
16 टिप्पणी:
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती..आपके स्वतंत्रता सेनानी पिताजी को हार्दिक श्रधांजलि..उनके बारे में जानकर अच्छा लगा..
संजीत भाई, इसी बहाने मोतीलाल जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला, आभार।
................
..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
... प्रभावशाली व्यक्तित्व ... शत शत नमन !!!
उन्हें नमन !
मोतीलाल जी को शत शत नमन
सर्व प्रथम पंडित जी को शत शत नमन । मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूं क्योंकि पत्रकारिता के दौरान आदरणीय त्रिपाठी जी से कई मर्तबा मिलने का अवसर मुझे प्राप्त होता रहा है । आपसे मार्गदर्शन प्राप्त कर मैंने प्रदेश(अविभाजित मध्यप्रदेश) के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कहानियाँ - रिपोर्ताज लिखी हैं । आज पंडित जी की पुण्य तिथी है - शब्दों - भावनाओं के सहारे अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं । नमन ।
एक मूर्त अध्याय पढ़ा दिया आपने, वर्धा की यादें ताजा हो गयीं। उन्हें और उनके कृतित्व को प्रणाम।
हार्दिक श्रद्धांजलि. सहयोग दर्शन के दिन और उसके कुछ अंक मैं अभी भी याद कर पा रहा हूं. त्रिपाठी जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इन्साइक्लोपीडिया तो थे ही, जहां तक मुझे जानकारी है, पं. ज्वालाप्रसाद जी मिश्र और त्रिपाठी जी के अथक प्रयासों से सेनानियों की सूची, जानकारियां और दस्तावेज तैयार हो कर सुरक्षित किए गए. पुनः नमन.
पिताजी को हार्दिक श्रद्धांजलि..
वे न रहे, उन जैसी स्पिरिट के लोग भी न रहे।
उन वैल्यूज को वर्तमान समय में कैसे जिया जाये, उसपर मंथन होना चाहिये।
babauji ko shat shat naman,unake bare me jan kar bahut achha laga.
बाबूजी की पुण्य स्मृतियों को हमारा भी नमन्। ऐसे संस्मरण लगातार प्रेरणा देते हैं।
स्वतंत्रता सेनानी श्री मोतीलालजी त्रिपाठी को हार्दिक श्रद्धांजलि.
हमारा भी नमन !
ज्ञान जी की टीप मस्ट विचारणीय !
बहुत अच्छा लगा संस्मरण!
आपके पिताजी महान थे। उनकी स्मृति को नमन!
लगता है पिताजी की आजन्म कुंवारे रहने की शुरुआती प्रतिज्ञा की तर्ज पर उनके बच्चे भी लगे हैं।
आशा है तुम्हारी अगली पीढ़ी भी तुम्हारे बारे में ऐसे ही संस्मरण लिखेगी।
बहुत सुन्दर लेख!
संजीत, बहुत ही अच्छा और प्रेरणदायी लेख लगा !
ऐसे लोगों की मेहनत और संस्कारों से ही ये देश बेईमान और भ्रष्ट राजनेताओं के होते हुए भी आज पटरी पर चल रहा है !
आपके पिता को नमन !
Post a Comment