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01 November 2007

छत्तीसगढ़ के स्थापना दिवस पर

छत्तीसगढ़ राज्य आज अपना सातवां स्थापना दिवस मना रहा है। इस मौके पर हमें छत्तीसगढ़ के जानेमाने कवि श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी का यह गीत याद आ रहा है जो कि पिछले साल इन्हीं दिनों इतवारी खबर में प्रकाशित हुआ था।


नवा राज के फ़ायदा

(1)

नवा राज बन के बेरा मे,
भारी गदगदाए रहे महराज
अब कइसे मुंह चोराए कस
रेंगत हस-सुखरा के ताना
मंथिर महराज के करेजा ल
कतरे कस लागथे
सुखरा के का, गोठियाथे
तहां नंगत बेर ले कुकरा कस
कुड़कुड़ाथे, थपौड़ी मारके पछताथे
नवा राज, नवा सरकार, गांव के तरक्की
बेरोजगार लइका मन ठिकाना लगही
कहिके सेठ ल गांव भर के वोट ल
देवा देहे अच्छा भठा देहे महराज!
नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
वोकर लठिंगरा मन दारू के दुकान
चलाथे, राइस मिल, रोलिंग
कारखाना खुलत हे
लगथे सेठ सौ बछर बर फ़ूलत हे
नवा राज के इही फायदा हर
परगट दिखत हे
हमन ल तो महराज
ए महंगाई हर निछत हे।

(2)

नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।


( लक्ष्मण मस्तुरिया छत्तीसगढ़ के जाने माने कवि हैं, छत्तीसगढ़ी के जनप्रसिद्ध गीत " मोर संग चलव जी, मोर संग चलव गा" के गीतकार मस्तुरिया जी ही हैं)




12 टिप्पणी:

Gyan Dutt Pandey said...

नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
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भीषण व्यंग है मस्तुरिया जी की भाषा में। यद्यपि स्थानीय भाषा के शब्द पूर्णत समझ में नहीं आ रहे, पर काम भर के आ जा रहे हैं।
छात्तीसगढ़ी रचना पढ़ाने को बहुत धन्यवाद।

रंजू भाटिया said...

अच्छा है ..जितना समझ में आया :) इसका भावार्थ भी साथ दे दे तो सबको इसका अर्थ समझने में सुविधा होगी ..:)बधाई छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस की !!

Pankaj Oudhia said...

जय जोहार। इस प्रस्तुति के लिये धन्यवाद। आज तो सभी राज्य से सम्बन्धित पोस्ट भेज रहे है। बडा ही गर्वांवित महसूस हो रहा है।

इस गीत को सरल भाषा मे समझा भी देना बाद मे जिससे ज्ञान जी जैसे रूचि लेने वाले हमसे जुड सके।

बोधिसत्व said...

बहुत मस्त भाई
आनन्ददायक कवित्त
पर समझ नहीं पा रहा हूँ कि राज्य के जन्म दिन की बधाई दूँ या नहीं...

आभा said...

अच्छा व्यंग पढ़ाने के लिए शुक्रिया....

36solutions said...

जय जोहार संजीत भाई । मस्‍तूरिहा भईया के गीत ता देके हमार छत्‍तीसगढ के सम्‍मान करे देखर बर आप मन ला बधाई अउ राज के स्थापना दिवस के घलोक बहुत बहुत बधाई.
अब कईसनहो होवय भाई घिनहा कि घोलवा मोर राज ये बनेच हे भाई ।

धन्‍यवाद

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन...बधाई हो स्थापना दिवस पर. अब गांव के गांव के साथ शुरु हो जाओ उत्सव मनाना. :)

राजीव रंजन प्रसाद said...

संजीत जी,

छतीसगढ की समृद्ध साहित्यिक धरोहर से और मस्तूरिया जी की विरासत से परिचय तभी हो सकेगा जब उन्हे उद्धरित करते हुए हम उसका अनुवाद भी साथ ही साथ प्रस्तुत करें। बहुत अच्छी प्रस्तुति का आभार।


*** राजीव रंजन प्रसाद

मीनाक्षी said...

छत्तीसगढ के स्थापना दिवस पर बधाई स्वीकार कीजिए राज्य के लोग सुख-समृद्धि पाएँ ! शुभ कामनाएँ !

Asha Joglekar said...

छत्तीसगढ स्थापना दिवस की बधाई । आशा करती हूँ कि शराब की जगह राजी और रोटी मिले ।

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया आप सभी का!!

समयाभाव के कारण मै मस्तुरिया जी की इस रचना का हिंदी शब्दार्थ या भावार्थ नही दे सका इसके लिए मुआफ़ी चाहता हूं पर एक दो दिन मे ही इस रचना को हिंदी शब्दार्थ या भावार्थ के साथ फ़िर से प्रस्तुत करूंगा!!

अजित वडनेरकर said...

बहुत बढ़िया । आनंदम् । हिन्दी अनुवाद की भी प्रतीक्षा रहेगी....

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