छत्तीसगढ़ में राज्योत्सव
अंतत: छत्तीसगढ़ी राजभाषा बन ही गई या यूं कहें कि राज्य सरकार को यह घोषणा करनी ही पड़ी कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने के लिए आगामी विधानसभा सत्र में विधेयक लाया जाएगा। बीती शाम अर्थात एक नवंबर को राज्योत्सव की शुरुआत के मौके पर आतिशबाजी के बीच मुख्यमंत्री ने यह घोषणा की, इस अवसर पर दक्षिण भारतीय राज्यपाल महोदय ने भी अपना भाषण छत्तीसगढ़ी में ही दिया।अडवाणी जी ने अपने उद्बोधन में अन्य बातों के अलावा यह भी जानकारी दी कि कैसे वे रायपुर आने के लिए निकले तो सुबह से थे पर पहुंचे देर शाम, अब ये तो वही जानें कि वो सुबह के भूले हैं या नही पर ज्ञानदत्त पाण्डेय जी इस बात पे खुश हो सकते हैं कि देख लो, सिर्फ़ ट्रेनें ही लेट नही होती , हवाई जहाज भी होते हैं भले ही तकनीकी खराबी के कारण। खैर! अपने राम तो भाषण सुनने की बजाय अंदर राज्योत्सव के मौके पर लगे मेला स्थल पर घूम रहे थे जहां राज्य के सभी विभागों के पंडाल में उपलब्धियों का ब्यौरा दिया गया था। कुछ तस्वीरें अपन ने मोबाईल से ली।
सरकारी विभागों में उपलब्धियों(?) का बखान करते स्टॉल के साथ-साथ लोगों के लिए विभिन्न कंपनियों और उत्पादों के भी स्टॉल लगाए गए थे ( अगर सिर्फ़ सरकारी पँडाल ही रहे तो लोग आएंगे ही क्यों) हर साल राज्योत्सव के मेले में पर्यटन मँडल का स्टॉल सबसे सुंदर और बरबस ही अपनी ओर खींच लेने वाला होता है इस साल भी ऐसा ही था ( ये अलग बात है कि पर्यटन मँडल के स्टॉल को देखकर सबसे पहला अनुमान उसके बजट को लेकर होने लगता है) ।
जनसंपर्क विभाग के पंडाल में गए तो वहां कुछेक किताब प्रकाशकों का भी स्टॉल लगा हुआ था जिसे देखकर ही समझ मे आ रहा था कि यह तो बस खानापूर्ति के लिए है फ़िर भी नेशनल बुक ट्रस्ट के स्टॉल में एक किताब ऐसी दिखी जो कि शब्दों का सफ़र वाले अजित साहब के काम की लगी सो उसका नाम लेखक विवरण आदि फ़टाक से नोट कर लिया। मेला स्थल के बीचों-बीच शिल्पग्राम नाम से एक बड़ा सा स्थान घेर कर हस्तशिल्प के छोटे-छोटे स्टॉल लगाए गए हैं जहां से लोग पारंपरिक छत्तीसगढ़ी हस्तशिल्प या अन्य आदिवासी कलाकृतियां खरीद सकते हैं ( गौरतलब है कि यह कलाकृतियां उन ड्राईंगरुम में बहुत शोभा देती है जिनके मालिकों को नक्सलवाद या आदिवासियों की अन्य समस्याओं से कोई लेना-देना नही होता)।
इस मेले का पहला दिन होने के कारण भीड़ कम थी और यही सोचकर अपन वहां पहुंच गए थे, क्योंकि सात दिन के इस मेले मे शनिवार रविवार या अंतिम दिनों मे तो खचाखच भीड़ हो जाती है। राजधानी रायपुर मे यह आयोजन सात दिन का होता है जबकि अन्य जिला मुख्यालयों मे तीन दिन का!!
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एक बात जो अंदर कहीं से मन मे ही टकराती रही वो यह कि इस मेले को देखकर कहीं से नही लगता कि छत्तीसगढ़ वही राज्य हैं जिसका एक बड़ा हिस्सा नक्सलवाद का शिकार है। यह एहसास हुआ तो सिर्फ़ पुलिस विभाग के पँडाल में जाने पर, इसका विवरण और तस्वीरें अगली बार!!
(सभी तस्वीरें मोबाईल से ली हुई है अत: गुणवत्ता में कमोबेशी हो सकती है)
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12 टिप्पणी:
तस्वीरें और विवरण दोनो ही अच्छे है। आपके द्वारा हमने भी मेले का मजा उठा लिया। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
बहुत बढ़िया और रोचक जानकारी लेकिन साथ ही साथ आपने गहरा व्यंग्य(गौरतलब है कि यह कलाकृतियां उन ड्राईंगरुम में बहुत शोभा देती है जिनके मालिकों को नक्सलवाद या आदिवासियों की अन्य समस्याओं से कोई लेना-देना नही होता)भी कर दिया.
बहुत बढ़िया पोस्ट...बहुत बढ़िया तस्वीरें....और हाँ, बहुत बढ़िया व्यंग.
तस्वीरों में कलाकारों की कला बहुत गजब की है.
पढ़कर और देखकर अच्छा लगा. कृपया जारी रखें.
फ़ोटोस अच्छी आयी है, आप के मोबाइल का कैमरा अच्छा है
भैया, अपने को छत्तीसगढ़ से जितना परिचित ब्लॉग जगत में आने पर संजीत-संजीव-पंकज के ब्लॉगों से पाया, उतना जीवन भर में नहीं पाया। आप लोगों की ऊर्जा देख कर मन गदगद हो जाता है।
बढ़िया रपट और चित्र. ज्ञानदत्त जी खुशी में उत्सव मनाने तो नहीं चले गये, दिख नहीं रहे. :)
और चित्र लाओ. इन्तजार है.
संजीत हर्बल पर कुछ नही है क्या? और जो आपने एक प्राचीन मन्दिर लिखा है वह भोरमदेव है। आशा है आप और जायेंगे और चित्र लायेंगे। मै आपकी आँखो से ही देख लूँगा। इंतजार रहेगा।
संजीतजी शुक्रिया एक बढ़िया रपट पढ़वाने के लिए। और आपने जो एनबीटी की पुस्तक के विवरण हमारे लिए 'फटाक' से नोट कर लिए तो हम आपके लिए पुलकित हो उठे और दिल से शुभकामनाएं निकलीं। यकीनन फलीभूत होंगी।
मोबाइल कैम से ली गई तस्वीरें होने के बावजूद क्वालिटी बहुत बढ़िया है। ज्ञानदा के बाद अब हम आपसे भी जानना चाहते हैं कि चित्रों पर कैप्शन कैसे लिखे ?
बढिया जानकारी दिये भाई, धन्यवाद ।
सुन्दर चित्रण ...........लग रहा था मेले में हम घूम रहें हैं।
very nice website but we want to see more details of chhattisgarh.
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