एक नवंबर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर हमें छत्तीसगढ़ के कवि-गीतकार श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी की जो रचना याद आ रही थी हमने उसे यहां प्रकाशित कर दिया था। समयाभाव के कारण तब उसका हिंदी अनुवाद या भावार्थ साथ में नही रख पाए लेकिन वरिष्ठजनों की प्रतिक्रिया देखकर अपनी इस गलती का एहसास जोरों से हुआ कि हिंदी अनुवाद या भावार्थ साथ मे ही दे देना था। क्षमायाचना के साथ वह मूल रचना अब हिंदी अर्थ के साथ फ़िर प्रस्तुत है।
मूल रचना
नवा राज के फ़ायदा
(1)
नवा राज बन के बेरा मे,
भारी गदगदाए रहे महराज
अब कइसे मुंह चोराए कस
रेंगत हस-सुखरा के ताना
मंथिर महराज के करेजा ल
कतरे कस लागथे
सुखरा के का, गोठियाथे,
तहां नंगत बेर ले कुकरा कस
कुड़कुड़ाथे, थपौड़ी मारके पछताथे
नवा राज, नवा सरकार, गांव के तरक्की
बेरोजगार लइका मन ठिकाना लगही
कहिके सेठ ल गांव भर के वोट ल
देवा देहे अच्छा भठा देहे महराज!
नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
वोकर लठिंगरा मन दारू के दुकान,
चलाथे, राइस मिल, रोलिंग
कारखाना खुलत हे
लगथे सेठ सौ बछर बर फ़ूलत हे
नवा राज के इही फायदा हर
परगट दिखत हे
हमन ल तो महराज
ए महंगाई हर निछत हे।
(2)
नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।
कोशिश इसे हिंदी मे समझाने की
नए राज्य का फ़ायदा
(1)
नया राज्य बनते समय तो
भारी खुश थे महाराज,
अब कैसे मुंह चुराए धीरे-धीरे चल रहे हैं,
सुखरा ( एक नाम) के ताने
मानो किसी ब्राम्हण के कलेजे को कतरे जा रहे हों ऐसा लगता है।
सुखरा का क्या है, बातें करता है,
फ़िर बहुत देर तक मुर्गे की तरह कुड़कुड़ाता है,
थप्पड़ मार कर पछताता है।
नया राज्य, नई सरकार, गांव की तरक्की,
बेरोजगार बच्चे ठिकाने से लगेंगे,
कहकर सेठ को गांव भर के वोट दिलवा दिए,
अच्छा भेज दिए महाराज!
नए राज्य का फ़ायदा दिख रहा है,
अब गांव का गांव दारू पीता है,
वनवासी लोगों के विधायक सेठ,
बढ़ता ही जाता जिनका पेट
उसी के लठैत दारू दुकान चला रहे हैं,
राइस मिल, रोलिंग मिल
कारखाने खुल रहे हैं।
लगता है सेठ सौ साल के लिए फूल रहे हैं,
नए राज्य का यही फायदा ही प्रकट दिखता है
हम सब को तो महाराज
यह महंगाई जैसे छीले जा रही हो।
(2)
नए राज का सपना, आंखों मे आ गया
गांव के गांव की जमीन बिकती जा रही है
न जाने कहां कहां से लोग आकर
उद्योग कारखाना और जंगल लगा रहे हैं
हमारे गांव के लोग पता नही कहां, चिड़िया की तरह
उड़ जा रहे हैं, कितने ही रायपुर राजधानी में
रिक्शा जोत( चला) रहे हैं
किसान मजदूर बनिहार हो गए
गांव के गौटिया(मालगुजार) डूब गए,
नए कारखाना वाले, जमींदार आ गए!
नवा राज के फ़ायदा
(1)
नवा राज बन के बेरा मे,
भारी गदगदाए रहे महराज
अब कइसे मुंह चोराए कस
रेंगत हस-सुखरा के ताना
मंथिर महराज के करेजा ल
कतरे कस लागथे
सुखरा के का, गोठियाथे,
तहां नंगत बेर ले कुकरा कस
कुड़कुड़ाथे, थपौड़ी मारके पछताथे
नवा राज, नवा सरकार, गांव के तरक्की
बेरोजगार लइका मन ठिकाना लगही
कहिके सेठ ल गांव भर के वोट ल
देवा देहे अच्छा भठा देहे महराज!
नवा राज के फ़ायदा दिख हे
अब गांव के गांव दारू पीयत हें
बनवासी मनके विधायक सेठ
बाढ़ते जात हे वोकर पेट
वोकर लठिंगरा मन दारू के दुकान,
चलाथे, राइस मिल, रोलिंग
कारखाना खुलत हे
लगथे सेठ सौ बछर बर फ़ूलत हे
नवा राज के इही फायदा हर
परगट दिखत हे
हमन ल तो महराज
ए महंगाई हर निछत हे।
(2)
नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।
कोशिश इसे हिंदी मे समझाने की
नए राज्य का फ़ायदा
(1)
नया राज्य बनते समय तो
भारी खुश थे महाराज,
अब कैसे मुंह चुराए धीरे-धीरे चल रहे हैं,
सुखरा ( एक नाम) के ताने
मानो किसी ब्राम्हण के कलेजे को कतरे जा रहे हों ऐसा लगता है।
सुखरा का क्या है, बातें करता है,
फ़िर बहुत देर तक मुर्गे की तरह कुड़कुड़ाता है,
थप्पड़ मार कर पछताता है।
नया राज्य, नई सरकार, गांव की तरक्की,
बेरोजगार बच्चे ठिकाने से लगेंगे,
कहकर सेठ को गांव भर के वोट दिलवा दिए,
अच्छा भेज दिए महाराज!
नए राज्य का फ़ायदा दिख रहा है,
अब गांव का गांव दारू पीता है,
वनवासी लोगों के विधायक सेठ,
बढ़ता ही जाता जिनका पेट
उसी के लठैत दारू दुकान चला रहे हैं,
राइस मिल, रोलिंग मिल
कारखाने खुल रहे हैं।
लगता है सेठ सौ साल के लिए फूल रहे हैं,
नए राज्य का यही फायदा ही प्रकट दिखता है
हम सब को तो महाराज
यह महंगाई जैसे छीले जा रही हो।
(2)
नए राज का सपना, आंखों मे आ गया
गांव के गांव की जमीन बिकती जा रही है
न जाने कहां कहां से लोग आकर
उद्योग कारखाना और जंगल लगा रहे हैं
हमारे गांव के लोग पता नही कहां, चिड़िया की तरह
उड़ जा रहे हैं, कितने ही रायपुर राजधानी में
रिक्शा जोत( चला) रहे हैं
किसान मजदूर बनिहार हो गए
गांव के गौटिया(मालगुजार) डूब गए,
नए कारखाना वाले, जमींदार आ गए!
( लक्ष्मण मस्तुरिया छत्तीसगढ़ के जाने माने कवि- गीतकार हैं, छत्तीसगढ़ी के जनप्रसिद्ध गीत " मोर संग चलव जी, मोर संग चलव गा" के गीतकार मस्तुरिया जी ही हैं)
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17 टिप्पणी:
आज के हालातों को उजागर करती एक बढिया रचना प्रेषित करने के लिए आपका धन्यवाद।हिन्दी अनुवाद के लिए भी आभार।बहुत बढिया रचना प्रेषित की है।
लगभग समझ आ गयी थी। फिर भी अनुवाद प्रस्तुत कर बहुत अच्छा किया।
बहुत अच्छी लगी. ऎसा ही कुछ उत्तराखंड के लिये भी कहा जा रहा है.
बहुत बढ़िया. एकदम सही. इस अच्छी प्रस्तुति के लिए आपको साधुवाद.
छत्तीसगढ़ का क्या, ये तो हर राज्य का सच है जी। मारक, प्रहारक।
कड़वा सच उजागर किया आपने. सही है. अनुवाद नही रहता तो शायद पुरी नही समझ पाता.धन्यवाद.
आपसे अनुरोध है कि लक्षमण मस्तूरिया की मोर संग चलव का ऑडियो कहीं इंटरनेट पर है तो उसकी कड़ी दें या फिर उसे कहीं अपलोड करें. इस बेहतरीन गीत को बारंबार सुनने की इच्छा बनी ही रहती है.
संजीत मस्तुरिया जी की यह रचना और बेहद पसंद आई...वैसे छत्तीस गढ़ की भाषा कुछ-कुछ समझ आ ही जाती है मगर आपने जो हिन्दी रुपांतरण किया और भी अच्छा लगा...
हिन्दी अनुवाद के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
अब पूरी समझ आई ..शुक्रिया संजीत जी इस को यहाँ देने के लिए और हिन्दी अनुवाद के लिए !!
बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप........... बधाई
मस्तुरिया जी के लेखन में कितनी आग है...साधुवाद
हिन्दी अनुवाद से बहुत सहुलियत हुई, धन्यवाद , बड़िया रचना, हर राज्य की एक ही कहानी
आंचलिक कवि की रचना दिल को छू गई।
आंचलिक कवि की रचना दिल को छू गई।
bahut nik lagais pad k ....kas y kavit ke maran la eha k neta ma samjhtis ta aaj chhatisgarh chaatisgargiya man k garh kahlatis...
hamre keth k ham banihar hogen...apne raj ma jaane kaha kogen...
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