मित्र अखिल तिवारी ने एक ईमेल फारवर्ड किया। कहने को तो फारवर्डेड ईमेल ही था लेकिन पढ़ा तो आज के समय की हकीकत है। हम सबके समय की हकीकत।
जरा एक नज़र डालिए…
शायद ज़िन्दगी बदल रही है...
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से "स्कूल" तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप", "विडियो पार्लर" हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...
जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना,
वो लड़कियों की बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है...
जब भी "ट्रेफिक सिग्नल" पे मिलते हैं "हाई" करते हैं,
और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली-दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है..
जो अक्सर कब्रिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही हैं.
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओ से भरे इस जिंदगी में हम सिर्फ भाग रहे हैं..
"इस जिंदगी को जियो न कि काटो"
24 September 2010
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15 टिप्पणी:
बहुत सुंदर जी ओर ...
"मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते "
एक सच.
धन्यवाद
जी हाँ जिन्दगी बदल चुकी है !
...behatreen post !!!
सच कह रहे हैं, जिन्दगी में आमूलचूल बदलाव आ चुका है।
bahut dino baad tumhare blog per kuchh alag padhne ko mila aur bahut achha laga.........sach me jindagi badl gai hai.....
वाह संजीत जी बहुत सुन्दर नजरिया है जिंदगी को जीने का न की...काटना। अच्छा लगा पढ़कर।
चलती का नाम जिंदगी है ही, बदलती का नाम भी जिंदगी है.
प्रिय सनजीत जी,
इस कविता से हर कोई सहमत होगा. क्यों ऐसा हो जाता है कि ज़िदगी की सुंदर और विस्मय कर दें वाली अधिकतर चीज़ जब हम बड़े होते हैं तो अपना चमक खो देती है. अब इस उम्र मे बालसुलभ जिगयसा तो नही हो सकती मगर इस श्रीष्टि मे हम ऐसा कुच्छ खोज सकते हैं जो ज़ोनूं को ज़िंदा रखे.
शुभकामनाएँ
राकेश रवि
sanjit ji ye sach se sub koi vakif he aur sahmat bhi he lekin kya kare is duniya me shayad har koi 1 bahter kal ki khoj me apna aaj gava raha he aur kal fir vahi aas k sath uthta he ki mera kal bahter hoga.
achha laga ye kavita padh k aab dekhna ye he ki kab hum is ulzano se bahar nikal pate he
dhanyavaad ummid he bich bich me aaisa yad dilate rahoge ki jivan ko nahi jine k tariko me badlav kar sake,
कैसे हैं संजीत जी?
ज़िन्दगी तो बदलेगी ही इस बदलाव के साथ ही जीना सीखना होगा । वैसे गाँव मे जाकर देखिये , वहाँ क्या कुछ बदला है ?
भाई सन्जीत जी,
जिन्दगी की हकीकत को अच्छे शब्दों मे बयां किया गया है ।
badhiya post.....haqikat hai..
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही हैं.
अब बच गए इस पल में.bahut si baaten bachpan ki yaad dilati rachnaaapne bhaut hi sundar dhang se prastut kiya hai.
vastav me ab jidagi puri tarah se badal gaihai.
bahut badhiya prastuti
जिंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है.
कल की कोई बुनियाद नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही हैं.
अब बच गए इस पल में.bahut si baaten bachpan ki yaad dilati rachnaaapne bhaut hi sundar dhang se prastut kiya hai.
vastav me ab jidagi puri tarah se badal gaihai.
bahut badhiya prastuti
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