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12 September 2010

युगबोध के बड़े कवि मुक्तिबोध : अशोक बाजपेयी

मुक्तिबोध पुण्यतिथि पर रायपुर में हुआ आयोजन
" मुक्तिबोध, शमशेर और अज्ञेय सामाजिक चेतना के समान चिंतक कवि थे। तीनों ने न केवल डायरियां लिखीं बल्कि तीनों की मूल चिंताएं भी एक जैसी थीं, इस लिहाज से तीनों विफल होने के बावजूद सार्थक कवि कहे जा सकते हैं। मुक्तिबोध की पुण्यतिथि पर हुए एक आत्मीय आयोजन में प्रख्यात कवि, आलोचक अशोक बाजपेयी ने तीनों कवियों के अंतर्संबंधों की मीमांसा करते हुए यह बात कही।  आयोजन में वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने भी मुक्तिबोध की पत्रकारिता पर अपने विचार रखे। "

अरूण काठोटे

मुक्तिबोध की पुण्यतिथि पर शमशेर बहादुर सिंह तथा अज्ञेय के जन्मशताब्दी वर्ष का अवसर साधते हुए तीनों के साहित्यिक अवदान तथा अंतर्संबंधों का स्मरण किया गया। प्रख्यात कवि, आलोचक तथा केंद्रीय ललित कला अकादमी के अध्यक्ष अशोक बाजपेयी ने कहा कि ये तीनों कवि उनके सप्तर्षियों        शुमार हैं। आजादी के बाद ये मेरे तीन वृहत्तयी भी हैं। तीनों में किसी एक को सर्वश्रेष्ठ चुनना असंभव है। तीनों कवियों के काव्य आचरण और परस्पर संबंधों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि तीनों के मन में एक न्याय बुध्दि सतत सक्रिय रहती थी। तीनों के संबंध अनेक मामलों में विचित्र भी हैं लिहाजा किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। वैसे भी बड़े कवियों के आपसी संबंध जटिल और गतिशील होते हैं। लेकिन तीनों कवियों के परस्पर संबंध, संवाद और सम्मान की पुनर्व्याख्या की जरूरत है। साहित्य में वे परिवर्तन ही टिकाऊ होते हैं जो साझा होते हैं। इस लिहाज से तीनों कवियों में सहचर बेहद वृहद पैमाने पर परिलक्षित होता है। तीनों की दृष्टि में दुनिया को बेहतर बनाने की लोकतांत्रिक अवधारणा मौजूद थी। तीनों ने डायरियां लिखीं, रचनाओं में प्रतिरोध किया, तीनों आत्म से संबद्ध थे। भाषा, शिल्प व लय के मामले में तीनों प्रयोगधर्मी और आध्यात्मिक बेचैनी के कवि थे। मुक्तिबोध ने जहां समाज की चिंता करते हुए नई सामाजिकता की खोज की वहीं अज्ञेय नए व्यक्तिव को गढ़ने में विश्वास करते थे। इसी तरह शमशेर सौंदर्य की प्रतिष्ठा के कवि थे। मुक्तिबोध आत्मालोचना, आत्माभियोग के कवि थे। कविता में ही जिम्मेदारी लेकर वे खुद को ही दोषारोपित करते हैं। अज्ञेय आत्मभूषण के तो शमशेर आत्मविलोपन के कवि हैं। मुक्तिबोध की कविता का कोई मॉडल नहीं था, वे गोत्रहीन कवि थे जबकि अज्ञेय ज्ञात गोत्र के कवि माने जा सकते हैं। शमशेर हिंदी के सबसे उर्दू कवि हैं, हिंदी-उर्दू की साझा परंपरा के कवि। मुक्तिबोध को युगबोध का बड़ा कवि बताते हुए श्री बाजपेयी ने अज्ञेय तथा शमशेर को कालबोध के बड़े कवि निरुपित किया। गहरे अर्थों में भले ही ये विफल कवि माने जाएं लेकिन दुस्साहसिक विफलताओं को उपेक्षित करने वाले हिंदी समाज की सबसे बड़ी विडंबना है कि यह अपने बड़े कवियों को पहचानने और स्वीकार करने में बेहद विलंब करता है। अब समय है कि सभी पूर्वाग्रहों को ठुकराकर इनके अंतर्संबंधों, साहचर्य की पुनर्व्याख्या की जाए।

प्रख्यात पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने मुक्तिबोध की पत्रकारिता पर अपने विचार रखते हुए कहा कि तत्कालीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर उनके लेख उनकी गहरी समझ और पठन-पाठन को प्रदर्शित करते हैं। उन्होंने चौंकते हुए यह सवाल किया कि मुक्तिबोध की पत्रकारिता पर अब तक कोई पहल क्यों नहीं की गई? मुक्तिबोध के लेख पाठकों के साथ-साथ देश के नीति निर्धारकों को भी पढ़ने चाहिए। पचास बरस पहले नागपुर में नया खून अखबार में उन्होंने विदेश नीति का चिंतन करते हुए मौलिक लेखन से मुझे अंदर तक प्रभावित कर दिया है। मात्र 22 वर्ष की आयु में उन्होंने कर्मवीर में लिखे अपने लेख में तत्कालीन चिंतकों का जिक्र किया है। दर्शनशास्त्र का पत्रकारिता में उन्होंने बखूबी उपयोग किया। अपने समकालीन बालकृष्ण भट्ट, भारतेंदु हरिश्चंद्र, माखनलाल चतुर्वेदी, कन्हैयालाल मिश्र आदि सभी निबंधकारों के मुकाबले मुक्तिबोध अधिक तर्कसंगत लेखक, पत्रकार कहे जा सकते हैं। अपने 80 लेखों के तहत गुट निरपेक्ष आंदोलन का समर्थन, 1962 में चीनी हमले का प्रतिकार, सावरकर-दयानंद के प्रति विचार, इंडोनेशिया, अर्जेंटिना, फ्रांस आदि देशों की व्यवस्था पर टिप्पणी आदि के जरिए मुक्तिबोध अपने व्यक्तित्व के विश्वव्यापी विस्तार की कल्पना करते हैं। कश्मीर समस्या पर उन्होंने जो विचार रखे वे आज भी प्रासंगिक हैं। आयोजन की अध्यक्षता करते हुए डा. राजेंद्र मिश्र ने कहा कि तीनों कवियों में एक समानता यह भी थी कि तीनों के मकान नहीं थे। वे लौटकर कविता में ही अपनी तलाश करते थे। तीनों ने भाषा की व्यंजनाशक्ति को उदार विस्तार दिया है। तीनों ही जानते थे कि अंधेरा है लेकिन वह मनुष्य की नियती में। आयोजन के दौरान वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध की समाचार पत्रों में पूर्व प्रकाशित टिप्पणियों का संकलन 36 का चौसर का विमोचन अतिथियों ने किया।

प्रेस क्लब के सभागार में हुए आयोजन की शुरुआत में रमेश मुक्तिबोध ने आयोजन पर प्रकाश डाला। उल्लेखनीय है मुक्तिबोध पर केंद्रित इस पारिवारिक आयोजन का यह दूसरा वर्ष है। प्रारंभ में मुक्तिबोध की अर्धांगिनी शांता मुक्तिबोध तथा नेमीचंद जैन की पत्नी रेखा जैन के निधन पर श्रध्दांजलि दी गई। कार्यक्रम का संचालन जयप्रकाश मानस ने तथा आभार प्रदर्शन दिवाकर मुक्तिबोध ने किया।

8 टिप्पणी:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

अच्छी लगी यह रपट!!

Rahul Singh said...

रिपोर्ट पढ़ कर कार्यक्रम में न पहुंच पाने का अफसोस कुछ कम हो गया. धन्‍यवाद.

कडुवासच said...

... saarthak, prabhaavashaalee va prasanshaneeya abhivyakti !!!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुत की आपने। साहित्यिक रिपोर्टिंग का अच्छा नमूना।

चार बड़े कवियों के जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में साहित्यिक उत्सव का शुभारम्भ वर्धा विश्वविद्यालय के प्रांगण में आगामी २-३ अक्टूबर को आयोजित है। इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यक्रमों की श्रृंखला होगी।

प्रवीण पाण्डेय said...

सम्पूर्ण रिपोर्ट।

ASHOK BAJAJ said...

ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार


क्षमा वीरस्य भूषणं .

अनूप शुक्ल said...

बड़ा भला लगा इस रपट को बांचकर!

rashmi ravija said...

बहुत ही अच्छी रिपोर्ट...

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आपकी राय बहुत ही महत्वपूर्ण है।
अत: टिप्पणी कर अपनी राय से अवगत कराते रहें।
शुक्रिया ।