कहीं न जाने के बाद भी लौटना
एक लंबे अरसे के बाद ब्लॉग पर लिखना, पता नहीं इसे लंबा अरसा कहना चाहिए या नहीं क्योंकि मेरे ब्लॉग पर पिछली पोस्ट 2009 के अगस्त माह की 27वीं तारीख की है लेकिन वह भी मेरी लिखी हुई नहीं। इसी तरह 26 अगस्त की भी पोस्ट मेरी नहीं। मैने पिछली पोस्ट लिखी थी 15 अगस्त 2009 को, तो इस तरह आज 21 जनवरी को लिख रहा हूं। तो इस तरह पांच महीने के बाद अपने ब्लॉग पर लिखने के लिए लौटा हूं। कम से कम मेरे लिए यह एक लंबा अरसा है। मुझे याद नहीं आता कि जब से ब्लॉग शुरु किया तब से अब तक इससे पहले पोस्ट में इतना बड़ा अंतराल आया हो।जब ब्लॉग शुरु किया था तो ऐसा उत्साह होता था कि कई बार तो एक दिन में दो दो पोस्ट लिखता था। उसके बाद जैसे जैसे व्यस्तता बढ़ती गई पोस्ट का अंतराल भी बढ़ता गया। लेकिन इस बार का अंतराल वाकई लंबा रहा। ऐसा नहीं है कि इस अंतराल के लिए मुझे डांट नहीं पड़ी हो। ब्लॉग जगत के वरिष्ठ-कनिष्ट और मेरे पाठकों का ईमेल से लेकर फोन सभी में एक आत्मीयता भरी डांट कि क्यों नहीं लिख रहे हो ब्लॉग पर। इन सभी ने तो आत्मीयता भरी डांट पिलाई, ब्लॉग पर न लिखने के कारण खुद अपने आप को मैने कई बार डांटा वह आत्मीयता भरी हुई नहीं थी। लेकिन………स्वभावत: आलसी या कहें कि आवारा बंजारा का आवारापन……;)
खैर, देर आए दुरुस्त आए…
तो साहिबान, कदरदान अपन लौट आएं है वैसे अपन कहीं गए नहीं थे, बस लिख नहीं रहे थे इधर, बाकी ब्लॉग पठन का काम जारी था, थमा था तो बस इधर कीबोर्ड की कुटाई का काम ;) । अपने पसंदीदा ब्लॉग्स को पढ़ता ही रहा बस अजित वडनेरकर जी के ब्लॉग में बकलम खुद स्तंभ में चंदू भाई के आत्मकथ्य की किश्तों को इकठ्ठा पढ़ने की प्लानिंग है और इस साप्ताहिक अवकाश के दिन 'फुरसतिया' इश्टाइल में पढ़ने का है।
वैसे इस अंतराल में 'ब्लॉगनदियों' में भी काफी पानी बह गया है। आदतन उठापटक करने वालों ने इस बीच अपनी आदतें जारी रखीं ;) बहसें चलीं, खेमेबाजी भी।
एक बात समझ में नहीं आई वो यह कि 'कुछ लोग', 'किन्हीं' को ब्लॉगजगत के मठाधीश कहते हैं तो क्यों कहते हैं। भैया, यहां कोई घेरेबंदी तो है नहीं कि इधर जो भी तथाकथित मठाधीश कहें वही होगा, जो भी वो लिख देंगे वह शाश्वत हो। फिर क्यों ये मठाधीशी का रोना रोने का? वो ऐसा ब्लॉग चला रहें/रहा है तो हम भी चलाएंगे। सई है भैया, वो फलाना टाफी खा रहा तो मैं क्यों नई खाऊं? ;)
हम बड़े कब होंगे साहिब?
वैसे भी मामू! ये इंटरनेट है, इधर मठाधीशी चलेगी तो ओनली एमएसएन,याहू या फिर गूगल देवता की फिर काय कू टेंशन लेने का, मोहल्ले के दादा लोगों के माफिक गुट बनाने का। अरे लिखने आए तो लिखने का ना बस, बाकी राजनीति के लिए आसपास कमी है क्या। इधर लिखने का, पढ़ने का, पसंद आए तो टिपियाने का और नई पसंद आए तो भी टिपियाने का, सिंपल।
नए ब्लॉग इस बीच काफी संख्या में दिखे, सभी का स्वागत और शुभकामनाएं, इस कामना के साथ कि वे महज अपनी डायरी में लिखे हुए को ब्लॉग पर ठेलने के इतर भी कुछ लिखेंगे ;)
फिर मिलते हैं…… तब तक के लिए टाटा………
15 टिप्पणी:
लो संजीत बाबू हमारी तरफ़ से ट्रक वाले लिट्रेचर की इश्टाईल मे ओ के बाय बाय टा टा।
सुनील, इतनी लम्बी अनुपस्थिति की सजा क्या होनी चाहिये, ये सोच रहा हूं… बाद में बताता हूं… :)
देर आये दुरुस्त आये :)
फिलहाल तो वापसी का स्वागत करते हैं...दखते हैं आपको इसकी कितनी क़द्र है...
तो बच्चा लोग तैयार
खबरदार
बुरी नजर वाले तेरा मुह काला
संजीत भाई-लम्बे विश्राम के साथ एक नवीन उर्जा धारण करके आपने फ़िर से ब्लाग लेखन कार्य प्रारंभ करने हेतु आपको बधाई।
Aisa ho jata hai..swabhavik hai...
khair ab aap niyamit lekhan me punah jut jaayen...shubhkamna...
स्वागत है।
घुघूती बासूती
स्वागत है आपका संजीत जी.....आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.....
फिलहाल तो वापसी का स्वागत
व
फ़िर से ब्लाग लेखन हेतु आपको बधाई
आओ ठाकुर..क्या सोच के आए थे । हंय ।
अब आ ही गये हो तो सुरू हो जाओ ।
वैसे भी मामू! ये इंटरनेट है.... इन मसलों पर फिर कभी टिपियायेंगें.
आपके ब्लाग जहाज पर वापस आने के लिए बधाई. आपका स्वागत है.
चले आओ...बड़े दिनों से इन्तजार था...शुभकामनाएँ.
जय् हो। लौट आये -अच्छा किया। अब अजित वडनेरकर जी की बात पर ध्यान दिया जाये।
यह मिलने मिलाने का असर है भाई ...।
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