प्रतीक्षित छत्तीसगढ़ ब्लॉगर बैठकी रविवार को रायपुर के प्रेस क्लब में संपन्न हुई। हालांकि इसके बारे में यह भी कहा जा रहा था कि यह ब्लॉगर की यह बैठक प्रायोजित है। पता नई, लेकिन शामिल होने के बाद से अपन को नई लगा कि प्रायोजित थी। हो सकता है कि अपन इस बारे में ढक्कन साबित हुए हों, पर कोई वान्दा नईं।
खुशी इस बात की रही कि इस पहली कही जा सकने वाली सामूहिक बैठक में संख्या अच्छी खासी हो गई। करीब 50 ब्लॉगर मौजूद थे और करीब 10 ऐसे पत्रकार या अन्य थे जो भविष्य में ब्लॉग लिखने का मन बना रहे हैं।
दोपहर तीन बजे शुरु होने वाली यह बैठक हम भारतीयों के आदतानुसार साढ़े तीन बजे प्रारंभ हुई। सबसे पहले तो प्रेस क्लब अध्यक्ष व वरिष्ठ ब्लॉगर अनिल पुसदकर ने अपनी बात रखी। उनका कहना था कि ब्लॉग जगत लोकतंत्र के पांचवें स्तंभ के रुप में उभर रहा है और अब तक इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ को लेकर नकारात्मक बातें ही ज्यादा दिखाई देती हैं। इसलिए ब्लॉगर साथियों को अपने प्रदेश की छवि सुधारने की दिशा में कोशिश करनी होगी। उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग अपने ब्लॉग में छत्तीसगढ़ के विषय में दुष्प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं। छ्द्म नामों से लिखे जा रहे इन ब्लॉग्स की वजह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ की छवि खराब हो रही है। उनके ब्लॉग से यह संदेश जा रहा है कि यहां भुखमरी, तबाही और नक्सली हिंसा के अलावा कुछ नहीं है। पुसदकर जी ने ऐसे दुष्प्रचारों का जवाब देने के लिए राज्य के सभी ब्लॉगरों का एक कम्युनिटी ब्लॉग बनाने की जरुरत पर जोर दिया।
इसके बाद भिलाई से पहुंचे बी एस पाबला जी ने जानकारी दी कि छत्तीसगढ़ ब्लॉगर एसोसिएशन के गठन की पहल शुरु हो गई है। इसे जल्द ही रजिस्ट्रार फर्म्स एंड सोसायटी के पास रजिस्ट्रेशन के लिए भेजा जाएगा। इसके बाद पाबला जी ने जो मुद्दा छेड़ा वह मीट में मौजूद अधिकांश ब्लॉगर को समझ में ही नहीं आया।
उन्होंने जानकारी दी कि कुछ दिनों पहले भिलाई में जब वे, पुसदकर जी, ललित जी, ग्वालानी जी के साथ तिवारी जी और बालकृष्ण जी आदि मिले थे तब एक चिट्ठाचर्चा मंच बनाने पर बात हुई थी जिसके लिए उन्होंने एक डोमेन नेम भी बुक करा लिया है और उसकी डिजाइनिंग का काम भी करीब 80 फीसदी पूरा हो गया है। लेकिन पुणे से देबाशीष जी का फोन आया था और वे चाहते हैं कि यह डोमेन नेम अनूप शुक्ल जी को दे दिया जाए क्योंकि हिंदी
ब्लॉग जगत की चिट्ठाचर्चा प्रारंभ से ही उनके जिम्मे है। अब यह मुद्दा छिड़ा नहीं कि नव ब्लॉगर्स से लेकर अन्य कुछ ब्लॉगर के सिर के उपर से गुजर गया।
आवारा बंजारा अर्थात अपन ने यहां बीच में बोलते हुए कहा कि अपन देबाशीष जी से सहमत हैं। क्योंकि यदि इंटरनेट पर हम छत्तीसगढ़ या अन्य किसी राज्य के आधार पर हदें बांधे तो यह हमारी मूर्खता है कि चिट्ठाचर्चा में हमारे ब्लॉग को या हमारी पोस्ट को जगह नहीं मिलती तो हम एक नया चिट्ठाचर्चा शुरु कर दें। इससे निश्चित तौर पर ब्लॉगजगत का सौहार्द्र बिगड़ेगा। अपन ने यह भी कहा कि आज उस चिट्ठाचर्चा में इतने लोगों की टीम है जो डेडिकेटेड है। अगर छत्तीसगढ़ से नई चिट्ठाचर्चा, चिट्ठाचर्चामंच डॉट काम के नाम से शुरु होती भी है तो कितने दिन चलेगी क्योंकि फिलहाल यहां इतनी डेडिकेशन से चर्चा करने वालों की टीम ही नहीं है। इसलिए अपन ने इस खेमेबाजी का विरोध किया। हालांकि राजकुमार ग्वालानी व ललित शर्मा जी आवारा बंजारा से सहमत नहीं थे। पुसदकर जी ने पाबला जी को राय दी कि चूंकि वह डोमेन नेम अपने खुद रजिस्टर करवाया है इसलिए उस पर निर्णय भी आप खुद लें। इतने में जो बाकी ब्लॉगर थे उन्होंने समवेत स्वर में यही कहा कि जो एसोसिएशन बन रही है उसकी कार्यकारिणी के हवाले यह मुद्दा कर दिया जाए कि इस डोमेन नेम का क्या करना है, देना है या नहीं। अंत में पाबला जी ने यह बात कही कि एक ऑप्शन यह है कि इस डोमेन नेम को वह ऑक्शन ( नीलामी) में डाल देंगे, जिसे लेना होगा वो खरीद लेगा।
वैसे यह मामला लीगल से ज्यादा भावनात्मक हैं जो ब्लॉगर काफी पहले से हिंदी ब्लॉगजगत से जुड़े हैं, वे शायद वही बात कहेंगे जो मैने कही। बाकी लीगल बातें लीगल वाले जानें। अपन भी बहुत ज्यादा पुराने नहीं है लेकिन अपन जब ब्लॉग जगत में आए थे तब हिंदी के महज 370 ब्लॉग हुआ करते थे और एक ही एग्रीगेटर हुआ करता था नारद, जिसे तब वरिष्ठ ब्लॉगर आपस में आर्थिक सहयोग से चला रहे थे। यह आखिर भावनात्मक बात ही थी। आज तो हिंदी ब्लॉग्स की संख्या एक्जैक्ट तो मुझे नहीं पता लेकिन उम्मीद है 18 हजार से उपर ही होगी। खैर अपन लौटतें है अपनी बात पर, इसके बाद पाबला जी ने वहां मौजूद ब्लॉगर्स में सबसे वरिष्ठ ब्लॉगर होने के नाते माइक आवारा बंजारा अर्थात मेरे हवाले कर दिया यह कहते हुए कि यहां मौजूद सभी ब्लॉगर्स में सबसे पुराने संजीत त्रिपाठी हैं।
सो अपन ने माइक संभाला, अपना परिचय दिया। और दो बातें कहीं, पहला तो यह कि ब्लॉग बनाने वाले और लिखने वाले सबसे पहले यह याद रखें कि उन्हें केवल ब्लॉग नहीं बनाने हैं, पाठक भी बनाने हैं। दूसरी बात अपने ने वहां मौजूद उन पत्रकार साथियों से कही जो या तो नए-नए ब्लॉगजगत में आए हैं या आने वाले हैं। उन्हें चेताया कि अगर वे महज अपने छपे समाचार या साप्ताहिक कॉलम को ही फोंट कन्वर्ट कर अपने ब्लॉग पर डालेंगे तो पाठक शायद ही मिलेंगे, सार्थक कमेंट तो बहुत दूर की बात है। क्यों कोई इंटनेट का पाठक आपके शहर की गली मुहल्ले की राजनीति या अन्य बातों को पढ़ना चाहेगा। इसलिए यह ध्यान रखें कि ब्लॉग को ब्लॉग की तरह लिखें, उसमें आपके शब्दों में आपकी विचार प्रक्रिया होनी ही चाहिए।
इसके बाद वहां मौजूद सभी ब्लॉगर्स ने अपना परिचय दिया और अपनी बातें रखीं। वरिष्ठ पत्रकार व ब्लॉगर विभाष जा ने जानकारी दी कि वे भले ही ब्लॉगजगत पर कम सक्रिय हैं लेकिन वे रिसर्च कर ब्लॉग पर एक किताब लिख रहे हैं, जिसके फिलहाल 90 पन्ने तैयार हो चुके हैं। इसमें ब्लॉग बनाने से लेकर अन्य छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान के अलावा इसके भविष्य पर भी जानकारी रहेगी। उन्होंने कहा कि कार्यशाला में वे पूरी जानकारी देने के लिए उपलब्ध रहेंगे। इसी तरह कृषि वैज्ञानिक पंकज अवधिया ने ब्लॉगजगत में लगातार बढ़ रहे विवादों पर चिंता जताई।
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के राजनीतिक सचिव शैलेष नितिन त्रिवेदी व हिंदी दैनिक हरिभूमि के सिटी चीफ राजकुमार सोनी के अलावा और भी कई ब्लॉगरों ने नए ब्लॉगरों के प्रशिक्षण के लिए कार्यशाला आयोजित किए जाने की बात कहीं।
बैठक में पहुंची एकमात्र महिला ब्लॉगर तोषी गुप्ता ने अपना परिचय देने के साथ ही यह भी जानकारी दी कि कैसे मात्र ब्लॉग पर अभिव्यक्ति के चलते उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस पर सभी ने उन्हें धीरज धरने व इस मुद्दे पर सहयोग देने की बात कही।
यह सिलसिला शाम 6 बजे तक चला। इस बीच दो बार चाय व एक बार नाश्ता आया। अंत में अनिल पुसदकर जी ने कहा कि वे जल्द ही इस बात की रुपरेखा तय करते हैं कि देश भर के ब्लॉगरों का सम्मेलन छत्तीसगढ़ में करवाया जाए। इसमें छत्तीसगढ़ के तो सभी ब्लॉगर शामिल होंगे व अन्य राज्यों से चुनिंदा प्रतिनिधि। उन्होंने कार्यशाला के लिए भी जल्द ही चर्चा कर तारीख तय कर लेने का वादा किया।
तो इस बैठकी के निर्णय रहे कि
1 छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स एक कम्युनिटी ब्लॉग पर जरुर लिखेंगे।
2 एक कार्यशाला आयोजित की जाएगी।
3 राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
इससे भी बढ़कर यह अच्छी बात रही कि सभी ब्लॉगर आपस मे मिले, बैठे और बतियाए।
अब चूंकि शाम के छह बज गए थे और आवारा बंजारा को वहां से भागने की जल्दी हो रही थी क्योंकि प्रेस पहुंचना था। सो अपन कल्टी हो गए। अधिकांश भी लौट गए। पुसदकर जी, ललित जी, ग्वालानी जी और डॉ महेश सिन्हा जी के साथ कुछ लोग रवाना हुए एक फार्महाउस की ओर जहां खाने की व्यवस्था थी। सो आगे का हाल वही बता पाएंगे जो शाम 6 बजे से लेकर डिनर तक रुके।
रात में अपन प्रेस से आए 12 बजे, लिखने का मन नई हुआ सो रपट ब्लॉग पर नई डाली तब। अपनी किश्तों में लिखने की आदत नईं, भूले भटके ही किश्तों में लिखते हैं, इसलिए ये एक बैठक में अभी सारा हाल लिखा। नामों व ब्लॉग्स के लिंक समयाभाव के कारण किसी का नहीं डाल पाया, क्षमाप्रार्थी हूं।
25 January 2010
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29 टिप्पणी:
बढ़िया पहल है, भाई. छत्तीसगढ़ के प्रबुद्ध लोगों को जो यह शिकायत है कि प्रदेश की छवि बाहर से आये पत्रकारों और कुछ ग्रुप की वजह से खराब हो रही है, उसके लिए आप ज़रूर कुछ किया जा सकेगा. और इस लिहाज से ब्लागिंग की सार्थकता भी सिद्ध होगी. आगे की बैठक और फैसले के क्रियान्वन के लिए शुभकामनाएं.
बहुत दिनों बाद तुमने लिखना शुरू किया, यह देख कर अच्छा लगा. रपट बेहतरीन लगी.
बहुत बढिया रिपोर्टिंग संजीत भाई।
बधाई स्वीकार किजिए।
संजीत जी। यह हुई असली जीत जी।
विस्तृत रिपोर्ट के लिये धन्यवाद, संजीत जी. हम अपने पारिवारिक कारणों से वहां जा नहीं पाये थे सो ब्लागर साथियों को फोन कर कर के वहां की जानकारी लेते रहे पर सभी साथी इतना मगन थे कि हमें जानकारी मिल ही नहीं पाई थी, आज सुबह ललित भाई नें फोन कर जानकारी दी और आप मित्रों की पोस्टों से जानकारी हुई.
भाई वैचारिक रूप से प्रत्येक ब्यक्ति के अपने अपने निजी विचार होते हैं किन्तु जहां सामूहिक उद्देश्य की बात होती है तब वैचारिक समझौता उचित भी होता है. सभी ब्लागर मित्र मिले, 'छत्तीसगढ में ब्लाग नाद' का हमारा स्वप्न साकार हुआ; आप सभी को मेरी हार्दिक शुभकामनांए.
ब्लागिंग के सुखद उज्जवल भविष्य की और संकेत करती बढ़िया रपट .....
nice
adbhutaas riporting sir...
संजीत जी,
प्रशंसनीय कदम। संचार माध्यम के नए भविष्य की मजबूत आधारशिला। अच्छा लगा रपट पढ़कर। अगर मैं रायपुर में होता तो अवश्य शामिल होता।
अंजीव पांडेय
सिटी एडीटर, दैनिक १८५७, नागपुर
संजीत जी,
प्रशंसनीय कदम। संचार माध्यम के नए भविष्य की मजबूत आधारशिला। अच्छा लगा रपट पढ़कर। अगर मैं रायपुर में होता तो अवश्य शामिल होता।
अंजीव पांडेय
सिटी एडीटर, दैनिक १८५७, नागपुर
बढ़िया, जीवंत रपट. लगा कि किन्हीं प्रभाष जी के "ब्लॉग कारे" को पढ़ रहे हैं. शैली बढ़िया है.
व्यस्तता की वजह से हमें बैठक की जानकारी नहीं हो पाई...हमें इसका बेहद दुःख है कि हम कुछ नयी जानकारी प्राप्त करने से वंचित रह गए....
आपका शुक्रिया कि आपसे बैठक के बारे में जानकारी प्राप्त हुई....
आभार गोष्टी की इस रिपोर्ट एवं तस्वीरों का.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत शानदार रिपोर्ट है। सारा हाल जानने को मिला।
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!
इस सम्मेलन की रिपोर्ट तो कहीं और भी पढ़ी थी लेकिन आप की रिपोर्ट पढ़ कर लगा जैसे हम भी वहां थे। अब अगर हमें ऐसा लग रहा है तो जरूरी बात है कि मन में प्रतिक्रियाएं भी उठेंगी। तो सबसे पहले तो हम अनिल जी से सहमत है कि ब्लोगिंग वाकई पांचवे खंबे की तरह उभर कर सामने आ रहा है।
हम आप से भी सहमत हैं कि चिठ्ठाचर्चा का नाम अनूप जी के पास ही रहना चाहिए, आखिर उन्हों ने और एक डेडिकेटिड टीम ने आज चिठ्ठाचर्चा को उस मु्काम तक पहुंचाया है जहां लोग अपने ब्लोग की चर्चा देख गर्वित महसूस करते हैं।
विभाष जी की किताब का हमें बड़ी बेसब्री से इंतजार रहेगा, जब प्रकाशित हो तो हमें जरूर बताइएगा।
पहले तो मीट के लिए सबों को बधाई। एक ब्लॉगर्स मीट की सफलता सिर्फ इस बात को लेकर नहीं है कि उसमें कितने ब्लॉगर शामिल हुए बल्कि इस बात में भी है कि उस मीट के जरिए कितने नए लोग जुड़ पाए। जो आम ऑडिएंस की हैसियत से आए और ब्लॉगिंग करने का जज्बा लेकर वापस जा रहे हैं। आपने संख्या बताकर इसके महत्व को समझा है,शुक्रिया।
अब दूसरी बात कि छत्तीसगढ़ में जो कार्यकारिणी बन रही है वो चिठ्ठाचर्चा वाले मामले पर विचार बनेगी। मुझे ये बात समझ में ही नहीं आ रही है। क्या ये मसला छत्तीसगढ़ तक सीमित है या सिर्फ इसलिए कि आपलोगों ने एक कार्यकारिणी बना लिया है तो इस नाते मसले का निबटारा कर लेगें या फिर इस लिए कि पाबलाजी सहित बाकी के लोग छत्तीसगढ़ के हैं। अगर वर्चुअल स्पेस के मामले को इस तरह फीजिकल प्रजेंस के तहते निबटाने की आप कोशिश कर रहे हैं तो माफ कीजिएगा कि आपलोग बहुत ही खतरनाक दिशा में कदम रख रहे हैं। ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत ही गलत रिवायत को बढ़ावा दे रहे हैं। ये पूरी बहस वर्चुअल स्पेस की बहस को लेकर है। इसे फिजीकल प्रजेंस के तहत जजमेंट देने के बजाय वर्चुअल स्पेस पर ही इस मामले में लोगों से राय ली जानी चाहिए।
आप लोग अभी तक इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि जब हम सारी बहसें,कवायदें वर्चुअल स्पेस में आकर कर रहे हैं तो उससे कूद-कूदकर विजिवल जोन में क्यों आ जा रहे हैं। मेरी अपनी समझ है कि जैसे-जैसे हम आजाद माध्यम को सांस्थानिक रुप देने जाएंगे वैसे-वैसे इसमें जड़ता आती चली जाएगी। उपरी तौर पर हमें लगेगा कि हम संगठित हो रहे हैं,हमें इसकी ताकत का एहसास भी होगा लेकिन आगे जाकर इसके भीतर सरकारी या कार्यालयी सिस्टम की तरह ही ब्यूरोक्रेसी पैदा होगी।
आप सबसे व्यक्तिगत अपील है कि हमलोग बहुत ही शुरुआती दौर में हैं। इस तरह के मसले को पंचायती औऱ कानूनी लफड़ों में न डालकर फीलिग्स के स्तर पर समझने की कोशिश करें और अपना फैसला उसी के हिसाब से लें। एक इंसान जिसने ऑफिस और गृहस्थी की हील-हुज्जतों के बीच के समय को चुराकर कुछ खड़ा किया,लोगों को जोड़ा,भावनात्मक स्तर पर उससे जुड़ता चला गया।आप आज उस पर पंचायती करने लग गए हैं। इस तरह की जबरिया संस्कृति आनेवाले ब्लॉगरों को किस तरफ ले जाएगी,इसका आपको अंदाजा होना चाहिए। जब इस नाम से डोमेन लिया जा रहा था तो क्या पता नहीं था कि इस नाम से ऑलरेडी पहले कोई बंदा काम कर रहा है। फिर उसमें टांग फसाने की जरुरत क्यों पड़ गयी? इतनी समझदारी लेकर भी काम नहीं किया जा सकता क्या? मैं तो मानता हूं कि हम चाहे या न चाहें,वर्चुअल स्पेस में हमें अपना दिल हर हाल में बड़ा करके काम करना होगा। तभी इसे हम एक संभावना का माध्यम के तौर पर विस्तार दे सकेंगे।
बाकी आपलोग हमसे ज्यादा दिमागवाले हैं,जो बेहतर समझें,करें।.
संजीत जी,
छत्तीसगढ़ के लिए चर्चा के डोमने नेम की बात है तो उसको इस तरह से समझने की जरूरत है कि अगर कोई किराए के मकान में रह रहा है और आप अगर उस घर को खरीद लेते हैं तो उस घर पर तो अधिकार आपका ही होगा न? अब रही बात चर्चा करने वालों की तो जिसने भी इसकी शुरुआत की होगी वह भी पहले नए रहे होंगे, क्या कोई यह सोचकर अपना घर किसी के हवाले कर सकता है क्या कि वह घर चलाने में सक्षम नहीं है? ऐसा कोई कभी नहीं करता है। अपने घर को संवारने के लिए हर इंसान मेहनत करता है। अगर छत्तीसगढ़ के ब्लागरों ने एक चिट्ठा चर्चा के डोमन नेम को खरीदा है तो जरूर इसको सफल किया जा सकता है। कहते हैं न कि मन में हो विश्वास हम कामयाब एक दिन वाली बात यहां भी है। रही बात सद्भावना की तो अगर कोई शालीनता से कुछ मांगता है तो उसे देने से कम से कम हम भारतीय इंकार नहीं करते हैं, यह बात आप भी जानते हैं। यह कोई विवाद का मुद्दा नहीं है।
कल यह रपट पढ़ी! अच्छा लगा कि इत्ते लोग मिले-जुले। इतने लोगों का मिलना-जुलना आत्मीय संबंधों के चलते ही हो सकता है।
यह सोच बड़ी अच्छी है कि छ्द्म नाम से लिखने और दुष्प्रचार करने वालों से होने वाले खतरों की बात हुई। लेकिन असल बात यह है कि क्या इसके बाद छ्द्म नाम से लिखने वाले लोग अपना लिखना बन्द कर देंगे?
यह बात बड़ी सुकूनदेह लगी कि वहां संजीत और अनिल जैसे लोग भी हैं जो सही को सही और गलत को गलत कहने का मन रखते हैं। वर्ना तो मुझे यह सूचना भी मिली थी कि थूक रहा है मुझ पर आधे से ज्यादा ब्लागजगत और पूरा छत्तीसगढ़.
छत्तीसगढ़ कमन्युटी ब्लॉग, कार्यशाला और राष्ट्रीय ब्लॉगर मीट के लिये मंगलकामनायें। कमन्युटी ब्लॉग शायद आगे और लोगों को भी दिशा दे।
चिट्ठाचर्चा के लिये आपकी सोच का आभारी हूं। मुझे सच में यह अंदाजा नहीं है/था कि इसके क्या मतलब हैं! नाम खरीदना चाहिये या नहीं। चिट्ठाचर्चा मेरे अकेले की जागीर नहीं है। मुझसे ज्यादा मेरे साथियों ने इसे पांच साल तक निरन्तर सहयोग करके यहां इस मुकाम तक पहुंचाया। जब यह शुरू किया गया था तब न डोमेन की सोची थी और न अभी सोचते हैं। जब चर्चा शुरु की गयी थी तब कुल जमा ब्लॉग सौ भी नहीं थे। आज अठारह हजार पार हो गये। चिट्ठाचर्चा नाम तो कोई भी ले सकता है। चिट्ठाचर्चा.कॉम है, .ओर्ग है, .इन है। लेकिन यह भी तो देखा जाना चाहिये कि यह लिया किसलिये जा रहा है। छ्त्तीसगढ़ के साथियों ने पिछली बार विस्फ़ोट करते हुये बताया कि चौदह जनवरी से चर्चा शुरू होगी। मैंने चौदह को देखा तो वहां प्रायोजक न मिलने के कारण चिट्ठाचर्चा स्थगित करने की बात कही थी। क्या विस्फ़ोट के आगे की गतिविधियां प्रायोजकों के भरोसे थीं/हैं? कल बात हुई कि चिट्ठाचर्चा नीलाम किया जायेगा। जिसकी बोली सबसे ज्यादा लगेगी उसको यह दे दिया जायेगा। इससे चिट्ठाचर्चा.कॉम से जुड़े लोगों की गंभीरता पता चलती है। उद्देश्य जब पैसा कमाना ही है तो फ़िर वहां भाईचारे की बात करते समय यह टैग भी साथ नत्थी करना चाहिये कि भाईचारा है, अपनापा है लेकिन आर्थिक नुकसान नहीं होना चाहिये।
सबके अपने-अपने उसूल होते हैं। मैंने लगातार तीन साल फ़ुरसतिया.कॉम डोमेन लिया और अपने तमाम तकनीकी साथियों की सलाह को नजरअन्दाज करते हुये हिन्दिनी.कॉम/फ़ुरसतिया को छोड़कर फ़ुरसतिया.कॉम पर शिफ़्ट नहीं किया सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिये कि इससे हमारे ईस्वामी का मन दुखेगा। इन्दौर का मालवी बालक जिससे मैं आजतक मिला नहीं उसने प्रेम से मुझे हिन्दिनी साइट पर लिखने के लिये कहा उसे छोड़कर अपनी साइट बनाने की बात ही मुझे असहज करती है।
चिट्ठाचर्चा डोमेन नाम लेने के बारे में मसिजीवी ने लिखा भी कि यह साइबर स्क्वैटिंग के अंतर्गत आता है। लेकिन यह सब बातें उन पर लागू होती हैं जहां बात नैतिकता और आदर्शों की होती है। जहां बात नीलामी और आर्थिक लाभ की हो वहां व्यापारिक आदर्श और समझदारी की ही बातें सही कहलायेंगी। इस लिहाज से किसी का भी चिट्ठाचर्चा डोमेन नाम लेकर उससे पैसा कमाना गलत नहीं कहलायेगा। बल्कि अवसर चूकना बेवकूफ़ी ही कहलायेगा।
यह बात तो मुझे समझनी ही होगी कि हल्दी और नीम के पेटेन्ट पर यह कहकर बिलबिलाना कि इनका तो हम सदियों से प्रयोग कर रहे हैं, तथा चिट्ठाचर्चा.कॉम डोमेन लेने पर यह रोना रोना कि हम पांच साल से चिट्ठाचर्चा करते आ रहे हैं इसलिये हमारा हक बनता है ये दो अलग बातें हैं और इनमें अन्तर है।
चिट्ठाचर्चा.कॉम जिन लोगों ने खरीदा उनसे अनुरोध है कि वे इसका सही में चर्चा करने में उपयोग करके दिखायें। चर्चा में वह काम करके दिखायें जो इससे पहले कभी नहीं हुये। किसी नीलामी में भाग लेने का हमारा कोई इरादा नहीं है।
मुझे पूरी आशा है कि अनिल पुसदकर, संजीत त्रिपाठी और शरदकाकोस जैसे सबको साथ लेकर चलने की ईमानदार मंशा वाले साथियों के साथ छतीसगढ़ के ब्लॉगर साथी अपने सभी उद्देश्य पूरे कर सकेंगे।
लेकिन एक शिकायत यह भी है कि रायपुरिये क्या अपने गुरु/चेला (अनिल पुसदकर/संजीत त्रिपाठी) का घर बसाने के बारे में कुछ क्यों नहीं सोचते! यह भी जरूरी काम है।
एकाएक मुझे मीनाकुमारी की गज़ल याद हो आई
टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
बी एस पाबला
बहुत बढिया संजीत्।सब देख रहा हूं,सुन रहा हूं और पढ भी रहा हूं,एक फ़ायनल रिपोर्ट लगता है मुझे भी पोस्ट करनी पड़ेगी,जो मैं करना नही चाह्ता था।
संजीत भाई,
बहुत बहुत बधाईया स्वीकार कीजिये, व्यस्तता के चलते मै बहुत दिनो से ब्लाग मे नही लिख पाया पर आज आप की इस रिपोर्टिग ने मुझे फिर से इस दुनिया मे आने को तैयार कर दिया है। बहुत जल्दी मै पुन: आप ब्लाग भाईयो के साथ होंऊगा।
हालांकि अब इन विवादों में कुछ कहने या अब तो कहूं कि पढने का भी मन नहीं करता मगर कभी कभी चुप रहना खुद को बहुत दिनों तक बेचैन किए रहता है । आप इतने दिनों बाद आए सुखद रहा , मगर आते ही एकांगी दृष्टिकोण रखा ये आश्चर्यचकित करने वाला रहा मेरे लिए । क्या विवाद सिर्फ़ चिट्ठाचर्चा नाम या उसके खरीदे बेचे जाने को लेकर है। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि नहीं है , चिट्ठाचर्चा ब्लोग बेशक चर्चा का सबसे पहले शुरू हुआ सबसे पुराना मंच है , तो क्या इस लिहाज से उसकी और उससे जुडे तमाम लोगों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि आगे आ रहे चर्चाकारों के लिए मार्गदर्श्क की भूमिका निभाती , बजाए इसके कि चर्चा के नाम पर कभी किसी की निजि छीछालेदारी तो कभी जाने अनजाने किसी पोस्ट या टिप्पणी को छपने और नहीं छपने देने जैसे कार्य करके उसे अखाडा बना देने जैसी स्थिति में ला देने जैसी बात होने देते रहना । मैं पहले भी कह चुका हूं कि हम में से कोई भी ऐसा नहीं है कि जिसका घरबार इस ब्लोग्गिंग से चल रहा है न ही इससे किसी को कोई जायदाद मिल घट रही है तो फ़िर .......फ़िर तो बस वही आपसी स्नेह, शायद हिंदी के प्रति आपका प्रेम , मित्रता ..जिसके लिये सबसे बडी बात है आपकी हमारी नीयत का साफ़ होना जो देर सवेर हमारे श्ब्दों से निकल ही आता है । रही बात अनाम लोगों की तो इतना तो तय है कि वे कहीं बाहर से नहीं है जो हैं हमारे इसी ब्लोग समाज से हैं । चिट्ठाचर्चा ब्लोग हो या चिट्ठाचर्चा .कौम दोनों यदि आपना काम अच्छी नीयत से करेंगे तो दोनों को प्यार मिलता रहेगा और अभी तो न जाने कितने चर्चा .कौम बनने हैं या कि बनेंगे । और रही बात समय समय की , बहुत पुरानी बात है , या कि उस वक्त और बात थी जैसी बातों की , तो समय के साथ तो गांधी नेहरू भी प्रासंगिक और आप्रासंगिक होते रहे हैं ,
एक शेर मुझे भी याद आ रहा है
चमन को सींचने में पत्तियां कुछ झड गई होंगी ,
वो तोहमत लगा रहे हैं बेफ़वाई का ,
मगर जिन्होंने रौंद डाला कलियों को , वही कर रहे हैं दावा, चमन की रहनुमाई का ॥
सवाल सिर्फ़ नीयत का है ....नीयत का और कुछ नहीं
अजय कुमार झा
इस डोमेन नेम को वह ऑक्शन ( नीलामी) में डाल देंगे, जिसे लेना होगा वो खरीद लेगा।
yaani pabla ji yae maantey haen ki unhonae apnae baetae kae naam kaa upyog karkae charcha ka domain name book kiyaa thaa
kyuki masjeevi ki poat par aesi koi baat nahin uthi
ab kyaa naitiktaa kaa itna patan ho gaya haen ki ham apnae bachcho kae naam ko unki compniyon ko bloging mae utarnaa chahtey haen apnae pane kaam sidhh karnae kae liyae
baat khul kar saamnae aahi gayee ki kewal aur kewal paese kae liyae hi yae kaam kiyaa gayaa thaa aur ek sarkaari karam chari paese kae liyae yae karae to kewal aur kewal galani hi hotee haen
रचना जी, कृपया इस ब्लॉग पर किसी के व्यक्तिगत स्तर तक की टिप्पणियां न की जाएं।
यह पहला मौका है इसलिए आपकी टिप्पणी प्रकाशित हो रही है। अगली बार कृपया ध्यान रखें।
शुक्रिया।
संजीत शायद आपने आने में बहुत देर कर दी और विस्फोट आदि होते रहे। नया पुराना ब्लॉगर कहना अच्छा तो नहीं लगता किन्तु जिन बातों को सुलझाने का यत्न तो किया जा सकता था उन्हें उलझाया गया।
वैसे विनीत से सहमत हूँ कि आभासी जगत को भौगोलिक सीमाओं में बाँधने का प्रयास क्या उचित है?
घुघूती बासूती
Vछत्तीस गढ़ ब्लॉगर बैठक वहाँ के ब्लागरों की सक्रियता का परिचायक है. ब्लॉग हमारी निजी और जन हितैषी भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बन के उभरा है, बस हमारा प्रयास इसको सार्थक दिशा की और ले जाने का सदैव रहेगा तो निश्चित रूप से चिंतन का नजरिया और राष्ट्र विकास में हम अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं.मैं इस बैठक में शामिल होने वाले सभी प्रबुद्धो का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ.
- विजय तिवारी " किसलय "
छत्तीस गढ़ ब्लॉगर बैठक वहाँ के ब्लागरों की सक्रियता का परिचायक है.ब्लॉग हमारी निजी और जन हितैषी भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बन के उभरा है,बस हमारा प्रयास इसको सार्थक दिशा की और ले जाने का सदैव रहेगा तो निश्चित रूप से चिंतन का नजरिया और राष्ट्र विकास में हम अपनी अहम भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं.मैं इस बैठक में शामिल होने वाले सभी प्रबुद्धों का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ.
- विजय तिवारी " किसलय "
sanjeet aap ko adhikaar haen moderation kaa aap kament delete kar saktey haen mujeh kehna thaa aap blog malik haen aap nae padhnae kae baad hi prakashit ki haen
achchha blog hai
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