क्या हल्ला बोलेंगे ये हल्ला करने वाले
आलोक तोमर
आलोक तोमर
भारत के सबसे सिद्व और प्रसिद्व संपादक और उससे भी आगे शास्त्रीय संगीत से ले कर क्रिकेट तक हुनर जानने वाले प्रभाष जोशी के पीछे आज कल कुछ लफंगों की जमात पड़ गई है। खास तौर पर इंटरनेट पर जहां प्रभाष जी जाते नहीं, और नेट को समाज मानने से भी इंकार करते हैं, कई अज्ञात कुलशील वेबसाइटें और ब्लॉग भरे पड़े हैं जो प्रभाष जी को ब्राह्मणवादी, सामंती और सती प्रथा का समर्थक बता रहे हैं।
कहानी रविवार डॉट कॉम में हमारे मित्र आलोक प्रकाश पुतुल द्वारा प्रभाष जी के इंटरव्यू से शुरू हुई थी। वेबसाइट के आठ पन्नों में यह इंटरव्यू छपा है और इसके कुछ हिस्सों को ले कर भाई लोग प्रभाष जी को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं। जिसे इंदिरा गांधी नहीं निपटा पाईं, जिसे राजीव गांधी नहीं निपटा पाए, जिस लाल कृष्ण आडवाणी नहीं निपटा पाए उसे निपटाने में लगे हैं भाई लोग और जैसे अमिताभ बच्चन का इंटरव्यू दिखाने से टीवी चैनलों
की टीआरपी बढ़ जाती हैं वैसे ही ये ब्लॉग प्रभाष जी की वजह से लोकप्रिय और हिट हो रहे हैं। मगर लोकप्रिय की बात करें तो यह लोग कौन सा हैं? प्रभाष जी पर इल्जाम है कि वे जातिवादी हैें और ब्राह्मणों को हमेशा उन्होंने आगे बढ़ाया। दूर नहीं जाना है। मेरा उदाहरण लीजिए। मैं ब्राह्मण नहीं हूं और अपने कुलीन राजपूत होने पर मुझे दर्प नहीं तो शर्म भी नहीं है। पंडित प्रभाष जोशी ने मुझ जैसे गांव के लड़के को छह साल में सात प्रमोशन दिए और जब वाछावत वेतन आयोग आया था तो इन्हीं पदोन्नतियों की वजह से देश में सबसे ज्यादा एरियर पाने वाला पत्रकार मैं था जिससे मैंने कार खरीदी थी। प्रभाष जी ने जनसत्ता के दिल्ली संस्करण का संपादक बनवारी को बनाया जो ब्राह्मण नहीं हैं लेकिन ज्ञान और ध्यान में कई ब्राह्मणों से भारी पड़ेंगे। प्रभाष जी ने सुशील कुमार सिंह को चीफ रिपोर्टर बनाया। सुशील ब्राह्मण नहीं है। प्रभाष जी ने कुमार आनंद को चीफ रिपोर्टर बनाया, वे भी ब्राह्मण नहीं है। प्रभाष जी ने अगर मुझे नौकरी से निकाला तो पंडित हरिशंकर ब्यास को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।
सिलिकॉन वैली में अगर ब्राह्मण छाए हुए हैं तो यह तथ्य है और किसी तथ्य को तर्क में इस्तेमाल करने में संविधान में कोई प्रतिबंध नहीं लगा हुआ है। प्रभाष जी तो इसी आनुवांशिक परंपरा के हिसाब से मुसलमानों को क्रिकेट
में सबसे कौशलवादी कॉम मानते हैं और अगर कहते हैं कि इनको हुनर आता था और चूंकि हिंदू धर्म में इन्हें सम्मान नहीं मिला इसलिए उनके पुरखे मुसलमान बन गए थे। अगर जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, नरसिंह राव और राजीव गांधी ब्राह्मण हैं तो इसमें प्रभाष जी का क्या कसूर हैं? इतिहास बदलना उनके वश का नहीं है। प्रभाष जी ने इंटरव्यू में कहा है कि सुनील गावस्कर ब्राह्मण और सचिन तेंदूलकर ब्राह्मण लेकिन इसी इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि अजहरुद्दीन और मोहम्मद कैफ भारतीय क्रिकेट के गौरव रहे हैं।
एक और बात उछाली जा रही है और वह है सती होने की बात। एक जमाने में देवराला सती कांड हुआ था तो बनवारी जी ने शास्त्रों का हवाला दे कर एक संपादकीय लिखा था जिसमें कहा गया था कि सती होना भारतीय परंपरा का हिस्सा है। वे तथ्य बता रहे थे। सती होने की वकालत नहीं कर रहे थे। इस पर बवाल मचना था सो मचा और प्रभाष जी ने हालांकि वह संपादकीय नहीं लिखा था, मगर टीम के नायक होने के नाते उसकी जिम्मेदारी स्वीकार की। रविवार के इंटरव्यू में प्रभाष जी कहते हैं कि सती अपनी परंपरा में सत्य से जुड़ी हुई चीज है। मेरा सत्य और मेरा निजत्व जो है उसका पालन करना ही सती होना है। उन्होंने कहा है कि सीता और सावित्रि ने अपने पति का साथ दिया इसीलिए सबसे बड़ी सती हिंदू समाज में वे ही मानी जाती है। अरे भाई इंटरव्यू पढ़िए तो। फालतू में प्रभाष जी को जसवंत सिंह बनाने पर तूले हुए हैं। प्रभाष जी अगर ये कहते हैं कि भारत में अगर आदिवासियों का
राज होता तो महुआ शेैंपियन की तरह महान शराब मानी जाती लेकिन हम तो आदिवासियों को हिकारत की नजर से देखते है इसलिए महुआ को भी हिकारत से देखते हैे। मनमोहन सिंह को खेती के पतन और उद्योग के उत्थान के लिए प्रभाष जी ने आंकड़े दे कर समझाया है और अंबानी और कलावती की तुलना की है, हे अनपढ़ मित्रों, आपकी समझ मेंं ये नहीं आता। आपको पता था क्या कि शक संभवत उन शक हमलावरों ने चलाया था जिन्हें
विक्रमादित्य ने हराया था लेकिन शक संभवत मौजूद है और विक्रमी संभवत भी मौजूद है। यह प्रभाष जी ने बताया है। प्रभाष जी सारी विचारधाराओं को सोच समझ कर धारण करते हैं और इसीलिए संघ के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को
सांप्रदायिक राष्ट्रवाद कहते हैें। इसके बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी से ले कर भैरो सिंह शेखावत तक से उनका उठना बैठना रहा है। विनाबा के भूदान आंदोलन में वे पैदल घूमे, जय प्रकाश नारायण के साथ आंदोलन में खड़े रहे और अड़े रहे। चंबल के डाकुओं के दो बार आत्म समर्पण में सूत्रधार बने और यह सिर्फ प्रभाष जी कर सकते हैं कि रामनाथ गोयनका ने दूसरे संपादकों के बराबर करने के लिए उनका वेतन बढ़ाया तो उन्होंने विरोध का पत्र लिख दिया। उन्होंने लिखा था कि मेरा काम जितने में चल जाता है मुझे उतना ही पैसा चाहिए। ये ब्लॉगिए और नेट पर बैठा अनपढ़ों का लालची गिरोह प्रभाष जी को कैसे समझेगा?
ये वे लोग हैं जो लगभग बेरोजगार हैं और ब्लॉग और नेट पर अपनी कुंठा की सार्वजनिक अभिव्यक्ति करते रहते हैं। नाम लेने का फायदा नहीं हैं क्योंकि अपने नेट के समाज में निरक्षरों और अर्ध साक्षरों की संख्या बहुत है। मैं
बहुत विनम्र हो कर कह रहा हूं कि आप प्रभाष जी की पूजा मत करिए। मैं करूंगा क्योंकि वे मेरे गुरु हैं। आप प्रभाष जी से असहमत होने के लिए आजाद हैं और मैं भी कई बार असहमत हुआ हूं। जिस समय हमारा एक्सप्रेस समूह
विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सारे घोड़े खोल चुका था और प्रधानमंत्री वे बन भी गए थे तो ठीक पंद्रह अगस्त को जिस दिन उन्होंने लाल किले से देश को संबोधित करना था, जनसत्ता के संपादकीय पन्ने
पर मैंने उन्हें जोकर लिखा था और वह लेख छपा था। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लगभग विलखते हुए फोन किया था तो प्रभाष जी ने उन्में मेरा नंबर दे दिया था कि आलोक से बात करो। यह कलेजा प्रभाष जी जैसे संपादक का ही हो सकता है कि एक बार रामनाथ गोयनका ने सीधे मुझे किसी खबर पर सफाई देने के लिए संदेश भेज दिया तो
जवाब प्रभाष जी ने दिया और जवाब यह था कि जब तक मैं संपादक हूं तब तक अपने साथियों से जवाब लेना होगा तो मैं लूंगा। यह आर एन जी का बड़प्पन था कि अगली बार उन्होंने संदेश को भेजा मगर प्रभाष जी के जरिए भेजा कि आलोक तोमर को बंबई भेज दो, बात करनी है।
आपने पंद्रह सोलह हजार का कंप्यूटर खरीद लिया, आपको हिंदी टाइपिंग आती है, आपने पांच सात हजार रुपए खर्च कर के एक वेबसाइट भी बना ली मगर इससे आपको यह हक नहीं मिल जाता कि भारतीय पत्रकारिता के सबसे बड़े जीवित गौरव प्रभाष जी पर सवाल उठाए और इतनी पतित भाषा में उठाए। क्योंकि अगर गालियों
की भाषा मैंने या मेरे जैसे प्रभाष जी के प्रशंसकों ने लिखनी शुरू कर दी तो भाई साहब आपकी बोलती बंद हो जाएगी और आपका कंप्यूटर जाम हो जाएगा। भाईयो बात करो मगर औकात में रह कर बात करो। बात करने के लिए जरूरी मुद्दे बहुत हैं।
लेखक जाने-माने पत्रकार हैं।
23 टिप्पणी:
भईया, नीचे लिखे वाक्यों के अर्थ बता देंगे
"ये ब्लॉगिए और नेट पर बैठा अनपढ़ों का लालची गिरोह.......जो लगभग बेरोजगार हैं और ब्लॉग और नेट पर अपनी कुंठा की सार्वजनिक अभिव्यक्ति करते रहते हैं"
आलोक तोमरजी के सम्पादक रहे तो हिन्दी पत्रकारिता के जीवित गौरव होंगे ही ! श्रवण कुमार गर्ग ,अनुपम मिश्र के साथ जेपी के समक्ष चम्बल के बागियों के आत्मसमर्पण पर पुस्तिका लिख दी तो आत्मसमर्पण के सूत्रधार हो गये । जब सूत्रधार हो ही गये तो विनोबा के समक्ष लोकमन दीक्षित के नेतृत्व में जो आत्मसमर्पण हुआ उसका सूत्रधार भी बना दो। विनोबा की भूदान - पदयात्रा में कहां ,कब चले ? तोमरजी बतायेंगे।
निपटाननुमा शक्सियतों को निपटाने के लिए आलोकजी की निपटान-शैली की आवश्यकता होगी - ’लफ़ंगों’वाली ,पूजा करने वाली । कुछ पत्रकार शाष्टांग - प्रन्निपात करते भी देखे जाते थे ।
बढ़िया है. तोमर में दम है.
अगर आप किसी का सम्मान नहीं कर सकते तो अपमान करने का अधिकार भी नहीं मिलता . जो लोग सामने आने की क्षमता नहीं रखते उनका तो कोई वजूद ही नहीं होता . आलोक जी भी भावावेश में ज्यादा बोल गए
यह भक्त समर्थक का बयान है। बहुत अतिउत्साह है। प्रभाष जी भी इंसान हैं। गलतियाँ उन से भी हुई ही हैं। लेकिन उन्हें एक भक्त कैसे स्वीकार करे। पर जैसी निंदा उन की की जा रही है वह भी किसी खास उद्देश्य से प्रेरित है और निंदा के लिए निंदा है।
एक भक्त समर्थक के बयान और निंदा के लिए निंदा के बीच कहीं प्रभाष जी हैं।
संजीत त्रिपाठी जी, आलोक जी ने तो जबर्दस्त प्रतिवाद कर लिया और आपने उन्हें छापकर अच्छा ही किया। लेकिन यदि उन बातों का लिंक भी यहाँ लगा देते तो हमें पूरी बात सन्दर्भ सहित पता चल जाती। प्रभाष जी मेरे लिए भी बहुत आदरणीय हैं।
पता भी तो नही है कि प्रभाष जी ने ऐसा कुछ कहा भी है।
आलोक तोमरजी ने अपनी बात कह दी! पढ़कर अच्छा लगा।
मामला क्या है भैय्या ???
संजीत जी, प्रभाष जी को ब्राह्मणवादी, सामंती और सती प्रथा का समर्थक वाली आखिर कौन से बात है कृपया उस लेख का लिंक भी बताये
http://www.raviwar.com/baatcheet/B25_interview-prabhash-joshi-alok-putul.shtml
http://ek-ziddi-dhun.blogspot.com/2009/08/blog-post_19.html
http://janokti.blogspot.com/2009/08/blog-post_8275.html?showComment=1250708065226#c891128686586342518
i like the way you write in simple words & hindi language which can reach mass in india & worldwide, where majority of people are undereducated & moreover ignorant, they are literate in mere way, but they see things the way it is presented
Brahmin and Rajputs has been bound together very tightly. Brahmins only created Rajputs from a Mount Abu Yagya in 6th century AD, for fighting against Buddhist/Jain Kshatriyas. How come Alok Tomar criticise brahmins. Brahmins has been the main people behind rajputs over publicity.
Toamr ji aap chahte to apni shabdawali ko niyantran me rakh ke kafi achhi blogging kar sakte the parantu bhawavesh me aap apne badbolepan ke karan is par koi niyantran hi nahi rakh paye
All the best for next time
बहुत बढ़िया लगा! अत्यन्त सुंदर! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
mama ji ko namaskar dikhte nahi aaj kal ??
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
जो है नामवाला वही तो बदनाम है ।
विवेचना पूर्ण लेख, बहुत खूब
नव वर्ष की आपको और आपके परिवार को शुभकामनायें....
apke blag main naya articl nahi dikh raha hai. kaya bat hai
govind patel
sanjit bhai
thanks aapki site mere chattisgarh chor ne ka bad bhi mere ko chattisgarh ki mitti ki khushboo pohchati he
aapse bade 'inspired' hain hum. isliye wahi 'about me' daal diya. ab to badalna hi padega
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