15 अगस्त की पूर्व संध्या पर दफ्तर में काम करते हुए कुछ काम अपने जूनियर्स को सौंपने के बाद शहर के अखबारों की फाईल पलट रहा था। अचानक एक अखबार नई दुनिया पर नजर पड़ी। उसके मुख्य संस्करण को बांचने के बाद शहर वाले संस्करण को जैसे ही उठाया पहले पन्ने पर ही स्वतंत्रता दिवस को लेकर कुछ लोगों से बातचीत थी। एक नाम पर नजर पड़ी, उनके नाम के आगे स्वतंत्रता सेनानी छपा हुआ था, फोटो भी लगी हुई थी।
मन में आश्चर्य हुआ कि ये कब से स्वतंत्रता सेनानी कहलाने लगे।
मन का यह सवाल दूर करने के लिए अखबार के संपादक को मोबाईल पर कॉल लगाया। बात हुई। अपन ने पूछा, सर जो आदमी स्वतंत्रता सेनानी नहीं है, अखबार ने उसके नाम के आगे कैसे यह लिख दिया कि स्वतंत्रता सेनानी है, भई यह काम सरकार का है कि यह घोषित या तय करे कि स्वतंत्रता सेनानी कौन है-कौन नहीं। चूंकि मैं खुद एक स्वतंत्रता सेनानी का पुत्र हूं सो जानता हूं कि रायपुर में कौन-कौन से स्वतंत्रता सेनानी जीवित बचे हैं।
संपादक जी ने कहा, भई उन्होंने कहा कि वे स्वतंत्रता सेनानी है सो हमने लिख दिया।
मैं थोड़ा सा और आश्चर्य में कि ये क्या जवाब है। ऐसे तो कल को मैं कहूंगा कि मैं फलाना हूं, प्रधानमंत्री हूं…तब?
फिर संपादक जी ने कहा, अरे यार 60-62 साल को हम झूठा थोड़े ही कहेंगे, उनसे प्रूफ थोड़े ही मांगेंगे। अब जैसे आप ही कह रहे हो कि आप फलाने स्वतंत्रता सेनानी के बेटे हो तो हम मान ले रहे हैं।
अपन ने कहा, न न, आप चाहें तो सप्रमाण मिलकर अपनी बात कह सकता हूं।
अब संपादक जी थोड़े गुस्से में,- अरे यार आप फालतू की बहस कर रहे हो।
अपन ने फिर कहा, सर मैं बहस नहीं कर रहा, बस यह जानना चाह रहा था कि जो सज्जन दर-असल हैं नहीं उन्हें कैसे हम अखबार में बता कर छाप सकते हैं। क्या यह गलत नहीं है?
संपादक जी- अरे भाई, अखबार की कार्यप्रणाली अलग होती है, इसकी वर्किंग आप नहीं जानते।
अपन ने धीरे से कहा, सर,थोड़ा बहुत जानता हूं अखबार की वर्किंग क्योंकि मैं भी अखबार लाईन का ही बंदा हूं।
अब संपादक महोदय जरा चौकन्ने हुए, बोले,क्या यार अखबार लाईन के हो फिर भी ऐसी बात कर रहे हो, कौन से अखबार में हो बताओ।
अपन ने कहा, सर मैं किसी अखबार के लायक नहीं हूं लेकिन बस अखबार लाईन का हूं। ;)
अब संपादक महोदय मूल मुद्दे को छोड़कर यही पूछने में लग गए कि मैं किस अखबार का हूं। अपन ने भी नई बताया। क्योंकि अपन को मालूम है देर-सबेर तो मालूम चल ही जाना है उन्हें और वैसे भी वे संभवत: मुझे चेहरे से पहचान ही जाएं क्योंकि पहले दो-तीन मुलाकात हो चुकी है।
अपना जो उद्देश्य था कि अखबार को यह एहसास करवाना कि भई इस मुद्दे पर उनसे गलती हुई है बतौर एक पाठक और एक जानकार उन्हें करवा दिया था सो बात खत्म।
लेकिन पांच मिनट बाद संपादक जी का कॉल बैक आया मेरे मोबाईल पर। संभवत: इस बीच उन्होंने उस सिटी रिपोर्टर को बुलवाकर जानकारी ली होगी।
संपादक जी- लो देखो भई उनका विजिटिंग कार्ड भी है, इसमें साफ-साफ लिखा हुआ है कि, फलाने फलाने, स्वतंत्रता सेनानी, अध्यक्ष फलाना, संपादक फलाना, फलाना प्रेस, फलाना गली, ढेकाना मोहल्ला।
अब मैने कहा, सर, ये सब पता ठिकाना तो मैं भी जानता हूं और आज से नहीं मेरी उम्र 32 साल है और मै 28 साल से जान रहा हूं इन सज्जन को। इनकी इज्जत करता हूं इसीलिए जानता हूं कि वे स्वतंत्रता सेनानी नहीं है। हां यह मुझे नहीं मालूम था कि ये सज्जन अपने विजिटिंग कार्ड पर स्वतंत्रता सेनानी छपवाए रहते हैं।
अब संपादक महोदय जी ने फोन कट कर दिया। दर-असल और कुछ बचा ही नहीं था कहने को, न उनके पास और न मेरे पास।
अब सवाल यह है कि ऐसे न जाने कितने आदरणीय बुजुर्ग सज्जन होंगे जिनके मन में यह चाह है कि वे स्वतंत्रता सेनानी घोषित कर दिए जाएं। लेकिन क्या इस चाह को विजिटिंग कार्ड में रखना और फिर उसके माध्यम से
अपने आप को वह प्रचारित करना जो आप हो नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी। क्या जो सच में स्वतंत्रता सेनानी हैं उनका अपमान नहीं है?
वैसे पिछले कुछ सालों से सुनते,पढ़ते आ रहा हूं कि आंध्रप्रदेश और बिहार में सबसे ज्यादा फर्जी स्वतंत्रता सेनानी पाए गए हैं जिनकी उम्र 55 साल है वे भी सरकारी रिकार्ड में सेनानी हैं। गनीमत है छत्तीसगढ़ में अभी तक ऐसा एक
भी मामला सामने नहीं आया है।
खैर मुख्य बात यह कि
सभी को स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएं
15 August 2009
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23 टिप्पणी:
jabardast point uthaya hai aapne.
rajendra krishna ne barson pahle likh diya tha ki aanewale waqt me-- Hans chugega daana tinka kauva nmoti khayega. kya kiya jaaye, dukh to hota hai hai.
aapne aapni baat rakhi, yah bhi badi baat hai. badhaaiyan
vibhash jha
फर्जीवाड़े में हमारा देश कौन से स्थान पर है?
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
सामान्य बात हो गयी है बिना किसी परीक्षण के समाचार प्रकाशित करना. स्वास्थ्य के क्षेत्र में syndication के माध्यम से कुछ भी परोसा जा रहा है
ये बिलकुल ठीक कहा आपने..इस देश में स्वतंत्र सेनानी नाम का खूब दुरूपयोग हुआ है...और ये उन सच्चे सेनानियों का भी अपमान है...सरकार है न माशाल्ला
हर पथ पर शैतानी है ,किसको किसको गन्दा बोलूं ,,,
मित्र फर्जी बाड़ा हर जगह है कहा नहीं है , पर उस फर्जी बाड़े से सत्यता को निकालना ही सच्चा पुरुषार्थ है , अब आगे मीडिया को कुछ कहने को बचता ही नहींहै
Rrgards
•▬●๋•pŕávểểń کhừklá●๋•▬•
9971969084
9211144086
असली फ़्रीड्म फ़ाईटर को विजीटिंग कार्ड छपवाने की ज़रूरत ही नही पड़ती थी।खैर अपौन की उम्र उतनी नही है वरना ये आईडिया बुरा नही है।
इस तरह के लोग अनेक मिल जायेंगे. एक की पोल आपको ज्ञात है. बहुतों की किसी को पता नहीं होती.
क्या गलत है? मिसाल के लिये अपनी कहूं - फ्रीडम के लिये तो हम अब भी फाइट किये जा रहे हैं! :)
खीझ और क्षोभ के सिवा किया क्या जा सकता है?
शायद अनिल पुसदकर जी का आइडिया बुरा नहीं है :-)
सही है! हम लिख सकते हैं फ़ाइटिंग से फ़्री!
क्षोभ का विषय हैं....किन्तु लोगों को स्वयं को महिमा-मंडित करने को रोकने का कोई उपाय भी हैं है. ऐसी स्थिति में संपादक की त्रुटी ही हैं....उसे आवश्यक जांच पड़ताल कर लेनी चाहिए थी
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत गलत हो रहा है, जब काम करना था तब तो जाके बिलों में छुपे बैठे होगें और मलाई खाने में सब से आगे…।
आप ने अच्छा किया लेकिन उस संपादक पर कोई असर पड़ने का नहीं वो कल भी वही गलती करेगा और जानबूझ कर करेगा, कल को पता चलेगा कि ये फ़र्जी सैनानी मंत्री बना बैठा है
बहुत गलत हो रहा है, जब काम करना था तब तो जाके बिलों में छुपे बैठे होगें और मलाई खाने में सब से आगे…।
आप ने अच्छा किया लेकिन उस संपादक पर कोई असर पड़ने का नहीं वो कल भी वही गलती करेगा और जानबूझ कर करेगा, कल को पता चलेगा कि ये फ़र्जी सैनानी मंत्री बना बैठा है
आप की बात एकदम सही है....स्वतंत्र सेनानी नाम का खूब दुरूपयोग हुआ है और ये उन सच्चे सेनानियों का भी अपमान है....
जय हो.
जो हो रहा है वो सरासर गलत है। इसे तो अपराध की श्रेणी में रखना चाहिये। जरा उन लोगों की भावनाओं के बारें में सोचना चाहिये जिनके प रिजन स्वतंत्रता सेनानी रह चुके है। फर्जी स्वतंत्रता सेनानी बन कर पेंशन व अन्य सुविधाओं का उपयोग करते हुए इन लोगों को जरा भी संकोच नहीं होता। जानते-बुझते भी ऐसे लोगों को स्वतंत्रता सेनानी का मान देना अक्षम्य है।
बहुत बढ़िया और बिल्कुल सही लिखा है आपने! बहुत से ग़लत चीज़ हो रहे हैं और अब किस किस पर ऊँगली उठाया जाए?
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
अरे भैया नया कुछ लिखोगे राजा।
bahut pasand aaya
I really appreciate your in depth knowledge & observation.
I am an indian in usa, so i should not favor just one country out of these two, so this is what i felt on 15th August.
How can I celebrate Independence day when my country is dependant on other countries for employment, technology, when they import goods & where majority of the people don’t get food, clothes & shelter. This is not a festival like Diwali. I belong to the country where the most intelligent people were born & got the best education but they serve other countries. Migrating is not bad but we are humans, not animals, but very few bother to look back where we were born & brought up, how can I be proud of those people who indeed do fabulous job for this earth but forget the part of earth they were born. Is this earth a global village? Is it really so, if yes then why everybody doesn’t benefit from it? Atleast those who work very hard should get something in return but their names appear nowhere, neither do they benefit in hidden way. Scientists are worried that Earth will come to an end due to global warming, but before that humanity will come to an end and selfish blind people overlook it.
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