कांग्रेस के 'युवराज' कहे और माने जाने वाले महासचिव राहुल गांधी की दो दिवसीय छत्तीसगढ़ यात्रा ने कांग्रेसियों को ही आपस में चर्चा करने का एक और मौका दे दिया है। न केवल कांग्रेसियों को ही बल्कि भाजपा को भी। चर्चा इस बात की कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में प्रभारी समेत कार्यकारिणी तक क्या फेरबदल हो सकता है। जो पद में हैं उनकी जान अब सांसत में आ गई है कि कुर्सी बचेगी या नहीं। यह कुर्सी का मोह ही है जो कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में दिन ब दिन पतन की ओर ले जा रहा है। राजनीति में कुर्सी का मोह कोई अजीब बात नहीं है लेकिन जब किसी राजनीतिक दल के लोगों पर अपने दल के सत्ता मोह से ज्यादा व्यक्तिगत तौर कुर्सी का मोह रहता है उस दल की अधोगति अवश्यंभावी होने लगती है। क्योंकि जब व्यक्तिगत कुर्सी का मोह जागता है तो वह गुट बनाने और गुटबाजी करने के लिए मजबूर कर देता है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस इन्ही बीमारियों से जूझने के चलते ही सत्ता से पहले पांच साल की दूरी झेल कर अब दूसरे पांच साल झेलने में लगी हुई है।
दरअसल छत्तीसगढ़ के कांग्रेसजनों को सत्ता या कुर्सी से दूर रहने की आदत नहीं है, खासतौर से वे सत्ता के आदी हो चुके हैं। इसके पीछे कारण भी है, मप्र के जमाने से कांग्रेस सरकारों का ही बोलबाला रहा, तब भाजपा या अन्य सरकारें आईं भी तो अल्प समय के लिए ही। इस दौरान तब के छत्तीसगढ़ की विधानसभा या लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। इसके चलते अधिकांश पहुंच वाले कांग्रेसी मंत्री पद से लेकर निगम मंडलों में 'एडजस्ट' होते रहे। इसके कारण कुर्सी और सत्ता का ऐसा मोह कांग्रेसजनों को लगा हुआ है कि कुर्सी या सत्ता से अलग होते ही उन पर बेचैनी तारी होने लगती है और फिर जब न सत्ता होती है और न कुर्सी तब वे अपने ही संगठन की कुर्सियों के लिए आपस में लड़ते हैं। और यहां भी गुटबाजी जारी रहती है। छत्तीसगढ़ में पिछले दो लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव के दौरान यही गुटबाजी ही हावी रही जिसके चलते कांग्रेस ने जनता में अपनी छवि खोई तो खोई, एकजुट होकर भाजपा से मुकाबला करने का मौका भी खोया। और संभवत: यही कारण रहा हो कि आदिवासी इलाके बस्तर में जहां दशकों से सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस की ही छवि काम आती थी वहां भाजपा के आनुषांगिक संगठनों ने ऐसी जमीन बनाई कि पिछले लगातार दो चुनाव से वहां भाजपा का परचम लहराने लगा है।
यही बात छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं के नेताओं से ज्यादा नई दिल्ली में बैठे कांग्रेस के कर्णधारों को सताती है, खासतौर से कांग्रेस के 'युवराज' को। इसी लिए वे छत्तीसगढ़ के अपने हर दौरे में बस्तर की धरा पर एक बार अपनी आमद जरुर देते हैं। क्योंकि वे यह बात छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं से बहुत ज्यादा अच्छे से जानते हैं कि आदिवासियों के बीच जितनी छवि स्व इंदिरा गांधी और स्व राजीव गांधी की थी उतनी आजाद भारत के किसी अन्य नेता की शायद ही हो। तात्पर्य यह कि राहुल गांधी का फोकस छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल पर ज्यादा है और वे इस बात की लगातार खोज में लगे हैं कि आखिर क्यों इन कांग्रेसी गढ़ कहे जाने वाले इलाकों ने कांग्रेस के प्रति अपना विश्वास बदला और भाजपा का दामन थामा। अपने छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान हालांकि राहुल ने मूल राजनीति से ज्यादा छात्र राजनीति पर जोर दिया क्योंकि वे एनएसयूआई के प्रभारी हैं। इस तरह हर जगह छात्रों-छात्राओं से लगातार संपर्क, संवाद कर राहुल नव-मतदाता समेत युवा मतदाताओं का रूझान कांग्रेस के प्रति न केवल कर रहे हैं बल्कि इसमें वे सफल भी हो रहे हैं। राहुल ने अपना ध्यान मूल राजनीति पर कम रखा लेकिन उसके बाद भी वे इस बात को पूरे तौर पर संभवत: समझ कर ही गए हैं कि आखिरकार छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की लुटिया किन्ही और ने नहीं बल्कि खुद कांग्रेस के नेताओं ने ही डूबाई है। जमीनी कार्यकर्ताओं की यह आवाज पहले नई दिल्ली के कानों तक नहीं पहुंचती रही लेकिन अब देर आयद दुरुस्त आयद की तर्ज पर ही सही लेकिन 'युवराज' के कानों तक पहुंच गई है।
इसी बात ने ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा दोनो को इस बात की चर्चा का मौका दे दिया है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस में क्या फेरबदल होगा। कांग्रेस के कई नेता इस फेरबदल की संभावना से ही बेचैन हो उठे हैं लेकिन भाजपा चौकन्नी हुई है। कांग्रेस में अगर एकजुटता होगी और उसका स्थानीय सेनापति तेजतर्रार रहेगा तो निश्चित ही यह बात भाजपा के लिए सावधान होने की होगी। भाजपा की चर्चा का यही कारण है।
'युवराज' की इस यात्रा के फलस्वरूप प्रदेश कांग्रेस में जो बदलाव होंगे वे कितने प्रभावकारी होंगे यह तो अभी भविष्य पर निर्भर है क्योंकि चाल उन्हीं मोहरों से चली जाती है जो आपके पास उपलब्ध हों। यहां तो उपलब्ध मोहरे ही परेशानी का सबब बने हुए हैं। इन परेशानियों का सबब बने और पिटे मोहरों के भरोसे 'युवराज' अपनी युवा फौज की सेना कैसे तैयार करेंगे, यह देखना दिलचस्प रहेगा। कांग्रेस के अंदर तो घंटी बज ही चुकी है। इसकी गूंज उनके नई दिल्ली वापस चले जाने के बाद भी सुनाई दे रही है।
23 August 2009
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7 टिप्पणी:
Is this political analysis or psycho? Well written.
तुम्हारे युवराज अछोटी भी गये थे जो कहते है कि संघियो का केन्द्र है।
जब जगे तभी सवेरा . परिपक्व होने में समय लगेगा युवराज को
बढि़या आलेख. गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनांए.
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपके पोस्ट के दौरान काफी जानकारी मिली ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !
नई पीढी और युवा चेहरों को सामने लाने का प्रयास उत्तम है। कम से कम कांग्रेस संगठित होने की और प्रयासरत तो है। राहुल गांधी कुछ हद तक प्रयोगवादी है- युवा सदस्य बनाने से पहले लिखित परीक्षा लेना , क्षेत्रीय समस्याऒं का कितना ज्ञान है आदि। इन सबकी जानकारी और शैक्षणिक रिकार्ड देखकर प्राथमिक सदस्यता देना अच्छी बात है । उम्मीद करी जा सकती है कि भविष्य में योग्य नेताऒं का अकाल नहीं होगा।
आगे आगे देखिए होता है क्या
समय तो फिर भी लगेगा ही
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