हम कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नही होती
संजय तिवारी
किसी शायर ने लिखा था खुद ब खुद कातिल का मसला यूं हल हो गया, कत्ल होते जिसने देखा था वो पागल हो गया। बात देश की राजनीति में अहम स्थान रखने वाले प्रदेश उत्तर प्रदेश की है और केंद्र में हैं पत्रकार।कुछ ही दिन पहले खबर थी य़ूएनआई के पत्रकारों को लेकर ईमेल पीटीआई वाला फंसा। पढ़ा और थोड़i गहराई में जाकर समझा भी। अंदरखाने में जो कुछ उस रिलांयस की खबर को लेकर पता चला वो पत्रकारिता को वेश्या बनाने की ओर ही ढकेलता है।
देश की एक बड़ी जन संपर्क कंपनी वैष्णवी ने इस गंजे काम को अंजाम देने के लिए एक नयी कंपनी बनायी नाम रखा न्यूकेम पबि्लक रिलेशन। इस कंपनी की स्थापना मुकेश बनाम अनिल अंबानी विवाद में मुकेश के पक्ष में खबरे प्लांट कराने के लिए की गयी। अनिल का गैस आधारित पावर प्लांट दादरी उत्तर प्रदेश में है सो खबरे यूपी में छपें ये ज्यादा जरुरी था।इस न्यूकेम कंपनी में छांट-छाट कर पत्रकारिता कर चुके लोगों को भर्ती किया गया और उन्हें मोर्चे पर लगा दिया गया।य़ूपी की राजधानी में इस जन संपर्क कंपनी के कारिंदे हजरतगंज के होटल पार्क इन में ठहरे जुलाई के दूसरे हफ्ते में। इनमें पटना के एचटी में काम कर चुका एक संवाददाता भी था। कारिंदों ने लखनऊ के संवाददाताओं जो बिजनेस और पावर पर खबर दे सकते थे उनसे संपर्क किया। इस काम में उनकी मदद को आगे आए लखनऊ के कुछ वो लोग जिनका पटना कनेक्शन था। मसलन एक बड़े न्यूज चैनल के ब्यूरो चीफ, इनके दोस्त जो देश के सबसे बड़े मीडिया हाउस के बिजनेस अखबार में काम करते हैं वगैरहा। कोई सात दिनों तक रिपोर्टरों को होटल पार्क इन में दारु मुर्गा की दावत दी गयी। अनिल अंबनी के खिलाफ खबर लिखने के लिए कागजों का पुलिंदा सौंपा गया। साथ में और प्रलोभन भी। अफसोस कोई नही फंसा। फंसे तो सिर्फ यूएनआई वाले।
चूंकि लखनऊ में यह किस्सा आम हो चुका था सो खबर के आते ही अफवाहें भी जोर मारने लगी। कितने की डील। किसने हिस्सा लिया।फिर एक ईमेल बड़े पत्रकारों को भेजी गयी जिसमे खुलासा किया गया इस घिनौने खेल का।
मेल ने हड़कंप मचाया तो पत्रकारिता के कुछ मौसेरे भाई साथ देने आ पहुंचे उनका जिन पर छींटे पड़े थे। मामला व्यक्तिगत प्रयासों से एसटीएफ तक गया और पड़ताल में पता चला कि इमेल जहां से किया गया वहां एक बंदा पीटीआई का रहता है। बस फिर क्या था भेज दी गयी पीटीआई वाले की शिकायत दिल्ली शीर्ष प्रबंधन तक। शायद मौसेरे भाइयों को उम्मीद थी कि पीटीआई वाले का काम लगेगा और वह उनके पास आकर रहम की भीख मांगेगा। पर शायद वो ये भूल गए थे कि इस घिनौने खेल का जानकारी दिल्ली में बैठे हर सक्रिय पत्रकार को थी। सबने वही सही माना जो असल में हुआ और पीटीआई वाले का कुछ नही हुआ।हैरत की बात तो यह कि जो तथाकथित इमेल पीटीआई के बंदे ने भेजी उसमे किसी कंपनी के नाम का जिक्र भी नही था। मेल की कापी साथ में भेज रहा हूं। पर होता वही है चोर की दाढ़ी में तिनका सो खुद ही कंपनी और खबर के बारे में बताने लगे।
संवाददाता को खबर है कि घिनौना खेल अभी बंद नही हुआ है। जल्दी ही फिर कुछ एसे प्रयास होने वाले हैं। खबर तब भी को पढ़ने वालों को मिलेगी।
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)
13 टिप्पणी:
अब हम क्या कहें इस पर?
जो न हो कम है
पैसे में बड़ा दम है
हम आह भी भरते है तो ......
हम टैक्स भी भरते हैं तो चोर कहलाने का अंदेशा है
वोह लूटते है तो भी .......
भाई सही मिसरा है " हम कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता " ना कि होती
अरे...तुम तो बड़ी दूर दूर की खबरें बीन लाते हो संजीत ...
संजय को बधाई...
आभार इसे पढ़वाने का..
क्या कहें जी? आप भी पत्रकार हैं.
Dear Sanjit Kya khoj kar laye ho. Bhai wah
sahi baat...such ppl should be nailed...
ab kya tippani kare is per.
waise aapka blaag kaafi badhiya hai!!!
भाई यहां लोग माल पीट रहे हैं और गुरार्ते भी रहते हैं। इनको मारो जूते चार
अपने यंहा भी तो यही चल रहा है।ज़रा इधर भी नज़र डालिये जनाब्।
बहुत दिनों बाद आई यहाँ पर पढ कर सन्न रह गई । ऐसा भी होता है, या ऐसा ही होता है ?
एकं सत्य झूठे बहुधा वदन्ति
आज के अदालत के फैसले के बाद तो पता चल गया होगा की कौन सच है और कौन किसको बदनाम करने की कोशिश कर रहे थे... जब लखनऊ के कुछ पत्रकारों ने लिखा की कैसे दादरी में किसानों की ज़मीन गलत तरीके से ली गयी थी तो ये सच कुछ स्वनाम धन्य और फ्रस्टू मित्रों की आँखों में मिर्ची लग गयी .... बस एलान कर दिया अनिल अम्बानी की कम्पनी की आलोचना करने वाले दरूखोर.... चोर.... और ....
अब शायद आज के आदालत के फैसले के बाद फिर कोई नयी कहानी रचे गढ़े... लगे रहिये....
Post a Comment