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20 February 2007

कभी-कभी

कभी-कभी

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि कुछ सोचना भी भारी लगे
और सोचे बिना रहा न जाए!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
लगे ऐसा मानों हाथ-पैरों में जान न हो!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि व्यर्थ सा लगे सब कुछ!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि मन लगे उदास-उदास!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि आंख भर आए अपने-आप बिना कारण!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि तमन्ना भी नहीं रहती बाकी!

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
खाली सा हो जाता है दिमाग भी!

1 टिप्पणी:

seema gupta said...

क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
कि तमन्ना भी नहीं रहती बाकी!
क्यों होता है ऐसा कभी-कभी
खाली सा हो जाता है दिमाग भी!

"दिल मे बेकली हो जो कभी कभी,
क्यूँ हर शै बेजार लगे कभी कभी,
कोई तम्मना भी हमे न बहला सकी,
क्यूँ हर शाम गुनाहगार लगे कभी कभी..."
Regards
"

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