कौन हो तुम..
शीशे में एक अक्स सा लहराया था,
गौर से देखा तो हमारी परछाई नहीं,तस्वीर थी तेरी ।
राह में जब ठंडी हवा के झोंके आए चेहरे पर,
तो लगा,घनी ज़ुल्फ़ों की छांव हो तेरी ।
अधखुली आंखो ने देखी जब चांदनी
महसूस हुआ ये मुस्कान है तेरी ।
दिल मेरा अक्सर अपने से करता है जब बातें,
कान सुनने लगते हैं आवाज़ तेरी ।
धूप में निकलता हुं जब भी,
नज़रें ढुंढने लगती है परछाई तेरी
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