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16 February 2007

आस-पास


आस-पास

घट रहा है, आस-पास मेरे
ऐसा कुछ
जिसे मैं देख तो रहा हूं,
बस! व्यक्त नहीं कर पाता।
ऐसा नहीं है कि
मन मे विचार उठते नहीं है।
बस! कलम रुक जाती है,
चलना ही नहीं चाहती।
घट रहा है, आस-पास
अपरिचितों के साथ,
मेरे अपनों के साथ,
मेरे साथ,
कुछ ऐसा
करना चाहता हूं मैं
विरोध जिसका।
लेकिन
शक्ति कोई
अनजानी-अजनबी सी
पकड़ लेती है गला मेरा
कि नहीं
आवाज़ ना निकले
मुंह से,
कलम ना चले
कागज़ पर
घट रहा यही सब कुछ
आस-पास मेरे

2 टिप्पणी:

Anonymous said...

Sanjeet...bahot hi achcha likha hai....bari bari se mai sare post padhoonga aap ke...

सुनीता शानू said...

संजू बहुत सच्चा और सुंदर लिखा है एक आम आदमी यही सोचता है,चाह कर भी विरोध नही कर पाता...

सुनीता(शानू)

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