जाणता राजा
छत्रपति शिवाजी किसे आकर्षित नही करते। इतिहास पुरुष,महानायक, हिंदवी साम्राज्य के प्रणेता, कुशल प्रशासक गोरिल्ला युद्ध के जनक जैसे अनेक उपमाओं से विभूषित शिवाजी की समग्र जीवनी "जाणता राजा" को एपिक थिएटर फ़ार्म में देखने का मौका पहली बार मिला। रायपुर में राज्य के संस्कृति विभाग के प्रयास से 6 मई से 10 मई तक इसका मंचन हुआ। हर दिन देखने के बाद सबसे पहले जो बात मन में आती रही वह है "भव्य प्रस्तुति"।
आमतौर पर इसका मंचन दर्शकों के लिए सशुल्क होता है लेकिन छत्तीसगढ़ में संस्कृति विभाग के कारण दर्शकों के लिए यह निशुल्क रहा, ऐसा पहली बार हुआ है कि दर्शकों के लिए इसका मंचन निशुल्क हुआ हो।
खास बात यह रही कि "जाणता राजा" का यह 804वां प्रदर्शन था। इससे पहले इसके 803 प्रदर्शन हो चुके हैं। इसका पहला प्रदर्शन पुणे में 1985 में हुआ था। इसके लेखक व निर्देशक बाबा साहेब पुरंदरे हैं। हिंदी,मराठी व अंग्रेजी तीन भाषाओं में इसके मंचन हो चुके है, रायपुर में हिंदी मंचन हुआ। महाराष्ट्र के पोवाड़ा,गोंधळ,कोळी गीत, गवळण और लावणी जैसे अनेक लोकगीतों और नृत्यों का इसमे समावेश किया गया है।
हर दो-चार मिनट के एक दृश्य के बाद सूत्रधार और उनकी मंडली पोवाड़ा के माध्यम से कथा को आगे बढ़ाते हैं।
भव्य मंच जिसका सेट रिवाल्विंग है तैयार करने में दस दिन का समय लगता है और डिसमेंटल करने में पांच दिन,सीन की जरुरत के मुताबिक दर्शक के सामने कभी किले की दीवार और बुर्ज आता है तो कभी महल का झरोखा जिस पर पात्र खड़े हो कर संवाद बोलते हैं। लाईट इफेक्ट्स तो माशाअल्लाह। सबसे खास बात यह कि मंचन के दौरान शिवाजी आपको प्रतीकात्मक घोड़े पर नही बल्कि सचमुच के घोड़े पर दिखाई देते हैं साथ ही हाथी भी सच का ही होता है इस नाटक में। यह हाथी-घोड़ों की फ़ौज ही आपको सोचने के लिए मजबूर करती हैं कि आप एक कालखंड को स्टेज पर देख ही नही रहे बल्कि वाकई उसे जी रहे हैं।
भव्यता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पूरे नाटक के कास्ट्यूम्स की कीमत करीब बीस लाख रूपए हैं। 200 से ज्यादा कलाकारों की इस टीम का एक-एक सदस्य अभिनय करता हुआ नही बल्कि उस पात्र विशेष को जीता हुआ सा प्रतीत होता है।
कलाकारों की टाईमिंग और सतर्कता को सलाम इसलिए क्योंकि यह पूरा नाटक रिकार्डेड है उधर आवाज़ आ रही होती है और आपको उस आवाज़ पर ही अपने अभिनय को साधना होता है और कलाकार इसमे खरे ही उतरते हैं।
पूरे नाटक में आप जिजामाता के यहां शिवा का जन्म,बचपन की अठखेलियां, शस्त्र शिक्षा,माता का स्वराज्य उपदेश,आदिलशाही के विरोध में मराठाओं का विद्रोह से लेकर शिवाजी की न्यायप्रियता और उनका राज्याभिषेक जैसे कई प्रसंग देख पाते हैं।
महाराजा छत्रपति शिवाजी महाराज संस्थान पुणे इस नाटक के मंचन आयोजित करता है।
जब कभी यह नाटक आपके शहर पहुंचे इसे देखना न भूलें, भले ही आप नाटक/थिएटर के शौकीन न हो लेकिन फ़िर भी आपको अफसोस नही होगा।
रायपुर में पांच दिन का शो कल खत्म हुआ और अब अगला शो 15 जून से जयपुर में है।
तस्वीरें मित्र रूपेश यादव के सौजन्य से जो कि रायपुर के अंग्रेजी अखबार दैनिक हितवाद में फोटोग्राफर हैं।
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21 टिप्पणी:
संजीत भाई अच्छे नाटक की अच्छी प्रस्तुति...मैंने तो इसे पड़ा भी है देखा भी है...
लेकिन अलाउद्धीन खिलजी कहाँ से आया...
@गलती सु्धार ली है भैया, शुक्रिया!
पूरे शहर मे इसकी चर्चा है। आशा है जल्दी ही छत्तीसगढी कलाकारो और गाथाओ पर आधारित ऐसे आयोजन न केवल राज्य बल्कि दुनिया भर मे धूम मचायेंगे। इस दिशा मे प्रयास जरुरी है।
धन्यवाद इस पस्तुति के लिये।
अच्छी प्रस्तुति के लिये धन्यवाद
पिछली बार हमारे यहाँ आयोजन हुआ था तब किसी कारण नहीं देख सके थे. अब किसी कीमत पर नहीं चूकेंगे. शानदार रिपोर्ट प्रस्तुत की है आपने. आभार.
"जाणता राजा" का प्रदर्शन विगत वर्ष जबलपुर मे किया गया था काफी प्रेरणास्पद और रोचक है
क्या बात है संजीत जी, भाई मज़ा आ गया. रुपेश जी को भी इतनी सुंदर पिक्स लेने के लिए साधुवाद कहियेगा. कुछ वर्ष पहले ये नाटक पढने का मौका मिला था. इंशाल्लाह देख भी लेंगे जब भी मौका लगेगा.
वैसे कुछ भी कहिये. नाटक में दम है. ब्लॉग दुनिया में हमारे संजीत जी की पिछले एक महीने की चुप्पी भी इसी नाटक ने तोडी है, आशा है ऐसे ही लिखते रहेंगे...
आपका अखिल
पिछले सप्ताह से रायपुर में इसके बडे बडे पोस्टर देखकर मन ललचा रहा था पर हम देख नहीं पाये । आशा है भविष्य में हमारे भी नगर में इसका प्रदर्शन हो और हम इस कालजयी प्रस्तुति को देख पायेंगें ।
बेहतर प्रस्तुति के लिये आभार ।
यह पढ़ कर रंगमंच की याद आयी फिर अपने गाड़ी नियंत्रक सुधीर तिवारी की। दुष्ट हर बार कहता है कि आपको रंगमंच पर अपना अगला नाटक दिखाने ले चलूंगा। साल भर हो गया। वह इलाहाबाद की रंगकर्मियों की संस्था का सक्रिय सदस्य है और नाटकों में सूत्रधार का काम करता है।
आज तक नहीं ले गया।
हमारे कई कर्मचारी बहुत ही प्रतिभावान हैं। आपके लेख ने उनकी याद करा दी!
बड़िया प्रस्तुति, आप के लिखने के अंदाज ऐसे हैं कि हम तो पूरा नाटक का अनुभव कर लिए और हाथी की चिघाड़, घोड़े की टपाटप सब सुन लिए। बधाई
अगर हम होते तो शायद हम भी देख लेते !
खैर फ़िर कभी ......
धन्यवाद
यह नाटक मै नहीं देख पाया, पर आपकी पोष्ट पढ़ कर आन्नद आ गया।
बहुत ही उम्दा प्रस्तुति, संजीत जी । और आप के बलाग पर आप के द्वारा की गई लेखों के वर्गीकरण की तरफ जब ध्यान गया तो बहुत बढिया लगा....इतनी विविधता। किसी दिन फुर्सत में बैठ कर इन सभी को खंगालना ही पड़ेगा.....पता नहीं आप ने इन में क्या क्या संजो कर रखा हुया है।
शुभकामनायें, संजीत जी।
2-4 साल पहले ग्वालियर में इसके बड़े-बड़े होर्डिंग तो देखे थे पर मालूम नहीं था इसके बारे में.
नाम देखकर ऐसा लगा कि ये मराठी नाटक होगा इसलिए भी ध्यान नहीं दिया.
आगे भविष्य में मौका नहीं चूकेंगे.
अरे वाह, बहुत अच्छी रपट प्रस्तुत की है, आभार.
बेहतरीन प्रस्तुति सँजीत भाई -
काश कोई इसे भी
युट्यूब पे लगा दे
तब हम भी देख पायेँगेँ !
- लावण्या
यह नाटक मैंने हिन्दी और मराठी दोनो में देखा है, बाबा साहब पुरन्दरे शिवाजी भक्त हैं, महाराष्ट्र में अत्यन्त सफ़ल होने के बाद इस नाटक को देश के अन्य भागों में वे ले गये हैं… समय की पाबन्दी तो कोई उनसे सीखे… यदि उद्घाटन के लिये कोई नेता देरी से आता है तब भी नाटक अपने समय पर ही शुरु हो जाता है…
You have described it very nicely. And the pictures posted makes the piece very complete. Thanks for sharing this.
सन्जीत भाई,
बहुत सुंदर और आकर्षक फोटो.
इसकी चर्चा तो खूब हुई अपने प्रदेश में,
लेकिन आपकी प्रस्तुति बेमिसाल है.
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बधाई.....बढ़ते रहिए.
रचनात्मकता असीम है..... संभावनाएँ हैं अनंत !
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डा.चंद्रकुमार जैन
मैं तो गोरखधंधे में देख ही नहीं पाया था । न ही पेपर पढ़ पाया । पर तुमने जाणता राजा से मिलवा दी । शुक्रिया ।
can i know this group name & where from this group janta raja group
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