किताबों की बात-2: भिखारी ठाकुर पर "सूत्रधार"
किताबों की बात में "कुइंयाजान" के बाद बारी आती है कथाकार संजीव के उपन्यास "सूत्रधार" की। नाम से यह नाट्य पर ही आधारित लगती है, यह आधारित है भोजपुरी गीत-संगीत और लोक नाटक के अनूठे सूत्रधार भिखारी ठाकुर पर। वही भिखारी ठाकुर। जिन्हें महापण्डित राहुल सांकृत्यान ने ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ कहा था और उनके अभिनंदनकर्त्ताओं ने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संस्कृति विभाग से मिले सीनियर फेलोशिप के तहत लिखा गया यह "सूत्रधार" आपको बताएगा कि कैसे एक सामान्य से नाई परिवार में जन्में 'भिखरिया' ने कैसे अपने को भिखारी ठाकुर बनाया कि आज भी लोग उन्हें याद रखे हुए हैं। क्यों उन्हें बड़े-बड़े हाकिम से लेकर बड़े-बड़े साहित्यकार ने इज्जत दी। भिखारी ठाकुर ने तब भोजपुरी में होने वाले नाचा जिसमे अभद्रता ज्यादा होती थी की संकल्पना को परिष्कृत कर उसे लोकनाट्य में तब्दील कर दिया। और उनके लोकनाट्यों ने ऐसी ख्याति पाई कि वह कलकत्ता से लेकर असम तक घूमते रहे अपनी मंडली लेकर, जबकि स्कूली शिक्षा के रूप में उन्होने बस अक्षर ज्ञान ही पाया था। उनकी रचनाओं में बहरा बहार (विदेशिया),कलियुग प्रेम (पियवा नसइल),गंगा-स्नान, बेटी वियोग (बेटी बेचवा),भाई विरोध,पुत्र-बधु, विधवा-विलाप,राधेश्याम बहार, ननद-भौज्जाई, गबरघिंचोर आदि मुख्य हैं।
कथाकार संजीव इस जीवनी परक उपन्यास की भूमिका में लिखते हैं " जीवनी लिखना इससे कहीं सरल कार्य होता,कारण,तब आप परस्पर विरोधी दावों के तथ्यों का उल्लेख कर छुट्टी पा सकते हैं। जीवनीपरक उपन्यासों में आपको औपन्यासिक प्रवाह बनाते हुए किसी मुहाने तक पहुंचना ही पड़ता है।यहाँ द्वंद्व और दुविधा की कोई गुंजाइश नहीं है। दूसरी तरफ उपन्यास लिखना भी जीवनीपरक उपन्यास लिखने की अपेक्षा सरल होता है, कारण आप तो तथ्यों में बँधे नहीं रहते। यहाँ दोनों ही स्थितियाँ नहीं थीं"।
संजीव आगे यह भी लिखते हैं कि 'भिखारी ठाकुर तीस वर्ष पहले जीवित थे; उन्हें देखने और जानने वाले लोग अभी भी हैं। सो,सत्य और तथ्य के ज्यादा से ज्यादा करीब पहुँचना मेरी रचनात्मक निष्ठा के लिए अनिवार्य था। इस प्रक्रिया में कैसी-कैसी बीहड़ यात्रा मुझे करनी पड़ी,ये सारे अनुभव बताने बैठूँ तो एक अलग पोथा तैयार हो जाए। संक्षेप में कहूँ तो कम असहयोग भी मुझे कम नहीं मिले, और सहयोग भी....'।
यह उपन्यास राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित है जिसका पता यह है।
राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड जी-17,जगतपुरी,दिल्ली-110051
राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड जी-17,जगतपुरी,दिल्ली-110051
मूल्य है 250 रुपए।
जो भिखारी ठाकुर को नही जानते और उन्हे जानना चाहते हैं वे यह उपन्यास पढ़ सकते हैं।
12 टिप्पणी:
आदरणीय भाई बोधिसत्व नें भिखारी ठाकुर के संबंध में बतलाया था तब से इनके संबंध में जानने की इच्छा थी । आपने बढिया जानकारी दी इसके लिये धन्यवाद । संजीव जी मेरे हमनाम होने के कारण मेरे प्रिय कथाकार एवं शव्दशिल्पी रहे हैं लगभग 80 के दशक से । संजीव के संबंध में लोग कहते हैं कि प्रेमचंद जी के बाद उनकी प्रगतिशील परम्पराओं को बरकरार रखने वाले कथाकार संजीव ही हैं । गिरीश काशिद नें इन पर एक पुस्तक भी संपादित की है ।
भिखारी ठाकुर जी के संबंध में हमारी समस्त जिज्ञासाओं की पूर्ति निश्चित ही इस कृति से पूर्ण होगी । भगवान मुझे, इसे पढने के लिए अतिरिक्त समय दें । इसी कामना के साथ । पुन: शुक्रिया ।
जरुर पढूंगा बाबू.
वैसे थोड़ा कुछ पढ़ा है पहले भी मैंने भिखारी ठाकुर के बारे में.
और कुछ उनकी रचनाएँ भी.
उत्तम जानकारी के लिए.
धन्यवाद.
जरुर पढूंगा बाबू.
वैसे थोड़ा कुछ पढ़ा है पहले भी मैंने भिखारी ठाकुर के बारे में.
और कुछ उनकी रचनाएँ भी.
उत्तम जानकारी के लिए.
धन्यवाद.
छपरा - सिवान (बिहार) में सुना था भिखारी ठाकुर के बारे में। भोजपुरी में दक्षता न होने के कारण जिज्ञासा बनाये न रख सका। पर उनके प्रति श्रद्धा अवश्य है। आपके लेख से भविष्य में और उनके बारे में जानने की इच्छा बन रही है।
बहुत धन्यवाद।
उत्तम जानकारी ,जरूर बांचेंगे .....
आभार जानकारी के लिये.
Bhikhari thakur ke baare mein jaanane ki koshish karenge..dhanywaad
jaankaari ke liye dhanyvaad...abhi tak nahi jaante the.
भिखारी ठाकुर'! ye naam kabhi nahin suna..pahli baar padha...jankaari ke liye dhnywaad...mauka milega to jarur is kriti ko padhna chahungi.
थोडी देर से सही पर पढेंगे जरूर ..
कुछ लिखो भाई। आलस बहुत हो चुका। हम तो रोज़ इधर एक चक्कर मार जाते हैं कुछ नए कि आशा में।
"VERY INFORMATIVE ARTICLE, AND THANKS FOR PROVIDING DETAILS ABT THE AUTHOR AND HIS BOOK"
REGARDS
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