न जानें अक्सर क्यों वही होता है जिसकी उम्मीद किसी को नही होती,खासतौर से राज-नीतिज्ञों(?) की तरफ से।
तीन अप्रेल को रायपुर के एक बड़े होटल में 'स्कूल शिक्षा में पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप' के लिए एक सेमीनार रखा गया था। अखबारों के मुताबिक इस सेमीनार में एक भी शिक्षाविद नही था लेकिन हां कुछ उद्योगपति और अफसर जरुर वक्ता के रूप में मौजूद थे। सेमीनार में राज्य के स्कूल शिक्षामंत्री अजय चंद्राकर ने अपनी बातों के दौरान कहा कि 'लोग कहते हैं कि शिक्षा सरकार का दायित्व है,तो क्या बच्चे सरकार ने ही पैदा किए हैं।'
अब इसके बाद रायपुर ही नही छत्तीसगढ़ भर में बवाल मचा हुआ है,शिक्षामंत्री के इस बयान के विरोध में प्रदर्शन-पुतला दहन आदि का दौर चला हुआ है।
इस बीच शिक्षामंत्री के एक खांटी समर्थक जो कि पिछले दो साल से उनके खांटी समर्थक हैं से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि ये सब फलां संपादक का खेल है बस और कुछ नही।
हम यह कह सकते हैं कि खैर! समर्थक तो समर्थक है और फ़िर खांटी है तो ऐसा कहेगा ही अपने नेता के समर्थन में। लेकिन एक सम्मानित-प्रतिष्ठित अखबार में इस पूरे मुद्दे को एकदम छोटी सी खबर में निपटा दिया गया तो आश्चर्य हुआ और उस अखबार के चीफ सिटी रिपोर्टर से फोन पर चर्चा हुई,उनका कहना था कि वे खुद इस सेमीनार को कवर करने गए थे,आगे कहा कि अगर आप वहां खुद सुनते कि शिक्षामंत्री ने क्या कहा था तो आप भी ऐसी ही खबर बनाकर निपटा देते,मुद्दा ही नही बनाते।
इन चीफ सिटी रिपोर्टर साहब की बात सुनकर आश्चर्य हुआ क्योंकि संभव है जल्द ही वह उस अखबार के (अघोषित) स्थानीय संपादक बनाए जा सकते हैं। शुक्ला जी अगर आप इसे पढ़ रहें हो तो हां मुझे आपकी बात सुनकर आश्चर्य ही हुआ कि आप चीफ सिटी रिपोर्टर हैं। सबसे पहले जिन साहब ने इस खबर को अपने अखबार में जगह दी वह आपके अखबार के सालों संपादक रहे हैं,और जितनी आपकी उम्र है शायद उतने साल उन्हें पत्रकारिता में हो गए होंगे। कम अज़ कम सिर्फ़ मुद्दा बनाने की पत्रकारिता करते मैनें उन्हें नही देखा।
खैर!
जिन राजनीतिज्ञ के ऐसे विचार हों उन्हें शिक्षा तो नही लेकिन हां अशिक्षा विभाग का या असंस्कृति मंत्री ही बस बनाया जा सकता है,नया विभाग बनाकर! कोई आश्चर्य नही अगर सत्ता लोलुप राजनीति कल को ऐसा कर भी दे।
यह पता करना होगा कि शिक्षामंत्री क्या भाजपा की छत्तीसगढ़ मे सरकार दुबारा नही चाहते,वैसे ही हालत खराब है।
05 April 2008
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19 टिप्पणी:
भाई गडबद गोलमाल है
चन्द्राकार जी ऐसे शब्द प्रयोग कर सकते है उसमे दो मत नही है. मै एक बार उनके घर के कार्यलय मे गया था जब हो उच्च शिक्षा मंत्री भी थे तब. एक शालेय शिक्षक अपने स्थानानतरण सम्ब्धित काम को लेकेर गये हुये थे. उसे वह मवालीयो की तरह से गाली बक रहे थे. जिससे देखकर ऐसा नही लगा रहा था कि वो एक मंत्री है.
अशिक्षा मंत्री प्रतीत होते हैं। द्वन्द्व अशिक्षा मंत्री और अपत्रकार का है।
मंत्री महोदय की जय हो, इसे अधिक क्या कहूं ऐसे लोगों के लिए
सरकार ने बच्चे पैदा नही किए है तो जनता और उनके बच्चो ने मिलकर सरकार जरुर पैदा की है . लगता है मंत्री जी को अपने जनता के प्रति नैतिक दायित्व क्या है शायद मंत्री जी को यह भी पता नही है . मंत्री जी के शब्दों की जितनी भी निंदा की जावे कम नही होगी . मंत्री जी बड़े अशिक्षित जान है जी
महेंद्रजी ने सब कुछ कह दिया...अब क्या कहें.
इसमे हैरानी की कौन सी बात है ,अब राजनीती भद्र जानो के लिए नही रही है ,हाँ अब कोई अच्छी बात इन लोगो के मुह से सुनने को मिले तो वो हैरानी है,.
शिक्षा की जरूरत है.
अच्छा हुआ हम अपनी व्यस्तता की वजह से वहां नहीं जा पाये नहीं तो हमें भी 'साखी' देनी पडती । जै जै सिरी राम है सब जगह । हा हा हा । आठ माह बाद ...........
आज कल के ऐसे राजनीतिज्ञों से आप उम्मीद भी क्या लगा सकते हैं. एक साक्षात प्रमाण तो आपने उपस्थित कर ही दिया है.
अवध किशोर सक्सेना की चार पंक्तियाँ सुनिए
जहां में किसी का कोई, हमदर्द नहीं भैया,
यहां पे निस्वार्थ कोई, मर्द नहीं भैया,
गरीबों के दुखदर्द को, जो अपना दुख समझे,
दृष्टि में आता ऐसा, इर्द गिर्द नहीं भैया,
कैंसर, तपेदिक और गैंगलीन के नाम सुने
पर नेतागिरी से बढ़ कर, अब कोई मर्ज नहीं भैया
जिस लोक्तन्त्र के कारण वो शिक्षा मन्त्री है, वह लोकतन्त्र शिक्षा के दम पर हि चलता है ,शायद ये भी पता नहि उन्हे !!
होश करो रायपुर के देवो होश करो
रोज यह मोहनी न चलने वाली है
होती जाती है गर्म दिशाओ कि साँसे
लगता है धरती फिर कोइ आग उगलने वाली है "
kaise kaise mantri hain!tauba!
mostly leaders aise hi hain,lekin sabhi nahi...
आसपास के हालात को अपने अच्छे ढंग से बयान किया है।
ऐसे बेवकूफी वाले बयान नेताओं में खत्म होता भरोसा और तेजी से कम कर रहे हैं।
क्या बात है आजकल आप पोस्ट क्यो नही लिख रहे है सभी प्रतीक्षा करते है
ye to sahi hai .... ab to beda paar ho hi jaayega
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