ज्यादा अरसा नहीं हुआ जब नंदीग्राम में अपनी जमीन बचानेवाले किसानों पर पश्निम बंगाल पुलिस के लाठीचार्ज को देखकर मन विचलित हो उठा था और तब यह पोस्ट लाशों पर लाठीचार्ज? मैनें लिखी थी। इस पोस्ट में मैनें यह भी उल्लेख किया था कि पुलिस चाहे छत्तीसगढ़ की हो या पश्चिम बंगाल की, जब भी उसे फ़्री हैंड कर दिया जाता है वह आम इंसानो पर भी भूखे भेड़ियों की तरह लाठी बरसाते हुए टूट पड़ती हैं।आज फ़िर, फ़िर एक बार छत्तीसगढ़ पुलिस ने मंझोले शहर या कस्बा कहें अंबिकापुर में यह साबित कर दिया कि लाठी चलाने का आदेश मिलने के बाद तो जैसे वह सभी को एक आंख से ही देखते हैं चाहे वह बुजुर्ग हो या महिलाएं। जो जानकारी अब तक मिली है उसके मुताबिक अंबिकापुर से (18) किलोमीटर दूर अजबनगर गांव के होटल व्यवसायी की हत्या के बाद हत्यारों की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर गांव वालों नें अपना आक्रोश जताते हुए हाईवे पर चक्का जाम कर दिया।बताया जाता है कि यह लोग अस्पताल प्रशासन के खिलाफ़ रपट लिखाने थाने भी पहुंचे लेकिन पुलिस नें रपट दर्ज करने से इनकार कर दिया। लोगों का प्रदर्शन और विरोध जारी रहा, और फ़िर लोग सड़कों पर उतर आए। स्वाभाविक है कि ऐसे माहौल में कुछ तो गर्मागर्मी होगी ही। इसके बाद पुलिस को लाठी चार्ज का हुक्म मिला, अंधा क्या चाहे दो आंखें फ़िर तो वहां सड़क पर जो आलम हुआ वो यह कि पुलिस ने किसी को नहीं बख्शा। महिलाओं पर भी लाठी बरसते तो संवाददाताओं के कैमरे ने रिकार्ड किया ही, इसके साथ ही एक पचहत्तर ( 75) साल के बुजुर्ग की जो हालत की गई उसे देख कर तो………………। इस 75 साला बुजुर्ग को घेर कर 5 पुलिसवाले उस पर लाठियां बरसा रहे थे और वह हाथ जोड़े जा रहा था, लाठियां रोकने पकड़ने की असफ़ल कोशिश किए जा रहा था, पुलिस वालों का इतने से मन नहीं भरा तो उस बुजुर्ग पर लाठियों के साथ साथ जुते भी बरसाए जाने लगे और। बुजुर्ग गिड़गिड़ाता रहा। सुननें मे यह भी आ रहा है कि पुलिस ने घटना के बाद गांव वालों को घरों से निकालकर उन पर डंडे बरसाए।
कल इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार या पुलिस के आला अफ़सर क्या करेंगे। बस वही जो एक परंपरा है,दोषी अफ़सर/कर्मी का तबादला या निलंबन,ज्यादा हुआ तो एक जांच कमीशन। लेकिन सवाल तो अपनी जगह कायम ही रहेगा, कि क्यों,आखिर क्यों हमारे देश की पुलिस फ़्री हैंड कर दिए जाने पर ऐसी हो जाती है कि इंसान और जानवरों का भेद भूल कर डंडे बरसाने लगती है। क्यों पुलिस यह भूल जाती है कि लाठी चार्ज के पीछे मूल उद्देश्य मारना नहीं, अपना फ़्रस्ट्रेशन निकालना नहीं बल्कि उत्पात मचाने पर आमादा भीड़ को तितर-बितर करना ही बस है।ऐसे ही कर्म करने के बाद अगर छत्तीसगढ़ पुलिस यह सोचती है कि वह जनसामान्य को अपने साथ जोड़ पाने में सफ़ल होगी ही तो फ़िर इसे दिन में सपने देखना ही कहा जाएगा और कुछ नहीं।
यहां ध्यान देने लायक बात यह भी है कि अंबिकापुर राज्य के गृहमंत्री श्री रामविचार नेताम का गृह्क्षेत्र भी है।
एक और खबर--आज के स्थानीय अखबारों के मुताबिक राजधानी रायपुर के आला पुलिस अफ़सरों ने एक हुक्म जारी किया है जिसके मुताबिक गर्मी में पारा चाहे 40 हो या 44 पुलिस का मैदानी महकमा अर्थात राजधानी में ड्यूटी बजाने वाले कर्मी चेहरे पर स्कार्फ़ नहीं बांधेंगे मतलब कि कान-नाक नहीं बांध सकते भले ही कितना भी लू चले। गौरतलब है कि गर्मी के दौरान रायपुर में आमतौर पर पारा 44 के आसपास ही रह्ता है और अब तो पारा चढ़ने के दिन आ गए हैं क्योंकि नवतपा शुरु हो गया है अर्थात अब पारा 47 तक पहुंच सकता है।
इसके साथ ही कल राजधानी में एक प्रदर्शन के दौरान ड्यूटी पर मौजूद 50 पुलिस के जवानों से उनके अफ़सरों नें उनके मोबाईल जमा करवा लिए तब उन्हें ड्यूटी पर भेजा गया,बताया जाता है कि जवानों से मोबाईल लेने के लिए बाकायदा जामातलाशी करवाई गई।
25 May 2007
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3 टिप्पणी:
Sanjeetji,
Bhomiyo.com ka upyog karane ke liya dhanyavad.
Maine abhi abhi aapaka blog Oriya me padhake dekha. Niche ki text oriya transliteration se copy kiya hai.
"ଛତ୍ତୀସଗଢ଼ ପୁଲିସ ନେ ଲାଠୀ କୀ ତାକତ ିର ଦିଖାଈ"
Aap fir bhi thoda vistar se batayaye ki taklif kya hoti hai. Aap jaise logo ki feedback se hi to ye site achchha ho sakta hai.
Fir se dhanyavad!
सन्जीत जी,
आपके लेख मे आपने अम्बिकापुर की घट्ना का वर्नन किया हे,कल टीवी पर इस खबर को देख मे भी इस सोच मे पड गयी कि हमारे देश मे अपने प्रबुत्व का अनमाना प्रयोग आखिर बार बार क्यू किया जाता हे, शायद इसीलिये क्युन्की हमारी कानून प्रनाली मे एसा करने वाले सज़ा से बच जाते हे
Free hand toh kisi ka nahi hona chahiye.. Power aur Authority ka galat istemaal hote hue hum kab se dekhte aa rahe hai.. lekin kabhi kuch keh nahi sake.. kyuki shayad ab yeh humari aadat ban chuka hai.. lekin Sanjeet bhaiya aapka blog padh ke bada accha laga.. Ek 75 saal ke buzurg ko laathiyo se maarna.. Yeh kaisi police hai humari.. Yeh humare rakshaq hai.. Agar kaanoon tod ke atmarakhsha karni hai toh koi bhi kar sakta hai.. phir Police ki kya zaroorat..
Yeh bhi kahunga ki Police humesha galat nahi hoti.. haan lekin Laathi charge karne ka matlab frustation nikalna nahi hota.. ya koi personal khunnas nahi..
lekin kayi baar unke liye bhi zaroori ho jaata hai.. kyuki jo afser aur neta milke tabadle karte hai wohi shayad unhe laathi charge ke order bhi dete hai..
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