कुछ देर पहले मैं समाचार देखने के लिए टी. वी. के सामने बैठा। सभी चैनल पर एक ही स्टोरी चल रही थी। पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में एस. ई. ज़ेड.(विशेष आर्थिक जोन) के लिए अपनी जमीन लिए जाने का विरोध करते किसान और उस विरोध के नतीजे के रुप मे उन किसानों व उनके परिजनों पर पुलिस का कहर किस तरह टूटा।
पुलिस ने वहां आंसू गैस छोड़े, फ़ायरिंग की, नतीजा यह कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दस लोग मारे गए( टी वी चैनल से फोन पर बातचीत में तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बैनर्जी ने कहा कि दो सौ लोग मारे गए है)। पुलिस ने सिर्फ़ यहीं पर बस नही किया, समाचार चैनल के कैमरे ने यह भी रिकार्ड किया कि किस तरह अपने परिजन की लाश उठा रही महिला पर पुलिस जवान ने डंडे बरसाए। कोई आश्चर्य नही अगर मौके पर पुलिस ने लाशों पर भी डंडे बरसाए हों।
यह पहला मौका नहीं है कि ऐसा पहली बार हुआ हो। मैं अगर अपने ही राज्य छत्तीसगढ़ की बात करुं तो यहां के लोग अभी भी नहीं भूले हैं कि किस तरह व्यापारियों पर, शिक्षकों पर, प्रमुख विपक्षी दल के नेताओं-कार्यकर्ताओं पर बेरहमी से डंडे बरसाए गए थे। उत्तर प्रदेश, बिहार और देश के अन्य हिस्सों में भी कमोबेश ऐसी ही घटनाएं आम बात है। ऐसी खबरों के बाद एक जांच कमीशन बिठा दिया जाता है( जिसकी जांच अक्सर सालों चलती रहती है), पीड़ित परिवार को मुआवजा दे दिया जाता है, बस हो गया काम।
फ़्री हैंड किए जाने पर पुलिसिया बर्बरता की यह खबर नई नहीं हैं। पुलिस तो सरकारी आदेश का पालन कर रही थी लेकिन सवाल यह है कि हमारे देश में पुलिस अक्सर फ़्री-हैंड किए जाने पर इस कदर बर्बर क्यों हो जाती है…मानों इंसानियत से उसका कोई नाता नही,
क्या यह पुलिस जवानों का फ़्रस्ट्रेशन होता है या उनके मन में चौबीस में से बीस घंटे वाली नौकरी के कारण भरा हुआ गुस्सा या खीझ होता है जो अक्सर ऐसे मौकों पर बिना किसी रोक-टोक के बेधड़क निकलता है। देश के नागरिक पर यदि आतंकी या कोई अन्य हमला करे तो इंसान सबसे पहले पुलिस से सहायता की उम्मीद करता है लेकिन जब पुलिसिया कहर इस तरह बरपे तो नागरिक तुरंत कहां जाए, किस से सहायता मांगे, जब खाकी आतंक बरसे तो कहां से मदद मिलेगी तत्काल।
पुलिसिया कहर से हटकर इस मामले को देखें तो यह हालत तकरीबन पूरे देश में है, विशेष आर्थिक जोन बनाने के विरोध में किसान अपनी जमीन लिए जाने का विरोध कर रहे हैं और सरकार के कानों मे जूं तक नही रेंग रही।
14 March 2007
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7 टिप्पणी:
This is a fact which u have been showing in this page, really this is a fact happening in our country, This page of urs is really impresive bhai >:D<
ye khaki apni fitrat se na nuri hei na nari hei......surmaa_bhopali
बिल्कुल सही बात उठाई आपने संजीत भाई, कमोबेश पूरे देश का यही हाल है॥
पता नही ऐसे लोगों की मानवीयता कहां सो जाती है ऐसी बर्बरता करते समय…
Zinda Lasho ne Mari hui Lasho par LathiCharge Kar Diya To Kya Bura Kiya.... ! Is Desh ka Bhavisyha Ab Muje Andhkarmay he Nazar Aata hai..
Aur Sanjeet Bhaiyaa Bahut he Badhiya Laga aapka Blog Padh kar...
..::Dewesh::..
Sanjeet...bahot hi achcha likha hai....bari bari se mai sare post padhoonga aap ke...
dekho bandhu, ye sach much hi bahot bura hua hai, gareeb aur massoom kisano par lathiyan barsayi jaa rahi hain...zindon kya murda lashon par bhi shayed inhone lathiyan barsayin ho. yahan pe baat ye hai ke, kya sirf police hi zimmedar hai iski. kyunki, hamare desh mai, police aur dosre administrative departments apne aap se kuch kar nahi pate, wo sab, raj netaon ke office se aaye sandeshon ka palan karte hain, asia hi kuch system hai hamara. aisa nahi ke mai police ka paksh le rahan hoon, zimmedar wo hain, par, asal zimmedar, kisi AC room mai baitha T.V. par ye tamashe dekh, aane chunav ki nitiyan bana raha hoga.........agar zaroorat hai to janta ko jaagruk hone ka aur sahi neta ka chunav karne ka. aur aaj jis tareh se sarkar ( ye aaj ke neta hi jo sarkar hain)industry influence mai chal rahi hai, bhagwan hi malik hai iska.
yes i also agree with this article that in india this type of crisis shows its inhumanity to the world but according to this issue we have to consider the both issues the political influences and its outcome as the plice department's inhuman behaviour at nandigram it is not the proper way to grab progress by hook or by crook method its symply a political stunt of Buddhadev Bhattacharjee
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