अपने स्वर्गीय पिता के पुराने दस्तावेज़ों को खंगालते हुए एक पत्र मिला जो कि 8 सितंबर 1946 में रायपुर के अंग्रेज Deputy commissioner ने रायपुर के महाकौशल अखबार के पत्रकार अर्थात मेरे पिता को लिखा था।इसे पढ़ते हुए यह लगा कि भले ही यह मेरे बाबुजी की व्यक्तिगत संपत्ति में आता है लेकिन जिस व्यक्ति ने अपना जीवन ही देश के लिए देश की आजादी में लगा दिया था,जिसने स्वतंत्रता आंदोलन मे हिस्सा लेकर सालों जेल काटी उसकी कोई चीज व्यक्तिगत कैसे हो सकती है और फ़िर यह पत्र अब सिर्फ़ एक व्यक्तिगत नहीं बल्कि देश की धरोहर के रुप में है।एक तो 61 साल पुराना कागज़ उपर से टाईपराईटर के खराब टंकण की वजह से कई शब्दों की स्पेलिंग समझ में नहीं आ रही थी। अत: मुआफ़ी ।
पत्र प्रस्तुत है:-
D.O.No-1091-ST Office of the Deputy commissioner Raipur.
September8, 1946
My Dear Mr. Tripathi
There are still rumours that Goondas from outside are coming into Raipur and that people are getting norvous about it. will you kindly go round your ward, oither individually, or with the other members of the ward pease commitee and ascertain...........any now person of any suspicious character what soever, have arrived at any house or your Mohalla? If you find any such arrivals at present, or at any time in future, you should immediately bring the fact to the notice of the Police. The Police had been directed to promptly attend to your complaint. for your information it may be mentioned that the Goonda Act has been passed by the Lagislative Assembly and it would not be difficult to take prompt action. you also inform everybody in your ward about it so that peaceful citizens might be fully re-assured and the goonda element, if any, might find it more convenient to leave the place ommediately before any drastic action is taken.
2. you might also please contradict the alarming rumours and rosters confidence amongst the people. I wouldrequest you to be more active in your peace propaganda work particularly during the next few days on account of the forth-coming festival.
3. It is suggested to me by some people that if non-officials call joint meetings and develop better relations between the hindus and the mohammadans of different Mohalla, it would have a very good effect in maintaining healthy and friendly relations. you may,therefore, adopt this suggestion in your committee and do your very best to maintain good relations between the communities.
4. It has been the experience in some olaces that some times unnecessary conflicts take place amongst the communities over some minor inoidents and, therefore, I would request you to regard it as one of your most important and sacred duties to immediately intervence and to see that matters of a private nature are not allowed to take a communal turn. people aggrieved should be advised to seek remedy in the proper law court and the residents of the Mohalla should be advised not to take any part in any private dispute, which is likely to take a communal turn.
Your sincerely
( दस्तखत हैं जो पहचाना नहीं जा रहा)
To,
Mr. M.L.Tripathi,
Journalist,
C/O Mahakaushal,
Raipur.
15 May 2007
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9 टिप्पणी:
बहुत ही ऐतिहासिक पत्र खोज निकाला आपने ! हमें पढ़ाने के लिए धन्यवाद ।
घुघूती बासूती
ह्म्म्म!! बड़ा पुराना खत निकाला गया है भई!
उस समय के कम्यूनल टेंशन का इससे आभास होता है. धन्यवाद पढ़वाने के लिये.
बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर! आप अपने पिताजी के बारे में लिखें और उनके लेखन को नेट पर उपलब्ध करायें सहेज कर रखें!
संजीत जी,
आपने अपने पिता को लिखा पत्र अपने चिटठे में प्रकाशित किया उसके लिए धन्यवाद, सचमुच यह पत्र राष्ट्रीय धरोहर है, इस पत्र के मजमून से तत्कालीन भारत की स्थितियो का आभास होता है, क्योकि इतिहास के झरोखो से देखे तो अगस्त 1946 मे ही भारत की परिकल्पना को एक आकार प्राप्त हुआ था एव भारत के विभाजन के बीज मे भी अग्रेजो द्वारा तेजी से खाद पानी डाला गया साम्प्रदायिकता ने उसे हवा दिया एसी परिस्थितियो मे एक अग्रेज प्रशासक के द्वारा एक स्वतन्त्रता सन्ग्राम सेनानी व पत्रकार को सन्देही, असामाजिक तत्वो के क्षेत्र मे सक्रिय होने की सम्भावना को व्यक्त करना एव इसमे आदरणीय त्रिपाठी जी की मदद लेना अग्रेजो के हतोत्साहित होने का प्रमाण है.
आदरणीय त्रिपाठी जी छतीसगढ के स्वतन्त्रता सन्ग्राम सेनानियो मे अग्रणी थे छतीसगढिया होने के नाते हमे उनके योगदान को हमेशा याद रखना चाहिये आदरणीय त्रिपाठी जी को प्रणाम सहित
संजीत जी,
आपने अपने पिता को लिखा पत्र अपने चिटठे में प्रकाशित किया उसके लिए धन्यवाद, सचमुच यह पत्र राष्ट्रीय धरोहर है, इस पत्र के मजमून से तत्कालीन भारत की स्थितियो का आभास होता है, क्योकि इतिहास के झरोखो से देखे तो अगस्त 1946 मे ही भारत की परिकल्पना को एक आकार प्राप्त हुआ था एव भारत के विभाजन के बीज मे भी अग्रेजो द्वारा तेजी से खाद पानी डाला गया साम्प्रदायिकता ने उसे हवा दिया एसी परिस्थितियो मे एक अग्रेज प्रशासक के द्वारा एक स्वतन्त्रता सन्ग्राम सेनानी व पत्रकार को सन्देही, असामाजिक तत्वो के क्षेत्र मे सक्रिय होने की सम्भावना को व्यक्त करना एव इसमे आदरणीय त्रिपाठी जी की मदद लेना अग्रेजो के हतोत्साहित होने का प्रमाण है.
आदरणीय त्रिपाठी जी छतीसगढ के स्वतन्त्रता सन्ग्राम सेनानियो मे अग्रणी थे छतीसगढिया होने के नाते हमे उनके योगदान को हमेशा याद रखना चाहिये आदरणीय त्रिपाठी जी को प्रणाम सहित
Bahot Khub.
Jo solution dikhaya hai woh tab bhi effective hai aur aaj bhi itna hi effective hai.
शुक्रिया इस दस्तावेज से हम सब को रुबरू कराने का ! शांति प्रक्रिया बहाल करने के लिए आज भी ऐसे तौर तरीके अपनाए जाते हैं ।
बहुत खूब भाई।
आप बधाई के पात्र है।
शुक्रिया घुघूती बासूती जी, समीर जी, अनूप जी, संजीव भैया, मौलिक भाई, मनीष और प्रेमेंद्र भाई।
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