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01 October 2008

जवान की जान जरुरी या मंत्री की सवारी?

जवान की जान जरुरी या मंत्री की सवारी?


सुबह-सुबह दिल्ली में जा बसे एक पत्रकार मित्र का फोन आया। उसने जो बताया वह समूचे छत्तीसगढ़ के किसी अखबार में नही छपा था। फौरन उससे कहा कि भाई वो खबर स्कैन कर मुझे भेज दो। आधे घंटे मे ई मेल मिल गया। खबर पढ़कर अफसोस हुआ,शर्म आई अपने नेताओं पर। खबर यहां ब्लॉग पर चित्ररूप में डाल रहा हूं।





कहा तो यह भी जा रहा है कि चूंकि इसी हैलीकॉप्टर से मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के साथ नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा भी रायपुर आए। इसी के चलते यहां कांग्रेस इस घटना को मुद्दा नही बना पा रही है। वैसे भी कर्मा पर कांग्रेसी ही आरोप लगाते आए हैं कि वे तो अघोषित रूप से रमन के मंत्रिमंडल के ही सदस्य है। भाजपा सरकार के प्रारंभ किए सलवा जुडूम के कर्मा घोर समर्थक है जबकि बाकी कांग्रेस सलवा जुडूम के विरोध में खड़ी है।

कहते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल जी मीडिया मैनेजमेंट में बहुत शानदार हैं। शायद यही कारण है कि आज नई दिल्ली के अखबार ने तो ये खबर छापी है जबकि रायपुर के एक भी अखबार में इस मुद्दे पर एक लाईन भी नही दिखी उल्टे एक नामी अखबार मे तो ऐसी गुणगान वाली रपट छपी है जिसे पढ़कर ही समझ आ रहा है कि बॉस जुगाड़ वाली खबर है यह तो।

बड़ा लोचा है न नेताओं के साथ कि किस-किस को किधर-किधर मैनेज करें।

इन सबसे उपर उठकर, अगर वाकई यह सच है तो शेम-शेम।

जवान की जान जरुरी है न कि मंत्रियों की सवारी।

शेम-शेम।

7 टिप्पणी:

Udan Tashtari said...

हद है!

Gyan Dutt Pandey said...

मीडिया को आप कितना भी बढ़िया मैनेज करने वाले हों - यहां मैनेज करें, वहां सरक जाता है।:)

दिनेशराय द्विवेदी said...

घायलों और बीमारों को मंत्रियों पर तरजीह मिले यह बात नौकरशाही को समझ नहीं आएगी।

seema gupta said...

बड़ा लोचा है न नेताओं के साथ कि किस-किस को किधर-किधर मैनेज करें।
इन सबसे उपर उठकर, अगर वाकई यह सच है तो शेम-शेम।
जवान की जान जरुरी है न कि मंत्रियों की सवारी।
शेम-शेम।
' very well said, height of meanness"

regards

दीपक said...

ये सब हाथी है इनके खाने के दांत अलग और दिखाने के दांत अलग !! पर क्या अब ये खबर इसके बाद छ्त्तीसगढ के अखबार मे जगह बना पायेगी ?शायद नही !! मिडीया भी बिक चुकी है जनाब और क्या कहें॥

Anita kumar said...

ऐसे नेताओं को और नौकरशाहों को फ़ांसी से कम कुछ नहीं मिलना चाहिए…सच में शेम शेम

anuradha srivastav said...

इससे ज्यादा असंवेदनशीलता क्या हो सकती है।जितनी भर्त्सना करी जाये वो कम है। मीडिया के बारें में क्या कहें ? नैतिकता का अभाव है वहां। कठपुतली की भांति संचालित है।

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